दलित महिला उद्यमिता को संगठित कर रही हैं सागरिका

नवल किशोर कुमार

स्त्री नेतृत्व की खोज’ श्रृंखला के तहत आज मिलते हैं  सागरिका  चौधरी  से. दलित महिलाओं  की उद्यमिता को  संगठित करने में जुटी  सागरिका के बारे में बता रहे हैं  अपना  बिहार के संपादक नवल  किशोर  कुमार 

देश की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढी है। लेकिन बिहार जैसे पिछड़े राज्य की मुख्य धारा की राजनीति यानी सत्ता की राजनीति में महिलाओं की इंट्री अभी भी अनुकंपा के तर्ज पर ही होती है। महिला सशक्तिकरण के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले दलों में तरजीह उन महिलाओं को ही मिलती है, जिनके पति या पिता की उल्लेखनीय राजनीतिक पृष्ठभूमि रही हो।

बिहार में महिला नेताओं की सूची पर नजर डालें तो स्थिति की विषमता का सहज ही मूल्यांकन
किया जा सकता है। लेकिन इसी राजनीतिक विषमता के बीच हाल के वर्षों में स्थिति पूरी तरह बदली है। सागरिका चौधरी इसका आदर्श उदाहरण हैं। मूल रुप से महादलित समाज की सागरिका चौधरी वर्तमान में जदयू से जुड़ी हैं। वे पटना विश्वविद्यालय में सिंडिकेट की मेम्बर के अलावा दलित उद्यमियों के संगठन डिक्की के प्रदेश इकाई की उपाध्यक्षा भी हैं। उद्यमिता के जरिए बेहतर बिहार के अपने सपने को अंजाम देने में जुटी सागरिका बिहार उद्यमिता संघ से भी जुड़ी हैं। इन दिनों वे दलित महिला उद्यमियों को संगठित कर उनके बीच उद्यमिता को बढ़ावा दे रही हैं. सागरिका ने हाल ही में चीन के गुझाउ प्रांत में उद्यमियों के सम्मेलन में बिहार का प्रतिनिधित्व भी किया।

अपने बारे में सागरिका चौधरी बतलाती हैं कि उनका जन्म नवादा में मुन्द्रिका चौधरी के घर में हुआ था। पिता का मूल पेशा पारंपरिक यानी ताड़ के पेड़ से ताड़ी उतारना और उसे बेचना था। लेकिन वे शिक्षा को लेकर बहुत जागरुक थे। अपने जीवन की एक दुखद घटना के बारे में सागरिका ने बताया  कि वर्ष 1992 में उनके पिता ताड़ के पेड़ से गिर गये और उन्हें छह महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा। उसी दौरान शेखपुरा में रहने वाले मामा जो कि अभियंता के पद पर कार्यरत थे, ने पूरे परिवार को संभाला और फ़िर हमारी पढाई-लिखाई पूरी हुई।

चीन के गुझाउ प्रांत में उद्यमियों के सम्मेलन में

उन्होंने अपनी इंटर तक की पढाई शेखपुरा में पूरी की और बाद में पटना वीमेंस कालेज से ग्रेजुएशन किया। शोध कार्य में दिलचस्पी थी, इसलिए आईएचडी ( इन्स्टीच्यूट फॉर ह्यूमैन डेवलपमेंट, नई दिल्ली) के साथ जुड़कर काम किया। सागरिका बताती हैं कि कालेज में ही उन्हें जेआरएफ़ मिला। उसी दौरान उन्होंने बालेन्दू शेखर मंगलमूर्ति के साथ अंतरजातीय शादी की। श्री मंगलमूर्ति स्वयं भी आईएचडी से जुड़े थे।

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सागरिका बताती हैं कि अंतरजातीय विवाह करने का खामियाजा उन्हें भी भुगतना पड़ा। उनके अपने पिता और भाईयों ने उन्हें भूला दिया है। एक छोटे भाई हैं जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में इकोनामिक्स के छात्र हैं, वहीं अब उनके साथ संपर्क में रहते हैं। हालांकि सागरिका बताती हैं कि उन्हें इस बात का मलाल नहीं है।  पति बालेन्दू शेखर मंगलमूर्ति और उनके पूरे परिवार ने उन्हें बहू से अधिक बेटी के रुप में स्वीकार किया। वे बताती हैं कि यदि मैंने अपनी जाति में शादी की होती तो संभवतः किसी डाक्टर या इंजीनियर के घर में उसके लिये खाना बना रही होती।

सागरिका बताती हैं कि राजनीति उन्हें प्रारंभ से प्रभावित करता था। लेकिन जब बात फ़ुलटाइम राजनीति करने की शुरु हुई तो वैचारिक रुप से नीतीश कुमार जी की राजनीति सबसे अधिक प्रभावकारी प्रतीत हुई, “हालांकि उन दिनों सभी यह कहते थे कि नीतीश कुमार डूबते हुए नाव हैं। लेकिन मैंने ठान लिया था।” सागरिका के अनुसार  जदयू के एक कार्यकर्ता के रुप में उन्हें काम करते हुए बहुत अधिक समय नहीं बीता है। लेकिन जिस तरीके से दल के अंदर महिला राजनीति मजबूत हुई है, वह उल्लेखनीय है।

बहरहाल, सागरिका की राजनीतिक कार्यशैली गैर पारंपरिक है। वे किसी पैरवी के बुते नहीं बल्कि अपनी कार्यक्षमता और दक्षता के बुते राजनीतिक मुकाम हासिल करना चाहती हैं और वे इसके लिए प्रयत्नशील भी हैं। वे बाबा साहब डा भीम राव आंबेडकर को अपना आदर्श मानती हैं। वे चाहती हैं कि बदलाव का असली बिगूल तो गांवों में फ़ूंका जाना चाहिए, जहां महिलायें आज भी मध्यकालीन परिस्थितियों के बीच जीने-मरने को विवश हैं। यही उनकी राजनीति का आधार भी है।

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नवल किशोर कुमार बिहार की पत्रकारिता में एक प्रमुख नाम हैं. वे अपना बिहार पोर्टल के संपादक भी हैं. 

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