ममता कालिया की कहानियों में दाम्पत्य- संबंधों में द्वन्द्व

डॉ. चरणजीत सिंह सचदेव

एसोसिएट प्रोपफेसर, हिंदी विभाग श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज,दिल्ली विश्वविद्यालय. संपर्क :मोबाईल 9811735605

संबंधों का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है. संबंध दो प्रकार के होते हैं- एक तो खून के जैसे- माता, पिता, पुत्र, बहन, भाई आदि. दूसरा कुछ संबंध समाज में बनते हैं जैसे- मित्र के साथ, पत्नी के साथ आदि. दाम्पत्य संबंध व्यक्ति के द्वारा जोड़े जाते हैं. जिन्हें समाज की स्वीकृति प्राप्त होती है. भारतीय समाज में गृहस्थ आश्रम का आधार दाम्पत्य संबंध ही होते थे. प्राचीन काल में दाम्पत्य संबंधों में रिक्तता होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है क्योंकि इन्हें एक नहीं कई जन्मों का संबंध माना जाता है.

आधुनिक काल में अनेक परिवर्तनों के कारण सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन हुए. इसी के अंतर्गत विवाह का स्वरूप भी बदलता चला गया. संबंधों में सबसे अधिक समस्या दाम्पत्य संबंधों की देखने को मिल रही है. स्त्री-पुरुष दोनों ही कार्य कर रहे हैं. घर पर अधिक समय एक-दूसरे को नहीं दे पाते. जिससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं. संयुक्त परिवार में संबंधों में आए बिखराव के कारण दाम्पत्य संबंधों में भी बिखराव एवं कड़वाहट की स्थिति आ गई है. आज पति-पत्नी का आदर्शवादी संबंध लुप्त होता जा रहा है. शिक्षा प्राप्त कर स्त्री की आधुनिक सोच महत्वाकांक्षी हो गई है. वह अपने अधिकारों, कर्तव्य, भावना को तर्क की कसौटी पर परखना चाहती है. वह पति की आज्ञा को आँख मूँद के नहीं विश्वास करती बल्कि तर्क-वितर्क कर वाद-विवाद करती है. स्त्री अब भावना के स्तर पर न सोचकर बौद्धिकता के स्तर पर सोचती है. कहा जाता है कि आज के युग में विवाह आध्यात्मिक लाभ, समाज-कल्याण और लोकोपकार की भावना से नहीं किया जाता, बल्कि भौतिक समृद्धि, भावात्मक तथा एन्द्रिक संतुष्टि के लिए किया जाता है. वैयक्तिक हितों व लाभों की ओर आधुनिक मनुष्य का आग्रह बलवान है तथा विवाह-बंधन को ‘स्व’ का होम करके निभाने का आग्रह क्षीण है. पति-पत्नी दो विभिन्न इकाइयां बनकर, अपने अपने स्वार्थ में खोकर, अपनी व्यक्तिगत खुशियों को पूरा करने की कोशिश में एक दूसरे को कुंठित करते हैं और परिणामतः संबंधों में तनाव पनपता है.1 कहानी ‘उनका जाना’ में ममता कालिया ने दाम्पत्य संबंधों में रिक्तता के कारण आयी कड़वाहट, निराशा, अकेलेपन की टीस की समस्या को दिखाया गया है. समाज एवं परिवार के सामने तो पति-पत्नी सभ्य परिवार का उदाहरण देते हुए नजर आते हैं. अकेले में वही पति-पत्नी एक दूसरे की शक्ल भी नहीं देखना चाहते हैं. लेखिका मालती जोशी ने अपनी कहानी ‘उसका जाना’ में यही कड़वाहट को दिखाने का भरसक प्रयास किया है. कहानी मध्यवर्गीय परिवार की है. पति-पत्नी के अलावा एक बेटी और एक बेटा है. बेटी मुन्नी और बेटा मुन्ना दोनों विवाहित है. परिवार में पिता का हुक्म चलता है. पिता जैसा कहते हैं परिवार के सभी सदस्य बिना किसी रोक-टोक के उनके अनुसार उनके कहे पर चल पड़ते हैं. आस-पड़ोस के सभी लोग उन्हें आदर्शवादी परिवार के रूप में देखते एवं जानते हैं. परिवार में बेटी मुन्नी और बेटा मुन्ना को भी अपने माता-पिता को देख ऐसे ही प्रतीत होता है. वह दुनिया के सबसे सुलझे हुए आदर्श माता-पिता हैं. मुन्नी अपने बड़े भाई से कहती है कि मुन्नी माँ पापा की किसी भी बात को नहीं टालती. जैसा वे कहते हैं वैसा ही वे मानती है.

