स्मृति इरानी जी, हमारी दुर्गा आप ही हो !

संजीव चंदन


स्मृति इरानी जी, 


आपको एक दिन लोकसभा में और दूसरे दिन राज्यसभा में बोलते हुए देखकर  मैं बेहिचक इस निष्कर्ष पर हूँ कि आप साधारण नहीं हो, कोई दैवीय अंश है आपमें. हालांकि मैं किसी देव या देवी को नहीं मानता हूँ, फिर भी ब्राहमण ग्रंथों से जितना उन्हें जाना है उसके अनुसार मैं इस यकीन पर हूँ कि आप में दैवीय अंश है. यद्यपि आपके आदरणीय अटल बिहारी वाजयी जी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा था, जिसे इंदिरा जी ने विनम्रता से ठुकरा दिया था. पता चला है ऐसा उन्होंने वामपंथी नेता श्रीपाद अमृत डांगे जी के कहने पर किया था,  क्योंकि डांगे ने उन्हें याद दिलाया था कि दुर्गा देश के दलित –बहुजनों की स्मृतियों में कोई अच्छा स्थान नहीं रखतीं .
खैर, छोडिये इंदिरा जी को, आपके ओजस्वी (!) भाषण की चर्चा करते हुए कहाँ मैं इंदिरा जी को ले बैठा ! आपके ओजस्वी भाषण में लोग मीन -मेख  निकालते रहें या प्रधानमंत्री की तरह आपको शाबाशी देते रहें, मेरी रुचि इसमें नहीं है. प्रधानमंत्री ने लोकसभा के आपके भाषण को ‘सत्यमेव जयते’ कहकर ट्वीट किया तो डेढ़ लाख लोग से अधिक उसे देख चुके हैं दो दिन में और उधर कुछ अखबार आपके भाषण से झूठ पकड़ने में लगे हैं , मसलन यह कि दलित विद्यार्थी रोहित वेमुला की सांस्थानिक ह्त्या के बाद डाक्टरों के न जाने देने की आपकी बात झूठी निकली अथवा रोहित वेमुला और उसके साथियों पर कार्रवाई करने वाली समिति में दलित प्रोफ़ेसर के होने वाली बात भी झूठी निकली.

अपनी रुचि यह बताने में है कि स्मृति जी  कि आपमें और दुर्गा में मैं बहुत सारी समानतायें देखता हूँ. आप सच में आधुनिक दुर्गा हैं.  दुर्गा को देवों ने अपने तेज से उत्पन्न किया था ऐसी कथा है , प्रसंग था महिषासुर, शुंभ-निशुम्भ आदि ‘ असुरों’ से देवों की रक्षा. दुर्गा की कई कथायें प्रचलित हैं  लोक और शास्त्र में, आप एक –दो से घबडाकर इतना गुस्से में हैं. आपको पता नहीं ही होना चाहिए कि हिन्दू मिथकीय चरित्रों के लेकर पूरे देश में कई –कई कथाएं प्रचलित हैं , आपसब के आराध्य राम को लेकर भी  कई कथाएं हैं , वैसे ही दुर्गा की कथायें बिखरी पडी हैं. उन कथाओं में कुछ बहुजन पाठ हैं और कुछ हो रहे हैं.

आपको क्या दुर्गा की कथा से ही नहीं स्पष्ट होता है कि दुर्गा आदि की कहानियां दलित –बहुजनों के ऊपर एक समूह की जीत और वर्चस्व की कहानियां हैं. यह स्पष्ट है कि इन जीतों की पटकथाओं में स्त्रियों को ब्राह्मणवादी वर्चस्व ने या तो पराभूत किया है या उन्हें अपने साथ लेकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उनका इस्तेमाल किया है और बाद में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है.  नहीं तो कोई कारण नहीं था कि दुर्गा , काली , सरस्वती आदि के रूप में स्त्रियों की पूजा अर्चना करते हुए , उनकी स्तुति करते हुए वास्तविक अर्थों में स्त्रियों को सभी संसाधनों से वंचित करने के तर्क पैदा किये जाने के. दूसरी ओर इन देवियों पर पुरुष वर्चस्व के लिए भी अनुकूलन को मजबूत करती कहानियां कही गईं. सरस्वती विद्या की देवी है, तो उसपर पिता के द्वारा बलात्कार की कहानी, यानी पढ़ोगी –बुद्धिमान बनोगी तो बलात्कार की सजा, काली को उसकी अपनी ही शक्ति से लज्जित करने के लिए शिव का मिथ आदि –आदि.

