मेरे अल्लाह मेरी दुआ सुनना : अरावली हिल्स पर पथराई आँखों की पुकार

रायसीना हिल्स से लेकर अरावली हिल्स के उस टुकड़े तक पिछले एक महीने से एक मां और एक बहन का आर्तनाद गूँज रहा है- या खुदा मेरे नजीब को वापस ला दो, खुदा के लिए मेरे नजीब को वापस ला दो, और हृदयहीन सत्तासीन राजनीतिक बयानवाजियों और ट्वीटर पर ट्वीट करने में लगे हैं. पिछले एक महीने से  पुलिस पचास  हजार की रकम से दो लाख रुपये तक की रकम की घोषणा कर चुकी है, नजीब का पता बताने के लिए ,लेकिन अंतिम बार नजीब की पिटाई करने वाले छात्रों से एक सवाल पूछना भी मुनासिब नहीं समझती. जेएनयू से गायब नजीब की मां दिल्ली की सड़कों पर बेटे को पथराई आँखों से ढूंढ रही हैं… पढ़ें जेएनयू के ही शोधार्थी अभय की उनसे यह ख़ास बातचीत और रपट. 

नजीब की मां



शुक्रवार की शाम जाकिर नगर की ऊबर-खाबड़ और बीहड़ सड़क, जैसा की आमतौर पर होता है, लोगो की भीड़ से ठसा-ठस भरी हुई थी . सड़क के किनारे-किनारे लगे हुए कबाब के बहुत सारे दुकानों से उठने वाला धुँआ इस जगह को जरा  घना बना रहा था. गाड़ी के हार्न से निकलने वाले शोर तकलीफों में और इजाफा कर रहे थे. जाम मे फँसा एक बैटरी-रिक्शा एक अधेड़ उम्र की महिला और उसकी बेटी को ले जा रहा था.  उनके बगल में बैठ कर मैं महिला में बढ़ती हुई बैचेनी को देख रहा था. कुछ वक्त बाद ट्रैफिक की भीड़- भाड़ खत्म हुई और बैटरी-रिक्शा चालक ने अपनी चाल दुरुस्त की , कोशिश करने लगा की दूसरी गाड़ियों से आगे निकल सके. महिला ने ड्राईवर को हिदायत देते हुए कहा कि “ दायीं ओर मुड़ो” , वो उस गली की ओर इशारा कर रही थी, जो ऐतिहासिक जामिया-मिलिया इसलामिया से लगी हुई है. महबूब नगर गली से सौ गज के भीतर रिक्शा एक घर के सामने रुका. रिक्शा से उतरने के बाद जरा सा वक्त बीता होगा की वह आँसुओ से शराबोर थीं : “ अल्लाह मैं आज फिर बगैर नजीब के वापस आई”.

उनकी बेटी ने जल्दी ही नीचे उत्तर कर उन्हे अपने आगोश मे ले लिया. माँ की मायूसी कायम रही. परिवार के कुछ और सदस्य घर से निकले और उन्हे दिलासा देने की कोशिश की. उन्होने कहा –“ नजीब जल्द ही वापस आएगा”. आगे , कुछ और रिश्तेदारों ने घर से बाहर निकल उन्हे गले से लगाया और वे इस बात की जिद्द करने लगे कि उन्हे मेहमानखाने चले जाना चाहिए. उन्होने एक बार उन्हे फिर से दिलासा दिया : “ नजीब जल्द ही वापस आएगा”. आखिरकार, वह मेहमानखाने में तशरीफ लाई और सोफ़े पे बैठ गई. उनकी दो जवान बेटियां  और मैं उनके बगल में बैठ गए.

कमरे में मैने दिवारो पर टंगी हुई कई तस्वीरे देखी, जिसमें  कुरान की पाक आयतें छपी हुई थी.  उनमें  से कुछ लोग :“ अल्लाह” (भगवान)  और  “बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम” (अल्लाह के नामो मे सबसे अधिक परोपकारी, सबसे अधिक दयावान)- का नाम पढ़ रहे थें. कुछ मिनट के बाद, एक दस वर्ष की लड़की ने उन्हे पानी दिया और उन्हे रोने से मना किया. मगर उन्होने पानी पीने से इंकार कर दिया.