एक दिन मुन्नी अपने पति एवं बच्चों के साथ घुमने के लिए किसी हील-स्टेशन पर जाती है. हील-स्टेशन के खुशनुमा वातावरण का लुत्फ उठा रही होती है अचानक पापा का फोन आता है कि ‘‘मुन्नी तू कहाँ है, जल्दी आ. तेरी माँ मर रही है.’’2 यह खबर सुनते ही मुन्नी के पैरों तले जमीन ही खिसक जाती है. एकाएक ऐसा क्या हुआ, अनेक विचार मन में आते थे. माँ की ऐसी खबर सुनते ही वह अपने घर की ओर रवाना हो जाती है. मुन्नी घर आते ही पिताजी से अनगिनत सवाल पूछती है. पिताजी मुन्नी को कहते हैं ‘‘पहले पागलों जैसी बातें कर रही थी. अचानक चुप हो गयी पाषाण-प्रतिमा की तरह. फिर तो बस बेहोशी में चली गयी. डॉक्टर कहता है रक्तचाप बढ़ने से ब्रेन हेमरेज हुआ है. अब कितने दिन कोमा में रहेगी, कुछ नहीं पता.’’3 मुन्नी पिताजी की बात सुन सदमें में आ जाती है. पिताजी की हालात भी मुन्नी से देखी नहीं जा रही थी. मुन्नी सोचती है पिताजी माँ को कितना प्यार करते हैं. पिताजी चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं. मुन्नी पिताजी से पूछती है कि पिताजी माँ की एकदम हालत ऐसे कैसी हो गई. पिताजी ने मुन्नी की बात को अनसुना कर दिया. मुन्नी ने फिर से वही बात दोहराई पिताजी जोर से बोले ‘‘तू थाना है या कचहरी. मैं स्पष्टीकरण दूँ, यह चाहती है तू? तेरा स्टाफ नहीं हूँ मैं, समझी.’’4 मुन्नी पिता को देख अचंभित हो गई. मन ही मन सोचने लगी मैंने ऐसा क्या प्रश्न किया, जिससे पिता जी आग-बबूला हो गए मैंने अपने मुँह पर चुप्पी का ताला लगा लिया. मुन्नी को माँ की चिंता हो रही थी. ऐसा क्या हुआ होगा जिसने माँ को कोमा तक पहुँचा दिया. पिताजी भी कुछ ढंग से नहीं बता रहे हैं. मुन्नी ने पिताजी को दिलासा देते हुए समझाया. सब ठीक हो जाएगा. पिताजी को कुछ देर आराम करने के लिए कहा. एकाएक वॉर्डबाय भागता हुआ आया और मुन्नी से बोला- ‘‘आपके मरीज को होश आ गया.’’5 मुन्नी बेहताशा दौड़ती हुई माँ के कमरे में पहुँची. माँ को देख मुन्नी की आँखे नम हो आयी. माँ ने मुन्नी की तरफ देखा और बोली- ‘‘बहुत भूख लग रही है.’’6 मुन्नी घर से माँ के लिए जूस और खीर बनाकर लाई थी. उसने माँ को जल्द से उसे खिला एवं पिला दिया. माँ मुन्नी को एक टक देखती रही. मुन्नी ने माँ से कहा, माँ पिताजी को बुला लाती हँू. माँ ने तुंरत उत्तर देते हुए कहा- ‘‘खबरदार जो उन्हें बुलाया. मैं इनकी चिक-चिक से तंग आ गई हूँ. इतनी उम्र मेरी हो गई, अपनी मन-मर्जी का कुछ नहीं किया. तू और तेरा भाई भी उन्हीं का राग अलापते रहे. अपनी मनमर्जी से मर तो लेने दे मुझे.’’7 मुन्नी माँ की बातों को सुन सकते में आ गई. माँ क्या बोले जा रही है. मुन्नी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. माँ को ऐसे बर्ताव करते पहले कभी नहीं देखा था. माँ के चेहरे पर इतनी बैचेनी, बौखलाहट आज से पहले कभी भी नहीं देखी थी. माँ फिर से बोली ‘‘चुप बैठूँ तो चैन नहीं, बोलूँ तो ये बरसे. एक ही घर में मैं कहाँ चली जाऊँ. तेरे पापा तो झक्की हो गये हैं. सारा दिन सैर करें. कभी कहें मथुरा चलो वही रहेंगे, कभी कहे मुन्ना के यहाँ रहेंगे.’8 तेरे पापा ने कभी भी मेरी नहीं सुनी. हमेशा जो उनके मन को अच्छा लगा वे वही सब करते आए हैं. मुझसे भी जबरदस्ती वही करवाते आए हैं. मेरी इच्छाओं को कभी भी मान-सम्मान नहीं दिया है. शुरू से अब तक कठपुतली सा जीवन मैंने जिया है. आखिर कब तक ऐसा करती या सुनती. सब्र का बाँध टूट गया मुन्नी. मुन्नी हैरानी से माँ को देखती रही और बोली, माँ ‘‘उनकी बातों को थोड़ा अनसुना किया करो मम्मी. तुम्हीं ने उन्हें सिर चढ़ाया है.’’9 मुन्नी माँ से कहती है माँ आपने पहले कभी भी इस बात को कभी भी, जिक्र नहीं किया. आपके संबंधों में इतनी खालीपन एवं कड़वाहट आ गई है. माँ मैं क्या कहती बेटा, मुझे लगा कभी तो मेरी भावनाओं को समझेंगे. हमेशा अपनी ही डपली, अपना ही राग अलापते रहे. मैं बहुत दुखी हूँ. शायद यह दुःख मेरे अन्तर्मन में समा गया है. इसी के कारण मुझे दिल का दौरा पड़ा है. मेरा मन ऐसा जीवन जीने से भर गया है. मैं जीना नहीं चाहती. बस अब मुझे मौत अपनी आगोश में ले. मुन्नी, माँ ऐसा मत कहिये. नहीं मुन्नी अब जीवन जीने की इच्छा ही समाप्त हो गई है. कहानी ‘उसका जाना’ में लेखिका ममता कालिया ने दाम्पत्य संबंधों में आयी कड़वाहट, मजबूरी एवं रिश्तों में अकेलेपन की टीस को लेखिका ने दिखाया गया है. लेखिका ने संबंधों में मान-सम्मान की भावना का होना अत्यंत आवश्यक रूप से बताया है. एक साइड तवे पर पड़ी रोटी भी जल जाती है. कहने का तात्पर्य यह है कि संबंधों में (स्त्री-पुरुष) दोनो तरफ इच्छाओं को ध्यान में रखकर ही संबंधों को आगे बढ़ाया जा सकता है, अन्यथा संबंधों में प्यार की जगह झल्लाहट उत्पन्न हो जाती है.



