स्त्री रचनाधर्मिता और आंदोलन का आयोजन

‘दलित लेखक संघ’ के तत्वावधान में  एक दिवसीय काव्य गोष्ठी ( महिला रचनाकारों की )  व  ‘संवैधानिक और समाजिक परिवेश में स्त्री विमर्श ’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। 







रिपोर्ट 


17 अगस्त 2015 को ‘दलित लेखक संघ’ के द्वारा  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में  एक दिवसीय काव्य गोष्ठी व परिचर्चा का आयोजन किया गया।  दो स्तरों में विभक्त इस कार्यक्रम के पहले सत्र में महिला रचनाकारों  ने कविता पाठ किये एवं दूसरे सत्र में ‘संवैधानिक और समाजिक परिवेश में स्त्री विमर्श ’ विषय पर वक्ताओं ने अपनी बातें रखीं .

रजनी तिलक, सुमित्रा मेरोल, अनीता भारती, वंदना ग्रोवर, रेनू हुसैन, शेफाली फ्रॉस्ट, नीलम मदारित्ता,अंजू शर्मा, पुष्पा विवेक, प्रियंका सोनकर, आरती प्रजापति, पूजा प्रजापति, चन्द्रकान्ता सिवाल, निरुपमा सिंह, मीनाक्षी गौतम, कुलीना, प्रज्ञा, विनीता, धनवती, मुन्नी भारती, मनीषा जैन, इंदु कुमारी आदि महिला रचनाकारों की कविताओं में स्त्री के अधिकार , आजादी , संघर्ष के मुद्दों  और उनके सपनों की सहज अभिव्यक्ति हुई . कविता पाठ पीढ़ियों के आपसी संवाद के साथ और अपने-अपने   जाति-वर्ग पोजिशंन  की पहचान के साथ ‘ विश्व भगिनिवाद’ को पुष्ट करते हुए सम्पन्न हुआ . यद्यपि दूसरे सत्र में वक्ताओं ने जाति-अवस्थिति को चिह्नित करते हुए रचनाकारों से और अधिक संवेदनशील और संविधान के प्रति सजगता के प्रस्ताव रखे.

दूसरे सत्र में मुख्य अतिथि एवं प्रसिद्द लेखिका विमल थोरात ने कहा कि ‘ दलित लेखक संघ अपनी उद्देश्य पूर्ति में सफल हो रहा है , पूरी टीम बधाई की पात्र है।’  विमल थोरात  दलित लेखक संघ की पूर्व अध्यक्ष भी रही हैं . उन्होनें कहा कि’  स्त्री स्वतंत्रता अभी देह तक ही सिमटी हुई है, इसे वैचारिक तौर पर पोसना होगा और महिला विमर्श को आंदोलन में तब्दील  करना होगा, तभी हम महिलाओं के सम्वैधानिक हक़ों की रक्षा की बात कर सकते हैं।’  मुख्य वक्ताओं में शामिल आलोचक एवं लेखिका हेमलता महिश्वर ने अपने सम्बोधन में कहा कि ‘ महिलाएं अब धीरे -धीरे अपने हक़ों को लेकर जागरूक हो रही हैं,  लेकिन समाज अभी भी उसको पूर्ण मौलिक अधिकारों से वंचित रखे हुए है.  अब भी उन पर समाज के पारम्परिक तौर- तरीके पाबंदी  की भूमिका में है।’  स्त्रीकाल के संपादक संजीव चन्दन ने कहा कि ‘ बाबा साहेब आम्बेडकर  के द्वारा दिलाये गए संवैधानिक हक़ प्रगतिशील समाज बनाने में सफल हो रहे हैं लेकिन क्योंकि प्रतिगामी ताकतें संविधान बनने के समय से ही बाधा उत्पन करती हैं। महिला आंदोलन को भी इन बाधाओं से जूझना पड़ा है.  लेखिका रजनी दिसोदिया ने कहा कि ‘ समाज में महिलाओं के प्रति वातावरण अनुकूल  नहीं रहा, लेकिन यह भी सच है कि आगे बढ़ने वालों के लिए भी रास्ते प्रशस्त हैं।’  विशिष्ठ अतिथि  और लेखिका रजत रानी मीनू ने अपने वक्तव्य में इस ओर इशारा किया कि ‘ मनुवादी दृष्टिकोण ही सबसे ज़्यादा बाधक है महिलाओं के संवैधानिक हक़ों को गौण रखने में।’  लेखिका एवं सामाजिक आन्दोलन कर्मी रजनी तिलक ने भी अपने विचारों में यही तल्खी इख़्तियार करते हुए कहा कि ‘ दलित महिलाओं को ज़्यादा भेदभाव और उपेक्षाओं का सामना करना पड़ता है,  वे ही सबसे ज़्यादा शैक्षणिक रूप से पिछड़ी हुई हैं।’

विशेष उपस्थित जे एन यू के प्रोफ़ेसर और चिंतक  डॉ रामचन्द्र ने दलित लेखक संघ के इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि ‘ आज इन बदलती परिस्थितियों में यह कार्यक्रम मिल का पत्थर साबित होना चाहिए। ऐसे ही कार्यक्रमों की बदौलत आज की महिलाएं जागरूक स्थिति में आ रही हैं।’  कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए हीरालाल राजस्थानी ने कहा कि ‘ मनुवादी, धार्मिक -रूढ़िवादी परम्पराओं के प्रभाव के चलते  महिलाओं के संवैधानिक हक़ों को प्राप्त करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है .’ अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दलित लेखक संघ के अध्यक्ष कर्मशील भारती ने फूलन देवी के जीवन को याद करते हुए कहा कि ‘ जब तक महिलाएं स्वयं अपने  संघर्ष को नहीं समझेंगी तब तक वे  दम- घोंटू रूढ़ियों में जकड़ी रहेंगी।’ उन्होनें काव्य पाठ में शामिल हुई १८ साल की प्रज्ञा से लेकर ७० साल की धनदेवी जैसी सभी कवियत्रियों के आक्रोश को स्वाभाविक मानते हुए उनकी कविताओं को यथार्थ परक बतलाया.

प्रमुख रूप से जे एन यू के प्रोफ़ेसर राजेश पासवान, फॉरवर्ड प्रेस के संपादक प्रमोद रंजन और साहित्यकार पूरन  सिंह भी उपस्थित रहे।  धन्यवाद ज्ञापन अनीता भारती ने किया। इस कार्यक्रम की वीडियोग्राफी योगी ने की।कार्यक्रम में शामिल हुई कवियत्रियों, वक्ताओं व सभी गणमान्य अतिथियों को दलेस की ओर से प्रशंसा- पत्र भेंट किये गए।

रिपोर्ट प्रस्तुति  : दलेस

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ISSN 2394-093X
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