आरक्षण के भीतर आरक्षण के पक्ष में बसपा का वाक् आउट : नौवीं क़िस्त

महिला आरक्षण को लेकर संसद के दोनो सदनों में कई बार प्रस्ताव लाये गये. 1996 से 2016 तक, 20 सालों में महिला आरक्षण बिल पास होना संभव नहीं हो पाया है. एक बार तो यह राज्यसभा में पास भी हो गया, लेकिन लोकसभा में नहीं हो सका. सदन के पटल पर बिल की प्रतियां फाड़ी गई, इस या उस प्रकार  से बिल रोका गया. संसद के दोनो सदनों में इस बिल को लेकर हुई बहसों को हम स्त्रीकाल के पाठकों के लिए क्रमशः प्रकाशित करेंगे. पहली क़िस्त  में  संयुक्त  मोर्चा सरकार  के  द्वारा  1996 में   पहली बार प्रस्तुत  विधेयक  के  दौरान  हुई  बहस . पहली ही  बहस  से  संसद  में  विधेयक  की  प्रतियां  छीने  जाने  , फाड़े  जाने  की  शुरुआत  हो  गई थी . इसके  तुरत  बाद  1997 में  शरद  यादव  ने  ‘कोटा  विद  इन  कोटा’  की   सबसे  खराब  पैरवी  की . उन्होंने  कहा  कि ‘ क्या  आपको  लगता  है  कि ये  पर -कटी , बाल -कटी  महिलायें  हमारी  महिलाओं  की  बात  कर  सकेंगी ! ‘ हालांकि  पहली   ही  बार  उमा भारती  ने  इस  स्टैंड  की  बेहतरीन  पैरवी  की  थी.  अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद पूजा सिंह और श्रीप्रकाश ने किया है. 
संपादक

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सौंवी वर्षगांठ ( 8 मार्च 2010) 


 राज मोहिन्द्र सिंह  मजीठा (पंजाब) : ऑनरेबल डिप्टी चेयरमैन सर, मैं आपको धन्यवाद देता हूं, आज हिन्दुस्तान की पार्लियामेंट  में एक हिस्टोरिकल बिल पेश हुआ है, उस पर आपने मुझे बोलने का टाइम दिया है. भारतवर्ष में औरतों की आबादी तकरीबन आधी या 48 परसेंट है. हजारों सालों से औरतों पर जुल्म होते आए हैं. सबसे पहले औरतों के हक में जिसने आवाज उठाई थी, तो वह सिख कौम थी और बाबा गुरु नानक जी थे. 1526 में जब बाबर ने हिन्दुस्तान पर हमला किया था, तब बाबा नानक जी उस समय ऐमनाबाद में घूम रहे थे. जिस तरह आतताइयों  ने अपनी बिरादरी को भी नहीं छोड़ा, उस बारे में बाबा नानक जी ने बहुत कुछ कहा है, इसलिए मैं इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता हूं. मेरी पार्टी  व शिरोमणि अकाली दल के प्रधान की इच्छा के मुताबिक, मैं और मेरे साथी गुजराल साहब और बाजवा जी इस बिल का सपोर्ट करते हैं. शिरोमणि अकली दल एक ऐसी जमात है कि इसने औरतों के बारे में काफी कुछ किया है. यह SGPC, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बड़ी कुरबानियों  के बाद बनी. इसको महात्मा गांधी जी, पं0 जवाहरलाल नेहरु जी ने भी सपोर्ट किया. उसका इलैक्शन पिछले सालों  में हुआ है और हमारे प्रधान सरदार बादल जी ने 40 परसेंट औरतों को टिकट देकर खड़ा किया और वे कामयाब हुए. ऐसे ही पंजाब में चाहे वह किसी भी पार्टी में है, उनके दिमाग में औरतों के बारे में जो इज्जत है, वह और किसी और सूबे में कम होगी. पिछली पार्लियामेंट  में 13 में से 4 औरतें जिनकी संख्या 33 परसेंट के करीब बन जाती है, वे हमने भेजी हैं. 50 परसेंट अकाली दल की महिलाएं, इस हाउस की मैम्बर्स बनी हैं. यह ठीक है कि आज इस बिल को प्रधान मंत्री जी की पार्टी  ने पेश किया है. इस बिल को पहले भी दो प्राइम मिनिस्टर्स ने पेश किया है. इसका क्रेडिट उनको भी जाता है.  पहले 11वीं  लोक सभा में गुजराल साहब जी ने और फिर अटल बिहारी वाजपयी जी ने दो दफा पेश करने की कोशिश की है. हमारी पार्टी  NDA का हिस्सा है और BJP तथा अकाली दल वाले इस बिल को पास करवाने के लिए कोशिश करेंगे.

