अवनीश गौतम की कवितायें : सफाई कार्यक्रम और अन्य

अवनीश गौतम


दिल्ली की एक एड एजेंसी में क्रियेटिव डायरेक्टर अवनीश गौतम की कवितायें हंस, दलित साहित्य वार्षिकी, नया ज्ञानोदय आदि में प्रकाशित हुई हैं . सम्पर्क: 9891570925

१. सफाई कार्यक्रम 

जिन्हे जलाया जा रहा है
उन्हे बताया जा रहा हैं कि
सफाई है सबसे ज़रूरी
जैसे वे बने ही नहीं हैं हाड़ मांस से
बस थोड़ा हंसिया खुरपी चलाई
थोड़ा तेल तीली डाली और बस्स देखो कैसा
भह-भह के जले हैं होलिका की तरह

दुनिया भर के अखबारों और
टीवी चैनलों से बाहर
बिखरी पड़ी हैं लाशें
उत्तर से दक्षिण तक
पूरब से पश्चिम  तक
अंग- भंग, लथ – पथ,
जली -अधजली
जवान मर्दों की
औरतों की, बच्चों की लाशें

सफाई कार्यक्रम जोरों पर है
और ये कोई आज की बात नही
यह तो सांस्कृतिक कार्यक्रम है
जो चलता रहता है
धार्मिक अनुष्ठानो के साथ साथ

अब तो हत्यारो ने
नए तंत्रो,
नए यंत्रों
नए मंत्रों से
वधस्थलों का ऐसा आधुनिकीकरण कर दिया हैं
कि लाशें भी शामिल होती जा रही हैं
अपनी मृत्यु के उत्सव मे

२. वे सबसे पवित्र कहलाते हैं 

वे मुर्गा नही खाते
वे मच्छी नहीं खाते
वे दारू नहीं पीते
वे अगरबत्तियों की भीनी भीनी खुशबू  मे
हमारी औरतों की छातियाँ सहलाते हैं
फिर उन्हे काटते है और नोच नोच कर
हवा मे उड़ाते हैं

वे ठीक उसी जगह से हमारा सीना फाड़ते हैं
जहाँ बमुश्किल हम प्रेम की जगह बना रहे होते हैं
उनके लिए भी

हम भूख से लड़ कर अपने
सम्मान की तलाश मे निकल रहे होते हैं
वे शोहदों की तरह पकडते हैं हमारे गिरहबान
बिना किसी की नज़र मे आए
वे आज भी भरते है हमारे कानों में पिघला सीसा
हमारे समय के सबसे सभ्य सबसे सुसंस्कृत लोग
हमारी अस्थियों पे अपनी विजय पताका फहराते हैं
हमारी अंतड़िया निकाल कर खाते हैं
फिर भी सांस्कृतिक डियोडरेंट लगाने के कारण
सबसे पवित्र कहलाते हैं

3. मैं आता हूँ 

आपको गुस्सा अच्छा नही लगता
लेकिन आपको गुस्सा आता है
आपको घिन अच्छी नहीं लगती
लेकिन आपको घिन आती है
मैं आता हूँ तो आपको गुस्सा आता है
मैं आता हूँ तो आपको घिन आती है
वैसे आती है तो आए मेरी बला से
मैं तो अब आता हूँ
आपका एक एक दरवाजा
आपका एक एक ताला तोड़ते हुए
मैं तो अब आता हूँ
ये घर मेरा है और
अब मैं इसमे रहने आता हूँ
कब्जेदारों!
जो तुमने जला रखे हैं अपनी महान
संस्कृति के हवन कुंड
ए पवित्र देवताओ उन्ही में तुम्हारी हुंडियाँ
जलाने आता हूँ
ये जो तुमने चमका रखी हैं
अपनी झूठी और विशाल छवियों को प्रक्षेपित
करती विशाल काँच की दीवारें
उनको अपनी चीत्कारों से गिराने आता हूँ
ड्योढ़ी से ले कर गुसलखाने तक
अपना दावा जताने आता हूँ
अपने घर को मैं अपना बनाने आता हूँ
क्या करूँ
मुझे भी गुस्सा अच्छा नही लगता
लेकिन मुझे भी गुस्सा आता है

4. आपके जैसा
आप कहते हैं
मैं प्यार की बात नहीं करता
आप पर भरोसा नही करता
तो आप ही बताएँ
आप पर भरोसा कैसे किया जाए
आपने प्यार से मुझे शक्कर कहा
और अपने दूध में घोल कर मुझे गायब कर दिया
गायब क्या कर दिया आप तो मुझे पी ही गये
फिर आपने मुझे नमक कहा और
अपनी दाल में डाल कर मुझे गायब कर दिया
गायब क्या कर दिया आप तो मुझे खा ही गये
आपको धोखा पसंद नहीं
लेकिन आपको धोखा देना आता है
मुझे भी धोखा देना पसंद नहीं
लेकिन मैं भी सीख लूँगा
सब्र कीजिए एक दिन
आपको वैसा ही प्यार करूँगा
जैसे आपने मुझको किया

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