महावारी से क्यों होती है परेशानी

आरती रानी प्रजापति 

महावारी हर स्त्री के 10-14 की आयु में शुरू होने वाला नियमित चक्र है| जिसमें स्त्री की योनि से रक्त का स्त्राव होता है| यह वह समय है जब स्त्री के शरीर में कई परिवर्तन होते हैं| महावारी सिर्फ शरीर में घट रही एक घटना नहीं है,  बल्कि इसका सम्बन्ध दिमाग से भी है| महावारी के समय स्त्री थकान महसूस करती है| लगातार ३-४ दिन का रक्त स्त्राव उसे कमजोर करता है| कई महिलाओं को इस समय हाथ-पैरों में सूजन, पेट-पैर में दर्द, कमर दर्द, बुखार, भूख न लगना, कब्ज जैसी अन्य समस्याएँ भी होती हैं| कुल मिलाकर महावारी के समय स्त्री का स्वास्थ्य  देखभाल की मांग करता है उसे आराम की जरूरत होती है,  जिसे अति संवेदनशील पितृसत्तात्मक समाज नहीं समझता| स्त्री के इस प्राकृतिक नियम को समाज उसकी कमजोरी मानता है|

साभार  गूगल (इन्स्टाग्राम )

दलित और स्त्री दोनों को भारतीय समाज समान नजर से आंकता है| स्त्री मासिक धर्म के दौरान अछूत बन जाती है| वे सभी काम जिन्हें शुभ माना जाता है उनसे उस स्त्री को दूर रखा जाता है| यहाँ तक कि जिन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में स्त्रियाँ अपना आधे से ज्यादा वक्त लगाती है वह भी स्त्री के लिए के लिए अस्पृश्य हो जाते हैं| महावारी के समय स्त्रियाँ मनुष्य द्वारा निर्मित ईश्वर की मूर्ति को छू नहीं सकती| उसे पूजा-पाठ की सभी चीजों से दूर रखा जाता है| तथाकथित भगवान के बर्तन,कपड़ें, खाना वह महीने के तीन-चार दिन अपने से दूर ही रखती है| लेकिन मजे की बात यह है कि वह खाना जो उस ईश्वर को रखा जा रहा है बनाती वही स्त्री है| खाना बनाते समय वह अछूत नहीं होती पर बाद में वह अछूत हो जाती है उस भगवान के लिए जिसके अस्तित्व पर आज लाखों सवाल हैं|

 आज भी कई घरों में माहवरी के समय महिलाओं से काफी भेद भाव किया जाता है| कहने को तो हम आधुनिक समाज में हैं पर स्त्री शब्द के सामने यह आधुनिकता जाने कहाँ चली जाती है| आज भी ऐसे कई घर हैं जो माहवरी के समय स्त्री के शरीर से दूर रखते हैं अपनी घर की सभी चीजों को| माहवारी वाली स्त्री को घर की रसोई में कोई काम नहीं करने दिया जाता उसे अपने कमरे में रहना होता है| तीन दिन बाद जब उसे पवित्र की कोटि में रखा जाता है तब पूरे घर की साफ सफाई वही औरत करती है| रसोई साफ करती है| जितने कपड़ें वह उपयोग में लाती है पहनने-ओड़ने वाले सभी को वह धोती है| एक थकान भरा काम हर महीने उसके जिम्मे होता है क्योंकि वह स्त्री है|

साभार गूगल

महावारी में ऐसा क्या है जो इसे इतना घृणित माना जाता है| क्या रक्त का निकलना वास्तव में एक अपराध है? नहीं माहवारी में पवित्रता की यह जो धारणा  है उसका सीधा सम्बन्ध स्त्री की योनि से है| रक्त का स्राव योनि से होता है इसलिये माहवारी के रक्त को अपवित्र माना गया है| वरना शरीर के किसी अन्य अंग से निकले रक्त की तरह यह रक्त भी है| भारतीय समाज में स्त्री दोयम दर्जें पर रखी गई है जिसका कारण भारतीय पितृसत्ता है जो पुरुष को महत्त्व देती है| स्त्री की योनि को पवित्र रखने के लिए यहाँ खाप-पंचायत, राष्ट्रवाद, धार्मिक ग्रन्थ, अलग-अलग नियम क़ानून है|

स्त्री से जुड़े इस नियम को छुपा कर रखा जता है| लड़कियों को महावारी की कोई जानकारी पहले से नहीं दी जाती फलत: उनके साथ जब यह प्रक्रिया शुरू होती है तो जानकारी के अभाव में वे इसे एक घिनौना काम मानती हैं| किशोरावस्था के इस परिवर्तन को स्वीकार करने में उन्हें काफी वक्त लगता है| घर परिवार से दूर यदि वह अपने प्रथम महावारी से अवगत होती तो उस समय उसे बेहद शर्मिन्दगी महसूस होती है कारण कि यह रक्त योनि से निकलता है| जिसे वह लड़की खुद क्योंकि पितृसत्ता से गर्सित है एक गलत चीज मानती है| कई लड़कियां ऐसे में रोने लगती है क्योंकि वह नहीं समझ पाती कि क्या किया जाए|

