जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ आरंभ
एनएपीएम के 11 वां द्विवार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन का आगाज सांस्कृतिक तरीके से 20 राज्यों के जनप्रतिनिधि और आन्दोलन के साथियों के बीच हुआ. बिहार से रमेश पंकज, महेंद्र यादव ने सम्मेलन की भूमिका बांधते हुए सबका स्वागत किया और बिहार में हो रहे अन्याय और दमन को पूरे देश के मुद्दों के साथ साझा किया, जिसमें जमीन से लेकर नदियो, मजदूर, किसान, मछुआरे सभी के मुद्दे अहम् है ऐसा बताया. समाज संसाधन और संविधान पर चौतरफा हमले हो रहे हैं. इस हमले के खिलाफ कश्मीर से कन्याकुमारी तक और उत्तर पूर्व से गुजरात तक के लोगों और जन आन्दोलनों को एक साथ आना होगा. अगर हम आज इकट्ठे हो कर आगे नहीं आयें तो संविधानिक मूल्यों को बचाना मुश्किल होगा. मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने यह बात शुक्रवार को जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के 11वें राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के मौके पर कहीं.
मेधा पाटकर ने जल, जंगल और ज़मीन के लिए आन्दोलन कर रहे साथियों से कहा कि हमें सिर्फ ज़मीन ही नहीं, ज़मीर भी बचाना है. आत्मसम्मान कि हिफाजत करनी है | उन्होंने जन आन्दोलनों को वक़्त की जरुरत बताया. मेधा ने कहा कि हमें चुनावी राजनीती से अलग और आगे जा कर सोचना और काम करना होगा. उन्होंने अलग अलग आन्दोलनों को याद करते हुए कहा कि हमें भी आन्दोलन के तौर तरीकों पर गौर करना होगा और नयी सोच के साथ युवाओं को जोड़ते हुए आगे बढ़ना होगा.
उद्घाटन सत्र को देश भर के अलग अलग जन आन्दोलनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने संबोधित किया.
असहमत विचारों को चुप करने की कोशिश : उमर खालिद
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जे.एन.यू) के छात्र आन्दोलन के प्रतिनिधि उमर खालिद ने अपनी बात की शुरुआत बिहार में दलितों के नरसंहार पर आये हाल के फैसलों से की. उनका कहना था कि कितने ताज्जुब की बात है कि दलित मारे गए और किसी को सजा नहीं हुई. आंखिर कैसे? मगर जन आन्दोलनों का ही दवाब था क आज रणवीर सेना कहीं नहीं है. उमर ने कहा कि हमारा आन्दोलन छात्रों तक सीमित नहीं है. हमारे आन्दोलन का जुड़ाव समाज में चल रहे दूसरे जन आन्दोलनों के साथ भी है. उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर की सरकार राज्य की ताकत का इस्तेमाल कर असहमत विचारों को चुप कराने के लिए कर रही है. नजीब के लापता होने के बाद जे.एन.यू में एक ख़ास समुदाय के विद्यार्थियों में दहशत का माहौल है. उन्हें डराया और धमकाया जा रहा है.
हमारी लड़ाई जाति व्यवस्था को ख़त्म करने की है : डोंथा प्रशांत
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के रोहित वेमुला के साथी और अम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन के प्रतिनिधि डोंथा प्रशांत ने कैंपस में दलित विद्यार्थियों के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में विस्तार से बात की. उन्होंने अम्बेडकर को याद करते हुए कहा कि हमने कैंपस में आत्मसम्मान के आन्दोलन की शुरुआत की. जब हमने देश के अलग अलग हिस्सों में दलितों, अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले के खिलाफ आवाज़ उठाई तो हमारी आवाज़ को कुचलने कि हर मुमकिन कोशिश की गयी. हमारे विचार डा अम्बेडकर के विचार हैं. आज इसी विचार को कैम्पस में खतरनाक और राष्ट्र के खिलाफ माना जा रहा है. रोहित की मौत संस्थानिक हत्या का एक जीता जागता उदाहरण है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का माहौल हमारे लिए जेल के माहौल से भी बदतर है. हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि जाति ख़त्म करने की लड़ाई लड़ी जाए. यही डॉक्टर आंबेडकर का ख्वाब था और रोहित का सपना भी. हमारे लिए जाति ख़त्म करने का मतलब भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य का अधिकार और लैंगिक समानता भी है.