लेखिका ने कहानी ‘दाम्पत्य’ में पति-पत्नी के बीच मन-मुटाव की स्थिति-परिस्थिति की समस्या को चित्रित किया है. पति आलोक और पत्नी सुनीता की शादी को विगत 20 वर्ष हो गए हैं. एक पुत्र भी है जो लगभग 15 वर्ष का है. पति-पत्नी के रिश्ते में रोमांस बिल्कुल खत्म हो गया है. पत्नी सुनीता घर के कामों से इतनी थक जाती है. पति आलोक चाहकर भी उन परेशानियों से सुनीता को बाहर नहीं निकाल पाता. पति-पत्नी के जीवन में प्यार की जगह पीड़ा, कुंठा एवं कड़वाहट ने ले ली है. आलोक बहुत बार प्रयास भी किया. सुनीता पर इसका कोई असर नहीं होता. आलोक का कई बार मन होता. वह अपनी जिंदगी पहले की तरह जिए. आलोक ने कई बार कोशिश भी की. सुनीता के साथ घुमे-फिरे. सुनीता अपने में ही रमी रहती. आलोक की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता. आलोक भी यह कहते-कहते थक गया. अब मन नहीं होता था कि वह सुनीता को कुछ भी बोले. आलोक कहता है कि- ‘‘बीस साल के संग साथ की यह इंतिहा थी कि उसकी पत्नी मुहब्बत को मशक्कत कहने लगी थी. उसने कई बार चाहा, सुनीता को इस बात के भौंडेपन से सचेत करे, लेकिन हर बार उसके चेहरे की चिड़चिड़ाहट, थकान और झाइयाँ देख चुप रह गया.’’10 सुनीता दिन-भर मर खपने के बाद मन प्यार, के नाम से चिढ़ होने लगी. सुनीता और आलोक के विचार एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे. आलोक हर बात को मजाक में ले जाता था. सुनीता को आलोक की इन हरकतों से वह अक्सर परेशान रहती थी. पति-पत्नी में दिन-रात कलेश होने लगा. आलोक भी पत्नी सुनीता के रवैय से खुश नहीं था. आलोक को इस बार महसूस हुआ कि उसका दाम्पत्य जीवन ठीक नहीं चल रहा. लेखिका ममता कालिया ने ‘दाम्पत्य’ कहानी में संबंधों में आई बैचेनी को दिखाया है. शादी के कुछ सालों में ही पति-पत्नी के संबंधों में उदासी आ गई है. संबंध केवल सहयोग, सहानुभूति एवं सहनशक्ति के रूप में दिखाई देते हैं. प्यार प्रायः समाप्त ही हो जाता है.

