औरतें – क़िस्त दो

BAL23031 Group portrait of the family of George Swinton by Orpen, Sir William (1878-1931) Private Collection British, out of copyright
एदुआर्दो गालेआनो / अनुवादक : पी. कुमार  मंगलम 

अनुवादक का नोट 

“Mujeres” (Women-औरतें) 2015 में आई थी। यहाँ गालेआनो की
अलग-अलग किताबों और उनकी लेखनी के वो हिस्से शामिल किए गए जो औरतों की
कहानी सुनाते हैं। उन औरतों की, जो इतिहास में जानी गईं और ज्यादातर उनकी
भी जिनका प्रचलित इतिहास में जिक्र नहीं आता।  इन्हें  जो चीज जोड़ती है वह
यह है कि  इन सब ने अपने समय और स्थिति में अपने लिए निर्धारित भूमिकाओं को
कई तरह से नामंजूर किया।



तितुबा 


बहुत पहले ,बचपन में ही उसे दक्षिणी अमरीका में पकड़ लिया गया था. फिर एक बार और बार-बार बिकते तथा  एक-के-बाद दूसरे मालिक को  देखते हुए वह आखिरकार उत्तरी अमरीका के सालेम कस्बे जा पहुंची थी.
वहाँ सालेम में, जो शुद्धतावादी प्यूरिटन (“प्यूर” अर्थात “शुद्ध”) ईसाईयों का डेरा था, वह पादरी सैमुएल पार्रिस के घर की दासी मुक़र्रर की गई थी. पादरी की बेटियाँ उसे बहुत चाहती थी. तितुबा जब उन्हें चमत्कार से प्रकट हुए लोगों की कहानियाँ सुनाती या अंडे की घुली हुई जर्दी में उनका भाग्य पढ़ती, तब वे खुली आंखों से सपना देख रही होती. 1692   की सर्दियों में, जब इन लड़कियों पर शैतान का साया पड़ा और वे जमीन पर उलट-पलट पड़ रही थीं, चीख-चिल्ला रही थीं, तब सिर्फ तितुबा ही उन्हें शांत कर सकी थी. उसने उन्हें प्यार किया, उनके कान में तब तक कहानियां फुसफुसाती रही जब तक कि वे उसकी गोद में सो न गई. बस, इसने उसे गुनाहगार बना दिया. अब यह तितुबा ही थी जिसने ईश्वर के चुने हुए लोगों की आदर्श नगरी में नरक की आहट सुना दी थी.

फिर कहानियों की इस जादूगरनी को भरे चौराहे पर, फांसी के तख्ते से बांध दिया गया. और उसने अपने सारे गुनाह कबूल किए: उसपर यह इल्ज़ाम लगा कि वह शैतानी टोटके लगाकर केक-मिठाइयाँ बनाया करती है. और फिर उसे तब तक कोड़े लगाए गए जब तक कि उसने हाँ नहीं कह दिया. इल्जाम यह था कि वह रात को जुटने वाली चुड़ैलों की महफिल में नंगा नाचती है और इस बार भी कोड़े उसके गुनाह कबूल लेने  पर ही रूके. इल्ज़ाम यह भी था कि वह शैतान के साथ सोती है. कोड़ों ने इस बार भी अपना काम मुकम्मल पूरा किया,और फिर उसे यह कहा गया कि जुर्म में उसकी साथी कभी चर्च न जाने वाली वो दो बूढ़ी औरतें थी. तितुबा अब  इल्ज़ाम लगाने वाली बन गई थी. अपनी उंगलियाँ उसने शैतान का कहा मानती उन दो औरतों की तरफ मोड़ दी थी. बस इसके बाद उसपर कोड़े चलना बंद हो गए. इसी तरह और गुनाहगारों ने औरों को गुनाहगार बताया. फाँसी का फंदा इसके बाद लगातार चढ़ता-उतरता रहा.

औरतें सीरीज की इन कहानियों की पहली क़िस्त पढ़ने के लिए क्लिक करें:

औरतें

ईश्वर की औरतें


1939 सान साल्वादोर दे बाहिया उत्तर अमरीकी मानवविज्ञानी रूथ लैंड्स ब्राजील आई थी. वह एक ऐसे देश में काले लोगों का हाल जानना चाहती थी, जिसके बारे में यह मान लिया गया था कि वह रंगभेद से मुक्त है (खासकर 1889 में गुलामी प्रथा पर सरकारी रोक के बाद-अनुवादक). रियो दी जानेइरो में उनकी आवभगत सरकार के मंत्री ओस्वाल्दो आरान्या ने की. मंत्री महोदय ने उन्हें यह समझाया कि सरकार की योजना काले खून से गंदे हुए ब्राजीली नस्ल की सफाई की है. वही काला खून, जो देश के पिछड़ेपन का गुनहगार है.  रियो के बाद रूथ बाहिया गई. अश्वेत इस शहर की सबसे बड़ी आबादी हैं, जहां कभी चीनी और गुलामों के कारोबार में पैसे से नहाए वायसरायों का राज चलता था. यहाँ धर्म से लेकर खान-पान तथा बीच में कहीं आते संगीत तक हर वो चीज जो नाम लेने और चाहे जाने के लायक है, काले रंग की विरासत है. इस सबके बावजूद, बाहिया के सारे लोग और अश्वेत भी यह मानते हैं कि चमड़े का साफ़ रंग चीजों के बढ़िया होने की तस्दीक है. सारे लोग नहीं. अफ्रीकी मंदिरों की औरतों में रूथ ने काले होने का गर्व और आत्मसम्मान देखा था.

