बेडटाइम स्टोरीज : ‘ स्वीट ड्रीम्स’: सेक्स पोर्न और इरॉटिका का ‘साहित्य’ बाजार -2

अर्चना वर्मा

अर्चना वर्मा प्रसिद्ध कथाकार और स्त्रीवादी विचारक हैं. संपर्क : जे-901, हाई-बर्ड, निहो स्कॉटिश गार्डेन, अहिंसा खण्ड-2, इन्दिरापुरम, ग़ाज़ियाबाद – 201014, इनसे इनके ई मेल आइ डी mamushu46@gmail.com पर भी संपर्क किया जा सकता है.

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बेडटाइम स्टोरीज : ‘ स्वीट ड्रीम्स’: सेक्स पोर्न और इरॉटिका का ‘साहित्य’ बाजार

सनी लियोनी के बहाने उठाये जा  रहे ये नुक्ते असल में स्त्री के नये अस्तित्व की परिभाषाओं से, बल्कि परिभाषाओं के बन्धन से इन्कार के साथ जुड़े हैं . पूछा जा सकता है, सनी लियोनी ही क्यों? क्या उसको यहां नयी स्त्री के लिये एक रोल-मॉडल की तरह प्रस्तावित किया जा रहा है ? जैसा कि इस आलेख के प्रथम खण्ड में सन्दर्भित सुधीश पचौरी के आलेख में माना गया था, सनी एक ” वुमन ऑफ़ सब्सटेन्स ” और ” पॉवर वुमन ” साबित हुई हैं ; तो क्या उसका कोई अनिवार्य सम्बन्ध उनके भूतपूर्व व्यवसाय के साथ है? शुरू करने के पहले में  इस चुनाव के विषय में अपने असमंजस को समझना और सुलझा लेना चाहती हूँ. सनी लियोनी पोर्न-स्टार हैं  और इण्टरनेट पर प्राप्त विवरणों में उन्होंने खुद को एकाधिक बार पोर्न-आर्टिस्ट यानी कलाकार कहा है.


जूलाई अंक का ‘प्रसंगवश’ इस आलेख का पहला हिस्सा था. उसमें ‘इरॉटिका’ और ‘पोर्न’ में परस्पर तुलना करते हुए में  किसी भी तरह पोर्न के लिये कला का दर्जा मंजूर नहीं कर सकी, हालाँकि नैतिकता की संकीर्ण शुद्धतावादी परिभाषाओं से मुक्त होने का दम भरती हूँ; साहित्य और कला की अपनी समझ को वास्तविक जीवन के व्यावहारिक निजी निर्णयों के अनिवार्य नैतिक आग्रहों के अलावा नैतिकता के नाम पर समाजसम्मत रूढ़ियों और जड़ताओं के निहित अन्यायों से यथासम्भव दूर और अलग रखते हुए रचना को उसमें अभिव्यक्त सत्य की शर्तों पर ही देखने परखने की कोशिश करती हूँ. ऐसे असमंजस का सामना अब तक कभी नहीं  करना पड़ा है. क्योंकि शायद अपने लेखे पोर्न को कला के दायरे के बाहर रखने की वजह से अब तक ऐसा कोई उदाहरण सामने नहीं आया जिसमें एक ओर व्यक्ति और कला और व्यवसाय और जीवनपद्धति एक दूसरे में गड्डमड्ड हुए उलझे पड़े हों, और दूसरी ओर मेरे प्रायः अपने वश में रहने वाले नैतिक आग्रह अचानक इस कदर अड़ियल हो उठे हो कि इस गुंझल से निकला न जा सके.

