तीन तलाक, समान नागरिक संहिता और मोदी सरकार: अंतिम किस्त

जावेद अनीस

एक्टिविस्ट, रिसर्च स्कॉलर. प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े स्वतंत्र पत्रकार . संपर्क :javed4media@gmail.com
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अंतिम क़िस्त 



● इस्लाम क्या कहता है 

इस्लाम में जायज़ कामों में तलाक को सबसे बुरा काम कहा गया है. कुरआन में कहा गया है कि जहां तक मुमकिन हो तलाक से बचो और यदि तलाक करना ही हो तो हर सूरत में न्यायपूर्ण ढंग से हो और तलाक में पत्नी के हित और उसके जीवनयापन के इंतजाम को ध्यान में रखा जाए.


जामिया मिलिया इस्लामिया में इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर जुनैद हारिस के अनुसार “हमारे देश में एक साथ तीन तलाक की जो व्यवस्था है और पर्सनल लॉ बोर्ड ने जिसे मान्यता दी है वो पूरी तरह कुरान और इस्लाम के मुताबिक नहीं है. तलाक की पूरी व्यवस्था को लोगों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक बना दिया है. इसमें कुरान के मुताबिक संशोधन की सख्त जरूरत है”.

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की ज़किया सोमन कहती हैं कि “कुरआन के मुताबिक, शादी एक सामाजिक करार है. एक आदर्श करार में दोनों पक्षों की शर्तें दर्ज होनी चाहिए. निकाहनामा का यही महत्त्व है. अच्छे निकाहनामा में मैहर की रकम, शादी की शर्तें, बहुपत्नीत्व पर रोक की बात, तलाक का तरीका और शर्त इत्यादि दर्ज होनी चाहिए. लेकिन असल ज़िन्दगी में यह होता नहीं है”.




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● दुनिया में चलन

दरअसल एक झटके में तीन बार ‘तलाक, तलाक, तलाक’ बोल कर बीवी से छुटकारा हासिल करने का चलन दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व एशिया में ही है और यहाँ भी ज्यादातर सुन्नी मुसलमानों के बीच ही इसकी वैधता है. मिस्र पहला देश था जिसने 1929 में तीन तलाक पर रोक लगा दिया था. आज ज्यादातर मुस्लिम देशों जिनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं ने अपने यहां सीधे-सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से तीन बार तलाक की प्रथा खत्म कर दी है. जानकार श्रीलंका में तीन तलाक के मुद्दे पर बने कानून को आदर्श बताते हैं. तकरीबन 10 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले श्रीलंका में शौहर को तलाक देने के लिए काजी को इसकी सूचना देनी होती है. इसके बाद अगले 30 दिन के भीतर काजी मियां-बीवी के बीच सुलह करवाने की कोशिश करता है. इस समयावधि के बाद अगर सुलह नहीं हो सके तो काजी और दो चश्मदीदों के सामने तलाक हो सकता है.

● संघ परिवार के घड़ियाली आंसू

हमारे देश में तीन तलाक के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल सुविधा की राजनीति कर रहे हैं और  इस मामले में उनका रुख अपना सियासी नफा-नुकसान देखकर ही तय होता है. वर्तमान में केंद्र में दक्षिणपंथी सरकार है जिसको लेकर अल्पसंख्यकों में आशंका की भावना व्यापत है और इसके किसी भी कदम को लेकर उनमें भरोसा नहीं है.

केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने लेख में लिखा है कि “पर्सनल लॉ को संविधान के दायरे में होना चाहिए और ऐसे में ‘एक साथ तीन बार तलाक बोलने’ को समानता तथा सम्मान के साथ जीने के अधिकार के मानदंडों पर कसा जाना चाहिए”. वहीँ मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य जफरयाब जिलानी के अनुसार इसके बहाने बीजेपी समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है जो कि उसके चुनावी घोषणापत्र में पहले से मौजूद है. वह कहते हैं कि “हमारा स्टैंड साफ है. इससे सरकार की असलियत खुल गई है कि वह पर्सनल लॉ में धीरे-धीरे घुसपैठ करना चाहती है.”

प्रश्न यह भी है कि जिस समय मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड और भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन जैसे संगठनों का तीन तलाक की रिवायत को खत्म करने का अभियान जोर पकड़ रहा था और इसका असर भी दिखाई पड़ने लगा था ऐसे में सरकार द्वारा विधि आयोग के माध्यम से सुनियोजित तरीके से समान नागरिक संहिता का शगूफा क्यों छोड़ा गया? इससे तीन तलाक का अभियान कमजोर हुआ है. सरकार के इस कदम पर मुस्लिम महिला संगठनों ने भी सवाल उठाये हैं.

सवाल यह भी है कि भाजपा और संघ परिवार अचानक मुस्लिम महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने के लिए इतने आतुर क्यों दिखाई पड़ रहे हैं? जिनके दामन पर बाबरी मस्जिद ढहाने और गुजरात के दंगों का दाग हो उनमें अचानक मुस्लिम समाज में सुधार की इतनी सहानुभूति क्यों पैदा हो गयी है? कहीं यह महज घड़ियाली आंसू तो नहीं हैं जिसके निशाने पर मुस्लिम औरतों के अधिकार दिलाने के बहाने कुछ और हो.

