अरुण चंद्र राय की कवितायें

अरुण चंद्र राय

अरुण चंद्र राय प्रकाशक हैं. ‘ ज्योति पर्व’ प्रकाशन का संचालन करते हैं. संपर्क  : 9811721147

धान रोपती औरतों का प्यार


खेतों के बीच
घुटने भर कीच में
धान रोपती औरतों से पूछो
क्या होता है प्यार
मुस्कुराकर वे देखेंगी
आसमान में छाये बदरा की ओर
जो अभी बरसने वाला ही है
और प्रार्थना में
उठा देंगी हाथ
धान रोपती औरतों का प्यार
होता है अलग
क्योंकि होते हैं अलग
उनके सरोकार
उन्हें पता है
बरसेंगे जो बदरा
मोती बन जायेंगे
धान के गर्भ में समाकर
और मिटायेंगे भूख
उन्हें कतई फ़िक्र नहीं है
अपनी टूटी मडैया में
भीग जाने वाले
चूल्हे, लकड़ी और उपलों की
हां , उन्हें
फ़िक्र जरुर है
जो ना बरसे बदरा
सूख जायेंगी आशाएं

जब प्रेमी की याद आती हैं उन्हें
जोर जोर से गाती हैं वे
बारहमासा
और हंसती हैं बैठ
खेतों की मेढ़ पर
गुंजित हो उठता है
आसमान
ताल तलैया
इमली
खजूर
और पीपल
दूर ऊँघता बरगद भी
जाता है जाग
उनकी बेफिक्र हंसी से
फ़िक्र भरी आँखों
और बेफिक्र हंसी के
द्वन्द में जीता है
धान रोपती औरतों का प्यार

.
पानी लगे पैर

बचपन से
अब तक
सुनता आ रहा हूँ
पैरों में
पानी लगने के बारे में
सोचता भी आया
लेकिन कहाँ समझ पाया
मैं भी

औरतें
जो करती हैं
घरों/ खेतों में काम
उनके पैरों में
लगा होता है पानी
फैक्ट्री और दफ्तरों में
काम करने वाली औरतें भी
अछूती नहीं रहतीं

घुटने भर पानी लगे खेतों में
जो हरवाहे बनाते हैं हाल
जो मजूर बोते हैं धान
उनके पैरों में भी लगा होता है पानी
एक्सपोर्ट हाउस/एम् एन सी के कामगार
अपने सपनों के साथ
पैरों में लगाये होते हैं
अलग तरह का पानी
जो पैर
लक्ष्मी होते हैं
पूजे जाते हैं
उन पैरों में भी
लगा होता है पानी
बुरी तरह से
आज भी .

आँगन से घर
घर से दालान
दालान से खेतों तक
चकरघिन्नी खाती माँ के पैरों में भी
लगा होता था पानी
और लगा रहा वह
उमर भर
नहीं समझा गया
उसे या
उसके पानी लगे पैरों को
अलग बात है कि
उसके नहीं रहने के बाद सूना हो गया था
घर आँगन
अनाथ हो गए थे
खेत खलिहान, बैल-गोरु

जबकि
फटे हुए
विवाई भरे पैर
दिख भी जाते हैं
नहीं दिखता
पैरों में लगा हुआ पानी
चुपचाप लिपटा रहता है पानी
पैरों से किसी जोंक की तरह

आँखों के पानी की तरह
सुख-दुःख में
छलक नहीं उठता
पैरों में लगा पानी.

मजदूर औरतों की पीठ


मजदूर औरतों की पीठ
अक्सर दिख जाती है
पाथते हुए उपले
गढ़ते हुए ईट
उठाते हुए धान की बोरियां
हांकते हुए बैल , गाय
चराते हुए बकरी
एक्सपोर्ट हाउस में काटते हुए कपडे
सिलते हुए सपने
या फिर
गहराती रात में स्ट्रीट लाईट के नीचे
मजदूर औरतों की पीठ

शक्ति पीठ होती हैं
ये पीठ
जिन पर खुदा होता है
सृजन का इतिहास
तरक्की के राजमार्ग पर
नहीं होता कोई साथ
मजदूर औरतों की पीठ के लिए

अनुसन्धान होते हैं
सामाजिक और आर्थिक शोध
किये जाते हैं
इन पीठों के रंग पर
बनाई जाती हैं
नीतियां
लेकिन सब की सब
चली जाती हैं दिखा कर पीठ
मजदूर औरतों की पीठ को

जब दे रही होती हैं औरतें
धरने , ज्ञापन
लगा कर काले चश्मे
सनस्क्रीन लोशन
मजदूर औरतों की पीठ
दिखा रही होती हैं
सूरज को पीठ
और सूर्य का दर्प भी
पड़ जाता है मंद
मजदूर औरतों की पीठ के आगे

भले ही
दिख जाती हो
मजदूर औरतों की पीठ
कभी पीठ नहीं दिखाती हैं
ये मजदूर औरतें ।

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