गांधी के गाँव से छात्राओं ने भेजा प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को सेनेटरी पैड: जारी किया वीडियो

स्त्रीकाल डेस्क 
महात्मा गांधी के गाँव से छात्राओं ने भेजा प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को सेनेटरी पैड, कहा आप भी फील करें लग्जरी.  जारी किया वीडियो, जिसमें ‘ वनश्री कहती हैं कि ‘यह सरकार की असंवेदनशीलता है कि जहां 50% से अधिक महिलायें अस्वच्छ कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, वहाँ  स्वच्छता के लिए सेनेटरी पैड लेने का अभियान चलाने की जगह उसपर 12% टैक्स लगा रही है.

प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को सेनेटरी पैड के पैकेट भेजने के पहले छात्रायें

महात्मा गांधी के गाँव वर्धा से एक छात्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को सेनेटरी पैड भेजकर सेनेटरी पैड पर 12% जीएसटी लगाने का विरोध किया है. युवा नामक संगठन की कनवेनर वनश्री वनकर और उनकी साथी प्रणाली धावर्दे, रवीना सोनवने, श्वेता पांगुल, प्रिया नागराले और अपेक्षा नागराले ने पैड भेजते हुए अपने वीडियो सन्देश में कहा है कि ‘सरकार ने श्रृंगार के सामान सिन्दूर आदि पर तो जीएसटी नहीं लगाया, लेकिन माहवारी के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े सेनेटरी पैड पर 12% जीएसटी लगा दिया. वित्त मंत्री और प्रधान मंत्री यदि प्राकृतिक रूप से अनिवार्य माहवारी के दौरान स्वच्छता को विलासिता वस्तु, लग्जरी आइटम समझते हैं तो उन्हें भी इसका आनंद लेना चाहिए.’

वनश्री कहती हैं कि ‘यह सरकार की असंवेदनशीलता है कि जहां 50% से अधिक महिलायें अस्वच्छ कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, वहाँ स्वच्छता के लिए सेनेटरी पैड लेने का अभियान चलाने की जगह उसपर 12% टैक्स लगा रही है.

अपने कैबिनेट मंत्री मेनका गांधी और कई महिला सांसदों के विरोध के बावजूद अरुण जेटली ने जब 30 जून के मध्य रात्रि में जीएसटी लागू होने की घोषणा की तो उनमें जीएसटी लागू वस्तुओं में लग्जरी आयटम के तहत 12% तक का टैक्स सेनेटरी पैड पर लगा दिया गया. सेनेटरी पैड पर जीएसटी के खिलाफ पर देश भर की महिलाओं ने ‘लहू पर लगान’ हैश टैग के साथ सोशल मीडिया पर मुहीम चला रखी थी, जिसमें कई सेलिब्रिटीज भी शामिल थीं, लेकिन सरकार ने किसी की नहीं सुनी.

स्त्रीकाल ने सेनेटरी पैड पर लगाये गये टैक्स को जजिया कर से ज्यादा तानाशाह निर्णय बताते हुए लिखा था, ‘ वस्था पुरुषों के द्वारा पुरुषों के लिए संचालन के अधोषित दर्शन से संचालित होती है. स्त्री उसके लिए एक अलग-‘अदर’ पहचान है. न सिर्फ सैनिटरी पैड के सन्दर्भ में बल्कि में अन्य मामलों में भी ‘अलग पहचान’ का यह भाव सामने आता रहता है.

मराठी में सन्देश का वीडियो

अभी नीट की परीक्षा में लड़कियों के अन्तःवस्त्र निकलवाने का प्रसंग भी प्रायः इसी भाव से प्रेरित है, जिसमें लम्बी अभ्यस्तता के कारण महिलायें भी शामिल हो जाती हैं- यानी महिलाओं के खिलाफ महिला एजेंट हो जाती है. जब व्यवस्था एक ख़ास समूह के प्रति उत्तरदायी हो जाती है, तो इस तरह की घटनाएँ होती हैं. कभी तीर्थ यात्रा के लिए हिन्दू यात्रियों पर लगने वाला जजिया कर, जिसे अकबर ने हटाया था, की तरह ही है हिन्दू-हित की बात करने वाली सरकार के द्वारा महिलओं के लिए अनिवार्य सैनिटरी पैड पर कर लगना या बढाना.’

गौरतलब है कि कथित सुहाग के प्रतीक ‘सिन्दूर, चूड़ी’ आदि पर सांस्कृतिक राष्टवाद’ की समर्थक एनडीए सरकार ने जीएसटी नहीं लगाया है, और महिलाओं के स्वास्थय से जुड़े पैड को इस दायरे में रखा है. कंडोम और कंट्रासेप्टीव् पर भी कोई टैक्स नहीं है, जो कि सरकार के राष्ट्रवाद के अपने ढंग और जनसंख्या नियंत्रण के कारण लिया गया निर्णय है, न कि महिलाओं के प्रजनन अधिकार से जुड़कर. सवाल है कि क्या यह मुहीम गांधी के गाँव से शुरू होकर पूरे देश में फ़ैल जायेगा तब सरकार अपने निर्णय पर विचार करेगी?