शब्दकोश में पोर्न का हिन्दी पर्याय ‘अश्लील’ दिया गया है लेकिन उसे हद से हद एक कामचलाऊ किस्म का पर्याय ही माना जा सकता है. ‘अश्लील’ की व्यंजनाएँ मेरे दिमाग में कुरुचिपूर्ण और भदेस तक जाकर रुक जाती हैं . जब कि ‘पोर्न’ का अर्थ मेरे दिमाग़ में हिंसा और वीभत्स की उस हद का स्पर्श करता है जहाँ भोक्ता तत्काल आचरण के लिये बेकाबू की हद तक उत्तेजित पाया जाता है. मेरे दकियानूस दिमाग़ में कला का कोई न कोई सम्बन्ध सौन्दर्य-सृजन से होना ही चाहिये लेकिन हालाँकि वीभत्स भी एक रस कहा गया है परन्तु ‘ पोर्न’ में उसकी तत्काल कार्यान्विति की उत्तेजना उसे बर्बर कहलाने के अधिक उपयुक्त बनाती है.

अगर कला का एक लक्षण ‘अदाकारी‘ ( परफ़ॉर्मेन्स) , और अपने इस लक्षण मेँ कला अतिव्याप्ति मे कहीं बिला जाती हो तो कलाकार? उसका क्या होता है? सवाल को अगर इस छोर से उठाया जाय कि सर्जना – चाहें तो उसे मात्र गतिविधि कह लें. कला हो या न हो लेकिन सर्जक कलाकार कहलायेगा ही तो? दूसरे शब्दों में, सनी लियोनी के व्यवसाय को कला भले न माना जाय, सनी लियोनी स्वयं तो कलाकार ही हैं और अभिनय उनकी कला है. शायद उनके पक्ष में इस किस्म के तर्क या शायद कुतर्क भी जुटाये जा सकते हैं  कि रंगभूमि में नर्तक, अभिनेता और जिमनैस्ट अपने शरीर को कला के माध्यम और उपकरण की तरह बरतने वाले वाले कलाकार हैं. वे हाथ, पाँव, मेरुदण्ड, आँखें, भौंहें, कपोल, अधर वगैरह अंगो के नियंत्रित संचालन से रंगभूमि के अन्तरिक्ष में छवियाँ उत्कीर्ण करके सौन्दर्य का सृजन करते हैं . पोर्नकार के लिये इस अंग-सूची में यौनांग भी शामिल हैं . शायद वह भी इस क्रम में देह और यौनिकता के प्रति अलगाव और सम्पृक्ति का संयुक्त बोध अर्जित कर पाता हो जो देह को माध्यम और उपकरण की तरह इस्तेमाल करने वाले कलाकार को चमत्कार की तरह प्राप्त होता है और सिद्धि का कारण बनता है.

‘ देह और यौनिकता के प्रति अलगाव और सम्पृक्ति का संयुक्त बोध” – यही कलाकार की मानसिक बनावट का खाका है जिसकी झाँकी सीएनएन-आईबीएन के 15 जनवरी 2016 के ‘हॉट सीट’ वाले साक्षात्कार की सनी लियोनी में बार बार दिखाई दी.

हॉट सीट पर भूपेन्द्र चौबे ने जो पचीस तीस सवाल सनी से पूछे उनमें बहुत से बहुत अपमानजनक थे और पूरी बातचीत का रुख भी हमलावर था. इस इण्टरव्यू के समय तक भारत में सनी लियोनी के लगभग पाँच वर्ष बीत चुके थे. 2011 में उसने बिग बॉस रियलिटी शो में हिस्सा लिया था. शो के उनचासवें दिन बिग बॉस के घर में प्रवेश करने के बाद शुरू में उसके परिचय में पोर्न-स्टार होने के सच को गोपनीय रखने की नीति अपनाई गयी. बताया गया कि पिछले दस साल से वह अमरीका में टीवी स्टार और मॉडल है. व्यक्तित्व और व्यवहार से एक बार पहचान बन जाने के बाद जब यह सच उद्घाटित किया गया तो दो दिन के भीतर उसके ट्विटर अकाउण्ट में आठ हजार पिछलगुए (फॉलोअर) जुड़े और उसके बारे में भारी पैमाने की गूगल सर्च ने रिकॉर्ड तोड़ दिये. बिग बॉस के घरवासियोँ ने इस उद्घाटन को सहजता से लिया था, स्क्रिप्ट मे ही ऐसा रहा हो शायद. लेकिन दर्शक संसार में सनी का मतलब सनसनी हो गया था. शायद इसी वजह से हॉट सीट के साक्षात्कर्ता भूपेन चौबे ने पाँच साल बाद सनी के मुँह पर यह सवाल फेंका था कि अगर सनी लियोनी नये भारत की ब्राण्ड एम्बैसेडर बन रही हैं  तो क्या यह एक ख़तरनाक प्रवृत्ति है? और सनी ने क्षण भर को भी हत्प्रभ हुए बिना कुछ इस आशय की बात कही थी कि ख़तरनाक के बारे में तो कह नहीं सकती लेकिन ब्राण्ड एम्बैसडर की बात अगर सही है तो मेरे लिये यह गर्व की बात है.