हाँ तो मैं आपको बता रहा था कि आप आधुनिक दुर्गा हैं. जैसे दुर्गा का एक पशुपालक राजा महिष- असुर के पराजय के लिए देवों ने इस्तेमाल किया वैसे ही लोकतंत्र और संविधान की ताकत के कारण बढ़ते दलित -बहुजन सांस्कृतिक –शैक्षणिक –आर्थिक पराक्रम को ख़त्म करने के लिए आपका इस्तेमाल किया जा रहा है. इसको और स्पष्टता से समझने के लिए आपको ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नहीं है , मात्र दुर्गा सप्तशती ही देखें , स्तुति का क्या अद्भुत आयोजन है वहां देवों की कार्य –सिद्धि के लिए !!  जब प्रधानमंत्री जी ने आपकी प्रशंसा में ‘सत्यमेव जयते’ का ट्वीट लिखा तो मुझे इस प्रशंसा में के साथ ही  दुर्गा सप्तशती की स्तुतियाँ याद आ गईं. दुर्गा की तरह आपको भी तो दलित-बहुजन संधान पर लगाया गया है. रोहित वेमुला की सांस्थानिक ह्त्या पर बने आक्रोश के आगे भी आपके ‘ तेज’ का ही सहारा है ब्राह्मणवादी राष्ट्रवादियों को और शैक्षणिक संस्थानों में दावेदारी बना रहे दलितों –पिछड़ों को ठीक करने की भी जिम्मेवारी आपको ही दी गई है.स्त्री की शक्ति , क्षमता, तेज का इस्तेमाल दलित –पिछड़ों के पराक्रम के खिलाफ ताकि ब्राह्मणवादी सत्ता खतरे में न आ जाये- स्पष्ट है कि उत्पीडित अस्मिता का उत्पीडित अस्मिता के खिलाफ इस्तेमाल , सत्तावान द्विज-राष्ट्रवाद के हित में.

आप सचमुच वीरांगना हैं, जिस ‘बहन जी’ ( मायावती) के लिए आपकी पार्टी के बड़े –बड़े नेता सम्मान भाव दिखाने के लिए मजबूर हैं , उन्हें क्या खूब ललकारा आपने !  आपकी ललकार, ‘ सिर काटकर चरणों में रख देने’ का हुंकार, सबका भाव मुझे दुर्गा सप्तशती की कथा में ही ले गया , जब बीच रणभूमि में लाल –लाल क्रोधाग्नि से धधकती आँखों के साथ दुर्गा कहती है, ‘रे दुष्ट मुझे मदिरापान कर लेने दे , फिर ….’    आपकी ललकार , आपका हुंकार दलित – बहुजनों के लिए दुर्गा से कम नहीं है ! मायावती से लेकर रोहित वेमुला तक को ठीक करने के लिए आपको अभियान पर लगा दिया गया है . बार –बार अमेठी-अमेठी की चिंता क्यों करती हैं ?  आप तो बस मानव संसाधन विकास मंत्रालय में रहकर दलित –पिछड़ों के खिलाफ युद्ध छेड़े रहो , आप सत्ता के आभास के साथ सत्तावान बनी रहेंगी!

पुनश्च : आप संसद में कह रही थीं न जज जाति देख कर निर्णय नहीं करते , आपके नाम से आपकी जाति नहीं बताई जा सकती, कितनी भोली हैं आप , इसीलिए दुर्गा हैं . आपको पता नहीं लगेगा कि जजों के निर्णय से लेकर संघ के प्रचारकों की नियुक्ति भी जाति और लिंग देख कर होती है और जाति इतना काम करती है कि अपने प्रधानमंत्री जी देखते -देखते चायवाला से ओबीसी और दलित हो जाते हैं !!!