कहानी ‘वर्दी’ में लेखिका ममता कालिया ने पति की क्रुरता को दिखाया है. जिससे संबंधों में खटास आ जाती है. नायक रमाशंकर पुलिस में सिपाही के पद पर आसीन था. रमाशंकर अपनी पत्नी आशा और बेटे राजू के साथ रहता था. रमाशंकर की ड्यूटी त्यौहारों में अक्सर लम्बी एवं सख्त हो जाती है. आशा अपने पति रमाशंकर से बहुत डरती एवं घबराती रहती थी. रमाशंकर के सामने कुछ भी कहने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी. रमाशंकर और आशा पति-पत्नी की तरह नहीं बल्कि चोर-सिपाही की तरह अपनी जिंदगी बिताते हुए नजर आते थे. रिश्ते में प्यार की जगह डर, कड़वाहट एवं द्वेष ने ले ली थी. आशा का मन स्थिर नहीं रहता था. रमाशंकर की बेरूखी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी. आशा कहती है ‘‘उसका पति अन्य आदमियों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही डपटता था. छोटी-छोटी बात पर वह थाली उठा कर फेंक देता, हाथ में जूता उठा लेता या गालियों की बौछार करने लगता.’’11 आशा को अपने पति का व्यवहार एक आँख नहीं भाता था. पति की तानाशाही से वह ऊब गई थी. अपने रिश्ते को बचाने के लिए वह चुपचाप हर बात सहती. आशा को अपने रिश्ते में कोई सुधार की संभावनाएँ नजर नहीं आती थी. एक बेटा था जिसके लिए वह जीती थी. आशा के जीवन में अगर उसका बेटा राजू नहीं होता तो उसका संबंध रमाशंकर से कब का टूट जाता. लेखिका ममता कालिया ने कहानी ‘वर्दी’ में पुरुष की अहम भावना को दिखाया. पुरुष अपने अहम के आगे किसी की इच्छा को महत्त्व नहीं देता. जिसके कारण संबंधों में तनाव आ गया है.