रोने वाली यह औरत फातिमा नफीस थी- नजीब की माँ.  उनकी बेटी थी सदाफ मुशर्रफ—नजीब की बड़ी और एक मात्र बहन. करीब-करीब हर रोज नजीब की माँ और बहन एक उम्मीद के साथ घर से बाहर निकलती है और शाम मायूसी के साथ खत्म होती है.

शुक्रवार की दोपहर को आईटीओ स्थित दिल्ली पुलिस मुख्यालय  मे मैं नजीब की माँ और बहन से मिला. वे वहाँ एक धरना-प्रदर्शन में शरीक होने पहुँचे थे. मैं वहाँ जामिया, जेएनयू  और एमयू से आए छात्रों के साथ इक्टठा हुआ था.  धरने की जगह पर  प्रदर्शनकारीयों की आँखों मे गुस्से की चिन्गारी जल रही थी.  दिल्ली पुलिस मुर्दाबाद के नारे फिजा में दो घण्टे तक गुंजते रहे.

बायोटेक्नोलोजी (एम. एससी) के प्रथम वर्ष के छात्र नजीब के गायब होने के बाद से विश्वविद्यालय प्रशासन, दिल्ली पुलिस और हिन्दुत्त्व सरकार की बेरहमी और निकम्मेपन के खिलाफ लगभग रोज प्रदर्शन के कई तरीके – कब्जा कर बैठ जाना,  वाइस-चांसलर का घेराव, गृह मत्रांलय की और  मार्च – इस्तेमाल मे लाऐ जा रहे हैं. दिल्ली पुलिस मुख्यालय में किया गया प्रदर्शन भी चल रहे संघर्ष का हिस्सा था. प्रतिरोध के प्रतीक के बतौर नजीब की माँ और बहन ऐसे हर मौके पर मौजूद होती हैं.

ध्यान रहे कि नजीब के गायब होने की पहली रिपोर्ट अक्टूबर  15 को दर्ज कराई गयी थी, जो आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी के सद्स्यों के द्वारा किये गये बेरहम हिंसा का नतीजा था.  चश्मदीद गावाहों के अनुसार, पिछली रात को एबीवीपी से जुडे़ दर्जनो कार्यकर्ताओं ने जेएनयू के माही-माण्डवी होस्टल मे नजीब को इतनी बुरी तरह से पीटा था कि उसके मुँह और नाक से खून बह रहा था.

जैसे ही अँधेरा होता गया भीड़ का जमावाड़ा कम पड़ता गया. नजीब की माँ और बहन लौटने की तैयारी करने लगे. उनको अकेला देखकर मैं उनके करीब पहुँचा और अपना सलाम पेश किया. मैं उन से जेएनयूं के अन्दर और बाहर कई मौको पर पहले ही मिल चुका था, इसलिये उन्होने मुझे बड़ी आसानी से पहचान लिया.
शाम का अन्धेरा और ठंडक अब बढने लगा था. यह महसूस करते हुए कि अब काफी देर हो चुकी है, मैने नजीब की माँ और बहन से साहस बटोर कर कहा : ‘ मैं आप लोगो के साथ कुछ वक्त बीताना चाहता हूँ….’. मैं जिस दुविधा मे था मेरी झिझक उस से निकल कर आ रही थी. मै पूरे  यकीन मे नहीं  था कि वे इस वक्त मुझ से बात करने को राजी हो जाएंगे. हालाकि वे अपनी इच्छा से इस पर राजी हो गए और मुझे अपनी  कार में बैठने को कहा.