जानवरों की तरह जी रहें हैं बस्तर के आदिवासी : सुनीता
बस्तर की सुनीता ने बेगुनाह आदिवासियों पर हो रहे ज़ुल्म की दास्तान सुनाई. उसने बताया कि किस तरह आम आदिवासियों को पुलिस पकड़ कर ले जाती है और उसे नक्सली बता कर मार देती है. महिलाओं के साथ यौन हिंसा की जा रही है. आदिवासी जंगलों में जानवरों कि तरह डर और छिप कर रह रहे हैं.
ट्रांसजेंडर को भी मिले संवैधानिक हक: ग्रेस बानो
तामिलनाडू से आई ग्रेस बानो देश की पहली दलित ट्रांसजेंडर इंजिनियर हैं. उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर भी इंसान हैं और संविधान ने उन्हें भी बाकी लोगों जैसा सामान अधिकार दिया है. लेकिन हमें वे अधिकार नहीं मिल रहे हैं. ट्रांसजेंडर के लिए जो नया कानून बनाने की कोशिश हो रही है उसमें कई खामियां हैं इसलिए हमारी मांग है कि इसे बनाने में हमारी भागेदारी भी होनी चाहिए. उन्होंने सम्मेलन में मौजूद लोगों से ट्रांसजेंडर के प्रति होने वाले भेदभाव पर चुप्पी तोड़ने की अपील की. ग्रेस का कहना था कि मौन भी एक हिंसा है.
नफरत की राजनीती के खिलाफ सतत प्रयास जरूरी : आशीष
बिहार में काम कर रहे जन जागरण शक्ति संगठन के आशीष ने कहा की विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार की ज़मीन पर नफरत के बीज बोने की खूब कोशिश की गयी. मगर जनआन्दोलनों से जुड़े लोगों ने इस नफरत की राजनीती के खिलाफ गाँव गाँव अभियान चलाया. इसका नतीजा हमें चुनाव में देखने को मिला और नफरत फैलाने वाली ताकतें परास्त हुई. यह ताकतें चुनाव में भले हारी हों लेकिन वे आज भी सक्रिय हैं और जनता को बांटने में लगी हैं. हम जब तक इकट्ठे इन शक्तियों के खिआफ सतत अभियान नहीं चलाएंगे तब तक इन्हें असली पराजय नहीं मिलेगी.
राष्ट्रीय सेवा दल के सुरेश खेरनार ने कश्मीर के मौजूदा हालात की विस्तार से चर्चा की.
उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोगों की समस्या के लिए हम सब को आगे आना होगा. उनकी आवाज सुननी होगी. उन्हे अपना राह चुनने की आजादी मिलनी चाहिए. उन्होंने 23 मार्च को कश्मीर चलने का आह्वाहन किया. इनके अलावा उड़ीसा के लिंगराज भाई ने मलकानगिरी, वेणुगोपाल ने केरल में, समर बागची ने बंगाल में चल रहे संघर्ष के बारे में बताया.
तीन दिनों का यह सम्मेलन पटना के ऐतिहासिक अंजुमन इस्लामिया हॉल में 2 दिसम्बर को शुरू हुआ. इस सम्मेलन में 20 राज्यों के 200 से ज्यादा जन आन्दोलनों से जुड़े संगठनो के लगभग 1000 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं| सम्मेलन “अस्मिता अस्तित्व और जन आन्दोलन” पर केन्द्रित है | सम्मेलन में 5 अलग-अलग सत्रों में अलग अलग मुद्दों पर गहन चर्चा हुई|
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महेंद्र यादव 9973936658, आशीष 9973363664, हिमशी 9867348307