कहानी ‘इरादा’ में ममता कालिया ने पत्नी की व्यथा को चित्रित किया है. नायिका शांति अपने पति शंकर के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी. शांति के घर में उसकी एक बूढ़ी माँ रहती थी. शांति की शादी हो जाने के बाद माँ अकेली और अस्वस्थ रहने लगी. शांति 15 दिन या 1 महीने में माँ से मिलने चली जाती थी. पति शंकर भी उसे बिना रोक-टोक के माँ के पास जाने देता था. शांति के चले जाने से शंकर की माँ को बहुत कष्ट होता. माँ को सारा दिन रसोई घर से जुझना पड़ता. माँ शंकर से शांति को अपने पीहर भेजने के लिए मना करवाती. शंकर माँ के कहे में आकर शांति को पीहर जाने नहीं देता तो शांति गुस्से में आकर कहती है ‘‘मैं क्या इस घर की बंधुआ मजदूर हूँ जो मुझे सुस्ताने का भी हक नहीं, बीमार पड़ने की भी आजादी नहीं.’’12 शांति को अपनी सासू और अपने पति पर बेहद क्रोध आता. शांति ने सोच लिया कि वह अब किसी के दबाब में अपना जीवन नहीं बितायेगी. पति-पत्नी के रिश्ते में अनबन एवं दूरियाँ आने लगी. पति अपनी पत्नी पर माँ के कहने पर हमेशा दबाब बनाने लगा. माँ जैसा कहती शंकर बिना कुछ जाँच-पड़ताल किये बिना शांति को उल्टा-सीधा कह देता. शांति का मन अस्थिर रहने लगा. शांति ने मन अपने को स्थिर करते हुए अपने आपको संभाला. पति शंकर ने शांति से दूरी बनाने का फैसला कर लिया था. शांति ने भी पति की सहमति का साथ देते हुए कहा ‘‘रात मैंने सोचा था, मैं नहीं जाऊँगी, पर अब मेरा इरादा बदल गया है. मैं अगली गाड़ी से जा रही हूँ. अब जब तुम्हारा दिमाग एकदम ठीक हो जाएगा, तभी वापस आऊँगी.’’13 शांति ने मन में ठान लिया. वह घर तभी लौटेगी जब पति शंकर उसे वही मान-सम्मान देगा. शंकर ने भी शांति को कुछ नहीं कहा, जाते समय. लेखिका ममता कालिया ने मध्यवर्गीय परिवार की समस्याओं को उठाया है.

कहानी ‘बोलने वाली औरत’ में नायिका दीपशिखा की हाजि़र जवाबी के कारण परिवार से हमेशा लड़ाई झगड़े द्वंद्व एवं रिश्तों में कड़वाहट उत्पन्न होती है. पति कपिल और दीपशिखा कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे. दोनों में प्रेम संबंध होने के कारण जल्द ही शादी के बंधन में बँध जाते है. शादी के बाद कपिल और दीपशिखा आपसी समझ के कारण परिवर्तन आने लगा था. दीपशिखा का बात-बात पर परिवार के सदस्यों से नोक-झोंक होती रहती. कपिल को दीपशिखा की यह बात अच्छी नहीं लगती. कपिल दीपशिखा को समझाता कि ‘‘तुम माँ से क्यों उलझती रहती हो दिन भर’’.14 दीपशिखा कपिल को कहती है मैं नहीं उलझती तुम्हारी माँ ही कुछ ना कुछ कमी निकालती रहती है. कपिल को दीपशिखा की बात पर और गुस्सा आ जाता है. आक्रोश में वह बोलता है कि- ‘‘तुमने माँ को इम्परफेक्ट कहा. तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम हमेशा ज्यादा बोल जाती हो और गलत भी.’’15 दीपशिखा को कपिल की बात अच्छी नहीं लगी. हमेशा संबंधों में स्त्री को ही क्यों झुकना पड़ता है. गलती हो या नहीं हो कमी औरत ही निकाली जाती है. पति के घर के सभी सदस्य या चाहे वह बिना तर्क के आधार पर बात करे. एकदम सही हम तर्क के आधार पर बात करें गलत क्यों? कपिल को दीपशिखा की हाजिर जवाबी से पहले भी चिढ़ थी. वह दीपशिखा को बहुत समझाने का प्रयास करता. दीपशिखा को जो ठीक लगता. वह वही बात करती. दोनों के बीच संबंधों में तनाव एवं कड़वाहट उत्पन्न होने लगी. दीपशिखा कपिल के कठोर व्यवहार से परेशान थी. मन और दिमाग के बीच अच्छी खासी दूरी आ गई थी. मन जिस बात को स्वीकारने से मना करता. दिमाग उसी बात पर डटे रहना चाहता.