पूरा इण्टरव्यू ऐसे ही नकारात्मक सवालों की झड़ी था. जैसे यह कि आपके बारे में एक निषेध लागू है, और लोग आपका प्रतिरोध करना चाहते हैं . कपिल शर्मा ने आपको कॉमेडी शो में बुलाने से मना किया क्योकि उनका कार्यक्रम एक पारिवारिक दर्शक मण्डली वाला कार्यक्रम है; कि आमिर खान आपके साथ कभी काम करना नहीं पसन्द करेंगे, कि संसद में एक सदस्य ने आपको भारतीय नैतिकता को दूषित करने का अपराधी ठहराया है, क्या आपका इण्टरव्यू लेकर में  नैतिक रूप से दूषित हो रहा हूँ; कि भारत की विवाहित स्त्रियाँ आपसे भयभीत हैं कि उनके पति अब उनके नहीं रहेंगे.

हर सवाल की आक्रामकता के प्रति सनी लियोनी सर्वथा असम्पृक्त बनी रहीं लेकिन किसी भी जवाब में उन्होंने अपना सहज विनोद भाव नहीं छोड़ा. कपिल शर्मा और कॉमेडी शो के बारे में ऐसा कुछ कहा कि उनकी प्राथमिकता अपने शो के लिये ही होनी चाहिये, आमिर खान के बारे में कहा कि लेकिन में  तो उनकी फ़ैन हूँ, वे अपने चुनाव के लिये स्वतंत्र हैं  लेकिन मुझे अगर कभी उनके साथ काम करने का मौका मिला तो इसे में  अपना सौभाग्य समझूँगी, संसद सदस्य के आरोप के बारे में उन्होंने कहा कि अगर संसद का समय मेरे बारे में चिन्ता करते हुए बीतता है तो मेरे लिये खुशी और गर्व की बात है. शायद एक दिन प्रेज़िडेण्ट बराक ओबामा भी मेरे बारे में अपने भाषण में कुछ कहें. भूपेन्द्र चौबे के नैतिक दूषण के बारे मेँ उन्होंने शायद कहा कि अपनी नैतिकता के लिये आप खुद जिम्मेदार हैं  और अगर इस इण्टरव्यू से आप दूषित होते हैं  तो आपको ऐसा ख़तरा उठाना ही नहीं चाहिये था. विवाहित स्त्रियों के भय के बारे में कहा कि मैं चाहती हूँ कि सारे पति-पत्नी सुख शान्ति और आनन्द के साथ रहें, मुझे किसी का पति नहीं चाहिये, मेरे पास अपना है, हॉट ऐण्ड हैण्डसम, मुझसे किसी को डरने की कोई ज़रूरत नहीं.

