मुख्यमंत्री जी शराबबंदी से महिला उत्पीडन बंद नहीं होता: महिला छात्र नेता का पत्र नीतीश कुमार के नाम

रिंकी कुमारी
रिंकी कुमारी भागलपुर विश्वविद्यालय में छात्र नेता हैं. संपर्क: 7250174419

माननीय मुख्यमंत्री, बिहार

पिछले 5 अप्रैल 2016 से आपकी सरकार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू किया है. लेकिन, सच यह है कि शराब ‘बंद’ नहीं हुआ है. शराबबंदी के मसले पर राजनीतिक शोर ज्यादा है. खास तौर पर सरकार और अन्य राजनेताओं के रोज-ब-रोज के बयानबाजियों में शराबबंदी की चर्चा हो रही है. मानो और कोई मसला ही नहीं है! नीतीश जी, आप कह रहे हैं कि “मैं जब 17 साल का था, तभी से शराब पीकर लोगों को लड़ते-झगड़ते देखता था. तभी से मेरे मन में यह बात थी कि शराब बुरी चीज है.” आप कहते हैं कि, “गांधी जी शराब को एक बीमारी मानते हैं. इस बीमारी का ईलाज करना होगा.” लेकिन आपकी किशोराव्यवस्था की अच्छी सोच और गांधी के विचारों के प्रति प्रेम पिछले 10 वर्षों में नहीं देखा गया. पिछले विधानसभा चुनाव में आपने पूर्ण शराबबंदी को घोषणापत्र में शामिल किया. नीतीश जी, सत्ता व शासकों को भूलने की आदत होती है, लेकिन जनता नहीं भूलती है, वह भी महिलाएं तो हरगिज नहीं! बिहार की महिलाओं – आम अवाम को अच्छी तरह याद है कि पिछले 10 वर्षों में शहर से गांव तक गली-मोहल्लों, स्कूल-कॉलेजों, मंदिर-मस्जिदों और अस्पतालों तक के नजदीक शराब की वैध-अवैध दुकानों-भट्ठियों को आपने फैलने की छूट दी. खुलकर शराब दुकान का लाईसेंस बांटा गया. तबाही-बर्बादी और जहरीली शराब से मौत व जनसंहारों का सिलसिला चलता रहा.

नीतीश जी, बिहार में शराब का दरिया बहाने की नीतियों के खिलाफ शहर से गांव तक महिलाओं ने जबर्दस्त लड़ाइयाँ लड़ी हैं और उनकी लड़ाइयों ने ही अंततः आपको पूर्ण शराबबंदी को लागू करने की ओर धकेला है. पिछले 10 वर्षों में अवैध शराब भट्ठियों को तोड़ने से लेकर स्कूल-कॉलेजों, मंदिर-मस्जिद से लेकर अस्पताल तक के निकट शराब की दुकानों के खुलने के खिलाफ महिलाओं ने जुझारू लड़ाइयाँ लड़ी हैं. सरकारी कार्यालयों से लेकर राजधानी पटना तक की सड़क पर लगातार आवाज बुलंद की है. महिलाओं की जुझारु लड़ाइयों और 2012 के अंतिम महीनों में जहरीली शराब से गरीबों के कई एक जनसंहारों ने पूर्ण शराबबंदी को बिहार के जनसंघर्षों और राजनीति के महत्वपूर्ण प्रश्न के रूप में सामने ला दिया. नीतीश जी, आपको यह भी याद होगा कि शराब का दरिया बहाने से भर रहे सरकारी खजाने से स्कूली लड़कियों ने साईकिल लेने से भी कई जगह मना किया था. आप शराब से हासिल राजस्व से साईकिल बांटने की बात करते थे. आपको याद ही होगा कि मुजफ्फरपुर में एक बुजुर्ग समाजवादी नेता हिंदकेशरी यादव सहित महिलाओं पर जिलाधिकारी कार्यालय परिसर में शराब माफियाओं ने हमला किया था.

मुख्यमंत्री जी, महिलाओं के साथ समाज के बड़े हिस्से के विक्षोभ और पूर्ण शराबबंदी के राजनीति के केंद्र में आ जाने के बाद ही आपने चुनावी फायदा लेने की मानसा के साथ यू-टर्न लेते हुए पूर्ण शराबबंदी का वादा किया. लेकिन चुनाव बाद स्पष्ट हो गया कि आपकी मानसा साफ नहीं है. चुनाव जीतने के बाद आप चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी लागू करने की बात करने लगे. देशी-विदेशी के लिए अलग-अलग नीति की घोषणा करने लगे. विदेशी को छूट और देशी पर प्रतिबंध की बात आपने की. विदेशी शराब की दुकानों को लाईसेंस देने व रिन्युअल की प्रक्रिया के बीच ही महिलाओं के प्रतिवाद और राजनीतिक आलोचनाओं ने आपको पूर्ण शराबबंदी के चुनावी वादे को लागू करने की घोषणा के लिए बाध्य किया. मुख्यमंत्री जी, आप कह रहे हैं कि पूर्ण शराबबंदी के लागू होने के बाद महिलाओं के चेहरे पर खुशी है. घरेलू हिंसा, महिला उत्पीड़न में कमी आई है. लेकिन हकीकत क्या है? नीतीश जी, शराब महिलाओं के साथ घर से बाहर तक जारी हिंसा में निर्णायक पहलू नहीं है. महिलाओं के साथ जारी हिंसा में निर्णायक पहलू पितृसत्ता होती है. इसलिए शराबबंदी के लागू होने से महिलाओं के साथ जारी हिंसा में बड़ा फेरबदल नहीं हो सकता है. खैर, आपको तो आंकड़ों से खेलने में महारत हासिल है. नीतीश जी, आप तो शराबबंदी को ऐसे पेश कर रहे हैं, मानो सारे मर्ज की एकमात्र यही दवा है.

