अरुणा , मथुरा , माया , प्रियंका , निर्भया , इमराना : क्या आप इन्हें जानते हैं !



कल अरुणा शानबाग ने आख़िरी सांस ली . कल फिर उसके साथ हुए वीभत्स अत्याचार की कहानी मीडिया और सोशल मीडिया में ताजा हो गई. हम जिस समाज में रहते हैं , वहां स्त्री न सिर्फ एक देह है, बल्कि पुरुष की कुंठा , उसके बदले की भावना , जातीय अहम के लिए एक प्राइम साइट की तरह हैं . आज अरुणा के बहाने स्त्रीकाल के पाठकों को हम बलात्कार की कुछ ऐसी घटनाओं की याद दिला रहे हैं , जिनका समाज पर न सिर्फ व्यापक असर हुआ  बल्कि  स्त्री के पक्ष में कानूनी बदलाव के कारण बने वे. ये वैसी घटनायें हैं , जो स्त्री को कम कपड़े और मर्यादा में रहने की हिदायत देने वाली जमात को जवाब दे सकें , क्योंकि इन घटनाओं में स्त्री पर यौन हिंसा , जातीय घृणा , मर्दवादी अकड़, ताकत और शौर्य के प्रदर्शन , बदले की भावना  के कारण हुए  है , जिसके पीछे धार्मिक नियमों का वहशीपन भी उजागर हुआ है . 

1. मथुरा

महाराष्ट्र के चन्द्रपुर जिले के नवरगाँव में रहने वाली आदिवासी महिला मथुरा वह पीडिता थी , जो भारत में बलात्कार के क़ानून में बदलाव के लिए हुए पहले आन्दोलन का कारण बनी . इस केस के बाद ८० के दशक में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के विरोध में और महिलाओं के पक्ष में सम्मानजनक क़ानून बनवाने के लिए देशव्यापी आन्दोलन हुए तथा १९८३ में भारत सरकार बलात्कार संबंधी क़ानून को लेकर महिलाओं के पक्ष में एक कदम और आगे बढ़ी. १९८३ में क़ानून में बदलाव के बाद भारतीय दंड संहिता ( IPC) में बलात्कार की धारा ३७६ में चार उपधाराएं ए, बी ,सी और डी  जोड़कर हिरासत में बलात्कार के लिए सजा का प्रावधान किया गया . बलात्कार पीडिता से ‘बर्डन ऑफ़ प्रूफ’ हटाकर आरोपी पर डाला गया , यानी अपने ऊपर बलात्कार होने को सिद्ध करने के लिए पीडिता को जिस जहालत और अपमान से गुजरना पड़ता था , उससे उसे मुक्ति मिली और अब आरोपी के ऊपर खुद को निर्दोष सिद्ध करने की जिम्मेवारी आ गई. भरी अदालत में अपमानजनक प्रक्रिया से गुजरना भी ख़त्म हुआ और ऑन कैमरा सुनवाई की व्यवस्था हुई .

१९७२ में महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले  के देसाईगंज  थाने में अपने दोस्त अशोक के खिलाफ अपने भाई के द्वारा दर्ज मामले में बयान के लिए आई १६ वर्ष की मथुरा मडावी के साथ थाने के दो पुलिस कांस्टेबल गणपत और तुकाराम ने थाना परिसर में ही बलात्कार किया था. मथुरा के भाई ने मथुरा के दोस्त पर उसे बहलाने और अपहरण करने की कोशिश का आरोप लगाया था. इस घटना के विरोध में स्थानीय लोगों के हंगामे के बाद थाने में केस तो दर्ज हुआ लेकिन १९७४ में निचली अदालत  ने दोनो आरोपियों को इस बिना पर छोड़ दिया कि मथुरा ‘सेक्स की आदि’ थी और उसपर चोट के कोई निशान नहीं थे , तथा उसने विरोध  या हंगामा नहीं किया था . बॉम्बे उच्च न्यायालय के नागपुर बेंच ने  निचली अदालत के निर्णय को इस आधार पर खारिज कर दिया कि थाना परिसर में पुलिस के कांस्टेबल के द्वारा डरा कर किया गया बलात्कार सहमति के साथ संबंध नहीं हो सकता. १९७९ में सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को फिर से बहाल कर दिया और आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया. आरोपियों की ओर से वकील थे प्रसिद्द एडवोकेट राम जेठमलानी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ क़ानून के प्राध्यापकों , उपेन्द्र बक्सी , रघुनाथ केलकर , लोतिका सरकार और वसुधा धागम्वार ने सुप्रीम कोर्ट को एक खुला पत्र लिखा. इसके बाद देशव्यापी महिला -आन्दोलन शुरू हुए और १९८३ में भारत सरकार को बलात्कार क़ानून को और संवेदनशील बनाना पडा .