भूपेन्द्र चौबे का सबसे कठिन सवाल सनी के अतीत को लेकर था. 2013 में ही सनी ने पोर्न व्यवसाय से निवृत्ति की घोषणा कर दी थी. बिग बॉस के घर में ही उन्हें महेश भट्ट और पूजा भट्ट की ओर से जिस्म-2 में काम करने का प्रस्ताव मिल चुका था. इस तरह वे भारतीय सिने उद्योग के मुख्यधारा बॉलीवुड सिनेमा  में प्रवेश पाने वाली पहली पोर्न स्टार बन चुकी थीं. जिस्म-2 के रिलीज़ के पहले ही उसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए, उसके पोस्टर फाड़े और जलाये गये. लेकिन इसके बावजूद, फ़िल्म हिट हुई और सनी को उद्योग की संभावनाशील अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर गयी. सनी ने अपना रास्ता निकाल लिया था.

लेकिन भूपेन्द्र चौबे, और उनके जैसे बहुत से और भी, उन्हें यूँ आसानी से निकल जाने कैसे देंगे़? तो एक आरोप तो यह लगाया गया कि जब से आप भारतीय सिनेमा में  आई हैं तब से भारत में पोर्न देखने वालों का नम्बर बढ़ गया है, इस हद तक कि भारत अब पोर्न का सबसे बड़ा कन्ज़्यूमर हैं; और एक सवाल यह पूछा गया कि आपकी पहचान आपके अतीत और पोर्नोग्राफ़ी के साथ आपके सम्बन्ध से जुड़ी हुई है. अगर घड़ी को पीछे घुमाया जा सकता तो भी क्या आप वही करना चाहेंगी जो आपने किया? क्या आपका अतीत पीछे छूट गया है? या वह आपको सताता रहेगा?

इण्टरव्यू की शुरुआत भी उन्होंने इस सवाल से की थी कि आपका सबसे बड़ा पछतावा क्या है? शायद सुनना वे यह चाहते थे कि ‘व्यवसाय के रूप में पोर्न का चुनाव’ लेकिन सनी ने जवाब में यह कहा कि अपनी माँ की मृत्यु के समय वे उनके पास नहीं पहुँच पाईं. अतीत के बारे में सवाल पूछ कर शायद वे फिर से पछतावा-प्रसंग उठाना चाह रहे थे लेकिन सनी ने फिर उन्हें निराश किया. अपने अतीत के सन्दर्भ में उन्होंने सम्पृक्ति और अलगाव के उसी संयुक्त बोध को एक बार फिर अभिव्यक्त किया. उन्होंने इस आशय की बात कही कि एक वक्त किन्हीं वजहों से आप एक निर्णय लेते हैं  और आगे चलते हैं. फिर किसी दूसरे वक्त आप कोई दूसरा निर्णय लेते हैं  और आगे चलते हैं . मेरा अतीत मुझसे छूटता नहीं है, मुझे वह सताता भी नहीं है. अगर घड़ी वापस मुड़ सकती तो भी मैने शत प्रतिशत वही किया होता. अगर मेरा यह अतीत न होता तो मैं भी आज यहाँ न होती. मुझे उसके लिये लज्जा नहीं क्योंकि वही मुझे यहाँ भारत लेकर आया. अगर में  किसी आम उम्मीदवार की तरह यहाँ आई होती, तो इतनी लोकप्रिय न हुई होती, जितनी आज हूँ.

इण्टरव्यू की वह पूरी अवधि अपनी अक्रामकता की वजह से कोई आसान परिस्थिति नहीं थी, और ये सवाल भी कोई आसान सवाल नहीं थे लेकिन सनी में  एक गरिमा और शालीनता है और जैसा कि इण्टरनेट पर उनके एक प्रशंसक की टिप्पणी दर्ज है, “आप उनका सम्मान किये बिना रह नहीं सकते.” सनी लियोनी अगर कहीं किसी बिन्दु पर आहत या हत्प्रभ हुईं तो भी उन्होंने उसे प्रत्यक्ष नहीं होने दिया. आक्रामकता के समक्ष आवेग पर इतना कुशल और निरस्त्र कर देने वाला नियंत्रण – ”वुमन ऑफ़ सब्सटेन्स” और ”पॉवर-वुमन” तो यहाँ थी. और यहीं थीं नुक्ते की बातें भी.

