अरमान आनंद की कवितायें

अरमान आनंद

 युवा कवि,बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में शोधरत
armaan.anand24@gmail.com

डायन

मैं हंसूंगी तुम्हारे ऊपर
लगाउंगी अट्टहास
आज होगी मौत मेरे हाथों
तुम्हारी बनायी हुई औरत की
और हो जाउंगी आजाद
बेख़ौफ़
मैं आजाद स्त्री हूँ
मेरे बाल खुले हैं
सिन्दूर धुले हैं
मैं स्तनों को कपड़ों में नहीं बाँधा
पांव में पायल नहीं पहने
मेरे वस्त्र लहरा रहे है।
तुम मुझे डायन कहोगे
कहोगे मेरे पाँव उलटे है
हाँ मेरे पाँव तेरे बनाये गलियों से उलट चलते हैं
मेरे हाथ लम्बे हैं
मैं छू सकती हूँ आसमान
मैं निकलूंगी अंधियारी रात में
बेख़ौफ़
तेरे चाँद को कहीं नाले में गोंत कर
और तेरे चेहरे पर ढेर सारी कालिख पोत कर

अभी अभी जवान हुई लडकी

गुमसुम है…..
चुप्प
खोई खोई सी आँखें लिए बेतरतीब बालों के पीछे चेहरा छुपाये
सर झुकाए
बहुत कुछ तोड़ कर
कुछ बना रही है
अभी अभी जवान हुई एक लड़की
रोज शाम को
अपने चेहरे से चाँद उतारकर आसमान में खूँटी से टांग देती है
और सरे राह किसी आवारा भीड़ में घुप्प से गुम हो जाती है
अभी अभी जवान हुई एक लड़की
अपने ही भीतर बसे एक पुराने शहर से होकर गुज़रती है
जैसे एक हुजूम गुजरता है किसी दरगाह से उर्स के दिनों में
वो उतरती है एक उदास नदी के किनारे
सीढियों से
अपने ही अन्दर डूब जाने के लिए
अभी अभी जवान हुई एक लड़की को
पिछले दिनों लोलार्क कुंड पर नहान को गयी औरतों ने
पानी के भीतर बैठकर मछलियों से बात करते हुए देखा है.
अभी अभी जवान हुई एक लड़की ने अपने पाँव में एक जिद को बाँध रक्खा है.
अभी अभी जवान हुई एक लड़की
चाहती है
बनारस को ठंडई की ग्लास में उतार कर किसी चौराहे पर पी जाए
हजारों बरस का बूढा बनारस चाहता है
अभी अभी जवान हुई लड़की को जी जाये

सलीब की  औरत

सलीब पर चढ़कर
एक पुरुष
ईशा बन जाता है.
और
औरतों में  टांक दी गयीं
न जानें
कितनी सलीबें
गुमनाम रह गयीं.




आजादी

आज
एक चिड़िया ने
मार दी है सोने की कटोरी को लात
लहूलुहान चोंच से तोडा है चांदी का पिंजरा
और लगा दी है छलांग
अंतहीन में
मालिक नाम का जीव
सर धुनते हुए खोज रहा है
बन्दूक

गौरैया


1.


गौरैया
तुम गायब हो गयी हो
क्या सचमुच गायब हो गयी हो तुम गौरैया ?
कितनी जरुरी थी तुम आँखों के लिए
तुम्हारा न दिखना डर, भय ,आशंका और आकुलता से भर देता है
कहीं तुम काली रात में घूमती सफेद बस में तो सवार नहीं हो गयीं
कहीं सिगरेट के दागों के साथ तो नहीं पायी गयी
पुलिस की किसी रेड में
हॉस्पिटल के पीछे
गर्भ से निकाल फेंकी गयी नवजात
तुम्हीं तो नहीं थी
जिसके लिए सड़क के कुत्ते छीना झपटी कर रहे थे.

2.

गौरैया
बताओ न
तुम्हारी किडनी बिकी कि देह
मेरे घर की प्यारी लक्ष्मी
तुम अभी न उतरी थी आँगन की नीम से
कहाँ छुप्पा हो गयी
मैं तुम्हे ढूंढ के धप्पा बोलूंगा देखना
प्यारी गौरैया तुम्हे पता है
अनुपस्थिति अपने आप में एक राजनीति है
और गायब कर देना
सत्ता का
जादूगरों से भी पुराना खेल
प्यारी गौरैया
ये दुनियां कोई संसद् तो नहीं
जिससे तुम वाक आउट कर गयी हो
गौरैया तुमने एक बार सलीम अली के बारे में बताया था
उनसे पूछूँ क्या तुम्हारा पता
गौरैया बताओ न तुम गुजरात गयी कि पाकिस्तान
तुम्हारा कौन सा देश था गौरैया
तुम किस सरहद पर मारी गयी
तुम किसका लिखा  गीत गाती थी
इकबाल का या इकबाल का
हम तुम्हेँ ही बचाने के नारे लिख रहे थे
और तुम गायब हो गयी गौरैया
मेरी प्यारी गौरैया
कुछ बताओ न बताओ
ये तो बता दो
तुम्हें इश्क में शहादत मिली कि जंग में

3. 


गौरैया
तुम्हारी चहचहाहटों से ही तो सुबह उठती थी
सूरज आसमान पर
किसी बच्चे के पतंग सा लहलहा कर चढ़  जाता था
आईने में अपना ही अक्स देख हैरां- हैरां सी तुम
चीं-चीं-चीं करती
गोया कोई साथी हो तुम्हारा शीशे के जादू में कैद
और तुम
तोड़ कर तिलिस्म उसे आजाद करा लोगी
कितने खेल खेले हैं हमने साथ-साथ
चोर-सिपाही
छुपा-छुपी
पकड़ा-पकड़ी
दद्दा जी ने इस आँगन की नीम पे मेरा झूला डाला था
याद तो होगा न
तुम क्यों भूलने लगी
मुझसे ज्यादा तुम ही तो झूला करती थी न इसपर
जब से लौटा हूँ गाँव
आँगन वैसे ही बिखरा पड़ा है
तुम्हारी आवाज ढूंढ रहा हूँ
जैसे यहीं कहीं रख कर भूल गया होऊं
इस अड्हुल को तो देखो
जिसकी हरी पत्तियों में तुम लुका-छिपी खेलती थी
बेजान सा
मुझको ऐसे तकता है
जैसे आँखें खुली रख कर भूल गया हो
गौरैया तुम्हे ब्याह तो नहीं कर लिया न
तुम्हारा तो वादा था न
तुम हमारा इंतज़ार करोगी
बोलो ये तो धोखा है
सरासर धोखा
और जा ही रही थी एक खत ही डाल दिया होता तकिये के नीचे
या फिर लेटर बॉक्स में
डी.डी.एल.जी . का घंटा ही टांग देती घर के बाहर
कौन से शहर ब्याह हुआ है तुम्हारा
किस गली की दहलीज में गुम हो
देखो तो हम पढलिख कर लौट आये
हमने साहिबी वाली नौकरी भी छोड़ दी है
लोगों को बताते हैं कि हमारा लक्ष्य गाँव का विकास है
लेकिन मन में कहीं अभी भी तुम्हारे ही एक झलक की प्यास है
आ जाओ गौरैया
लौट आओ
देखो
मैंने तुम्हारे इंतज़ार में आँगन पसार रखा है

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ISSN 2394-093X
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