एक दिन दीपशिखा अपने सवालों में उलझी परेशान सोचती है ‘‘एक इंसान को प्रेमी की तरह जानना और पति की तरह पाना कितना अलग था. जिसे उसने निराला समझा वही कितना औसत निकला. वह नहीं चाहता जीवन के ढर्रे में कोई नयापन या प्रयोग. उसे एक परंपरा चाहिए जी हुजूरी की. उसे एक गंधारी चाहिए जो जानबूझकर न सिर्फ अंधी बनी रहे बल्कि गूँगी और बहरी भी.’’16 पति हमेशा से पत्नी को गूँगी और बहरी बनने के लिए ही परामर्श देता रहता है. उसकी कोई पहचान नहीं बनने देना चाहता परिवार या समाज में. दीपशिखा अपने और कपिल के संबंध से दुःखी है. उसने शादी केवल जी हुजूरी के लिए नहीं की थी. पढ़ी-लिखी होने के बाद भी स्त्री आज भी अपने संबंधों को बचाए रखने के लिए अपना अस्तित्व दाव पर लगा देती है. संबंधों में चाहे कितनी भी कड़वाहट भरी हो पर साथ नहीं छोड़ती. लेखिका ममता कालिया ने संबंधों में विवशता का रूप प्रकट किया है. विवशता भी इतनी गहरी स्त्री का संपूर्ण जीवन उसे सँवारने एवं बचाने में लगा रहता है.

कहानी ‘शक’ में लेखिका ममता कालिया ने वैवाहिक संबंधों में ‘शक’ की बीमारी के आने से बसे-बसाये परिवार भी तबाह एवं निस्ते नाबूत हो जाते हैं. ‘शक’ कहानी में नायक और नायिका के संबंधो में दूरियाँ, तनाव एवं कड़वाहट उत्पन्न हो जाती है. दोनों एक-दूसरे की शक्ल भी नहीं देखना चाहते हैं. ‘शक’ कहानी में नायिका कुमुद सक्सेना की संवेदना को व्यक्त किया है. कुमुद अपने परिवार के खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही थी. अचानक कुमुद और सक्सेना जी के बीच संबंधों में दरार पड़ने लगी. कारण सोसाइटी में नये पड़ोसी के आने से. सक्सेना जी नये पड़ोसी के आने से बहुत प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं. कुमुद के सामने बार-बार नई पड़ोसन की तारीफ करते रहते हैं. कुमुद पति के इस अनचाहे व्यवहार से परेशान हो जाती है. एक दिन सोसाइटी पिकनिक के दौरान सक्सेना ने सभी के सामने परायी स्त्री के खाने एवं सौन्दर्य की प्रशंसा करते देख पत्नी कुमुद के तन-बदन में आग लग जाती है. संबंधों में तभी से खटास एवं कड़वाहट की स्थिति जन्म ले लेती है. कुमुद सक्सेना सोचती है मैं इस पिकनिक में आई ही क्यों. इस पति ने तो सब कुछ बर्बाद कर दिया. पिकनिक के दौरान कुमुद अपने आपे में नहीं रहती, अपनी मित्र मिसेज अग्रवाल के सामने अपने संबंधों में आई कड़वाहट का खुलासा कर देती है. कुमुद कहती है- ‘‘मन कड़वाहट से और जलन से भर गया. इस आदमी से शादी कर सच, उन्हें एक दिन सुख का नसीब नहीं हुआ.’’17 पति ने परायी स्त्री सरिता की तारीफ कर कुमुद की दुखती रग पर जैसे हाथ रख दिया था. कुमुद ने अपनी घर-गृहस्थी बसाने के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था. पति ने कभी मुँह से भी उसकी कोई प्रशंसा नहीं की थी. कुमुद का हृदय जल रहा था. सारा दिन मर-खप के इसके परिवार की सभी जरूरतों को पूरा करती हूँ. अपनी इच्छाओं की भी आहुति देती रही इस पति के लिए. कुमुद तिलमिलाते हुए अपनी वेदना को कहती है ‘‘मैंने क्या नहीं किया इनके लिए, अपना घर छोड़ा, शौक छोड़े, नाते-रिश्ते तोड़े, इनके माँ-बाप का गू-मूत तक उठाया और यह इंसान एक मिनट में तोता चश्म हो गया. वे हल्की-सी कराही, मुझे क्या चूल्हे में जाओ, भाड़ में पड़ो, जब तुम्हें अपनी इज्जत प्यारी नहीं तो मैं कहाँ तक तुम्हें बचाऊँगी. वाह रे मर्द बच्चे, अबला से भी अबला हो गए तुम. तभी शाम को सिर हिला-हिलाकर भजन सुना जा रहा था—.’’18 कुमुद का शरीर शक की बेला में तहस-नहस हो रहा था. इस पति प्राणी के लिए मैंने अपनी पूरी जिंदगी पानी की तरह बहा दी. इस कमजरव के शौक ही नहीं खत्म होते. अब नया शौक आशिकी का चढ़ा है. पति-पत्नी का संबंध प्यार और विश्वास पर टिका होता है, जब वह प्यार शक एवं अविश्वास में बदल जाये तो उस संबंध को कोई नहीं बचा सकता. लेखिका ममता कालिया ने बदलते परिवेश में संबंधों के बदलते रूप को स्पष्ट किया है. पुरुष का परायी स्त्री के प्रति का जो आकर्षण एवं लगाव है. उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया है. संबंधों में अवरोध, दरार, खटास एवं कड़वाहट जरूर उत्पन्न हो गई.