नुक्ते की बातें सनी के बहाने ही क्यों? सनी के महत्त्व के कई कारण हैं . एक तो सनी ”नये भारत की ब्राण्ड ऐम्बेसेडर” घोषित की जा रही हैं ; दूसरे, भले ही यह बात कि “जब से आप भारतीय सिनेमा में आई हैं तब से भारत में पोर्न देखने वालों का नम्बर बढ़ गया है, इस हद तक कि भारत अब पोर्न का सबसे बड़ा कन्ज़्यूमर है “; उन पर आरोप की तरह कही गयी हो और कितनी भी हास्यास्पद हो, लेकिन इतना तो सच है कि पब्लिक-स्पेस में उनके पदार्पण ने किसी अविवेच्य तरीके से भारतीय मर्द के नैतिक पाखण्ड को तहों में से निकालकर सतह पर ला दिया है. तो कही न कहीं वे नयी दुनिया की नयी स्त्री के बेबाक आत्मविश्वास का भारतीय संस्करण, अतः कॉपीराइट भी, बन जाती हैं. और तीसरी बात इस छानबीन की इच्छा कि इस आत्मविश्‍वास के कारण वे अपने व्यवसाय का सहज भाव से चुनाव करने में समर्थ हुईं या कि उन्होंने इस व्यवसाय का चुनाव किया, इस वजह से वे इस आत्मविश्‍वास का अर्जन कर सकीं?

उनकी व्यवसायिक पृष्ठभूमि उनके बारे में जो पूर्वग्रह निर्मित कर देती है उसके आलोक में ये सूचनाएँ थोड़ा चकित करती हैं  कि वे एक गहरी धार्मिक आस्था वाले और छोटे शहर की मानसिकता वाले भारतीय मूल के सिख परिवार से आती हैं . सनी लियोनी कहलाने के पहले की करनजीत कौर वोहरा का जन्म कैनेडा में हुआ था और सहज सामान्य प्रसन्न बचपन जीते हुए तेरह वर्ष की उम्र तक वे कैनेडा में ही रहीं फिर उनके परिवार ने साउथ कैलिफ़ोर्निया को स्थानान्तरण किया. यह अचानक उखड़ना सनी को रास नहीं आया. कनाडा के अलसाये परिवेश की सर्दियाँ, हिमपात, घर के सामने बर्फ के पुतले बनाने, आइस स्केटिंग करने, गली के लड़कों के साथ हॉकी खेलने का आनन्द, खेल कूद और नाच-गान में कुशल और शौकीन करनजीत पर प्यार और प्रशंसा की बौछार – स्थानान्तरण ने यह सबकुछ बदल कर रख दिया. नयी जगह-ज़मीन में नये सिरे से जड़ें जमाना आसान नहीं था.

जानी मानी बात है कि पहली पीढ़ी के भारतीय प्रवासी अपने रहन-सहन में अपनी संस्कृति के संरक्षण में कुछ अधिक ही तत्पर और सन्नद्ध रहते हैं . इतना अधिक कि जो भारत वे अपने साथ लेकर गये होते हैं  उसे ही बरसों-बरस, शायद ताज़िन्दगी, जस का तस बचाये रखना चाहते हैं. लेकिन दूसरी पीढी –बच्चों – को स्कूल और आस-पड़ोस के बच्चों के बीच अपनी भिन्नता की वजह से मज़ाक और मखौल का पात्र बनना पड़ता है और वे पारिवारिक अनुशासन से छूट निकलना अगर नहीं, तो ढील माँगना और ले लेना तो ज़रूर ही चाहते और कर भी गुजरते हैं . दो प्रवासी पीढ़ियों के बीच इस पारिवारिक तनाव और अलगाव को बहुत सारे ‘एथनिक’ कथा-साहित्य और फ़िल्मों का विषय बनाया गया है. बच्चे के व्यक्तित्व में इसकी वजह से कई बार एक अजनबीपन, परायापन, दूरी और अलगाव उत्पन्न होता है. व्यक्तित्व में कई बार मनमानी, अनुशासन की ओर से कनबहरई और ठान बैठने का हठ भी पनपता है क्योंकि वह जान लेता है कि परिवेश से निपटने में माता पिता उसकी खास मदद नहीं कर सकते. सनी लियोनी के व्यक्तित्व की बनावट में भी एक हठ मौजूद है. बहुत सम्भव है कि उसकी निर्मिति में इस किस्म के अनुभवों का हाथ भी रहा हो.