कणिमोझी (तमिलनाडु): महोदय, आपका धन्यवाद. मैं यहाँ द्रमुक और अपने नेता, डॉ. कलैगनार एम. करुणानिधि, जिन्होंने इस विधेयक का बेहिचक समर्थन किया है, जिन्होंने बिल का पारित होना सुनिश्चित करने और देखने के लिए हमेशा इस देश की महिलाओं, यूपीए-द्वितीय के साथ खड़े रहे. महोदय, मैं अपने समाज सुधारक एवं विचारक पेरियार के शब्दों का स्मरण करना चाहूंगा, जिन्होंने कभी कहा था कि इस देश की महिलाएं दमित हैं, वे इस देश की बहिष्कृत और दलित हैं, चाहे वे किसी भी धर्म की हों, किसी भी समुदाय की हों, या किसी भी जाति की हों. आज, हमें ऐतिहासिक गलतियों को, इस देश की महिलाओं के खिलाफ किये गये अपराधों को सही करने का यह एक अवसर मिला है. महोदय, हम इतने सारे बिल पारित किया है. हमने कई संशोधन किए हैं. इस सदन में, संसद में और विधानसभाओं में कई कानून बनाये गए हैं. कई बजट इस देश की आधी आबादी की आवाज सुने बिना, इसकी राय जाने बिना पारित किये गये हैं! कीमत में वृद्धि क्या हमें प्रभावित नहीं करती है? जलवायु परिवर्तन क्या हम पर असर नहीं डालता है?  लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता है. अगर इस देश की महिलाएं जो चाहती हैं, उसे कहने का उन्हें अवसर दिया गया होता तो स्थिति काफी अलग होती. शिक्षा या किसी भी क्षेत्र में धन आवंटन क्या महिलाओं को प्रभावित करता है? हमारी राय नहीं ली गयी; इस देश में कई वर्षों से हमें नजरअंदाज किया गया है. आज, मैं संप्रग सरकार, यूपीए की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, हमारे प्रधानमंत्री, हमारे राष्ट्रपति और हर राजनीतिक दल और नेता, जो हमारे द्वारा खड़े हुए हैं और इस विधेयक का समर्थन किया है, सबको बधाई देती हूं. कल, जब यह विधेयक पारित होने जा रहा था, तब हमने उत्साह के साथ शुरू किया था; हम सब बहुत खुश थे और वास्तव में हमें इस दिन का इंतजार था, लेकिन,  दुर्भाग्य से,  हमें भारी दिल के साथ वापस लौटना पड़ा. विधेयक को लेकर मतभेद थे, लेकिन सदस्यों को एक-दूसरे पर दोषारोपण शुरू कर दिया. हम सभी चिंतित थे. लेकिन मुझे यह कहने में गर्व है कि हम सभी उस विधेयक को पारित करने के लिए एक साथ वापस आ गये हैं जिसमें हमारा भरोसा भी है. मैं एक बार फिर से इस सदन में मौजूद हर नेता को, इस सदन के हर सदस्य को, जो उन सभी को जो इस विधेयक को पारित करने के लिए साथ आये हैं, बधाई देती हूं . महोदय, बहुत सारे सवाल हैं जो इस विधेयक को लकर उठाए गए हैं. कुछ दिनों पहले, हमारे नेता डॉ. कलैगनार एक बयान जारी किया था, और उस बयान में उन्होंने रूसो उद्धृत किया था. अपने बयान में डॉ कलैगनार ने कहा था:  सामान्य एवं सार्वजनिक, घटक दलों के परस्पर विरोधी हितों को देखे बिना समग्र समूह के कल्याण को प्रतिबिंबित करेगा. इसे घटक दलों के दृष्टिकोण के दमन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे शुरू में एक समूह के आम हितों को निष्पादित करने और लागू करने एक साधन के रूप में देखा जाना चाहिए. जब निष्पादन कर दिया जाता है, तो यह महत्वपूर्ण है कि सामान्य एवं सार्वजनिक को हमेशा चुनौती दी जा सकती है और पूछताछ की जा सकती है.” तो, आज, लोग आरक्षण के भीतर आरक्षण की बात कर रहे हैं. वे अल्पसंख्यकों के बारे में चिंतित थे, और मुझे यकीन है कि सरकार, ओबीसी और वंचित वर्गों और अल्पसंख्यकों के भी हितों की रक्षा करने में रुचि रखने वाले यह सुनिश्चित करेंगे कि संशोधन पारित हों जैसाकि हमने तमिलनाडु में किया है. हमारे राज्य में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण था और हमने महसूस किया कि उसी श्रेणीके भीतर एक छोटे से समुदाय, समुदाय, को अधिक सुरक्षा और अधिक मदद की जरूरत है तो, अरुनथाथियार समुदाय के लिए विशेष तौर पर तीन प्रतिशत आरक्षण कर दिया है. इसी तरह, हम परिवर्तन कर सकते हैं; हम बाद में इस विधेयक में संशोधन कर सकते हैं. तो, मैं हर किसी से इस विधेयक को पारित करने का अनुरोध करती हूं. आज एक ऐतिहासिक दिन है.

उप सभापति (प्रोफेसर पी.जे. कुरियन): आपका बहुत-बहुत धन्यवाद,  कणिमोझी. अब प्यारीमोहन महापात्र.