2. अरुणा शानबाग़ 


अरुणा शानबाग केईएम अस्पताल मुंबई में काम करने वाली एक नर्स थीं. जिनके साथ 27 नवंबर 1973 में अस्पताल के ही एक वार्ड ब्वॉय ने बलात्कार किया था. उस वार्ड ब्वॉय ने यौन शोषण के दौरान अरुणा के गले में एक जंजीर बांध दी थी. उसी जंजीर के दबाव से अरुणा उस घटना के बाद कोमा में चली गयीं और फिर कभी सामान्य नहीं हो सकीं. उस घटना के बाद पिछले 42 वर्षों से अरुणा शानबाग कोमा में थीं. अरुणा की स्थिति को देखते हुए उनके लिए इच्छा मृत्यु की मांग करते हुए एक याचिका भी दायर की गयी थी, लेकिन कोर्ट ने इच्छामृत्यु की मांग को ठुकरा दिया था.  हालांकि इस मामले की सुनवाई करते हुए मौत और जिन्दगी के बीच जूझ रहे लोगों के लिए क्रमिक इच्छामृत्यु का प्रावधान कोर्ट ने कर दिया . यानी परिवार के चाहने पर ऐसे व्यक्ति को जीवन रक्षक उपायों से धीरे -धीरे मुक्त करते हुए मरने की अनुमति दे दी . अरुणा की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने वाले दरिंदे का नाम सोहनलाल था. जिसे कोर्ट ने सजा तो दी, लेकिन वह अरुणा के साथ किये गये अपराध के मुकाबले काफी कम था.

पढ़ें  :  ( अरुणा शानबाग सिर्फ बलात्कार पीडिता ही नहीं थी .)


3. माया त्यागी  : 

गाजियाबाद निवासी ईश्वर त्यागी अपने दो साथियों और पत्‍‌नी माया त्यागी के साथ 18 जून 1980 को बागपत के पास एक शादी में शरीक होने आ रहे थे। बागपत में उनकी कार पंचर हो गई। कार ठीक करने के दौरान बागपत में तैनात एक एसआई नरेंद्र सिंह के साथ ईश्वर त्यागी और उनके साथियों की कहासुनी हो गई। नरेंद्र सिंह उस समय तो वहां से चला गया और कुछ ही देर बाद अपने कुछ साथी पुलिसकर्मियों के साथ वापस लौटा। नरेंद्र सिंह ने ईश्वर त्यागी और उनके दोनों साथियों की गोली मारकर हत्या कर दी और ईश्वर की पत्‍‌नी माया त्यागी को पूरे बाजार में निर्वस्त्र घुमाया। बाद में उनके खिलाफ कई मुकदमें दर्ज कर दिए।