‘वॉक द टॉक’ के हिन्दी संस्करण ‘चलते चलते’ नामक कार्यक्रम में शेखर गुप्ता के साथ बात करते हुए वे इस व्यवसाय में अपने प्रवेश की कहानी सुनाती हैं . इसके पहले उन्होंने चौदह बरस की उम्र में  जिफ़ी-ल्यूब नामक मोटर-सर्विस-चेन के एक सेन्टर में, फिर अठारह साल की उम्र में एक जर्मन बेकरी में  और उसके बाद एक टैक्स अकाउण्ट्स फर्म में काम किया था. वे नर्स बनने का प्रशिक्षण लेना चाहती थीं. यहाँ तक सब कुछ बिल्कुल सहज सामान्य, कहें कि साधारण था. लेकिन अठारह साल की उम्र में उनके मन में  अपना घर, अपनी कार, अपना जीवन की हसरत जागने लगी थी. काम की तलाश में  किसी ने उनको मॉडलिंग मेँ जाने की सलाह और एक एजेण्ट का सम्पर्क दिया. वह एजेण्ट “ऐडल्ट एण्टरटेन्मेण्ट” के व्यवसाय में  था और व्यवसायिक पत्रिकाओं को तस्वीरें सप्लाई करता था. शुरू में कपड़े उतारने और कैमरा के सामने पोज़ बनाने को लेकर एक झिझक और चौकन्नापन था. शेखर गुप्ता वाले इण्टरव्यू में वे बताती हैं  कि उन मॉडेलों की तस्वीरें देखकर उन्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि इसमें कुछ ग़लत है या न करने जैसा है. उन्हें वे लड़कियाँ बस सुन्दर लगीं. अन्ततः कौतूहल ने कब्जा कर लिया और वह “ऐडल्ट एण्टरटेन्मेण्ट” के मॉडलिंग व्यवसाय में उतर पड़ी. जल्दी ही उनकी एक तस्वीर मशहूर ‘पेण्टहाउस’ पत्रिका के लिये चुन ली गयी. एक लाख डॉलर का पुरस्कार भी मिला. इसके बाद इतिहास है.

तब जाकर पहली बार उनके माता पिता को उनके नये व्यवसाय के बारे में मालूम हुआ. क्योंकि इसके बाद इस बात को गोपनीय रखना असम्भव था. उनकी प्रतिक्रिया कैसी रही? जाहिर है, वे बहुत विचलित और व्यग्र हुए. उनके बीच कसकर एक टक्कर हुई. लेकिन आखिरकार उन्होंने इस असलियत से समझौता कर लिया कि सनी अपनी ज़िन्दग़ी के साथ जो कुछ भी करने का फ़ैसला कर चुकी हैं , वह यही है. सनी के अपने शब्दों में, ” वे मेरे व्यक्तित्व को जानते थे कि मैं बहुत आज़ाद हूँ. अगर उन्होंने मुझे रोकने की या ‘सही रास्ते’ पर लाने की कोशिश भी की होती तो उन्होंने अपनी बेटी को खो दिया होता. मैं बहुत ज़िद्दी हूँ.” … “ वक्त के साथ साथ यह बात भी उनको समझ में आ गयी कि फिर भी, मैं उनकी बेटी हूँ, फिर भी में  वही व्यक्ति हूँ जिसे वे अपनी बेटी जानते रहे हैं .”…” और ऐसा करने की मेरी यह कोई योजना नहीं थी. बस हुआ तो हो गया मेरा कैरियर, और उसके बाद बाकी सब चीज़ें बड़ी से और ज्यादा बड़ी बनती चली गयीं.”