 प्यारीमोहन महापात्र (उड़ीसा): महोदय, मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूं और मैं प्रधानमंत्री को बधाई देता हूं और उसके सभी तीन पूर्ववर्तियों श्री वाजपेयी, श्री गुजराल और श्री देवेगौड़ा, के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता हूं, जिन्होंने विधेयक को लाने का प्रयास किया था और निराशा झेली थी. मैं विपक्ष के नेता, वाम दलों सहित सभी राजनीतिक दलों के नेताओं, और उन सभी को बधाई देता हूं जिन्होंने स्पष्ट रूप से इस विधेयक को पारित कराने में आपको समर्थन दिया है. कृपया अब ऐसा या वैसा का राग न अलापें. आप अपने खुद के बल पर इस विधेयक को पारित नहीं कर सकते. कृपया हर किसी को उसका उचित प्राप्य दें. यही मेरी दलील है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस सदन में दिवंगत राम मनोहर लोहिया के चेलों ने यह भूलकर कि राम मनोहर लोहिया किन बातों के लिए लड़ते रहे, कुछ दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियां पैदा की. राम मनोहर लोहिया महिलाओं के हालात में सुधार लाने,  उनके शोषण और उनकी यातना से मुक्ति के लिए लड़े थे. वे मानते रहे कि भारत में महिलाएं चाहे वे किसी भी जाति और वर्ग की हों, पुरुषों के अत्याचार और शोषण की शिकार हैं और उनके द्वारा अपमानित हैं और इसीलिए, वह सभी जातियों और वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षण के जरिये एक तरह का प्रतिनिधित्व चाहते थे. मेरी पार्टी बीजू जनता दल, जिसका नाम हमारी पार्टी के महान नेता दिवंगत बीजू पटनायक के नाम पर रखा गया था,  राज्य विधानमंडलों में और केंद्र में महिलाओं के सशक्तिकरण और महिलाओं के प्रतिनिधित्व के प्रति गहरी प्रतिबद्धता रखती है. बीजू बाबू, जब वह मुख्यमंत्री थे, अपने पूरे जीवन भर कहते रहे कि देश की समस्याओं को सुलझाने में पुरुष सफल नहीं रहे, इसलिए, समय आ गया था कि महिलाओं को आगे आना चाहिए और उनको नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिएा उन्होंने संविधान संशोधन के आने से बहुत पहले ही पंचायत राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों को आरक्षित कर दिया था. हमने नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण दिया है. माता के नाम का जिक्र करना अनिवार्य है. हमने यह सब तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के ऐसा करने से बहुत पहले ही कर लिया था. यह 1991 में किया गया था.  स्कूलों में बच्चों का दाखिला कराते वक्त  माता का नाम लिखना अनिवार्य है. पिता का नाम वैकल्पिक है. जातियों की संयुक्त रिकॉर्डिंग अनिवार्य है, ताकि परिसंपत्तियां महिलाओं को भी उपलब्ध हो सकें. उनके पुत्र, वर्तमान मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के अध्यक्ष, श्री नवीन पटनायक ने महिला सशक्तिकरण को नई ऊंचाइयों पर पहूंचाया है. 2002 में अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष के दौरान,  उन्होंने राज्यसभा के लिए दो महिला सदस्यों को नामित किया है. हम एक-तिहाई सदस्य यहाँ था. हमारे साथ यहाँ एक मैडम, ओबीसी महिला सदस्य हैं. हम ओबीसी और मुसलमानों के बारे में बात कर रहे हैं और कहा जा रहा है कि हम उनका ध्यान नहीं रख रहे हैं. हम 50 फीसदी आरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं. बीजूबाबू जब मुख्यमंत्री थे,  तब उन्होंने संसदीय सौध में एक बैठक में, 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग की थी.

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महिला आरक्षण को लेकर संसद में बहस :पहली   क़िस्त

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 वह इतिहास, जो बन न सका : राज्यसभा में महिला आरक्षण

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महिला संगठनों, आंदोलनों ने महिला आरक्षण बिल को ज़िंदा रखा है : वृंदा कारत: पांचवी  क़िस्त

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उपसभापति (प्रोफेसर पी. जे. कुरियन): जी हां, श्री महापात्र,  कृपया समाप्त करें.

प्यारीमोहन महापात्र: महोदय, मैं एक मिनट और लूंगा, कृपया अनुमति दें. हमने स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के रूप में महिलाओं को उनके सशक्तिकरण के लिए 50 फीसदी आरक्षण दिया है. हम कई नई चीजों को साकार किया है. महोदय, समय की कमी के कारण, मैं समापन कर रहा हूँ. रोटेशन प्रणाली और अन्य पिछड़े वर्गों के शामिल न किए जाने की तरह विधेयक में कई कमजोरियों के बावजूद, हम इस विधेयक का समर्थन करते हैं. अन्य सभी बातें चर्चा और विचार-विमर्श के माध्यम से बाद में देखी जा सकती हैं. महिलाओं की शक्ति और बेहतरी के लिए देश की नियति को आकार देने की क्षमता पर मेरी पार्टी का भरोसा है. इसलिए, हम विधेयक का समर्थन करते हैं और हम किसी भी संशोधन करेंगे जो इस देश में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए लाया जाएगा. धन्यवाद.

नरेश गुजराल (पंजाब): श्रीमान उपसभापति महोदय, सबसे पहले मैं महात्मा गांधी के शब्दों को उद्धृत करना चाहूंगा. उन्होंने कहा था, “कानून बनाने वाले पुरुष को तथाकथित कमजोर कहे जाने वाले स्त्री वर्ग का दर्जा कमतर करने के लिए भयानक दंड का भुगतान होगा. जब महिला, पुरुष के फन्दे से मुक्त होकर, पूरी तरक्की करती है और पुरुष द्वारा बनाये कानून और उसकी संस्थाओं के खिलाफ विद्रोह करती है, तो उसका विद्रोह जो अहिंसक है, निसंदेह, कोई कम प्रभावी नहीं होगा.” राष्ट्रपिता के शब्द अंतत: भारतीय संसद के इस ऐतिहासिक सत्र में आज सच होते दिख रहे हैं. लगातार बनी रहने वाली लिंग आधारित असमानताओं की पहचान करने वाला और राज्य विधानसभाओं और संसद में एक तिहाई सीटों को आरक्षित करके महिलाओं को सशक्त बनाने वाला महिला आरक्षण विधेयक के निहितार्थ दरअसल एक अर्थ में सदियों पुरानी उन संस्थाओं के खिलाफ विद्रोह है जिन संस्थाओं ने लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना के समय से ही राजनीति से महिलाओं को अलग-थलग करना जारी रखा है. राज्य विधानसभाओं और संसद में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए एक कानूनी प्रावधान बनाने के प्रगतिशील प्रयास प्रधानमंत्री के रूप में श्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान 1992 के पंचायती राज अधिनियम के साथ अस्तित्व में आये. उसके बाद श्री आई. के.  गुजराल, ने अपने प्रधानमंत्री रहने के दौरान व्यक्तिगत रूप से विधेयक को आगे बढाया और इसे वर्तमान स्वरूप में 11वीं लोकसभा में प्रस्तुत किया. दुर्भाग्यवश, विभिन्न हलकों से विरोध होने और समर्थन की कमी के कारण, विधेयक पारित नहीं हो सका. श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री के रूप में,  इस विधेयक को पारित करवाने के दो प्रयास किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. महोदय, यह सराहनीय है कि आज लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इस पथप्रदर्शक विधेयक के समर्थन में एकमत हैं, जो 1997 की संसदीय कार्यवाही से एकदम अलग है. इस तथ्य से साफ जाहिर होता है कि भारतीय जनता, अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों सहित भातीय महिलाओं के अधिकारों और आकांक्षाओं के प्रति बहुत ही संवेदनशील है. हालांकि अफसोस के साथ ही, हालांकि, मुझे कहना चाहिए कि कुछ पार्टी के नेताओं की ओर से हुआ है  जो आज लोकतंत्र का चैंपियन होने का नाटक कर रहे हैं.