अजीब बात यह है कि महिलाओं को इस चक्र के बारे में उनके अध्यापक भी नहीं बताती| 10 कक्षा के कोर्स में स्त्री शरीर व शरीर की उत्पत्ति के विषय में जानकारी दी गई है| कई अध्यापक इस विषय को खुद से पढ़ने को कह कर टाल देती हैं जिससे घर, परिवार में जो शिक्षा लड़की को नहीं मिल पाती उससे वह स्कूल में भी वंचित हो जाती है| महावारी में एक समस्या उसमें इस्तेमाल होने वाले कपडे की भी आती है| भारत जैसे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अपना पेट ठीक से भर पाए| गरीब, आदिवासी, दलित, मजदूर तबके की औरतें महावारी के समय कपड़ा इस्तेमाल करने को मजबूर है| उनके पास इतना पैसा नहीं है की अपने बच्चे के पैरों में चप्पल तो पहनावा सके ऐसे में सिर्फ कपड़ा ही उनके पास एक मात्र विकल्प बचता है| जाहिर सी बात है कि यह कपड़ा कोई नया धुला नहीं हो सकता| ये समुदाय ऐसे हैं जिनके पास संसाधन बिलकुल नहीं हैं| ऐसे में फेकने के लिए वे नया कपड़ा इस्तेमाल नहीं कर सकती इसलिए गंदे-फटे कपड़ों को इस वक्त इस्तेमाल में लिया जाता है| जिस कारण गरीब महिलाएं कई संक्रामक रोगों का शिकार हो जाती हैं और इलाज के न मिल पाने और वक्त की कमी (क्योंकि ये वो महिलाएं हैं जो रोज काम करती और खाती हैं) मौत का शिकार बनती हैं|

भारतीय समाज में स्त्रीलिंग के साथ किया गया भेद-भाव उसे महावारी में भी परेशान करता है| हमारे समाज में आज भी लड़कों को वरीयता दी जाती है| सभी काम स्त्रियों से करवाएं जाते हैं और उनके खानपान की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता| ऐसे में स्त्री के शरीर में लगातार कमजोरी आती है| वह देखने में भले ही सुन्दर या गौर-वर्ण हो पर उसका शरीर भीतर से कमजोर हो जाता है| कमजोरी की इस दशा में कई स्त्रियों को महावारी एक महीने में कई बार भी आती है या इसका समय 3-4 दिन न होकर 7-12 दिन तक बढ़ जाता है| ऐसी स्थिति किसी भी स्त्री के लिए घातक हो जाती है समय पर उचित इलाज न मिल पाने के कारण कई स्त्रियाँ मृत्यु को भी प्राप्त हो जाती है|

भारतीय समाज स्त्री को देवी मानने का दावा करता है पर क्या वास्तव में ऐसा है| यह समाज स्त्री को कभी मनुष्य रूप में भी नहीं स्वीकार करता देवी तो क्या मानेगा| इस समाज ने स्त्री को मात्र भोग की वस्तु बना दिया है| महावारी के कष्टकर समय में जब महिला को आराम की जरुरत होती है कई पुरुष उस वक्त भी सम्भोग करते है| जिसमें पुरुष का आनंद ही प्रमुख होता है| स्त्री की पीड़ा की अनुभूति करना समाज को उसके उच्च आसन से नीचे गिरा देता है इसलिए स्त्री को हर संभव कष्ट देना समाज अपना कर्तव्य समझता है| आज हम ‘हैप्पी टू ब्लीड’ जैसी धारणाओं पर विचार कर रहे हैं पर क्या वास्तव में इस समाज की जड़ मानसिकता पर ऐसी बातों से खास फर्क पड़ेगा? यह मुहीम किस तबके की स्त्रियों की है यह भी जानने की जरुरत है| विज्ञापन में दिखाए जाने वाले रक्त को प्रतीकात्मक न दिखाकर लाल भी दिखा देंगे तो क्या इससे उस महिला के जीवन पर कोई ख़ास प्रभाव पडेगा जो कामगार तबके की है? महीने के इन दिनों में भी जो औरतें ढेर बोझ ढो रही हैं क्या उनकी स्थिति इससे सुधरेगी? इस देश में ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जो पोषण के अभाव में मर जाती हैं क्या उनके लिए भी मासिक धर्म ‘हैप्पी टू ब्लीड’ हो सकता है?

हाँ यह सच है कि भारतीय समाज सड़ी हुई मानसिकता में जी रहा है जिसे बदलने की जरुरत है पर यह परिवर्तन किस तबके लिए हो रहा है यह सोचना चाहिए| क्या उस परिवर्तन से समाज बदल जायगा? लोग महिला को अछूत मानना छोड़ देंगे? कामगार महिला अपनी मुश्किलों को सुलझा पाएगी?

लेखिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोध छात्रा हैं. संपर्क: aar.prajapati@gmail.com 

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ISSN 2394-093X
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