वे अपने परिवार के साथ एक गहरे भावात्मक लगाव में जुड़ी हैं. अन्यत्र वे बताती हैं  कि उनका परिवार उन्हें प्यार करता है और उनको, जैसी वे हैं , वैसा ही स्वीकार करता है. कोई माता पिता अपने बच्चे को प्यार करना बन्द नहीं कर सकते. बेशक वे नहीं चाहते कि सनी पोर्नोग्राफ़ी का काम जारी रखें लेकिन सनी खुश हैं  तो वे भी यही चाहते हैं  कि सनी खुश रहें.

लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं रहा था जितना आज सनी के संयत शालीन आत्मविश्‍वास के समक्ष पीछे मुड़ कर देखते हुए प्रतीत होता है. ‘पेण्टहाउस’ के कवर पेज पर आने के बाद स्थानीय भारतीय समुदाय ने उन पर हेट-मेल की बाकायदा बौछार कर दी थी और तब, उन्नीस-बीस साल की उम्र में, वे बहुत विचलित और असुरक्षित, लगभग ध्वस्त, महसूस करती रह गयी थीं. वह अनुभव आज भी उनको याद है. फिर स्थानीय सिख समुदाय नेँ उनके परिवार का बहिष्कार कर दिया था, वह भी पूरे परिवार के लिये एक असहायता और अकेलेपन का दौर था. इस दौर ने उनमें यह जोड़ा कि उन्हें इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि कौन उन्हें पसन्द करता है और कौन नापसन्द.


फिर सनी साल-दर-साल दूरियाँ मापती अपने व्यवसाय के उच्चतम शिखर तक पहुँची और आज अपनी इच्छा और शर्तों पर उसे त्याग कर मुख्यधारा बॉलीवुड सिनेमा में अपनी जगह बनाना शुरू कर चुकी हैं . पोर्नस्टार रह चुके होने के नतीजे के बारे में उनका कहना है कि ” अपना जीवन में  ठीक उसी तरह जी पाती हूँ, जैसा कि में  चाहती हूँ. बिना किसी प्रतिबन्ध के अहसास के, में  जो चाहूँ वह करने के लिये स्वतंत्र हूँ.”
” जो चाहूँ वह करने के लिये स्वतंत्र, ” क्या अर्थ है इसका? अपनी चाह को कैसे निर्धारित करती हैं वे ? अपनी स्वतंत्रता को, अगर वह निर्बन्ध स्वेच्छाचारिता नहीं है तो, कैसे नियंत्रित करती हैं ? क्योंकि, जैसा पहले कहा, यहाँ होती है ‘वुमन ऑफ़ सब्सटेन्स” और यहीं ”पॉवर-वुमन”भी – स्वतंत्र होने में और स्वयं अपनी स्वतंत्रता के नियमन और नियंत्रण में.