उप सभापति (प्रो. पी. जे. कुरियन): आप द्वारा इस्तेमाल किया गया शब्द असंसदीय है. इसलिए, यह शब्द हटा दिया गया है.

नरेश गुजराल: महोदय, मैंने उस शब्द वापस को वापस ले लिया. वे पिछले 13 वर्षों में आसानी से अपनी पार्टियों से अधिक महिलाओं को टिकट दे सकते थे. पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. हालांकि, यह कानून अब उनको मजबूर करेगा और इस विधेयक के इतिहास में दिखी निष्क्रियता के बावजूद, महिलाओं के आखिरकार इस धरती पर अपनी उचित जगह मिलेगी. महोदय, कुछ राजनीतिक नेताओं द्वारा आरोप लगाये जा रहे हैं ….


उपाध्यक्ष: तीन मिनट समाप्त हो गये हैं. कृपया समापन करें.

 नरेश गुजराल: इन शब्दों के साथ अपनी पार्टी की ओर से मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूं.



 मोहम्मद अदीब (उत्तर प्रदेश) : शुक्रिया . पिछले दो दिनों से जो कुछ हाऊस में मैंने देखा, इससे बड़ा दुख भी है, अफसोस भी है. इसको बयान करने का इज़हार मैं इस शेर के साथ करना चाहता हूं :-
रंगो गुल का है न सलीका, न बहारों  का शअुर
हाय किन हाथों की तकदीर में तकीरे हिना ठहरी.
हालत यह है कि जो कुछ हमने देखा, बहुत अफसोसनाक है, लेकिन इस बात की भी एक खुशी हो रही है कि हिन्दुस्तान के मुख्तलिफ लीडरान ने यह फैसला किया कि हम देहात और खलिहानों से औरतों को लाएंगे और हिन्दुस्तान के उस सबसे बड़े मंदिर में, जहां कानून बनाए जाते हैं, वहां लाकर इम्पावरमेंट देंगे. यह एक अलग बात है कि वहां की औरतें आज रोज़ डॉवरी की शिकार हो रही हैं, उधर हमारी तवज्जो नहीं है, वहां की औरतों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं, तालीम नहीं मिल रही है, लेकिन हम पार्लियामेंट  में उनको लाने के लिए बहुत उत्सुक हैं. जब सबकी यह राय है तो मेरी भी यह राय है. मेरे दिल की जो कैफियत है, वह उधर बैठे तिवारी जी ने बयान की है. मैं समझता हूं कि हमारी कौम के लिए एक तश्वीश का लम्हा आ गया है. यह वह वक्त है, मैंने देखा है पार्लियामेंट  के और असैम्बली के इलेक्शनों में, तरीकेकार यह है कि अगर तीन लाख ठाकुर हैं और चार लाख मुसलमान हैं तो फैसला यह किया जाता है कि ठाकुर को वोट दे दो, मुसलमान वोट दे ही देगा, इसलिए कि उसके पास इतना लायक आदमी नहीं है. मैं नहीं जानता कि इस कंडीशन में हमारी औरतें कहां से इलेक्शन में आएंगी.  प्राइम मिनिस्टर साहब मौजूद हैं, मैं इनके सामने एक वाकया बयान करना चाहता हूं और यह बताना चाहता हूं कि हम किस माहौल में हैं और हमने क्या समाज बनाया है. मेरी मां की सगी बड़ी बहन ने सन् 36 में लखनऊ से कांग्रेस की तरफ से मुस्लिम  लीग के खिलाफ इलेक्शन लड़ा बुर्का पहनकर. हमारी समाज 80 साल के बाद क्या इस बात के लिए तैयार है कि मैं अपनी बेटी को बुर्का पहनकर इलेक्शन में ले जाऊं? क्या कहलाएगी वह, आतंकवादी, बैकवर्ड और दकियानूसी? यह हमने समाज बनाया है. हम ऐसी शक्ल में खड़े हैं. इस पार्लियामेंट  में हमारी नुमाइंदगी 50 और 55 की थी, आज हम 27 पर आ गए. हमको यह खौफ है, हम जानते हैं, हम इस सरकार से मुहब्बत करते हैं, हमको कांग्रेस से मुहब्बत और अकीदत है, हम कांग्रेस को सपोर्ट करते हैं लेकिन कांग्रेस से पूछते हैं कि हम वोट डालने की मशीन कब तक रहेंगे, कब तक हमारे साथ यह होगा? अगर गिल कमीशन की बात  मान ली जाती तो इन पार्टियों  में यह कहा जाता कि 33 परसैंट रिजर्वेशन  किया जाए, लेकिन यह नहीं किया गया, इसलिए कि लड़कियां, औरतें केंडिडेट नहीं बन सकती थीं, इलेक्शन नहीं जीत सकती थीं. पार्टियां  कमजोर हो जातीं, पार्टियों  को कमजोर करना मकसद नहीं है, पार्लियामेंट  कमजोर हो जाए, कोई बात नहीं है. हम तरक्की कर रहे हैं! यह हमारा मनसब है. मैं आज प्राइम मिनिस्टर साहब से गुज़ारिश करना चाहता हूं और अपने कांग्रेस के भाइयों  से और लेफ्ट के भाइयों से कहना चाहता हूं कि यह बिल आप पास करें, हम आपके साथ रहेंगे लेकिन इस बात का वायदा कीजिए और अज्म कीजिए कि आप जब 33 परसैंट का रिजर्वेशन  कर रहे हैं तो इसमें 15 से 17 परसैंट मुसलमानों का रिजर्वेशन  यकीनी बनाइए और यह कहिए, अगर आपने यह नहीं किया तो यकीनन आप हम लोगों के साथ नाइंसाफी करेंगे.  इन अल्फाज़ के साथ मैं प्राइम मिनिस्टर साहब से कहना चाहता हूं कि मैं आपको सपोर्ट करता हूं, आपकी पार्टी  को सपोर्ट करता हूं क्यों कि मेरे पास कोई दूसरा ज़रिया नहीं है. मैं जानता हूं कि हिन्दुस्तान में आप ही एक अकेली पार्टी  हैं, लेकिन हमें नज़रअंदाज मत कीजिए, हमारे दिल में जो शक-ओ-शुबहात हैं, उनको आप पार्टी  के अंदर यह कानून लाकर पूरा कीजिए कि हम रिजर्वेशन जब देंगे तो मुसलमानों को, बैकवर्ड को और दलितों को 20 से 25 परसैंट इन 33 परसैंट में से देंगे. शुक्रिया

