प्रेमा झा की कवितायें

प्रेमा झा 

युवा कवयित्री,ब्लॉगर संपर्क :prema23284@gmail.com

मेरा देश अभी सीरिया या इज़रायल नहीं हुआ है  

मैं जनता हूँ
आम जनता हूँ
मैं लूट चूका हूँ
मैं बर्बाद और बेबस हूँ
मैं मुज़रिम हूँ,
दोषी हूँ और सजायाफ्ता कैदी
से जरा बड़ा मेरा दोष है
क्योंकि मैंने पाई-पाई जोड़े हैं
बुरे वक़्त में काम आने के लिए
बच्चों की फ़ीस भरने और जोरों के दर्द में काम आने के लिए
अब तक मेरे खाते में कई सील बंद कर दी गई है
और मुझे बड़ा चोर बताकर कतार में खड़ा कर दिया गया
मेरे हाथ में रखे नोटों को मैं अब माँ गंगा की भेंट चढ़ा रहा हूँ
भक्ति  के नाम पर उसने मुझसे कहा है कि पुण्य कमा
काम आएगी माँ गंगा
जब मय्यत के दिन
तेरी अर्थी का राख़ उस गंगा में विसर्जित की जाएगी
माँ गंगा तब भी काम आएगी
जब तेरे पास से ऐसे ही बहुत से नोट निकलेंगे
एक बार माँ के नाम से भेंट चढ़ा
फिर देखना सब पाप धुल जाएँगे
जिन्होंने बहुत से पाप, लूट, हत्याएं और कालाबाज़ारी की थी
वो स्विस-अकाउंट में पैसे भर चुके थे
और वो गंगा के पास आकर केवल हवन और ग्रहण करते थे!
वो अब तक कनाडा और यू.एस. शिफ्ट कर चुके हैं
वे बड़े-भारी लोग हैं
उनसे माँ गंगा कभी-कभी मिलती भी हैं
उन्होंने कई पेटी भरने के बाद अब सूची से नाम काट लिया है
कतार में बस मजदूर, बेबस और लाचार लोग बचे थे
ये जनता हैं
आम जनता हैं
रियासत का कहना था-
भूख से मरो, बीमारी से मरो
मगर स्वच्छ रहना
हर पाप से, पाई-पाई के हिसाब से
मेरा पांच साल का बच्चा न्यूमोनिया से लड़ रहा है
और ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है
और मैं लाइन में खड़ा हूँ
इस इंतज़ार में की पैसे मिलते ही सब ठीक हो जाएगा
मेरा बच्चा बच जाएगा
मगर मेरा बच्चा मर चूका था!
लाइन ख़त्म नहीं हुई अब भी
हुक्मरानों का कहना था
इससे देश से कालाधन साफ़ होने में

और
अर्थव्यवस्था मज़बूत होने में मदद मिलेगी
मगर मेरे घर में चीत्कार फट रही है
मैं अब भी लाइन में खड़ा हूँ
मैं जनता हूँ
आम जनता हूँ
जनता जो तमाम टूजी, थ्रीजी घोटाले करने के बाद
इन्फ्निट लाइन में खड़ी हो जाती है
अडानी, मोदी और माल्या विदेश कूच कर जाते हैं
तब रियासत एक नया पैंतरा फेंकती है
अभी एक जवान औरत की लाश निकल रही है
देश में जियो सिम आ गया है
ताकि मौत की खबर को जल्द-से-जल्द
बिना किसी परेशानी और राशि के पंहुचाया जा सके
हुक्मरानों ने हिरोशिमा और नागासाकी के स्टेशन पर
नया सन्देश पंहुचाया है
देश प्रगति के पथ पर है
मेरे घर में तेरहवीं का मातम है
मैं जनता हूँ
आम जनता हूँ
मुझे खुश होना चाहिए
मेरा देश अभी सीरिया या इज़रायल नहीं हुआ है
मैं लाइन में खड़ा हूँ
और बुदबुदा रहा हूँ
मेरा बच्चा मर गया
लेकिन, देश अभी सीरिया या इज़रायल नहीं हुआ है

कश्मीर पुरुष    

हे कश्मीर पुरुष,
मैं देहलवी तुम्हारे रूप से
मोहित होकर
तुम्हारी खूबसूरत वादियों में आ गई हूँ
मुझे संभालो न!
देखो न, अन्ना केरेनिना की तरह
मेरे वस्त्रों की सिलवटें
सब तुम्हारे आलिंगन और चुम्बन के लिए
तरसने लगी है
तुम बेहद सुंदर पुरुष हो
धरती के सबसे सुंदर पुरुष
स्त्री से पुरुष का आकर्षण
इससे पहले कईयों ने दोहराया होगा
मगर एक पुरुष से स्त्री के आकर्षण पर
अब इतिहास लिखा जाएगा
मैं उसी तरह तुम्हारे पास
जैसे हद्दे नज़र तक सुंदर घाटियाँ