खैर, व्यवहार में शराबबंदी किस हद तक लागू हो रहा है, यह आपके लिए महत्वपूर्ण नहीं है. आपके लिए अब यह एक राजनीतिक हथकंडा बन गया है. आप इसे जनता के अन्य सारे महत्वपूर्ण सवालों को दबाने का औज़ार और बिहार से बाहर यू.पी. और दिल्ली के लिए राजनीतिक सवारी बनाने की कोशिश कर रहे हैं. नीतीश जी, सच यही है कि नीतिगत तौर पर आपने पूर्ण शराबबंदी लागू कर दिया है, लेकिन शराब ‘बंद’ नहीं हुआ है, चालू है. हां, सड़कों पर शराबियों की जमात व शराब दुकानों के इर्द-गिर्द की अड्डेबाजी नहीं दिख रही है. हां, अब शराब सभी को सर्वसुलभ नहीं है. अब पूरे कारोबार ने अवैध स्वरूप ग्रहण कर लिया है. शराब माफिया की पैदावार बढ़ गई है. रोज-ब-रोज शराब के पकड़े जाने की खबरें आ रही है. अवैध भठ्ठियां चल रही है. हां, पहले भी डुप्लीकेट विदेशी शराब व भट्ठियों में निर्मित जानलेवा देशी शराब का कारोबार था, अब ज्यादा फल-फूल रहा है. झारखंड, उत्तरप्रदेश, पश्चिमबंगाल और नेपाल से तस्करी की खबरें आ रही है.

मुख्यमंत्री जी, गोपालगंज में जहरीली शराब से हुए जनसंहार ने पुराने दौर की यादें ही ताजा नहीं करायी है, बल्कि पूर्ण शराबबंदी की पोल भी खोल दी है. 18 गरीब-दलित-अति पिछड़े जहरीली शराब से मारे गये. गोपालगंज शहर के खजूरबानी में पुलिस-प्रशासन के नाक के नीचे शराब की भट्ठियां चल रही थी. जहरीली शराब से मौत का सिलसिला शुरू हुआ तो शुरुआती दौर में स्थानीय प्रशासन, सदर अस्पताल और उत्पाद विभाग ने जहरीली शराब से हो रही मौत के सच पर पर्दा डालने की कोशिश की. उत्पाद विभाग ने स्पष्ट तौर पर कहा कि जहरीली शराब से मौत नहीं हुई है. स्थानीय सदर अस्पताल की भूमिका बहुत ही शर्मनाक ढंग से सामने आई. जहरीली शराब के शिकार गरीबों के परिजनों को सिविल सर्जन ने फंसने व जेल जाने का भय दिखाया. ईलाज में गंभीरता नहीं दिखाई. शराबबंदी के कठोर कानून के भय से कई एक तो अस्पताल ही नहीं पहुंचे, जिससे मृतकों की संख्या बढ़ गई. कई एक का बिना पोस्टमार्टम किये दाह संस्कार कर दिया गया. खजूरबानी की महिलाओं ने पूर्ण शराबबंदी के लागू होने पर सवाल खड़ा किया है. बाद में सच्चाई को कबूल किया और नगर थाना प्रभारी के साथ पुलिसकर्मियों के निलंबन और भट्ठियों के संचालन व कारोबार से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी व सामूहिक जुर्माने की सजा की कार्रवाई आगे बढ़ी. लेकिन क्या दोषी केवल वही हैं जिसे आप सजा दे रहे हैं? जवाबदेही इसी दायरे तक सीमित है क्या?