2008 में  ‘आई वीकली’ नामक एक पत्रिका में उनके बारे में  छपा एक आलेख बताता है कि अपने परिवार के साथ गहरे भावात्मक लगाव के अलावा सनी लियोनी सिख धार्मिक आस्था के साथ गहराई से जुड़ी हैं  और सिख परम्पराओं के साथ रिश्‍ता कायम रखने की पूरी कोशिश करती हैं , भले ही व्यावहारिक की अपेक्षा सैद्धान्तिक रूप से अधिक. शायद उनके परिवार का सामुदायिक बहिष्कार इस व्यवहारिक लाचारी का कारण हो. लेकिन यह केवल अनुमान है. धर्म की उनकी समझ और आस्था भी उनकी अपनी है. 2010 में एक इण्टरव्यू में उन्होंने कहा था कि यह सिख धर्म एक सामुदायिक धर्म है. आप गुरुद्वारे में घुसेंगे तो पूरा समुदाय आपका पूरे सम्मान से स्वागत करेगा. लेकिन बाकी किसी भी धर्म की तरह यहाँ भी ऐडल्ट मैटीरियल शूट करने की इजाज़त नहीं है. हालाँकि वे हर रविवार को गुरुद्वारा जाने का नियम पालन करते हुए बड़ी हुई लेकिन धर्म की वजह से अपना व्यवसाय छोड़ने की मज़बूरी उन्होंने नहीं पाली. बल्कि इण्डस्ट्री छोड़कर जाने वाली कुछ लड़कियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा जाते समय उन्होंने घोषणा की कि यह काम छोड़कर वे इसलिये जा रही हैं  कि उन्होंने ईश्‍वर को पा लिया है. लेकिन असलियत यह है कि इस पूरे वक्त में भी ईश्‍वर उनके साथ बना रहा है.

अपने व्यवसाय के लिये भी उनके पास अपने मूल्य और आचरण संहिताएँ बनी रही हैं . ऐडल्ट इण्टरटेन्मेण्ट फ़िल्म इण्डस्ट्री में शामिल होने के बाद शुरू शुरू में उन्होंने केवल समलैँगिक दृश्‍य किये. शायद उसमें उन्हें किसी तरह की पवित्रता अक्षुण्ण प्रतीत होती है. पुरुष के साथ उन्होंने केवल तब के अपने प्रेमी और मँगेतर मैट एरिकसन के साथ फ़िल्में कीं. मँगनी टूट जाने के बाद शायद एक फ़िल्म उन्होंने अनेक पुरुष साथियों के साथ की तो सही लेकिन शायद वह अनुभव उन्हें अच्छा नहीं लगा. डैनियल वेबर के साथ प्रेम हुआ, फिर विवाह और तब से केवल डैनियल ही उनके साथी रहे हैं. व्यवसाय में भी युगल की अनन्यता उनके लिये अनिवार्य रही है.
अब वे अपने जीवन के अगले मोड़ पर उपस्थित हैं .

क्या यह आपके लिये अपने पुनःआविष्कार का समय है़?” इस प्रश्‍न के उत्तर में सनी ने कहा कि ” मुझे दरसल  पुनः आविष्कार जैसा शब्द पसन्द ही नहीं. मैं अपना पुनः आविष्कार चाहती ही नहीं. मैं जो भी हूँ, उससे मुझे प्यार है. बड़े अन्तरंग रूप से घटित यह होता है कि मैं  एक इंसान, एक अभिनेत्री और एक प्रोफ़ेशनल के रूप में बढ़ती और विकसित होती हूँ.

सनी के इस कथन में  उसके ‘सब्सटेन्स’ का मूल छिपा है. व्यवसाय के चुनाव की वजह से उनका ‘सब्सटेन्स’ या उनके ‘सब्सटेन्स’ की वजह से व्यवसाय का चुनाव जैसे किसी इकहरे समीकरण मेँ इस गुत्थी का हल नहीं है. सनी के लिये जीवन चुनावों की एक लम्बी लगातार प्रक्रिया है जिसमें से गुजरते हुए सनी लगातार विकसित होती रही हैं  और ‘सब्सटेन्स’ में भी लगातार कुछ जोड़ती रही हैं. जो बीत गया उसके लिये बिना किसी पछतावे के. उनमें एक सरलता और निश्छलता है जो निष्पापता से आती है.

(सन)सनी लियोनी के बहाने एकाध नुक्ते की बातें – 2 शीर्षक से कथादेश के सितंबर अंक में प्रकाशित / साभार

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ISSN 2394-093X
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