कुछ मिनटो बाद कार जाकिर नगर के लिये रवाना हो चुकी थी. नजीब की बहन ने मुझे आगे ड्राइवर की सीट के बगल में बैठने को कहा जबकि नजीब की माँ बीच की पक्तिं मे बैठ गई. नजीब की बहन अपने शौहर के साथ पीछे की सीट पर बैंठी. जैसे ही कार कनाट प्लेस के घेरे तक पहुँची, मैने महसूस किया कि मेरी झिझक बहुत हद तक खत्म हो चुकी थी.

नजीब की बहन जो दिल्ली के हमदर्द मे उर्दू पढाती हैं, ने कहा ,” जेएनयू के छात्रों ने नजीब के लिये जो मोहब्बत दिखलाई है वह हमारे करीबी रिश्तेदारो से भी कही ज्यादा है”. नजीब के परिवार के अन्य सद्स्यों ने भी इस सराहे जाने को दोहराया.हालाकि नजीब का परिवार  जेएनयू प्रशासन  का खास तौर से वाइस-चांसलर जगदीश का असंवेदनशील रवैया देखकर मायूस था. नजीब की बहन, जिनका चेहरा, गला और बाल नीले हिजाब से ढँका हुआ था, ने विश्वविद्धालय प्रशासन और छात्रों  के रवैये के बीच जो फर्क है, उसे बड़ी खूबसूरती से बयाँ किया: ‘ जेएनयू के छात्र कोई खास खाना खा रहे हैं, जिस की वजह से उनको नजीब से इतनी मुहब्बत है . आगर वीसी को पता चले तो वह इनका खाना बंद करा दे’.

नजीब की मां और बहन

वाइस-चाँसलर की आलोचना मे नजीब के माँ ने भी जोड़ते हुए कहा: ‘वाइस-चाँसलर एक ऐसी शखसियत है, जिसके जज्बात मर चुके हैं. वह एक बुत की तरह बैठा था.’ ध्यान रहे एक एकेश्वरवादी धर्म के बतौर इस्लाम बुत के पूजे जाने का सश्क्त विरोध करता है, और बुत एक नकारात्मक संकेतार्थ है. और इसलिये बुत से वीसी की तुलना उसके लिए उनमे मौजूद गहरे असंतोष को बयाँ करता है.वाइस-चांसलर की आलोचना को जारी रखते हुए नजीब की बहन ने उस घटना को याद किया, जब वह उनसे  18अक्टुबर को मिलने गई थीं. जैसा कि उन्होने बताया वाइस-चांसलर ने काफी लम्बे इंतजार के बाद ही उनसे मुलाकात की. आधे घण्टे तक चलने वाली इस बैठक मे उन्होने किसी भी बात का अश्वासन नही दिया. “वाइस- चांसलर ने हमारे किसी भी सवाल का जवाब नही दिया. जब उनसे कुछ कहने को कहा जाता तो वे हमारे सवालो को वहाँ बैठे अन्य विश्वविद्धयालय अधिकारियों की ओर बढा देते थें” , नजीब की बहन ने मायूस होते हुए कहा, ‘वाइस- चांसलर के असवेंदनशील रवैये ने उन्हे काफी परेशान किया’  वह इतनी जज्बाती हो गई कि अगले दिन उन्होने वाइस- चांसलर के अफिस पर सैकड़ो छात्रों को सम्बोधित किया . उनका भाषण कई लोगो को रुला गया.

तब तक कार कनाट प्लेस के औटर रिंग के पास  पहुँच गई थी. हमारी बातचीत का रुख अब मिडिया की ओर मुड़ चुका था. उनकी बहन मिडिया, खास तौर से इलेक्ट्रोनिक मिडिया की “चुप्पी” देखकर दुखी थीं. ‘कुछ अखबारो ने नजीब के केस को कवर किया है मगर इलेक्ट्रोनिक मिडिया अधिकतर चुप ही रहा है”, उन्होने शोक व्यक्त करते हुए कहा.हालांकि  नजीब की माँ की मीडिया मे कोई दिलचस्पी  नहीं थी. उनके जेहन मे सिर्फ एक ही बात तैर रही थीं- अपने बेटे की तालाश: ‘ अगर नजीब मिल गया, मैं तुम सब को पार्टी मे बुलाबा दूंगी’. इस बात को महसूस करते हुए कि नजीब के मिलने की खुशी इतनी ज्यादा होगी कि वह केवल तभी पूरी हो सकती है जब कि समारोह मे जेएनयू के सभी छात्र मौजूद हो, उन्होने खुद को सुधारते हुए कहा: ‘अगर नजीब मिल गया, तो मैं जेएनयू के सारे छात्रो  को पार्टी मे बुलाबा दूंगी’.

