जुंको फुरुता: जिसे याद रखना ही होगा

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मंजू शर्मा 
आज अगर जुंको फुरुता जीवित होती तो 43वाँ जन्मदिन मना रही होती। दु:खद है कि जापानी गुड़िया विश्वस्तरीय प्रसिद्धि पा चुकी है लेकिन जुंको फुरुता को उसके हिस्से के न्याय तक से महरूम रखा गया।

भला इस सदी ने उस बहादुर पीड़िता को कैसे भुला दिया?

केवल तीन दशक पहले पैदा हुई जुंको फुरुता(Junko Furuta),  एक ऐसी बहादुर लड़की , जिसकी अविश्वसनीय लगने वाली कहानी को पढ़ते हुए , हमारे हाथ खुद ही उठ जाएँगे उसे सलाम करने के लिए. 22 नवंबर,1972 को पैदा हुई उस जापानी लडकी ने 17 साल की उम्र में  त्रासदी और यातना को शरीर के पोर-पोर में 44 दिनों तक सहा.

मैं समझ नहीं पा रही कि उसकी कहानी मैं क्यों कह रही हूँ, क्यों सोच रही हूँ उसके बारे में ! क्या इसलिए कि औरतों को वस्तु समझने की वैश्विक सोच हम सब को हर रोज डराती रहती है , एक डरावने हस्र के लिए . क्या इसलिए कि कपडे पहनने के सलीके बताते , बलात्कारियों के प्रति दया भाव जताते लोग हमारे लिए क़ानून बनाने और पालन करने के तंत्र पर काबिज हैं और रोज -रोज हमें अपने बयानों से आतंकित करते हैं. या  इसलिए कि शब्दों से बलात्कार को अंजाम देने वाले  आजम खान जैसे मंत्री -संत्री हमारे अपने ही चुनाव के साथ हमारा मजाक उड़ाते हैं . क्या हम दुनिया भर की औरतें एक जैसी यातना शिविरों के वाशिंदे नहीं हैं ?

आज हमसब भारत में मेक इन इंडिया के भुलावे और प्रपंच में जीते हुए केवल बलात्कार मुक्त इंडिया तक के सपने को साकार होते नहीं देख पा रहे हैं और राजनीतिक और सत्ता के गलियारों से लगभग हर बार , हरेक बलात्कार के पीछे एक बयान आता है , जिसमें कहीं कटघरे में खड़ी की जाती है,   जिसे नोंचा-खसोटा गया। इस सदी में भी और लगभग हर दिन कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी बेटी का चीरहरण होता है ।
ऐसे समय में Junko Furuta की कहानी लिखना आज के समय की माँग है। पुन: आज 22 नवंबर के दिन जुंको अपने जन्मदिन वाले दिन रह-रहकर बार-बार याद आती है। 17 सालकी किशोरावस्था में उसने वह सब भोगा , जिसे सुनकर और पढ़कर झुरझुरी और सिहरन-से कँपकँपी होने लगती है।शरीर के लहू बहादुर जापानी लड़की के बारे में सोचकर बर्फ के समान जम-से जाते हैं। बर्फ होकर रूधिर बस नसों में सिमट जाते हैं।

शायद ही जुंको और उसके माता-पिता ने कभी सपने में भी अनुमान लगाया होगा कि 17वाँ जन्मदिन ही उसका आखिरी जन्मदिन साबित होगा क्योंकि 17वें जन्मदिन को धूमधाम-से मनाने के केवल तीन दिन बाद जुंको 25 नवंबर, 1989 ,  के दिन अपने स्कूल Yashio-Minami हाई स्कूल से छुट्टी के पश्चात्,  वहाँ जा रही थी जहाँ वह पार्ट टाइम जॉब करती थी . लेकिन वहाँ पहुँचने से ही पहले बीच रास्ते में ही जुंको का अपहरण उसी के उम्र के 7 लड़कों द्वारा कर लिया गया और उसे लेकर जाया गया वहाँ , जहाँ 44 दिनों तक न थमने वाली यंत्रणा वह  बहादुर जुंको भोगती रही। और वह  उन मनोरोगी बलात्कारियों से हर दिन प्रताड़ित होती रही क्योंकि उनके लिए वह उनका मनोरंजन करने वाली एक बोलने वाली खिलौना भर थी।

44 दिन,  अर्थात एक महीने और 14 दिन,तकरीबन डेढ़ महीने उसने  अपने अपहरणकर्ताओं द्वारा बनाए गए यंत्रणा शिविर में वह दर्द भोगा,  जो मानवता के नकली गुहार करते इस पश्चिमी और पूर्वी समाज की अमनावीयता की कहानी कहता है.