अवनि राय (पश्चिमी बंगाल) : उपसभाध्यक्ष जी, पहले तो मैं इस बिल का समर्थन करता हूं और समर्थन के साथ अपनी बात भी यहां कहना चाहता हूं कि राजीव गांधी जी ने महिलाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश की, यह सबको मालूम है, लेकिन सच्चाई यह है कि महिला आरक्षण बिल को United Front की सरकार के समय में लाया गया था, यह बात भी आपको कहनी चाहिए. हमें संविधान संशोधन बिल के लिए दो-तिहाई मत चाहिए, लेकिन दो-तिहाई का मतलब यह नहीं है कि केवल हमने किया है, आप यह राजनीति मत कीजिए, मैं कांग्रेसियों  से यह बात कह रहा हूं. इसके साथ ही मैं यह कहूंगा कि इसके लिए बहुत बार प्रयास किया गया था, लेकिन किसी न किसी कारण से यह नहीं हो पाया. कल यह ऐतिहासिक बिल, एक ऐतिहासिक अवसर पर, एक इतिहास की रचना के लिए हम इस संसद में लाए थे, लेकिन कल हम इसे पास नहीं कर पाए और इस बीच एक दूसरा इतिहास भी आपने रच दिया, ऐसा क्यों  हुआ? जहां तक हमारे इस सदन की गरिमा और मर्यादा की बात है, कल इस सदन को क्यों  चार बार adjourn करना पड़ा, क्यों  आपने इसमें दखल नहीं दिया, क्यों  आपने इस बिल को कल पारित करने की कोशिश नहीं की? यह सवाल आपके ऊपर आता है और आज भी जो घटना घटी है, यह हमारे सदन के लिए अच्छी नहीं है. मैं दोनों की निंदा करता हूं. मैं यह कहता हूं कि अगर सदन की गरिमा को बनाए रखना है, तो Treasury Benches को किसी भी बिल को सदन में रखने से पहले, सदन को confidence में लेना चाहिए. (श्री सभापति पीठासीन हुए)  सभापति जी, कहा जा रहा है कि आज़ादी के 63 सालों  के बाद आज यह बिल पास हो रहा है. कांग्रेस की बहुत सारी अच्छी बातें हैं, लेकिन इन 63 सालों  में आपने कितने सालों  तक राज किया और 1991 से 1995 के बीच आप यह बिल क्यों  नहीं ला पाए, इस बारे में आपको सोचना चाहिए. Do not play politics with women. You respect them. आप उनको सम्मान दीजिए और मर्यादा के साथ
इस बिल को पारित कीजिए. खाली बिल में रिजर्वेशन  की बात नहीं है, लोक सभा में या विधान सभाओं में आने की बात नहीं है, इसके साथ पूरे देश में नारी जाति को पूरा सम्मान मिलना चाहिए, तभी उनके empowerment की बात आती है …. (व्यवधान) जब women empowerment की बात आती है, तो हर जगह, घर से लेकर संसद तक, हर जगह उनके पूरे सम्मान की बात होनी चाहिए. रोजाना अखबारों में जो हम पढ़ते हैं, क्या इसमें हमारी women empowerment की कोई बात आती है? मैं गुज़ारिश करूंगा कि पूरा सदन इस बिल का समर्थन करते हुए यह भी कहे कि महिलाओं का भारत में इस तरह से सम्मान  होना चाहिए ताकि हमसे दुनिया सीखे कि महिलाओं के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है. इसी के साथ मैं इस बिल का समर्थन करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं. धन्यवाद.


परिमल नथवानी (झारखंड) : सभापति महोदय, मैं प्रधानमंत्री जी का और सरकार का शुक्रिया अदा  करता हूँ और भारतीय जनता पार्टी  जिन्होंने  इस ऐतिहासिक बिल का शुरू से समर्थन किया है, उनका भी मैं  शुक्रिया अदा करता हूँ. सारी राजनीतिक पार्टियों   ने जो कुछ लोगों  की बात करते हुए समर्थन किया है, उसके लिए मैं अपनी खुशी व्यक्त करता हूँ. सर, मैं इसलिए अपनी खुशी व्यक्त करता हूँ, क्यों कि मैं झारखंड को represent करता हूँ. झारखंड से लोक सभा के अंदर एक भी महिला चुन कर नहीं आई है. झारखंड में assembly के अंदर भी महिलाओं की संख्या double digit में नहीं पहुंची है, जिसको हम दस कह सकते हैं. इस बिल के माध्यम से हमारे झारखंड की महिलाओं को खूब लाभ पहुंचेगा. इतना ही नहीं, यहां से पंचायती राज
की बात की जा रही थी. जब से झारखंड अलग राज्य बना है, तब से वहां पंचायतों का चुनाव भी नहीं हुआ है. झारखंड में पंचायततों के चुनाव हों गे, तो जैसे यहां श्रीमती वृंदा कारत जी ने कहा कि पंचायती राज से महिलाओं का योगदान शुरू होता है, तो मैं मानता हूँ कि राज्य सरकार और भारत सरकार को मिलकर झारखंड के अंदर भी पंचायती राज को लाने का प्रयास करना चाहिए, जो सुप्रीम कोर्ट में रुका हुआ कोई मामला है. मैं फिर से पूरे सदन को धन्यवाद देता हूँ और मुझे मौका मिला, उसके लिए मैं सबका आभारी हूँ. (समाप्त)


