पूरन सिंह की लघु कथायें

डा. पूरन सिंह

चर्चित साहित्यकार पूरन सिंह कृषि भवन में सहायक निदेशक हैं. संपर्क : drpuransingh64@gmail.com>

भूत

बाबा बहुत मेहनत करते थे लेकिन जमींदार बेगार तो करवाता था, पैसे नहीं देता था। कभी-कभार दे दिए तो ठीक नहीं तो नहीं। उन्हीं पैसों से किसी तरह गुजर होती थी।

क दिन दोपहर को मैंने मां से कहा,‘‘बहुत भूख लगी है।’’
मां कुछ नहीं बोली उसने मिट्टी के बरतन उलट कर दिखा दिए थे।
मेरी भूख और तेज हो गई थी। भूख के तेज होते ही मस्तिष्क भी तेज हो गया था। पास ही श्मशान घाट था जहां बड़े .बडे लोग अपने बच्चों को भूत-पे्रत से बचाने के लिए नारियल, सूखा गोला पूरी-खीर कई बार मिष्ठान भी रख आते थे। यह सब काम दोपहर में होता था या फिर आधी रात को।

मैं श्मशान घाट चल दिया था। संयोग से वहां खीर पूरी और सूखा गोला रखा था। गोले पर सिंदूर और रोली लगी थी। मैंने इधर-उधर देखा। कोई नहीं था। मैंने जल्दी-जल्दी आधी खीर पूरी खा ली थी और गोला झाड़ पोंछकर अपनी जेब में रख लिया। आधी खीर पूरी लेकर मैं घर आया था। मेरा चेहरा चमक रहा था।
चमकते चेहरे को देखकर मां ने पूछा, ‘भूख से भी चेहरा चमकता है क्या­। तू इतना खुश क्यों हैं?
मैंने बची हुई आधी खीर-पूरी मां के आगे कर दी थी। मां सब कुछ समझ गई थी। मां की आंखें छलक गई थी और उसने मुझे अपने आंचल में छिपा लिया था मानो भूत से बचा रही हो कि उसके होंठ फड़फड़ाने लगे थे, ‘भूत, भूख से बड़ा थोड़े ही होता है।’

मैं कुछ नहीं समझा था। मैं मां के आंचल में और छिपता चला गया था।

ब्लैकमेल 

मैं और परमानंद चैबे साथ -साथ स्कूल जाते ,साथ -साथ खेलते और साथ -साथ पढ़ते थे । इतना ही नहीे साथ -साथ खाते भी थे । परमानंद अच्छी – अच्छी सब्जी रोज लाता  और मैं भी रोज नई – नई सब्जियां लाता,फर्क सिर्फ इतना होता कि परमानंद की सब्जी रोज ताजा  होती और मेरी बासी,  क्योंकि मेरी मां जिन लोगों के  घरेां में पाखाने साफ किया करती वही लोग बासी या रखी हुई सब्जी मेरी मां को दे देते थे और मां वही सब्जी मेरे टिफिन में रख देती थी । परमानंद मेरी सब्जी खाते समय हमेशा यही कहता , यार मलघोटा, मैं तेरी सब्जी खाता हूं ,तूं यह बात मेरी मां से कभी मत कहना, नहीं तो वह मुझे बहुत मारेगी ।

मैंने सब्जी वाली बात उसकी मां से कभी नहीं कही।तभी एक दिन , हम दोनों में किसी बात पर लड़ाई हो गई । परमानंद शरीर से हृष्ट-पुष्ट था सो उसने मुझे खूब उधेड़ा । मैं बिलबिलाता रहा । अचाानक मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया , साले मार ले ,आज तेरी अम्मा से कहूंगा कि तूं रोज मेरी सब्जी खाता है फिर देखना………… हां।
बस फिर क्या था , परमानंद चैबे पीठ खेाले मेरे सामने खड़ा था ।

सुराही

फूलपुर का मवेशियों का मेला पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है । गाय , भैंस से लेकर उुंट ,भेड तक की खरीद -फरोख्त होती है । मेले में खेतिहर किसान से लेकर जमींदार तक आते हैं । अब  जब सभी लोग इसमे आते हैं तो उनके मनोरंजन का भी ध्यान रखा जाता है । इस बार मुन्नी बेडि़न की नौटंकी आई है । पूरे क्षे़त्र में हंगामा हो गया। कुछ लोग सिर्फ उसकी नौटंकी देखने ही मेले में जाते हैं ।

मुन्नी  में बला की सुंदरता है तो गजब की अदा भी। नाचने से लेकर कोई किरदार हो वह जान डाल देती है । पंडित रघुनंदन उसकी अदाओं के दीवाने हैं । वे जब नौटंकी देखने जाते हैं तो बहुत से लोग उनकी छत्रछाया मेें उनके साथ ही रहते हैं । बड़े धर्मी -कर्मी हैं पण्डित जी । पूजा- पाठ में पूरी आस्था है तो विश्वास भी है लेकिन मनोरंजन तो मनोरंजन ठहरा उसका पूजा- पाठ से क्या सम्बन्ध ।

एक दिन तो गजब ही हो गया जब मुन्नी ने कूल्हे मटका – मटकाकर छाती उघाड़ -उघाड़कर नाच दिखाया तो पंडितजी मानेा पागल हो गए हों । बस , फिर क्या था बुला लिया मुन्नी के कंपनी मैनेजर को ।

केदार , मुझे मुन्नी अच्छी लगती है । दिल आ गया है मेरा उस पर । बस एक बार के लिए ……………। पंडित जी ने अपना हुक्म सुना दिया था । पहले तो कंपनी के मैनेजर ने नानुकुर की लेकिन जब पंडितजी ने धमकाया तो मैनेजरका पाजामा गीला हो गया था ।

मुन्नी रात में नौटंकी में काम करती और दिन में आराम करती थी लेकिन जब से पंडितजी का दिल उस पर आया है वह दिन में सो नहीं पाती ।

उस दिन पंडितजी उसके साथ रति क्रिया में डूबे हुए थे । बहुत खुश थे । वे कभी मुन्नी के तलवे चाटते तो कभी नाभि से होते हुए होठों तक पहुंच जाते थे ।  बड़ी देर तक चाटने-चूमने के बाद पंडितजी थक गए थे जिससे उन्हें प्यास लग आई थी । उनके पास ही उनकी पानी से भरी सुराही रखी थी जिसे वह कहीं भी जाते अपने साथ ही ले जाते थे । ………पानी…… इतना ही कह पाए थे वह।

मुन्नी उठी और अपनेे लिए रखे पानी के घड़े से पानी निकालकर देने लगी  थी ।

 नहीं मुन्नी…नहीं ……… इतना भी नहीं …..। हम ब्राह्मण हैं …….वर्णश्रेष्ठ …… हम तुम्हारे हाथ से तुम्हारा पानी कैसे पी सकते हैं …….. हम पानी तो अपनी सुराही से ही पिएंगे ……..और पंडितजी ने स्वयं उठकर अपनी पीतल की सुराही से पानी पी लिया   था ।

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ISSN 2394-093X
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