कहा जा रहा है कि पूर्ण शराबबंदी के लागू होने के बाद 40 लोगों की मौत जहरीली शराब से हुई है.
मुख्यमंत्री जी, शराबबंदी केवल कठोर कानून बनाकर पुलिस के भरोसे लागू होने की दिशा में नहीं बढ़ेगा! कठोर क़ानूनों से कौन खेलते हैं और कौन कीमत चुकाते हैं, यह तो दिन के उजाले की तरह साफ है! केवल एक भागलपुर जिले में 5 अप्रैल के बाद 240 लोग जेल भेजे गये हैं, जिसमें से ज़्यादातर गरीब-दलित-आदिवासी व कमजोर समुदाय से आने वाले ही लोग हैं. गिरफ्तार लोगों में 90 प्रतिशत पीने वाले हैं. शराबबंदी कानून के तहत बिहार के 16 गांवों पर हाल तक सामूहिक जुर्माना लगाया गया है. ये सारे गांव दलितों-गरीबों के हैं. क्या मान लिया जाय कि पीने, कारोबार करने और बनाने वालों में केवल समाज के हाशिए का हिस्सा है? यह मज़ाक ही होगा! बड़े लोगों तक तो पुलिस व उत्पाद विभाग पहुँच भी नहीं पा रहा है. मुख्यमंत्री जी, जब आप बिहार में वाइन कल्चर को मजबूत कर रहे थे. शहर से गांव तक दरिया बहा रहे थे. तो आपको भी पता होगा कि इसके लाभुक कौन थे? यह किन ताकतों के हित में हो रहा था? हां, पीने वाले के विस्तृत दायरे में ‘खास’ के साथ ‘आम’ बढ़ रहे थे. यह तो स्पष्ट है कि वैध-अवैध निर्माण व कारोबार के लाभुकों की कैटेगरी में थैलीशाह, माफिया, राजनेता व पुलिस-प्रशासन शामिल था.

छोटे पैमाने पर भी चोरी-छिपे दारु चलाने व बेचने का धंधा भी तो पुलिस की सरपरस्ती में ही चलता था. क्या ‘बड़ों’ का गठजोड़ शराब के वैध-अवैध कारोबार से अलग-थलग हो गया है? अभी जो पड़ोसी राज्यों से तस्करी व अवैध निर्माण चल रहा है, इसमें वे सब शामिल नहीं हैं? क्या यह संभव है? यह स्पष्ट है कि किसी किस्म का अवैध कारोबार बिहार में कौन सब चलाते हैं?मुख्यमंत्री जी, आपके राज में पिछले दिनों उत्पाद राजस्व से लगभग 5 हजार करोड़ प्रतिवर्ष आते थे. माना जाता है कि 50 हजार करोड़ के लगभग का वैध कारोबार था, अवैध तो अलग से. क्या यह कारोबार खत्म हो गया है? नहीं, मुख्यमंत्री जी कारोबार प्रभावित जरूर हुआ है, लेकिन बंद नहीं हुआ है. पिछले दिनों शेखपुरा शहर में शराब बिक्री के एरिया बंटवारे के लिए दिनदहाड़े व्यस्त चौंक पर दो गुटों में गोलियां चली हैं. अभी कटिहार के फलका थाना प्रभारी शराब पीकर हंगामा और छेड़खानी कर रहे थे. बिहारशरीफ़ के हरनौट में जद-यू प्रखंड अध्यक्ष के घर से शराब बरामद हुआ है. सच यह है कि बड़े लाभुक, पीने वाले निशाने पर आ ही नहीं रहे हैं! माफिया की तादाद बढ़ गई है. इतना बड़ा कारोबार एकाएक खत्म हो ही नहीं सकता है. हां, यह कारोबार अब अवैध स्वरूप में राजनेता, पुलिस-प्रशासन व माफिया गठजोड़ के बगैर चल ही नहीं सकता है. आपके कठोर कानून की पहुँच भी उन लोगों तक नहीं हो सकती है. आखिर कौन लागू करता है कानून?

मुख्यमंत्री जी, शराब और शासक-सत्ता व शासकवर्गीय राजनीति का पुराना व गहरा रिश्ता है. बिहारी समाज में भी शासकों-अमीरों-राजनेताओं-नौकरशाहों के बीच तो शराब-शवाब-कवाब का नारा चलता आ रहा है. चुनावों में भी शासकवर्गीय पार्टियां वोट हासिल करने के लिए नोट और शराब का भरपूर इस्तेमाल करती रही हैं. शराब चुनाव में कार्यकर्ताओं का महत्वपूर्ण खुराक होता है. थाना से लेकर अन्य सरकारी कार्यालयों में काम करवाने के बदले नोट व बोतल की संस्कृति स्थापित है. ‘खास’ के जिंदगी में शराब महत्वपूर्ण होता है. ऐसी स्थिति में क्या केवल कठोर कानून और पुलिस के जरिये पूर्ण शराबबंदी लागू होना संभव है? जरूर ‘आम’ कीमत चुकाएंगे और आप शराबबंदी को राजनीतिक हथकंडा बनाये रखने की कोशिश करेंगे.मुख्यमंत्री जी, पूर्ण शराबबंदी के लिए लंबी लड़ाई चलेगी. पूर्ण शराबबंदी की ओर सत्ता के भरोसे नहीं, बल्कि जनता की जागरूकता, पहलकदमी व आंदोलन के रास्ते ही आगे बढ़ा जा सकता है. निशाने पर समाज, सत्ता व शासकवर्गीय राजनीति को लेना ही पड़ेगा. बेशक महिलाएं लड़ाई के केंद्र में होंगी.
आपकी एक  मामूली जनता