 अनुसुइया उइके (मध्य प्रदेश) : माननीय सभापति महोदय, आपने मुझे जो विधेयक पर बोलने के लिए समय दिया है, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूँ. इस विधेयक में महिला सशक्तिकरण, आथिक एवं सामाजिक दृषि्टकोण से बराबरी का दर्जा देने के लिए जो महिला आरक्षण बिल यहां प्रस्तुत किया गया है, इसके लिए मैं सरकार को धन्यवाद देती हूँ और इसकी प्रशंसा करती हूँ. मैं यह भी कहना  चाहूंगी कि हमारी पार्टी ने सन् 1996 में पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में लगातार इस महिला आरक्षण को लागू करने का प्रयास किया और उसका ही परिणाम यह है कि आज महिला आरक्षण विधेयक इस सदन में प्रस्तुत हो पाया.
सुश्री अनुसुइया उइके (क्रमागत) : मैं इसके लिए हमारी पार्टी  के नेता, माननीय जेटली जी, समस्त वरिष्ठ नेताओं और विरोधी दल के तमाम नेताओं को धन्यवाद देना चाहती हूं. एक बात मैं और कहना चाहती हूं कि भारतीय जनता पार्टी , जो विपक्ष की प्रमुख पार्टी  है, उसने महिला आरक्षण बिल को दिल से समर्थन दिया है और मैं यह बात दावे से कहना चाहूंगी कि अगर कांग्रेस पार्टी  विपक्ष में होती, तो वह महिला आरक्षण बिल का समर्थन नहीं करती. …(व्यवधान)… माननीय सभापति महोदय …..(व्यवधान)…



सभापति : प्लीज़….प्लीज़…. बैठ जाइए. ..(व्यवधान)…


विप्लव ठाकुर : आपकी पार्टी  ने किया था. …(व्यवधान)…


 सभापति : प्लीज़ बैठ जाइए. …(व्यवधान)…


अनुसुइया उइके : माननीय सभापति महोदय, देश की आधी जनसंख्या …(व्यवधान)…


 सभापति : प्लीज़, बैठ जाइए…. प्लीज़ बैठ जाइए.. समय कम है, प्लीज़.

अनुसइया उइके : माननीय सभापति महोदय, देश की आधी जनसंख्या महिलाओं की है, फिर भी उन्हें समान और पर्याप्त अवसर प्राप्त नहीं हुए हैं, जिनकी लंबे समय से मांग की जा रही थी और आज़ादी के 62 वर्ष उपरांत आज यह मांग पूरी होने जा रही है, इसलिए यह महिलाओं के लिए एक ऐतिहासिक दिन माना जाएगा. इसके लिए मैं हमारी भारतीय जनता पार्टी , विपक्ष के नेता और अटल बिहारी वाजपेयी जी को बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद देती हूं

 अनुसुइया उइके : माननीय सभापति महोदय, मझे एक बात और कहनी है कि यहां पर हमारे जितने भी सांसद भाई हैं, उन्होंने  महिलाओं के लिए समान अधिकार देने की बात कही है. आज मैं इस सदन के माध्यम से यह कहना चाहूंगी और यह मांग रखती हूं कि जिस तरह से पांच साल के लिए  प्रधान मंत्री पुरुष होते हैं, उसी प्रकार महिला को भी पांच साल के लिए प्रधान मंत्री होना चाहिए. …मंत्रीमंडल में भी 33 परसेंट महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिए.

अनुसुइया उइके : माननीय सभापति महोदय …


सभापति : अब आप खत्म कीजिए. …(व्यवधान)… प्लीज़…(व्यवधान)… आपके तीन मिनट पूरे हो चुके हैं.

अनुसुइया उइके : माननीय सभापति महोदय, मैं सभी पुरुष भाइयों  से कहना चाहूंगी कि आपका कोई अधिकार कम करके हम उसमें से कुछ नहीं मांग रहे हैं. हमने तो सदैव ही आपको जो भी अधिकार मिलते रहे हैं, उन्हें प्रदान करने में कभी भी किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई, किंतु आज जब महिलाओं को कुछ अधिकार देने की बात हो रही है, तो उसमें एकजुटता दिखाई दे रही है, इसके लिए मैं सदन
के समस्त सांसद भाइयों का अपनी ओर से बहुत-बहुत आभार व्यक्त करती हूं, धन्यवाद.


सतीश चन्द्र मिश्र : सर, हमारा दो मिनट का समय बचा है, उसमें से मैं एक मिनट का समय लूंगा.


सभापति : जी, फरमाइए.


सतीश चन्द्र मिश्र : सभापति महोदय, अभी लॉ मिनिस्टर साहब ने कहा कि ओबीसी का रिजर्वेशन  वह समझते हैं कि होना चाहिए, लेकिन डाटा नहीं है इसलिए नहीं हुआ. हमें इस बात का बहुत अफसोस
है. हम लोगों ने अपनी बात कही कि ..(
सभापति : देखिए, अब आप इस पर ..(व्यवधान)..