उसके अपहरणकर्ताओं में से किसी भी लड़के से न कोई दोस्ती और न कोई दुश्मनी थी। अपहरण के दिन से लेकर उसके अत्याचारों का सिलसिला जो शुरु हुआ,  वह उसके दर्दनाक मौत के साथ ही थमा। यंत्रणा के 44 दिनों में जुंको के साथ तकरीबन 400 से अधिक बार बलात्कार हुआ। कैसे सहा होगा जुंको तुमने अपने शरीर के साथ प्लास्टिक की गुड़िये-से भी बदत्तर वह खिलवाड़? ज्यादत्ती की शायद कोई सीमा शायद ही होगी,  जिसे उसके अपहरणकर्ता बलात्कारियों ने पार न की होगी।

जब भी जुंको को भूख लगती तो खाने के लिए उसे तिलचट्टे और प्यास लगने पर उसे मूत्र ही पीने के लिए दिया जाता था। उसे जबरन नग्न ही रखा जाता ताकि जब जरूरत हो तो उसके साथ बलात्कार किया जा सके और तो और दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में उसे नग्नावस्था में बालकनी में सोने को मज़बूर किया जाता था।
अबतक यही लगता था कि दक्षिण-एशियाई देशों में ही स्त्रियों की अच्छी स्थिति नहीं है,पर जुंको की कहानी कुछ और कहती है. तीन दशक पहले के जापान में घटे यह  दर्दनाक हादसा और यंत्रणा तो हमें यही बता रहा है पूरी दुनिया में  स्त्रियाँ सुरक्षित नहीं ।

अगर ऐसा न होता तो शायद जुंको आज जीवित होतीं। बलात्कार के साथ हैवानियत की क्रूरता और नग्नता भी झेली जुंको ने। घरों में जलने वाले बिजली के बल्ब उसके गुप्तांगों में कितनी ही बार डाला गया,  जिससे उसके योनि और गुदे के अंदरूनी हिस्से बुरे तरीके-से क्षतिग्रस्त हो गए थे । छाती को सुई और धागे-से सिलने के बाद भी इन दरिंदों का मन नहीं भरा और उसके निप्पल को सरौते-से खींच दिया।जुंको का दर्द हम सभी महिलाओं को महसूस होता  है।

जुंको के पूरे नग्न शरीर पर मोमबत्तियों के तरल को टपकाकर उसे फिर सिगरेट से जलाते थे।शरीर का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा था, जिसे इन दरिंदों ने साबूत  और दर्दविहीन छोड़ा था। फिर भी जुंको,  कितनी बहादुर रही होगी इसका अंदाज़ा इसी बात-से लगा सकते हैं कि अपने शरीर को अपहरणकर्ताओं की नज़र से बचाकर घसीटते हुए टेलीफोन बूथ  पर लेकर किसी तरह पहुँची , लेकिन यहाँ भी शायद बहादुर जुंको की किस्मत इतनी अच्छी न थी और एक दरिंदे की नज़र पड़ गयी। उसके बाद तो पढ़ते हुए भी मुट्ठियाँ भींच गयी थीं जब जुंको को उल्टा टाँगकर एक बॉक्सिंग के पंचिंग बैग के समान पेट पर घूँसे से इतना मारा कि वह मुँह से खून की उल्टियाँ करने लगी।लोहे की छड़ से शरीर पर बेदर्दी-से पीटने के बाद भी उन जालिमों के जुल्म की मंशा शायद शांत न हुई होगी और योनि में ग्रिल्ड,  जलते गर्म चिकन डालने के बाद इंतिहा तब हुई जब कैंची को प्रवेश किया।

400 से अधिक बार के बलात्कार –  कोमल शरीर ने कैसे झेला और बर्दाश्त किया होगा , उन नरपिशाचों के पैशाचिक कृत्य को ! सिगरेट के लाइटर से जलने को उसके शरीर का कोई हिस्सा अब बाकी न था.  44वें दिन भी उन्होंने उसके साथ नोंच-खसोट किया और चीरा भी,डंबल से पेट पर मारते रहे .  4 जनवरी 1989 का दिन था वह(मनहूस कहना कुछ ठीक न होगा,क्योंकि तुम तो इस यंत्रणा शिविर से मुक्ति के पथ पर निकल रही थी),  जब वह  हारकर अपने अंतिम प्रयाण की तैयारी कर चुकी थी. लगभग 2 घंटे तक चले अंतिम  यातना के दौर में उसके  शरीर को हर जगह से जलाया गया।

और सजा, इस केस में सजा का मजाक चाहे जो भी हुआ हो, आतंक का  सिलसिला आज भी जारी है. और हम ग्लोब के अलग -अलग हिस्सों के लोग, अलग -अलग समाजों में स्त्री विरोधी इस हिंसा की सहजता में जीने के आदि होते गये हैं ! 

सोशल मीडिया में सक्रिय मंजू शर्मा साहित्य लेखन की ओर प्रवृत्त हैं .संपर्क : ई मेल- manjubksc@yahoo.co.in