एक खत‍ पागलखाने से और अन्य कवितायें

 परी

( पेरिया परसिया , सेतारह या पेरि, हिन्दी में जिसे ‘परी’ नाम दिया गया, की कवितायें . एक कवि के प्यार में पड़ी ईरानी कवयित्री परी की कवितायें  . अनुवाद चर्चित कवयित्री रति सक्सेना ने किया है.  )

एक खत‍  पागलखाने से

1

वे कहते हैं कि
वे हाथ बाँध देंगे मेरे
पलंग के सिरहाने से
यदि मैंने दीवारों पर
सिर पटका

उन्हें प्यार है दीवारों से

मैं बन्द हूँ
पांच दीवारों वाले
एक सफेद ठण्डे कमरे में
जहाँ कोई खिड़की नहीं
हवा के लिए

उन्हे नफरत है खिड़कियों से

मैं अकेली पत्ती, पितलाई हरी
पत्तियों की तरह, मुझे दरकरार होती है
ताजी हवा की, यदि विश्वास नहीं उन्हें
मेरे क्लोरोफिल पर तो
इतना याद रखें कि
एक पागल औरत को भी जरूरत है
हवा की,  जो उसके बालों को सहला दे

वे परागकणो से युक्त  हवा को प्रदूषित कहते हैं

कमरे की पाँचवी दीवार मेरी छत है
यह दीवार सरकाई जा सकती है
इसका बोझ मेरे कंधों पर टिका है
जिससे मेरे दिल और इसकी दूरी
हर क्षण कम होती जा रही है
यह  हर क्षण  नीचे झुकती जा रही है
किन्तु कभी ढहती नहीं

वे खुद चमकदार आसमान के नीचे रहते हैं

वे कहते हैं कि मुझे एक सिगरेट देंगे
यदि मैं कसम खाऊँ कि मैं अच्छी बच्ची बनूँगी
पलंग के नीचे घुस कर अपनी नसें नहीं चबाऊँगी
लेकिन वे एक ट्रे लेकर आते हैं, शाक थेरोपी से पहले, हर बार

वे मुझे मार डालने के आदी हो गए हैं।

उन्होंने मेरे दीमाग से संगीत मिटा दिया
उन्होंने मेरी देह से नृत्य मिटा दिया
लेकिन वे दिल से नहीं मिटा पाए
तुम्हारे प्यार को, तुम्हारी यादों को, मेरी चाहत को
तुम्हारी कविताओं का अपनी जबान में तर्जुमा करने को

वे मुझे मार डालने के आदी हो गए हैं।

2

मुझे नहीं चाहिए सिगरेट
नहीं चाहिए सूरज की रोशनी
नहीं चाहिए मुझे आजादी

बस कह दो उन्हे कि
दें दे मुझे कागज और कलम
जिससे मैं बात कर सकूँ अपने आप से

यहाँ सारे कि सारे डाक्टरों ‌और नर्सों
के सिर गायब हैं

मैं कभी नहीं माँगूंगी उनसे चाभी
जिससे इस दरवाजे को बन्द कर
महसूस कर सकूं आजादी अकेलेपन की

कभी भी नहीं माँगूगी उनसे धर्मग्रन्थ
पापों के प्रायश्चित के लिए
जिससे महसूस कर सकें वे अपने को मजबूत

ईश्वर भी उतना अकेला नहीं होगा आसमान में
जितना की एक पागल औरत है अकेली
इस कमरे में जो बन्द नहीं होता

कह दो उनसे कि वे दे दें मुझे बस एक कागज और कलम
जिससे मैं बुन सकूँ एक खूबसूरत प्रेम कविता
मेरे प्यार की आत्मा के लिए, सर्दियाँ करीब आ रहीं है।

सर्दियाँ करीब आ रहीं है।

3

ये दीवारें इतनी खाली क्यों हैं?
न कोई दर्पण, ना चित्र,  ना ही धब्बे
बच्चों के हाथों के निशान तक नहीं
केवल डरावनी सफेदी
केवल डरावनी सफेदी

दीवार घड़ी कहाँ छिपी है?
मेरे सीने में? मेरी बिल्ली कहाँ है?
कहाँ है मेरा वैक्यूम क्लीनर?
कहाँ हैं बिना धुले कपड़ों और
झूठे बर्तनों का ढेर?