इन मंदिरों में लगभग हमेशा ये औरतें, ये काली पुजारिनें ही होती हैं, जो अफ्रीका से आए देवताओं को अपने शरीर में ठीया देती हैं. किसी तोप की नली की तरह चमकदार और गोल ये औरतें अपना भरा-पूरा शरीर इन देवताओं को अर्पित करती हैं. इनकी देह तब उस घर की तरह होती है, जहाँ आना और ठहर जाना अच्छा लगता है. देवता इनके अंदर रमते हैं, इनके अंदर नृत्य करते हैं. शहर के लोग देवताओं का घर बनी इन पुजारिनों से अपने लिए हौसला और संबल पाते हैं; इनके मुँह से वे अपनी किस्मत की आवाज़े सुना करते हैं. बाहिया की काली पुजारिनें अपने लिए पति नहीं प्रेमी चाहती हैं. शादी देती होगी इज्जत  और नाम, लेकिन यह आज़ादी और खुशी छीन लेती है. इनमें से किसी को भी किसी पुजारी या जज के सामने शादी रचाने में कोई दिलचस्पी नहीं है. कोई भी बँधी-बँधाई पत्नी, किसी की श्रीमती नहीं बनना चाहती. तने हुए सिर और मंथर मस्तानी चाल के साथ ये पुजारिनें पूरी कायनात की मलिकाओं की तरह चलती हैं. अपने प्रेमियों को वे देवताओं से ईर्ष्या करने का वह संत्रास देती हैं, जो कहीं किसी और के हिस्से नहीं आया होगा.



शब्दों की ओर एक खिड़की

माग्दा लेमोनिएर अखबारों से शब्दों की कतरनें काटती हैं. हर रूप और आकार के इन शब्दों को वह कुछ बक्सों में सहेजा करती हैं. लाल बक्से में वह गुस्से से चीखते शब्दों को रखती हैं. हरे बक्से में प्यार करने वाले, तो नीले वाले में इन भावों से तटस्थ शब्दों की बचत होती है. पीला वाला उन शब्दों को संजोता है, जो दुख की बाते बताते हैं. और उस पारदर्शी बक्से में वह उन शब्दों को छुपाती हैं, जिनमें जादू भरा होता है. कभी-कभी माग्दा इन बक्सों को खोलती हैं और उन्हें मेज़ पर उलट देती हैं, ताकि ये शब्द चाहे जैसे मन हो, एक-दूसरे में मिल जाएं. तब, ये शब्द माग्दा को वह बताते है जो हो रहा है, और उसकी खबर देते हैं जो होने वाला है.

लेखक के बारे में

एदुआर्दो गालेआनो (3 सितंबर, 1940-13 अप्रैल, 2015, उरुग्वे) अभी के
सबसे पढ़े जाने वाले लातीनी अमरीकी लेखकों में शुमार किये जाते हैं।
साप्ताहिक समाजवादी अखबार  एल सोल  (सूर्य) के लिये कार्टून बनाने से शुरु
हुआ उनका लेखन अपने देश के समाजवादी युवा संगठन  से गहरे जुड़ाव के साथ-साथ
चला। राजनीतिक संगठन से इतर भी कायम संवाद से विविध जनसरोकारों को उजागर
करना उनके लेखन की खास विशेषता रही है। यह 1971 में आई उनकी किताब लास
बेनास आबिएर्तास दे अमेरिका लातिना (लातीनी अमरीका की खुली धमनियां) से
सबसे पहली बार  जाहिर हुआ। यह किताब कोलंबस के वंशजों की  ‘नई दुनिया’  में
चले दमन, लूट और विनाश का बेबाक खुलासा है। साथ ही,18 वीं सदी की शुरुआत
में  यहां बने ‘आज़ाद’ देशों में भी जारी रहे इस सिलसिले का दस्तावेज़ भी।
खुशहाली के सपने का पीछा करते-करते क्रुरतम तानाशाहीयों के चपेट में आया तब
का लातीनी अमरीका ‘लास बेनास..’ में खुद को देख रहा था। यह अकारण नहीं है
कि 1973 में उरुग्वे और 1976 में अर्जेंटीना में काबिज हुई सैन्य
तानाशाहीयों ने इसे प्रतिबंधित करने के साथ-साथ गालेआनो को ‘खतरनाक’ लोगों
की फेहरिस्त में रखा था। लेखन और व्यापक जनसरोकारों के संवाद के अपने अनुभव
को साझा करते गालेआनो इस बात पर जोर देते हैं कि “लिखना यूं ही नहीं होता
बल्कि इसने कईयों को बहुत गहरे प्रभावित किया है”।

अनुवादक का परिचय : पी. कुमार. मंगलम  जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय से लातिनी अमरीकी साहित्य में रिसर्च कर रहे हैं .  आजकल फ्रांस में हैं. 

क्रमशः