कहानी ‘उत्तर अनुत्तर’ में दाम्पत्य संबंधों में सेक्स के कारण भी पति-पत्नी के रिश्ते में कड़वाहट आ जाती है. नायिका मिसेज खन्ना अपने पति खन्ना जी से बहुत लगाव था. मिसेज खन्ना से खन्ना जी देखने में ज्यादा आकर्षक, सुंदर थे. मिसेज खन्ना के मन में अनेक प्रश्न घुमते फिरते रहते हैं. कहीं मिस्टर खन्ना का कहीं और तो चक्कर नहीं है. मिसेज खन्ना अपनी मित्र गुप्ता जी से कहते हैं- कि ‘‘कितना अजीब है न कि शादी में सफर शरीर से शुरु होकर शरीर तक ही बना रहता है. औरत का शरीर ढ़ला नहीं कि मर्द और जगह मुँह मारने लगता है. बीस बरस, पच्चीस बरस, शरीर से आत्मा तक पहुँचने में आखिर कितने बरस लगते हैं.’’19 मिसेज खन्ना का अपने पति से लगातार सेक्स में रिक्तता आने से संबंधों में नीरसता आने लगती है. पति को तो केवल शरीर से ही मतलब है. नारी की इच्छा-अनिच्छा उसके लिए कोई मयाने नहीं रखती. इस बात पर गुप्तानी भी कहती है- ‘‘आदमी तो शरीर को पूजता है. जब तक शरीर काम आए, उसे सजाने के सौ जतन करता है. देखा था न बनारस वाले पांडे जी ने अपनी पत्नी को कैसे छोड़ दिया, जैसे मैली चादर तन से उतारी हो.’’20 पांडे़ जी केवल अपनी पत्नी को उसके रूप-सौंदर्य के आधार पर चाहते थे जैसे ही सौंदर्य में थोड़ी कमी आई, वैसे ही पति-पत्नी के संबंधों में भी प्रेम के स्थान पर कड़वाहट ने जन्म ले लिया.