यह डरावनी सफेदी
क्या यह इत्तिला है दुनिया के अन्त की?
यहाँ हर दिन बीता हुआ कल है
कोई आने वाला कल नहीं, दर्पण नहीं, घड़ी की सुइयाँ नहीं
बस दीवार पर मंडराती एक औरत की परछाई

मरी मोमबत्ती की तरह

कोई है इस दुनिया में जो

मरी मोमबत्ती को याद रखता हो ?

4
आराम के लिए वक्त नहीं है
यहाँ तक कि पागल औरत के लिए भी

आधी रात को
एक बिना सिर वाला आदमी
सफेद चोगे में
आता है कमरे में
बोलता है सफेद आवाज में..
” तुम अभी भी खूबसूरत हो”
मेरे इंकार करने पर कहता है..
“मै तुम्हारा पति हूँ”

वह झूठ बोल रहा है, मैं जानती हूँ
लेकिन वह मेरे पति जैसा लगता जरूर है
वह शुरु होता है बिना चुम्बन के
बिल्कुल मेरे पति जैसे ही
उसे अन्तर मालूम नहीं हैं
प्यार और यौन सम्बन्ध में

शाक थेरोपी इससे बेहतर है
शाक थेरोपी इससे बेहतर है
शाक थेरोपी इससे बेहतर है
शाक थेरोपी इससे बेहतर है
शाक थेरोपी इससे बेहतर है

सुबह वह फिर आता है
खूबसूरत जवान नर्स के साथ
” हमारे बच्चे कैसे है” मैं पूछती हूँ
वह अपने बालों वाले हाथ हिला हिला कर हँसता है, हँसते हुए कहता है
” मुझे नहीं मालूम, मैं तुम्हारा पति नहीं हूँ, “फिर पूछता है–
” आज कैसा लग रहा है, कल रात को कोई बुरा सपना तो नहीं देखा?”

5

क्यों हूँ मैं यहाँ?

क्यों कि मैंने एक आदमी से प्यार किया
जिससे मैं कभी मिली तक नहीं?

क्यों कि मेरे और प्यार के बीच ऐसा कोई पुल नहीं
जो दिखाई दे, सिवाय कविता के?

क्या इसलिए कि मैं पक्की व्यभिचारिणी हूँ
स्वप्न युक्त सपनों को बुनती हुई?

कोई भी विश्वास नहीं करता मुझ पर
सिवाय इस गुलाबी गोली के

जो उनके कानून और धर्म के अनुरूप
मेरे दिल की क्रूर धड़कनों को वश में रखती है

मैं यहाँ क्यों हूँ?

मेरी आँखों में आँसू का एक कतरा भी नहीं?
सिवाय भूतों के कोई मुझसे मिलने आता भी नहीं

क्यों नहीं मुझे लोगों से मिलने दिया जाता?
अपने परिवार से, बच्चों से?

” कोई अपनी बेटी से शादी नहीं करेगा
क्यों कि उसकी माँ पागलखाने में है”

मेरे पति ने कहा था गुस्से में, जब वह
आखिरी बार मिलने आया था

उम्दा लफ्ज, उम्दा काम, उम्दा सोच

तभी तो मैंने अपने पति को मार डालने के लिए वार किया
किसी ओर के लिए नहीं, सिर्फ खुदा के लिए

6

अब मैं किससे अपना अकेलापन बाटूँगी
यह चींटी भी मर गई?

नर्स गुस्सा कर रही है
“शर्म आनी चाहिए तुम्हे!
तुम एक चींटी के मरने पर रो रही हो
जब कि पूरी दुनिया में लाखों करोड़ों निरपराध
मारे जा रहे हैं, बमबारी की बरसात में”

मैं दूसरों के बारे में सोचने की कोशिश कर कर के थक गई
वे मर गए हैं
बस मेरे अकेलेपन को तकलीफ देने के लिए
वे वास्तब में हैं या फिर
मर गए वास्तब में?

मैं अब इस वास्तब पर विश्वास नहीं करती
यहाँ तक कि जंग मेरे अपने बेटे की मौत की बात पर भी नहीं
मुझे तो यह बात कविताई झूठ लगती है
बम क्या खाक बच्चों को मारेंगे
वे तो दुश्मनों के लिए बने हैं

मैं इस वक्त बस मरी चींटी के बारे में सोच रही हूँ
सारे मीडिया वाले इस बात पर खामोश हैं
यह चींटी अमेरिका की प्रेसीडेंट जो नहीं थी
न ही कोई धार्मिक गुरु
दुनिया की आखिरी चींटी भी नहीं
उसकी जिन्दगी और मौत कोई खास मायने नहीं रखती
यहाँ तक की कविता पत्रिका का चीफ एडिटर
जो सताई गई औरतों की कविता छापता है
उसके लिए भी वह केवल एक चींटी थी, और कुछ नहीं
उसे तो नर्स के कदमों मे कुचल कर मरना ही था

अब जब नर्स चली गई तो मैं अपने आप से पूछ रहीं हूँ
इस चींटी की मौत के लिए यह पागलखाना ही क्यों चुना गया
क्या खुदा कोई संदेश दे रहा है?