सतीश चन्द्र मिश्र : सर, मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं, उसके लिए आप मझे परमिट कर दीजिए. मझे यह उम्मीद थी कि हमने जो अपनी बात रखी थी, हमारी पार्टी  की राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय हमारी बहन मायावती जी ने रखी थी, उन्होंने पत्र लिखकर कहा था उसको कंसीडर करते हुए शायद यह बिल आज वोटिंग के लिए नहीं डाला जाएगा, उसमें अमेंडमेंट्स करने के बाद आएगा, लेकिन ऐसा मुझको नहीं लगता है. जैसा कि आप लोगों ने कहा आप वोटिंग के लिए बिल को रखने जा रहे हैं और चूंकि इसमें गरीब महिलाओं को चाहे वह शैड्यूल्ड कास्ट हो, शैड्यूल्ड ट्राइब्स हो, चाहे वह अल्पसंख्यक हो, बैकवर्ड हो या अपर कास्ट की हो, उनकी अनदेखी की जा रही है. इसलिए इस वोटिंग में बहुजन समाज पार्टी नहीं करेगी. क्यों कि हम बिल के इस स्वरूप से असहमत हैं और इस बिल पर अपनी असहमति व्यक्त करते हुए, हम लोग इस वोटिंग से अपना बॉयकाट करते हैं.

माया सिंह : सभापति जी, हम आपके माध्यम से माननीय प्रधान मंत्री जी से यह आश्वासन चाहते हैं कि यह महिला आरक्षण बिल आज यहां से पास हो रहा है, यह बिल राज्य सभा से पास हो जाएग. अभी आधा काम हुआ है, लोक सभा में आने वाले सत्र में.बल्कि इसी सत्र में लोकसभा से पास होना चाहिए.


बीरेंद्र प्रसाद बैश्य (असम): उप सभापति महोदय,  स्वयं को इस ऐतिहासिक घटना के साथ संबद्ध करके मुझे बहुत गर्व है. मुझे याद है, वर्ष 1996 में पहली बार, इस विधेयक संयुक्त मोर्चा सरकार के कार्यकाल के दौरान लाया गया था. 1996 स्वयं मैंने और मेरी पार्टी ने  पूरी तरह से विधेयक का समर्थन किया था.

बीरेंद्र प्रसाद बैश्य (जारी):  आज फिर, मैं यहाँ मेरी पार्टी, असम गण परिषद, की ओर से इस विधेयक का समर्थन करने के लिए खड़ा हूँ . हालांकि मैं दृढ़ता से विधेयक का समर्थन करता हूं, पर फिर भी मुझे कहना ही होगा कि प्रारंभ से ही इसे उचित तरीके से नहीं तैयार किया गया, और इससे बचा जा सकता था. महोदय, हम आज यहां संविधान (संशोधन) विधेयक पारित करने के लिए मौजूद हैं, और कल जो अवांछित स्थिति पैदा हुई, उसको लेकर मुझे बहुत खेद है. इससे बचा जा सकता था. महोदय, मैं अपने देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का हूं, जहां महिलाओं की संरचना बहुत बुलंद है. सभी जानते हैं कि दहेज के नाम पर कई महिलाओं के हमारे देश के कई हिस्सों में हर दिन मारी जाती हैं, लेकिन ऐसी स्थिति असम और हमारे देश के अन्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में नहीं है. हमारे समाज में महिलाओं की यही स्थिति है. अब मैं असम आन्दोलन की सफलता में असम की महिलाओं की भूमिका के बारे में बताऊंगा. मेरी पार्टी, असम गण परिषद, असम में विदेशी नागरिकों के खिलाफ असम आंदोलन के सफल समापन के बाद बनाई गई थी. मुझे याद है कि लाखों असमिया महिलाओं ने संघर्ष में भाग लिया था;  असम आंदोलन द्वारा काफी हलचल पैदा की गई थी. आज, अपनी पार्टी और असम की जनता की ओर से, मैं असम आंदोलन में भाग लेने वाली असम की महिलाओं को सलाम करना चाहता हूं. असम आंदोलन के सफल समापन के बाद, असम समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था, और हमारी पार्टी, असम गण परिषद का गठन किया गया था. आज, मैं यहाँ सरकार द्वारा लाये गए महिला आरक्षण विधेयक के प्रति पूरे समर्थन की घोषणा करता हूं. धन्यवाद महोदय.

शरद अनंतराव जोशी (महाराष्ट्र): महोदय, मैं स्वतंत्र भारत पक्ष पार्टी की ओर से बात करने के लिए खड़ा हुआ हूं. मेरी पार्टी की स्थिति बहुत संक्षेप में इस प्रकार से है :  महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण – एक ज़बरदस्त हाँ, हाँ, हाँ. आरक्षण – एक काफी बड़ा प्रश्न चिह्न. और, रोटेशन और लॉटरी सिस्टम – पूरी तरह नहीं, नहीं, नहीं. 1986 में मेरी पार्टी की शेतकारी महिला अगाडी,  महाराष्ट्र के ग्रामीण महिलाओं के संगठन, ने सबसे पहले पंचायती राज चुनाव लड़ने के लिए 100 प्रतिशत महिलाओं वाले पैनल का फैसला किया था. लेकिन यह महाराष्ट्र में श्री शंकर लाल चव्हाण के नेतृत्व वाली कांग्रेस (आई) पार्टी थी, , जिसने इस विचार का विरोध किया था है और अगले तीन वर्षौं के लिए पंचायती राज के सभी चुनावों को स्थगित कर दिया. और उसके बाद ही उन्होंने 33 प्रतिशत आरक्षण की अवधारणा को स्वीकार किया था. महोदय, बसपा के माननीय मिश्रा ने सवाल उठाया है: यह आरक्षण कहां से आया है?  तो 33 प्रतिशत की उत्पत्ति की कहानी यही है. अब सवाल है: क्या आरक्षण, वास्तव में, कभी लक्षित समुदायों में से किसी को लाभ पहुंचाया है? और हमारे अनुभव बहुत सुखद नहीं है. इस समस्या का समाधान पार्टी लिस्ट सिस्टम द्वारा हल करने के बजाय आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिये आसानी से निकाला जा सकता था. वह प्रणाली  आरक्षण के साथ जुड़ी सारी समस्याओं का ख्याल रखेगी. और, अगर हमने पार्टी लिस्ट सिस्टम के बजाय आनुपातिक प्रतिनिधित्व को शामिल किया होता तो पिछले दो दिनों में जो दृश्य हमने देखा है, उनसे बचा जा सकता था. और अब अन्त में, लॉटरी-सह-रोटेशन प्रणाली को देखें, जो एक मामूली दोष नहीं है. मेरा अब भी कहना है कि इस प्रणाली में एक घातक दोष है. इसमें, हम एक निर्वाचन क्षेत्र पहले चुनते हैं, और इसकी बहुत संभावना है कि उस निर्वाचन क्षेत्र के लिए, कोई उत्साही महिला उम्मीदवार नहीं मिल पाये. दूसरी ओर, संभव है कि एक पुरुष ने कुछ समय से उस निर्वाचन क्षेत्र के लिए कुछ काम किया हो.