और
घाटी में घुसे हुए घुसपैठिये
की तरह देखो न!
अब षड़यंत्र भी रचने लगी हूँ
किसी हारी प्रेमिका की तरह!
मैं, देहलवी तुम पर दावा ठोकूंगी
तुम्हें गिरफ्त में करूंगी
अपनी कुछ जटिल योजनाओं के तहत
और
सुर्ख प्रेम-लिपियों में
तुम पर ग्रन्थ भी लिखूंगी
मैं, मेरे अंगरक्षक जो मेरे
बाप और भाई होने का दावा करते हैं
उनसे तुम्हारे लिए प्रस्ताव भेजूंगी!
तुम मेरे हो सिर्फ मेरे
हे कश्मीर पुरुष,
जब कश्मीरियों पर जुल्म
ढाया गया था-
मैंने ही चुपके से
अभिसारी मेनका को
तुम्हारा तप भंग करने को भेजा था
हे कश्मीर पुरुष,
मैं दोषी हूँ देहलवी
मेनका ने रूप बदलकर
भागकर स्वर्ग से दूर
बारूदी-सुरंगों में शरण ले ली!
हे कश्मीर पुरुष,
मैं दोषी हूँ
उन सब असंस्कारी संततियों की
जिसने बारूद के गोले से
रेत पर लिखे अक्षरों जैसे
घर, घर की दीवारें और चौखट बना दिए
मैंने उन्हें सँभालने की बहुत कोशिश की
मगर
बारूदी घरों ने धीरे-धीरे
संतति पैदा करते हुए
एक पूरा क़स्बा, शहर
और फिर मुल्क बना लिए
बुरहान वानी मेरी ही षड्यंत्रों का साजिश था
हे कश्मीर पुरुष,
मैं, तुमसे मगर मुआफ़ी नहीं मांगूंगी
क्योंकि मैं तुमको जीतना चाहती हूँ
और हाँ; बारूद बने मुल्क और उनकी स्त्रियों का कहना है कि
तुम उनके हो?
मैं, तुमको बाँट नहीं सकती कश्मीर पुरुष
नहीं चाहती सौतनें अपने लिए!
इस तरह
तुम्हारी नाजायज़ संतानें भी मुझे शिरोधार्य होगी
मेरे अंगरक्षकों और मेरे सैनिकों का कहना है
मेरी प्यारी देहलवी
तेरी हर मुराद मैं पूरी करूँगा
तुझसे ईर्ष्या करने वाली हर स्त्रियों का वही हाल होगा
जो बड़े महल के मुख्य-द्वार पर काँटों में फंसी
उस मकड़ी का हुआ है
मकड़ी जो घर तो बना लेती है
मगर उसे पता नहीं होता
वो काँटों के बिना पर खड़ी है
हे कश्मीर पुरुष,
मैं देहलवी तेरे लिए जान दे भी दूंगी
और ले भी लूंगी
सच बताऊँ; सैनिकों का जो जखीरा
कश्मीरियों पर हमला बोला था
उसको मैंने गुरु-मंत्र में
धर्म, असहिष्णुता, हिंसा, गोले-बारूद
और नफरत दे दी!
मेरे अंगरक्षक आज बदल गए है
लेकिन, मैंने गुरु मंत्र नहीं बदले
हे कश्मीर पुरुष,
फिर भी मैं चिंतित हूँ
तुम्हारे चौड़े सीने पर उगे बाल
जो स्त्री से पुरुष की आसक्ति दर्शाती है
उसमें धीरे-धीरे
बारूद कि ज्वाला भड़कने लगी है

घाटी जल रही है
अंगरक्षक, सैनिक, सौतनें और प्रेमिका
मुझे इंतज़ार है किस दिन
दावेदारी छोड़कर
सच में प्रेम करने लगेंगे
मैं बदल रही हूँ कश्मीर पुरुष
बदलने लगी हूँ
फिर भी तुमसे मेरा मोह नहीं छूटता
अब बोलो तुम क्या कहना चाहोगे?
तभी घाटी के
पुरअसरार, सुनसान रास्ते से
एक गीत निकलता है
और वह जन गण मन होता है!