जबकि नजीब का गायब होने से जेएनयू को लेकर परिवार के सदस्यों में  गहरे जख्म के निशान बन गये हैं, नजीब के लिये छात्रो की दी गई मदद भी विश्वविद्यालय  को उनके लिये खास बनाता है. अपने परिवार के तरफ से जेएनयू के छात्रो की मदद को याद करते हुए , नजीब की बहन बोली कि धरने की जगह पर वे हमे घेरते हुए बैठ गए और हमे पूरी सुरक्षा दे रहे थे, जैसे कि “ हम उनके परिवार के सदस्य हों”. कुछ ही हफ्ते के भीतर जेएनयू  के लिये नजीब की बहन मे एक गहरी मुहब्बत पनप चुकी है. “ पहले हममे जामिया के लिये मोहब्बत थी और जामिया के इलाके में पहुँच कर हमेशा घर जैसा महसूस होता था मगर अब हममे जामिया के लिए भी ऐसी मुहब्बत पनप चुकी  है”, नजीब की बहन ने कहा.

जब मैंने नजीब और उसके तालीम के बारे मे पूछा, तब नजीब की माँ ने कहा कि वह एक मेहनती छात्र था और चार नामी-गिरामी विश्वविद्यालय  की प्रवेश परिक्षा उसने पास की थी—एएमयू, हमदर्द, जामीया और  जेएनयू. हालांकि  उसने उनकी इच्छा के विरुद्ध  जेएनयू को प्राथमिकता दी . वह नजीब  को जेएनयू क्यों नही भेजना चाहती थी? वह जवाव देती हैं: “ मैं जेएनयू में  हुए पिछले विवाद को लेकर सतर्क थीं……… मैं नही चाहती थीं की नजीब वहाँ जाए लेकिन उसने मेरी नही सुनी. वह वहाँ मोहरा बन गया’, वह रोए जा रही थीं और उनके आँसू  उनके नीले और सफेद कुर्ते को गीला कर रहे थे.

एक घण्टे तक चलने के बाद कार जामिया नगर इलाके में पहुँची. नजीब के साथ हुई हालिया बातचीत को साझा करते हुए उन्होंने  कहा कि नजीब कमरे में खटमल के डर की शिकायत कर रहा था.  यह सुनकर नजीब की माँ ने आश्वासन देते हए कहा था कि वहाँ उसके अब्बा जाएंगे और कमरे मे कीटनाशक का छिड़काव करवा देंगे.  लेकिन यह नजीब की उदासी दूर  नही कर सका: “ खटमल सभी होस्टलो मे मौजूद है. इसमे पापा क्या कर सकते हैं ?”

तब तक कार जाकिर नगर पहुँच चुकी  थी और हम ने जाकिर नगर इलाके मे स्थित नजीब के फुफी ( नजीब के पिता की बहन) के  घर जाने के लिए बैटरी-रिक्शा लिया. नजीब के फुफेरे भाई ने हम सब के लिये चाय लाई, हम सब साथ चाय पीने लगे. नजीब की अम्मी थक चुकी थीं और मैने सोचा मुझे निकलना चाहिए. नजीब की माँ के होठो पर बस ये ही शब्द हैं: “ मेरे अल्लाह मेरी दुआ सुनना और नजीब को जल्द से जल्द वापस ले आना”.

अभय कुमार जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के इतिहास अध्ययन केंद्र में ‘आधुनिक राज्य धर्मनिरपेक्ष कानून और अल्पसंख्यक’ विषय पर शोधरत हैं। संपर्क: 9868660402

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