इसका जवाब सितम्बर माह में केरल के कोझिकोड में आयोजित बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में है जिसमें उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय को याद करते हुआ कहा था कि “दीनदयाल जी का कहना था कि मुसलमानों को न पुरस्कृत करो न ही तिरस्कृत करो बल्कि उनका परिष्कार किया जाए”. यहाँ  “परिष्कार” शब्द पर ध्यान देने की जरूरत है जिसका मतलब होता है “ प्यूरीफाई ” यानी शुद्ध करना. हिंदुत्ववादी खेमे में “परिष्कार” शब्द का विशेष अर्थ है जिसे समझना जरूरी है दरअसल हिंदुत्व के सिद्धांतकार विनायक दामोदर सावरकर  मानते थे कि ‘चूकिं इस्लाम और ईसाईयत का जन्म भारत की धरती पर नहीं हुआ था इसलिए मुसलमान और ईसाइयों की भारत पितृभूमि नहीं हैं, उनके धर्म, संस्कृति और पुराणशास्त्र भी विदेशी हैं इसलिए इनका राष्ट्रीयकरण (शुद्धिकरण) करना जरुरी है.पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने “परिष्कार” शब्द का विचार सावरकर से लिया था जिसका नरेंद्र मोदी उल्लेख कर रहे थे. पिछले दिनों संघ परिवार द्वारा चलाया “घर वापसी अभियान” खासा चर्चित हुआ था. संघ परिवार और भाजपा का मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को लेकर चिंता, समान नागरिक संहिता का राग इसी सन्दर्भ में समझा जाना चाहिए.

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● क्या किया जाना चाहिए 

हर बार जब मुस्लिम समाज के अन्दर से सुधार की मांग उठती है तो शरिया का हवाला देकर इसे दबाने की कोशिश की जाती है. इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठन किसी संवाद और बहस के लिए भी तैयार नहीं होते हैं. इसलिए सबसे पहले तो जरूरी है कि तीन तलाक और अन्य कुरीतियों को लेकर समाज में स्वस्थ्य और खुली बहस चले और अन्दर से उठाये गये सवालों को दबाया ना जाए .

इसी तरह से अगर समाज की महिलायें पूछ रही हैं कि चार शादी  शादी के तरीकों, बेटियों को  जायदाद में उनका वाजिब हिस्सा देने जैसे मामलों में कुरआन और शरियत का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है, तो इन सवालों को सुना जाना चाहिए और अपने अंदर से ही इसका हल निकालने की कोशिश की जानी चाहिय.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संघटनों को संघ परिवार की राजनीति भी समझनी चाहिए जो चाहते ही है कि आप इसी तरह प्रतिक्रिया दें ताकी माहौल बनाया जा सके .इसलिए बोर्ड को चाहिए की वे आक्रोश दिखाने के बजाये सुधारों के बारे में गंभीरता से सोचे और ऐसा कोई मौका ना दे जिससे संघ परिवार अपनी राजनीति में कामयाब हो सके. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को  दूसरे मुस्लिम देशों में हुए सुधारों का अध्ययन करने की भी जरूरत है .

सुधार की एक छोटी से शुरुआत भोपाल से देखने को मिली है जहाँ साल 2010 से ही दारुल क़ज़ा (शरियत कोर्ट) ने तीन तलाक पर अर्जी लेना बंद कर दिया है. (हालांकि तीन तलाक पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध नहीं लगाया गया है) पिछले दिनों इस बारे में भोपाल शहर काजी सैयद मुस्ताक अली नदवी ने एक आखबार तो बताया था कि “शरिया कानून कुछ दुर्लभ मामलों को छोड़ कर एकतरफा तलाक की इजाजत नहीं देता है इसलिए यह बेहतर है कि इस प्रथा के चलन को हतोत्साहित किया जाये”. इसी तरह से सितम्बर माह में ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी अपना मार्डन निकाहनामा पेश किया है. उम्मीद है सुधार का यह सिलसिला आगे बढ़ेगा.
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● ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड का “सनद-ए-निकाह” (मॉडर्न निकाहनामा)  

सितम्बर 2016 में ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपना ‘सनद-ए-निकाह’(मॉडर्न निकाहनामा) पेश किया है. इस निकाहनामे में पति द्वारा तीन बार तलाक कहकर रिश्ता तोड़ने को गैर इस्लामिक बताया गया है और दो विशेष परिस्थितियों में महिलाओं को भी तलाक का अधिकार दिया गया है।


निकाहनामे की प्रमुख बातें 

▪ तीन बार बोलकर तलाक की प्रथा खत्म हो.
▪ पुरुष के अकेले के चाहने से तलाक नहीं दिया जा सकेगा.
▪ एक बैठक में भी तलाक नहीं होगा.
▪ पति-पत्नी आपस में बात करें,बात न बने तो दोनों के परिवार साथ बैठकर बात करेंगे.
▪ यह कुछ दिनों के अंतराल पर होगा ताकि किसी पक्ष में गुस्सा है तो उसे शांत करने का समय मिलेगा.
▪ पति-पत्नी फिर से बातचीत करेंगे, जिसमें अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

दो स्थितियों में पत्नी को तलाक का हक दिया गया है .

▪ अगर पति बार-बार गायब होता है और जीने के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं देता है ऐसा चार साल तक चले तो पत्नी तलाक दे सकती है.

अगर पति ताकत का उपयोग कर पत्नी को शारीरिक नुकसान पहुंचाता है, उसे अपाहिज करने का खतरा पैदा करता है, अपने दोस्तों के साथ संबंध बनाने के लिए कहता है, तो दोनों स्थितियों में पत्नी अपने पति को तलाक दे सकती है.