आरोप था कि पुलिसकर्मियों ने माया के साथ दुष्कर्म भी किया। इस प्रकरण के बाद महिला आन्दोलन का गुस्सा फूटा , जनांदोलन तेज हुआ  । सरकार को न्यायिक जांच और सीबीसीआईडी जांच का आदेश देना पड़ा जिसमें 11 पुलिसकर्मियों को दोषी पाया गया। कोर्ट ने इनमें से 6 पुलिसकर्मियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। मुख्य आरोपी नरेंद्र सिंह की घटना के कुछ ही दिन बाद हत्या हो गई थी, जिसके आरोप में माया त्यागी के देवर विनोद त्यागी जो उत्तरप्रदेश पुलिस में कांस्टेबल था उसे फंसा दिया गया। हालांकि वर्ष 2009 में विनोद त्यागी को नरेंद्र सिंह की हत्या के आरोप से कोर्ट ने बरी कर दिया था।

4. प्रियंका 

महाराष्ट्र के भंडारा के खैरलांजी में  सन् 2006 सिंतबर में करीब 50 लोगों ने दलित किसान भैयालाल भोतमांगे की पत्नी और उनके तीन बच्चों की गला काट कर निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी। ह्त्या के पूर्व भैया लाल की बेटी ‘ प्रियंका पर यौन हिंसा भी की गई थी . उसके गुप्तांगों में रॉड डालने का आरोप भी है .  इसके बाद दलितों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया था। राज्य सरकार ने मामला तूल पकड़ता देख पूरे मामले की छानबीन सीबीआई से कराने का आदेश दिया था।सीबीआई ने 11 लोगों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र रचने, हत्या, महिलाओं की गरिमा से खिलवाड़ करने और सबूत मिटाने की कोशिश करने का आरोप दाखिल किया था।  समूचे महाराष्ट्र को हिला देनेवाले खैरलांजी हत्याकांड में दोषी 8 लोगों में से 6 को फांसी की सजा और 2 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. यह घटना जातीय हिंसा और बदले का उदहारण है .

5. इमराना 

उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर की इमराना के साथ उसके 69 वर्षीय ससुर ने बलात्कार किया था. इसके बाद धार्मिक पंचायत ने उसके पति को उसका बेटा करार दिया. और पति के साथ उसके निकाह को अवैध घोषित कर दिया. दारूल उलूम देवबंद ने भी धार्मिक पंचायत के फैसले को जायज ठहराया , जबकि बाद में देवबंद ने ऐसा कोई फतवा घोषित करने से इनकार कर दिया. हंगामे के बाद अभियुक्त मोहम्मद अली गिरफ्तार हुआ.

6. निर्भया 


दिल्ली में अपने पुरुष मित्र के साथ बस में सफर कर रही निर्भया के साथ 16 दिसम्बर 2012 की रात में बस के ड्राईवर , कंडक्टर  व उसके अन्य साथियों द्वारा पहले भद्दी-भद्दी फब्तियाँ कसी गयीं और जब उन दोनों ने इसका विरोध किया तो उन्हें बुरी तरह पीटा गया। जब उसका पुरुष दोस्त बेहोश हो गया तो उस युवती के साथ उन बहशियों ने बलात्कार करने की कोशिश की। उस बहादुर युवती ने उनका डटकर विरोध किया परन्तु जब वह संघर्ष करते-करते थक गयी तो उन्होंने पहले तो उससे बेहोशी की हालत में बलात्कार करने की कोशिश की परन्तु सफल न होने पर उसके यौनांग में व्हील जैक की रॉड घुसाकर बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया। बाद में वे सभी वहशी दरिंदे उन दोनों को एक निर्जन स्थान पर बस से नीचे फेंककर भाग गये। किसी तरह उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। वहाँ बलात्कृत युवती की शल्य चिकित्सा की गयी। परन्तु हालत में कोई सुधार न होता देख उसे 26 दिसम्बर 2012 को सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल ले जाया गया , जहां जहाँ उसने अंतिम सांस ली .  30 दिसम्बर 2012 को दिल्ली लाकर पुलिस की सुरक्षा में उसके शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस घटना के बाद देशव्यापी आन्दोलन छिड़ा और भारत में यौन हिंसा के क़ानून में और सुधार हुए .

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