‘सीमा’ कहानी की नायिका सीमा अपने पति सुभाष के व्यवहार से संतुष्ट नहीं है. पति चाहता है. घर में सब काम उसकी इच्छा अनुसार हो. पत्नी भी उसकी हाँ में हाँ मिलाती रहे. सीमा का व्यवहार पति सुभाष के विपरीत है. सीमा और सुभाष के संबंध मधुर नहीं है. सुभाष सीमा के हर फैसले में अपनी टाँग अड़ाता है जो कई बार उचित और अनुचित होती है. सीमा अपने पति से परेशान हो कहती है ‘‘इसे किसने बना दिया पति और पिता? न यह शख्स पत्नी को समझता है न बेटी को. दिन पर दिन दोनों के अंदर ध्वंसात्मक और सृजनात्मक शक्ति विद्युत ऊर्जा की तरह संचार कर रही है.’’21

सीमा और उसकी बेटी दोनों ही पिता के अनचाहे व्यवहार से खुश नहीं है. सुभाष भी पत्नी की हाजिर-जवाबी से दुःखी है. सीमा पत्नी वाला कोई काम नहीं करती. घर और बाहर दोनों जगह उसकी पहचान शून्य रूपी है. सुभाष पत्नी सीमा पर व्यंग्य कसते हुए कहता है- ‘‘तुम्हारे हाथ तो कुछ भी नहीं आता. तुमसे तो कुछ भी नहीं होता. बाकी औरतें कितनी अच्छी तरह घर संभालती हैं, जानती हो.’’22 सीमा और सुभाष का संबंध प्यार नहीं समझौते की नींव पर टिका हुआ है. समझौता भी नहीं कहेंगे दोनों एक दूसरे पर दिन-रात व्यंग्य कसते रहते हैं. दाम्पत्य संबंधों में केवल खींचतान, कड़वाहट, तनाव, अकेलापन ही है.

समग्रतः कहा जा सकता है कि ममता कालिया ने अपनी कहानियों में दाम्पत्य संबंधों में आ रहे परिवर्तन को दिखाया है. परिवार में पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति प्यार ना रख कर केवल समझौते के आधार पर ही जीवन जी रहे हैं. पति चाहता है कि घर में उसका ही दबदबा चले लेकिन अब पत्नी भी चाहती है कि उसका मान-सम्मान हक उसे दिया जाए. जिसकी वह अधिकारिणी है. पति उसकी बात की परवाह नहीं करता तो वह भी पति की बात को महत्त्व नहीं देती. आज पति-पत्नी एक-दूसरे से झूठ, धोखा, अविश्वास, छल-कपट और बनावटीपन का मुखौटा लगाये संबंधों को जीना चाहते हैं. विश्वास नहीं है तो संबंधों में रिक्तता, कड़वाहटपन, बोझ, अजनबीपन स्वतः आ जाएगा, जिससे जीना मुश्किल ही नहीं दूभर हो जायेगा. ममता कालिया ने अपनी कहानियों में पति-पत्नी के दाम्पत्य संबंधों में आई बैचेनी, कड़वाहट को विभिन्न पहलुओं से चित्रित किया है.

संदर्भ
1- माडर्न टेªण्डस इन मेरिटल रिलेशन्स, ज्योति बेरॉट, पृ- 65-
2- उसका जाना- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 136
3- उसका जाना- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 136
4- उसका जाना- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 137
5- उसका जाना- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 138
6- उसका जाना- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 138
7- उसका जाना- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 138
8- उसका जाना- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 139
9- उसका जाना- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 140
10- दांपत्य- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 54
11- वर्दी- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 94
12- इरादा- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 117
13- इरादा- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 122
14- बोलने वाली औरत, ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 127
15- बोलने वाली औरत, ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 127
16- बोलने वाली औरत, ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 130
17- शक- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 73
18- शक- ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 73
19- उत्तर अनुत्तर – ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 279
20- उत्तर अनुत्तर – ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 280
21- उत्तर अनुत्तर – ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 295
22- उत्तर अनुत्तर – ममता कालिया की कहानियाँ-1, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2005, पृ॰ 295

स्त्रीकाल का संचालन ‘द मार्जिनलाइज्ड’ , ऐन इंस्टिट्यूट  फॉर  अल्टरनेटिव  रिसर्च  एंड  मीडिया  स्टडीज  के द्वारा होता  है .  इसके प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें : 

दलित स्त्रीवाद , मेरा कमराजाति के प्रश्न पर कबीर

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संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com