रुचि भल्ला की कविताएं

रुचि भल्ला

विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
संपर्क : 09560180202, Email:Ruchibhalla72@gmail.com



राजपथ को गई लड़की

पीपल का पेड़
रहता होगा उदास
तेरे घर की खिड़की को रहती होगी
तेरे आने की आस
छत पर टूट -टूट कर बिखरती होगी
धूप की कनी
जहाँ तुम खेला करती थी नंगे पाँव
चाँद को आती होगी तुम्हारी याद
घर का कोना होगा खाली
तुम्हारे होने के लिए

एक रात मेरी नींद में उतर कर
मेरे राष्ट्राध्यक्ष ने बतलाया
तारकोल का काला – कलूटा राजपथ
रोता रहा कई दिन कई रात
तुम्हें निगलने के बाद

धर्म – अधर्म

जब कोई भूखा दे तुम्हें
दो रोटियों के लिए दस्तक
सुनो , तुम दरवाज़ा न खोलना
कोई फायदा नहीं इसमें
वह क्या लौटाएगा तुम्हें
इस जीवन बाज़ार में ।

लेकिन याद करके
हर पूर्णिमा , अमावस्या
अपने देव-पुजारी को न्योतना
जी भर देना पकवानों से
फिर बंधवा देना उसकी अंगोछी
तन पर छाता की तरह उभरे
पेट के लिए ।

वस्त्र देना
ताकि ढँक ले
अपने अंदर का कालापन
नकद देना
वह बाज़ार लाएगा
अपने घर
अपनी ओर खींचने के लिए
हमारी बेटियां

न्यूटन ……सेब और प्यार का फ़लसफ़ा 

जब तुम याद करते हो
स्तालिन लेनिन रूसो गाँधी
सुकरात टैगोर सिकंदर को

मैं उस वक्त याद करती हूँ न्यूटन को
देखती हूँ सपने न्यूटन के
सपने में धरती मुझे सेब का बगीचा दिखती है

न्यूटन बैठा होता है एक पेड़ के नीचे
और मैं उस पेड़ के पीछे
दुनिया वालों ! जब तुम खरीद रहे थे सेब
उलट-पुलट कर उसे खा रहे थे
ले रहे थे स्वाद कश्मीरी डैलिशियस
वाशिंगटन गोल्डन एप्पल का

ठीक उसी वक्त न्यूटन के हाथ भी एक सेब लगा था
सेब के ग्लोब को उंगली से घुमाते हुए
उसे मुट्ठी में मंत्र मिला था ‘ग्रैविटी फोर्स’
जब तुम सो रहे थे मीठा स्वाद लेकर गहरी नींद

न्यूटन ने सेब की आँख से
आसमान को धरती पर झुकते हुए देखा
धरती का आसमान की ओर खिंचाव देखा था
तुम नहीं समझोगे इस प्यार को
एडम ईव की संतानो !

माफ़ीनामा

मैं क्षमाप्रार्थी हूँ
दुनिया के सारे बच्चों के प्रति
कि उन्हें मारा गया छोटी -छोटी बातों पर
हाथ उठाया उनकी छोटी गल्तियों पर
उन्हें चोट देते रहे

जबकि बड़ी मामूली सी बातें थीं
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टूटने की तरह नहीं था
उनके हाथ से काँच के गिलास का टूट जाना

और बच्चों ! जब तुमने स्कूल का काम
नहीं पूरा किया
लाख सिखाने पर पहाड़े नहीं याद किए
बाबू जी की छड़ी छुपा दी
टीचर के बैठने से पहले उनकी कुर्सी हटा दी
ताजा खिला गुलाब तोड़ डाला
स्पैंलिग मिस्टेक पर नंबर गंवा दिए
खो दिए ढेर पेंसिल रबर
कॉपी के पन्नों से हवाई जहाज उड़ा डाले
इतनी बड़ी तो नहीं थीं तुम्हारी गल्तियां
कि हमने तुम्हें जी भर मारा

मेरे बच्चों आओ ! मेरे पास आओ !
मैं पोंछना चाहती हूँ तुम्हारे भीगे हुए चेहरे
रखना चाहती हूँ तुम्हारी चोटों पर मरहम
मेरे बच्चों आकर मुझे माफ करो

हमने अब तक सिर्फ मासूमियत को मारा
हमने उन्हें नहीं मारा जहाँ उठाने थे अपने हाथ
वहाँ ताकत नहीं दिखलाई
जहाँ दिखलाना था अपने बाजुओं में दम
वहाँ हम खड़े अवाक रह गए …

बच्चे ….बचपन और दुनिया

अच्छे लगते हैं बच्चे
कि बच्चों के पास होते हैं
गुब्बारे पतंगें कंचे
नहीं होती हैं उनके पास बड़ी -बड़ी बातें
उन्हें चाहिए फूल तितली चाँद
खिलौने बादल चिड़िया
उन्हें अच्छे लगते हैं उड़ते कबूतर
उन्होंने जाना है ‘ क ‘ से होता है ‘कबूतर ‘
अभी छोटे हैं बड़े होकर जानेंगे
‘क ‘से ‘क्रांति ‘
‘क’ से होता है क्या -क्या
बच्चे छोटे हैैं और बड़े हो जाना चाहते हैं
जबकि जानते नहीं बड़े होकर खो देंगे
अपना बचपन और बड़प्पन
काश! छोटी ही रह जाती दुनिया
छोटे बच्चों की छोटी दुनिया
बड़े होकर हमने हासिल भी क्या कर डाला
दुनिया को बहुत बड़ा बना डाला
छोटी होती तो बची रहती
बचे रहते बच्चे
बचा रहता दुनिया का बचपना …..

सुनो प्रज्ञा !

जब भगत सिंह को तेईस साल में
फांसी दी जा रही थी
पाश को सैंतीस साल में
गोली मारी जा रही थी
हम-तुम दोनों उस वक्त धरती के गर्भ में पड़े रहे
मिट्टी की पर्त को खुरचते रहे अपने नाखूनों से
ज़ुबान पर गीली मिट्टी का स्वाद फिराते रहे
ये मिट्टी तो शहादत की मिट्टी थी
हम दोनों को हजम कैसे हो गई
इसे खाने के बाद भी
हम दोनों जी रहे हैं चालीस के पार
जी रहे हैं और बूढ़े होते जा रहे हैं
जबकि मृत्यु का उत्सव तो जवानियाँ
कब का मना चुकीं

सुनो प्रज्ञा !

यह वक्त कविता लिखने का नहीं
पाश हो जाने का है
कलम के तलवार होने का है
पाश की आत्मा से रिसते लहू की स्याही में तुम
अपनी तलवार भिगो दो
दुनिया के हर पुर्जे पर तुम पाश लिख दो
लिख दो इस तरह से कि धरती पर बिखर जाए
रंग लाल पाश का
आसमान में बिखर जाए
कविताओं के लाल गुलाल का
लिखो कि इससे पहले तुम्हारी तलवार
कहीं धार न खो दे
इससे पहले तुम विशुद्ध कवि न रह जाओ
तुम्हें लिखना होगा प से पाश
उदास मौसम के खिलाफ

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