शरद अनंतराव जोशी (जारी): यह अनावश्यक रूप से महिलाओं के आंदोलन के खिलाफ कड़वाहट पैदा करेगा. महोदय, फिर  इसकी भी संभावना है कि इस अवसर का इस्तेमाल स्थापित नेता अपने परिवार के सदस्यों की उम्मीदवारी के लिए करेंगे जो इस विधेयक का उद्देश्य बिल्कुल नहीं है. महोदय, एक बार एक महिला निर्वाचित होती है, तो उसे पता रहेगा कि उसे फिर से ‘महिला सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र’  उम्मीदवार बनने का मौका नहीं मिलेगा. इसलिए, वह निर्वाचन क्षेत्र में काम करने को लेकर उतना उत्साहित नहीं रहेगी. इसी तरह,  निर्वाचित पुरुष उम्मीदवारों को भी अपने निर्वाचन क्षेत्र से एक बार फिर से चुनाव लड़ने की संभावना को लेकर संदेह रहेगा क्योंकि उनके लिए इसकी उपलब्धता की संभावना केवल 50:50 रहेगी. इन परिस्थितियों में, महोदय, इसका प्रमुख असर यह पड़ेगा कि सभी निर्वाचन क्षेत्रों की बहुत खराब देखरेख होगी. और, अंत में, महोदय, इस तरह की आरक्षण प्रणाली किसी भी सदन में किसी भी अवधि में 33 प्रतिशत से अधिक दोबारा चुन कर आये सदस्यों का होना असंभव बना देगा. तो इस तरह  हम विधानमंडलों और संसद में अनुभवी लोगों की कमी पायेंगे. यह भारतीय लोकतंत्र के लिए घातक साबित हो सकता है. धन्यवाद महोदय.


 अब्दुल वहाब पीवी (केरल): मुझे बोलने का अवसर देने के लिए धन्यवाद, श्रीमान सभापति महोदय. मैं यहाँ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की ओर से विधेयक पर बात करने के लिए खड़ा हुआ हूं. हम महिलाओं के लिए आरक्षण के कार्यान्वयन पर चर्चा कर रहे हैं. लेकिन,  हम उम्मीद करते हैं कि डॉ. मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष के नेतृत्व में यूपीए सरकार, अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों और पिछड़े समुदायों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देगी.

अब्दुल वहाब पीवी (जारी): मुझे लगता है,  यदि यह रूझान बना रहे तो भविष्य में  हम पुरुषों के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाला एक और विधेयक लायेंगे. दस साल बाद, यदि मैं यहां नहीं भी रहूं, क्योंकि 2 अप्रैल को मैं सेवानिवृत्त हो रहा हूँ, तो मुझे लगता है, एक और विधेयक इसी सदन में लाना होगा. मैं भाग्यशाली हूँ कि जब सदन में सीटों के आरक्षण पर विचार हो रहा था तो मैं यहां मौजूद रहा. लेकिन यदि यह रुझान जारी रहता है, तो यहां पुरुष सदस्य अल्पमत में आ जायेंगे. वृंदा करात जी हैदराबाद महापालिका में प्रतिनिधित्व और उन सब बातों के बारे में बता रही थीं. मैं उन्हें हैदराबाद नगर पालिका का उल्लेख करने के लिए धन्यवाद देता हूं. लेकिन पश्चिम बंगाल में क्या हो रहा है? पश्चिम बंगाल में मुसलमान जनसंख्या का 25 प्रतिशत हैं. पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व क्या है? आप उस राज्य में शासन कर रहे हैं.

सभापति: श्री अब्दुल वहाब, आपके पास समय सीमित है. अपने भाषण को पूरा करें. श्रीमती करात,  बहस को चलने दें. आपसे अनुरोध हैं कि आप अपनी सीट पर जायें. अब्दुल वहाब, आपको तीन मिनट मिले हैं और दो मिनट पहले ही समाप्त हो चुके हैं. इसलिए, आपके पास  एक मिनट बचा है.

अब्दुल वहाब पीवी:  मैं सिर्फ दो या तीन जगहों, जैसे पश्चिम बंगाल और केरल, का उल्लेख किया है. केरल में पर्याप्त संख्या है, क्योंकि हमारी पार्टी है. दुर्भाग्य से, पश्चिम बंगाल में हमारी पार्टी नहीं है. वैसे भी, हम आशा करते हैं कि भविष्य में पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों से पर्याप्त प्रतिनिधित्व, 25 फीसदी,  आ जाएगा. महोदय, मुझे यह मौका देने के लिए मैं एक बार फिर से आपको धन्यवाद देता हूं, और मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूं.
क्रमशः

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