दवाइयों की गोलियों और शीशी की जगह
यदि वे मुझे एक गमला दे दें
मैं उसमे चींटी का मरी देह को दफना दूँगी उसमें
तो उसका रहस्य लाल पंखुड़ियों में खिल उठेगा

7
मैंने भूल के गिद्ध के सामने अपना दिल खोल दिया
जिससे वे खा ले तुम्हारी यादें, और बैठ जाए तुम्हारी जगह
लेकिन तुम बच गए

मैंने पागलपन के अथाह रेगिस्तान में पनाह ली
जिससे एक दुनिया मिले जहाँ तुम नहीं हो
लेकिन पहले भी ज्यादा चालाक शब्दों ने , मेरे दीमाग में पनाह ले ली
यह याद दिलाने के लिए, यह स्वीकार करने के लिए
तुम्हारे सिवाय, और कोई भी जगह नहीं ले सकता है
मेरे दीमाग में, मन में

वे लगातार मेरे लिए दवा ‌और गोलियाँ ला रहे हैं
इस ठंडे सफेद कमरे में
जहाँ मैं दुनिया की आखिरी चील की मानिंद रह रही हूँ
यह याद रखते हुए की खो गया है मेरा प्यार का आसमान

8

मेरी माँ किसी और मर्द के बारे में क्यों नहीं सोचा करती थी
अपने शौहर के साथ सोते वक्त
या आलू छीलते वक्त ?

मेरी सोच हरदम देह को धोखा देती रही

क्यों मेरी माँ के लिए पागलखाना बस
पागलों के रहने की जगह है? क्यों मैं अपने अनन्त सवालों को
भूल जाती हूँ, ज्यों ही अपनी ओंर आते देखती हूँ सिरकटी देहों को

9

पागलखाने के इस कमरे की सफेदी और ठंडक
गवाह है, प्रिय! कि मैंने तुमसे कुछ नहीं चाहा
न धन दौलत, न अंगूठी, यहाँ तक कि कबूतर की परछाई तक नहीं
मेरी एक मात्र इच्छा थी कि तम्हें सुन सकूँ
मेरी आँखे चाहती थीं तुम्हें देखना
” झूठी और धोखेबाज” तुमने कहा, और छोड़ कर चले गए
सफेदी और ठंडापन जो इस कमरे में छाया है
साफ- साफ बयान करता है कि मै झूठ बोल ही नहीं सकती
हालाँकि कोई मेरे हौंठों से सच सुनना पसन्द करता ही नहीं है
सच जिससे मैं नफरत करती हूँ वह है ” मौत”

10

जब मैं तुम्हारे प्यार में पड़ी तब
मेरे पास एक अच्छा शौहर था, जिसने मेरे लिए
चार कमरों का बंगला बनवा रखा था

जब मैं तुम्हारे प्यार में पड़ी तो
मेरे पास एक बेटा था , गबरू जवान
और एक प्यारी खूबसूरत बेटी

जब मैं तुम्हारे प्यार में पड़ी तो
मुझे कुछ नहीं चाहिए था
अलावा एक आत्मा के, मेरी देह के लिए

तुमने मेरे दिल को अपने प्यार भरे गीतों से भर दिया
तुमने जता दिया कि — “बस मुझे मानो
मैं ही प्यार का आखिरी मसीहा हूँ इस दुनिया में”

तुमने मेरे खाबिन्द को लिखा
उसे धमकाया ” उसे आजाद कर दो! ओ नीच आदमी!”

प्यार के उस विशाल आसमान में
जब मैं तुम्हारी बाहों में बँधी , कल्पना में ही
आँखे बन्द किए , बिना परों के उड़ रही थी

तुमने शासित कियाः- खुदा को चुन, बस खुदा को
मैने अपनी बीबी से वायदा किया है कि तुम्हे खत नहीं लिखूँगा!
मैं अब से अपने बेटे के लिए अच्छा पिता बनूंगा!

