महाभूत ( चन्दन राय ) की कवितायें

महाभूत चन्दन राय


कविताओं मे अपने बिम्ब और कथन के साथ उपस्थित युवा कवि महाभूत चन्दन राय युवा पीढी के कवियों मे एक मह्त्वपूर्ण नाम है. संपर्क :rai_chandan_81@yahoo.co.in

[ तुम्हारी नथ ]

मैं अपनी तलब और तुम्हारे बहक जाने के भरोसे के बीच
गुलाबी प्यास की तपस्या पर बैठा हूँ
पर कमबख्त इतनी हठीली है तुम्हारी नथ
की  अड़ी खड़ी  है तुम्हारे होठों की किवाड़ पर सांकल चढ़ाए
तनी हुई है मेरी सांसों पर भी / मुँह चिढ़ाती पहरा लगाएकोतवाल सी पूछती है  मुझसे  मेरे इरादे   ..
इन्हे उतार फेकों की इनका चाल-चलन कुछ ठीक नहीं…
ये मुझे तुम्हारी अम्मा  लगती हैं !

[ दिसंबर की सर्दियों सी तुम ]

तुम अपनी आँखों से…
खर्च करती हो जितनी मुहब्बत,
उनसे रजाइयाँ बनाकर
मैं कई सर्दियाँ बिता सकता था !!
तुम भाप बना कर उड़ा देती हो…
अपने होंठों से जितनी गर्मियां
मैं उससे चाय पकाया करता
इस कमर तोड़ महंगाई में !
इन कंपकपाती सर्दियों में
यूँ हुस्न खर्चना ठीक नहीं
बिस्तर पर यूँ तो अलाव बहुत है
बस थोड़ी सी शक्कर और जुटा लें

दिसंबर की सर्दियों सी तुम !!

[ शायद तुम्हे प्यार है… ]

शायद तुम्हे प्यार है इन फूलों से
जिनकी सांसो से तुम्हे अपने प्रेम की खुशबू की महक आती है

शायद तुम्हे प्यार है उस आईने से
जिसकी आँखों में तुम्हे अपनी सूरत नजर आती है

शायद तुम्हे प्यार है उस रात से
जिसकी गोद में तुम अक्सर अपना सर रख कर सोती हो

शायद तुम्हे प्यार है उस खुदा से
जिसकी तस्वीर भर पर तुम दुनिया में सबसे ज्यादा यकीन करती हो

शायद तुम्हे प्यार है मुझसे
जिसकी एक आहट भर भंग कर देती है तुम्हारी सारी साधना..

मैं इस यकीन पर रोज माँजता हूँ अपनी काया
रोज नई-नई छब बनाता हूँ
जाने तुम्हे कौन सा रूप सोहे !!

[ मुझे तुमसे प्रेम है ]

बहुत आसान है प्रिय
गर तुम समझना चाहती हो
तो मेरे सीधे-साधे सरल शब्द प्रभावशाली है
“मुझे तुमसे प्रेम है”
मैं अपनी  देह में तुम्हारा नाम
लिख-लिख कर तुम्हारी निशानदेही करता हूँ !

..और बहुत मुश्किल लगभग असम्भव
मेरा कहा कोई भी शब्द अपने प्रेम के प्रदर्शन में
अपने समर्पण की अभ्यर्थना में निरर्थक ही रहेगा
गर तुम समझना ही नहीं चाहती
“मुझे तुमसे प्रेम है” !!

कुह रिश्ते दुनिया की भीड़ में भी नहीं खोते
गर तुम्हे समझ आता है तो समझ लेना
अन्यथा समझ लेना हमारे बीच
कभी कोई रिश्ता था ही नहीं

बहुत आसान है प्रिय
गर तुम समझना चाहती हो
और बहुत मुश्किल लगभग असम्भव
गर तुम समझना ही नहीं चाहती
“मुझे तुमसे प्रेम है … !!

[ प्रिय तुम्हारा चेहरा ]


ऩऱम ऩऱम मख़मऴ सी मुलायम  ,
भीजे चाँद क़ी भीगी चाँदनी सी
सोकर उठी सुबह सी उज्जवल ,
ऩऩ्हे फूलो की हसँती क्यारी सी
साँझ के आक़ाश सी कुछ कुछ,
कुछ कच्ची माटी की पावऩ मूरत सी
निम॑ल ओस सी ताजा ,
मन्दिर की अलौकिक सजावट सी  !
सोने के तारो से मढ़ी भौंहों के नीचे
खुदा की जिन्दगी भर की कमाई…
ईश्वर का रूप है
“प्रिय तुम्हारा चेहरा” !

[ तुम जरा सा साथ दे देना ]

तुम जरा सा कहोगी
और मै तुम्हारे शब्दों के स्नान में
गंगा सा पवित्र हो जाऊँगा

तुम जरा सा हंसोगे
और चाँद से गिर रही इस मीठी ठंडी हंसी से
मै कुबेर धनी हो जाऊँगा

तुम्हारा घूँघट जरा सा ढलेगा
और तुम्हारे रूप के टपकते नूर से
मै मोतियों सा धुल जाऊँगा

तुम जरा सा साथ दे देना..
मै सच कहता हूँ
जन्मो-जन्मो तक संवर जाऊँगा !!

[ अपरिचित ]

तुमको देखा नहीं
पर शायद तुम्हे चाँद कहते हैं

तुमको सुना नहीं कभी
पर शायद तुम्हे गजल कहते हैं

तुमसे मिला भी नहीं कभी
पर शायद तुम्हे खुदा कहते है

अपरिचित इस दिल का हिर्स-ए-रजा हो तुम
तुम्हे दिल की वफ़ा हम कहते है !

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here