डॉन्ट वरी डियर सोनम गुप्ता

प्रियंका


बदलते समय ने बहुत सारे लोगों को स्त्री और दलित सरीखी उत्पीड़ित-उपेक्षित अस्मिताओं के पक्ष में दिखावे के लिए ही सही खड़े होने के लिए विवश तो किया, लेकिन इसने उनके भीतर की कुंठाओं क्रूरताओं और घृणा को भी साफ कर दिया हो, यह भ्रम न ही रखा जाए तो अच्छा है . समय के साथ-साथ लोगों की चालाकियाँ भी अधिक बढ़ती जा रही हैं. शत्रुओं ने अपना अंदाज बदलना सीख लिया है. उन्हें पहचानना अधिक कठिन हो गया है. इसके बावजूद समय-समय पर उनकी चालाकियाँ ही ख़ुद को डिकोड करने के अवसर देती रहती हैं .



जब देश बिना उचित तैयारी के ‘मुद्रा परिवर्तन’ के अचानक ले लिये गये फैसले से जूझ रहा है : लोगों को ‘मज़ाक’ सूझ रहा है. सोशल मीडिया पर कुछ दिनों पहले दस रुपये के नोट पर किसी का यह लिखा कि ‘सोनम गुप्ता बेवफा है’ खूब प्रसारित हुआ था . इसे लिखे जाने और वायरल होने के पीछे की असल कहानी क्या है,नहीं पता, लेकिन मेरा ख़याल है कि लोगों को इसमें किसी चोट खाए आशिक का दर्द नज़र आया होगा और उसके लिए अभिव्यक्ति की चुनी गयी जगह उन्हें आकर्षित कर रही होगी और सबसे बड़ा कारण यह रहा होगा कि इसमें मज़े लेने की भरपूर संभावना दिखी होगी. अब मुद्रा परिवर्तन के दौर में सोशल मीडिया पर चलाई जा रही ‘अघोषित हास्य प्रतियोगिताओं’ में अचानक से इसके और भी नये-नये ‘क्रिएटिव वर्सन’ सामने आने लगे हैं . लगभग हर कोई इसमें अपनी शिरकत करना चाह रहा है. कोई इससे जुड़ी किसी की ‘क्रिएटिविटी’ को शेयर कर रहा है तो कोई अपनी ‘क्रिएटिविटी’ दिखाने को आतुर है . यानी सोनम गुप्ता पर्याप्त मशहूर हो गयी है- नहीं यह गलत शब्द होगा, मशहूर होना औरतों के हिस्से का दुर्लभतम सुख है-सही शब्द यह होगा कि वह बुरी तरह बदनाम हो गयी है . यह दस रुपये के नोट पर उकेरी गयी पहली ‘क्रिएटिविटी’ की शानदार सफलता है . उसमें निहित भावना का फलिभूत होना है .

इसे लिखने वाले ने कुछ तो मानवता दिखाई कि सोनम गुप्ता का पता या पहचान जाहिर करने वाला कुछ नहीं लिखा. चूँकि इस नाम से पहचान जाहिर नहीं होती, कोई एक टारगेट तय नहीं होता इसलिए लोगों को यह अपने करतब दिखाने के लिए खुला मैदान लग रहा है . कोई ख़तरा नहीं और कुंठाओं के लिए आसानी से सोशल मीडिया  भी उपलब्ध हो रहा है. क्या इसे इस कोण से कोई नहीं सोचता कि यह सब एक साथ सोनम गुप्ता नाम की कई औरतों को असहज करता होगा ? कि किसी का नाम सोनम गुप्ता सुनकर, प्रकट-अप्रकट एक टेढ़ी मुस्कान खिंच जाती होगी? कभी ‘चिंटुआ के दीदी तनी प्यार करे द’, भोजपुरी गीत ने ऐसी ही कुंठा के लिए आश्रय उपलब्ध कराया था. चौक-चौराहों , बाजार , विवाह पार्टियों बरात आदि में यह गीत खूब बजता, तब चिंटू नाम पर आफत थी और उसकी दीदी के रूप में महिलायें इसका टार्गेट थीं, शिकार थीं.

विडम्बना से भरा है लेकिन सच है, कि जहाँ सदियों से चली आ रही व्यवस्था ऐसी है कि औरतों को कोई दो कौड़ी की इज्ज़त के लायक भी नहीं समझता, वहीं की औरतें अपनी इज्ज़त और चरित्र की परवाह में ही अपना पूरा जीवन खपा देती हैं . इसलिए औरतों से लड़ने का सबसे बड़ा प्रामाणिक हथियार उनके चरित्र, उनकी निष्ठा और उनकी इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ाने वाले दुष्प्रचार हैं . आए दिन तकनीक के दुरूपयोग से अथवा धोखे से औरतों की निजी तस्वीरों, विडियो अथवा अपमानित करने वाली अन्य सामग्रियों को सार्वजनिक करने के काम धड़ल्ले से किये जा रहे हैं . प्रकट में इसे गलत कहने वाले अधिकांश लोग भी भावना के स्तर पर इसे मनोरंजन की सामग्री ही समझते हैं . इस तरह कि प्रवृत्ति ने न जाने कितने लोगों को अकथनीय प्रताड़ना दी है और आत्महत्या तक के लिए विवश किया है .


बेवफाई की दास्तान तो औरतों को केन्द्र में रख कर लिखे जाने की हमारे यहाँ परंपरा ही रही है, प्यार एकतरफा हो तब भी ! सिरफिरे आशिकों के क्रूरतम एसिड अटैक और उसके अपने मन ही मन तय कर ली की गयी प्रेमिका के विषय में तरह तरह के दुष्प्रचार आम बातें हैं . यदि किसी को ‘सोनम गुप्ता बेवफा है’ : बीज वाक्य में सोनम गुप्ता का चुनौतियों और आशंकाओं से भरा भविष्य नहीं दिख रहा, बल्कि हास्य और मज़े लेने की संभावनाएँ दिख रही हैं, तो उसे अपनी संवेदनशीलता पर ठहर कर पुनर्विचार अवश्य करना चाहिए . यह वह पहला पड़ाव है, जिसके बाद के ख़तरनाक रास्ते कई बार किसी स्त्री पर एसिड अटैक या आत्महत्या पर जाकर ख़त्म होते हैं बल्कि कई बार यहाँ भी ख़त्म नहीं होते !

ऐसे अवसर लोगों की चालाकियों को डिकोड करने के अच्छे अवसर होते  हैं . ‘सोनम’ तुम भी इसे इसी तरह से देखो . धैर्य से इस तरह की टुच्ची मानसिकता का मुकाबला करना सीखो . उत्पीड़ित अस्मिताओं का शायद ही कोई मसीहा होता है . मसीहा होने का दावा करने वाले बहुत सारे लोग होते हैं, लेकिन उनकी अपनी सीमाएँ होती हैं और अपना एजेंडा भी होता है और कई बार वे मसीहों के मुखौटे भर पहने हुए होते हैं . उत्पीड़ित अस्मिताओं को खुद ही अपनी जंग लड़नी होती है . इसलिए यह कोई नई बात नहीं है, कि तुम्हें घबराने की जरूरत हो . डॉन्ट वरी डियर, हो सके तो ऐसे लोगों पर हँसो या कम से कम हँसना सीखो उन पर, जो अपने क्रूर हास्यबोध के कारण इस दुनिया को मरघट में तब्दील कर देने में लगातार योगदान दे रहे हैं, और उनकी मासूमियत ऐसी कि इसका उन्हें पता तक नहीं !!



शोध छात्रा, हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय

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