तुम्हारे प्यार में पड़ने से पहले
सभी घड़ियों की दो सुइयाँ हुआ करती थीं
और पागलखाना मेरा घर नहीं हुआ करता था।

11

खुदा!
तूने दूसरों के लिए जिन्दगी बनाई
मेरे भाग्य मे कविता बदी थी
और अकेलापन
और पागलपन
दूसरों के पास चार मौसम हैं
और दो पाँव चलने के लिए
जबकि दुनिया मेरे बर्फीले पंखो पर टिकी है
अपनी खंदको, यतीमखानों और मरघटों के साथ

दूसरों को तो बस मौत के दिन मरना पड़ता है
लेकिन मैं जिन्दगी के हर रोज में मर रही हूँ

मैं जब नौ बरस की रही हूँगी
दिव्य दृष्टि के लिए चुनी गई थी
लेकिन किसी ने विश्वास नहीं किया
सिवाय बेकार के लफ्जो के

इन्ही लफ्जों ने मुझे मसीहा बना दिया
बिना खुदा के, बिना बन्दों के
अपने पंखों से छूट कर असली दुनिया के
पिंजरे में दुबारा आने के लिए

क्यूपिड की तरह, जिसने अपने पैरों के लिए
जूतों को पंखों से बदल लिया

12

मेरे बिस्तरे तक, मेरे दिल तक
पानी चला आ रहा है
पाँचवी दीवार तक
किसी को आश्चर्य तक नहीं
ऐसा लगता है कि सारे कि सारे डाक्टर और नर्सें
जन्मजात मछलियाँ और सीप घोंघें हैं

और कोई नहीं तो पानी ही
पागल औरत के बाल सहला देता है
और कोई नहीं , बस पानी ही
पौंछ देता है आँसुओं को, पगली औरत के

कहाँ हैं मेरा प्यार?
कहाँ हो तुम?
अब तुम चले ही गए तो
मैं नहीं चाहती हूँ कि वापिस लौटो
मुझे बचाने के लिए
बस मेरे हाथ छोड़ दो
और समाने दो मुझे समन्दर की तलहटी में
वहाँ, मुझे जरूर मिलेगा एक मरा हुआ शार्क
तुम्हारे दिल की गंध लिए , स्याह
हर बार जब मैं उसके बन्द होंठों को चूमूंगी तो
मुझे लफ्ज ब लफ्ज तुम्हारी प्रेम कविताओं का स्वाद मिलेगा

13
तुम्हारी आँखों में
मैं केवल एक औरत हूँ, बस एक औरत
एक दिन तुमने प्यार किया बस “उससे”
दूसरे दिन तुम भुला बैठे उसको

तुमने मेरे भीतर छिपे कवि को नहीं देखा
जो तुम्हारी कविताओं को पाने की आदी हो गई थी, हर दिन
तुमने मेरे भीतर की चिड़िया को भी नहीं देखा
जो आदी हो गई थी तुम्हारे स्नेह की, हर दिन

तभी तो धूल के बादलों की तरह
तुम्हारे लफ्ज आसमान में टंगे रहे
” मैं तुम्हे दूंगा प्यार और आजादी और आदर
जबकि दूसरे आदमी चाहते हैं बस तुम्हारी देह, और सेवा”

मेरी निगाहों में ,
तुम आदमी थे, इंसान थे, कवि थे
मैंने तुमसे बाँटा, अपनी सोच, अपना पिंजरा और कविताएँ
तभी तो तुम अभी तक जिन्दा हो, किसी और औरत से मुहब्बत करने के लिए

जबकि मैं अभी तक तुम्हारी कविताएँ
उतार रही हूँ अपनी जबान में, अपने घर वापिस लौटने में
असमर्थ, जहाँ मेरा शोहर और बच्चे इंतजार में हैं मेरी वापिसी के
जी रही हूँ इस पागलखाने में

तुम अभी तक अपनी पत्रिका के मुख्य संपादक हो

14. डेथ सर्टीफिकेट

जब वह भुला बैठा उसे
वह याद नहीं रख पाई अपने को , और अधिक
इसीलिए अपनी बन्द पलकों पर एक नीन्द लिए
वह मर गई

नहीं , यह मत सोचना कि उसने आत्महत्या की
वह तो बस मर गई
जैसे कि एक फूल मरता है
बिना पानी के

(जनविकल्प से साभार )

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