युवाओं के गायक संभाजी समाज बदलने के गीत गाते हैं

कुसुम त्रिपाठी

स्त्रीवादी आलोचक.  एक दर्जन से अधिक किताबें
प्रकाशित हैं , जिनमें ‘ औरत इतिहास रचा है तुमने’,’  स्त्री संघर्ष  के सौ
वर्ष ‘ आदि चर्चित हैं. संपर्क: kusumtripathi@ymail.com

संभाजी भगत के क्रांतिकारी पोवाड़े के श्रोता-दर्शक चंद बुद्धिजीवी नहीं, बल्कि विशाल व्यापक जनता है जो आज अपने अधिकारों के हनन के लिए तत्पर तंत्र के खिलाफ प्रतिरोध की संस्कृति के समर्थन में लड़ रही है। उनका पोवाड़ा दर्शकों को आनन्दित नहीं करता बल्कि एक मुद्दे को लेकर झकझोरता है और उसे सार्थक दिशा की ओर उन्मुख करता है। उस दिशा की ओर जहां बदलाव और संघर्ष की ताकतें एक जुट हो रही हैं। संभाजी के पोवाड़ा जिसके वे गायक, गीतकार, संगीतकार हैं,  तमाम शोषित, पीड़ित जनता के अन्याय अत्याचार के विरूद्ध उन्हें उकसाने, उन्हें समाज को बदलने के लिए प्रेरित करते हैं। कला और संस्कृति की दुनिया मे लोकशाहिर संभाजी भगत यह कहते हुए अपने पोवाड़ा प्रस्तुत करते हैं.मैं आपका यहां मनोरंजन करने नहीं आया हूँ, बल्कि मैं आपकों अस्वस्थ करने आया हूँ, जो लोग यहां मनोरंजन के उद्देश्य से आए हैं, वे कृपया यहां से चले जायें। संभाजी भगत की आंखों में व्यवस्था विरोधी आग है, उनकी आवाज में सहयाद्री की सिंह गर्जना है। दस से पचास हजार की भीड़ उनका पोवाड़ा सुनने के लिए इकट्ठा हो जाती है।

संभाजी का जन्म 1 जून 1959 को महाराष्ट्र के सातारा जिला के जावली तहसील के महू नामक गांव में हुआ। जो पंचगनी के पास है। वे एक भूमिहीन दलित परिवार में पैदा हुए. उनकी माता का नाम गीता तथा पिता का नाम भीमा था। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने महात्मा फुले हाई स्कूल, पंचगनी में की। संगीत का शौक उनको बचपन से ही था। उन्होनें बताया कि गांव के उनके एक शिक्षक थे, जिनका नाम देवधर गुरू जी था। वे सभी बच्चों को नहलाते, तैयार करते और स्कूल ले जाते थे। मुझे कंधे पर बिठाकर स्कूल ले जाते थे। वे गुरू जी कलापथक चलाते थे। उन दिनों महाराष्ट्र में लोग शाहिर अण्णाभाउ साठे और शाहिर अमर शेख से प्रभावित थे। देवधरे गुरू जी हम लोगों को इनके गाने सीखाते थे और जगह-जगह कला-पथक में गवाते थे। इससे संगीत में रूचि बढ़ी। इसके बाद संभा जी जब 8 वीं कक्षा में आए तब हाईस्कूल में जाने के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों को पार कर जाना पड़ता था । जिससे वे और उनके साथी रोज देर से स्कूल पहॅुंचते थे। देर से स्कूल पहुंचने पर क्लास टीचर इन छात्रों की पिटाई करते थे। एक दिन स्कूल के कार्यक्रम में संभाजी ने इस मार-पिटाई के खिलाफ प्रोटेस्ट कविता लिखी और उसे गाकर सुनाया। उसके बाद प्रिसिंपल ने तुरन्त बुलाया। संभाजी को लगा, अब तो खैर नहीं मुझे जरूर स्कूल से निकाला जायेगा, पर उल्टा हुआ । प्रिंसिपल ने संभाजी को शाबासी दी, गाने की तारीफ की और क्लास टीचर की मार-पिटाई बन्द करवाई। तब से संभाजी सहयाद्री की पर्वत श्रृंखलाओं में कविता लगातार लिखते और गाते रहे जो अब तक जारी है। घोर गरीबी और दरिद्रता में उनका बचपन बीता।


12 वीं कक्षा की पढ़ाई खत्म करके वे उच्च शिक्षा की चाहत लिए मुम्बई महानगर में  4 जून 1980 को आए। वे बड़ा-पाव के ठेले पर काम करने लगे और वहीं रास्ते पर सो जाया करते थे। बड़ा -पाव बेचने वाले मालिक ने संभाजी में पढ़ाई के प्रति आतुरता देखी। उन्होंनें संभाजी का नाम वडाला स्थित आम्बेडकर कालेज ऑफ़ कामर्स एण्ड इकोनाम्किस में बी-कॉम में लिखवा दिया। वहीं सिद्धार्थ विहार हॉस्टल में उनके रहने का प्रबंध भी हो गया। यह वही हॉस्टल था जहां पर दलित पैंथर आंदोलन का जन्म हुआ था ।

जूलाई 1980 में संभाजी भगत एप्लायमेंट एक्सचेंज से घर लौट रहे थे। उन्होंने चर्च गेट स्टेशन के पास कुछ कालेज के विद्यार्थियों को नुक्कड़ नाटक करते हुए देखा। वे रूककर नाटक देखने लगे। उन्होंने देखा कि थोड़ी – ही देर में पुलिस इन छात्र -छात्राओं को उठाकर ले जा रही थी। संभाजी को लगा इतना अच्छा नाटक चल रहा था, पुलिस इन लोगों को क्यों उठा ले गई! तब उन्हें एहसास हुआ कि नाटक सत्ता विरोधी है। ये विद्यार्थी सच्चाई बता रहे थे। ये सभी साहसी थे। उन्हें सच्चाई बताने से रोका गया। संभाजी इस समूह से बहुत प्रभावित हुए। फिर उन्होंने पता किया कि ये कौन लोग थे। उन्हें पता चला कि ये विद्यार्थी प्रगति संगठन से जुड़े विद्यार्थी थे और उनकी नाट्य मण्डली का नाम आह्वान नाट्य मंच है। मेरी पहली पहचान संभाजी से इसी वर्ष हुई। मैं विद्यार्थी प्रगति संगठन और  आह्वान नाट्य मंच से जुड़ी थी। संभाजी आह्वान नाट्य मंच से जुड़ गये। वे सनोबर आंस्पीन्डर को अपना गुरू मानते हैं जो आ आह्वान नाट्य मंच की संस्थापकों में से एक थी ।

1980 का दशक एक ऐसा दशक था जब मुम्बई में छात्र आन्दोलन, महिला आन्दोलन, गिरणी कामगार के साथ – साथ अन्य ट्रेड युनियन आन्दोलन अपने उभार पर थे। ये सभी आन्दोलन एक- दूसरे से जुड़े थे। संभा जी भगत इन सभी आन्दोलनों से जुड़े थे। उन्होंनें आह्वान नाट्य मंच में आने के बाद मार्क्स और अम्बेडकर को पढ़ा । वे अपने छात्र-जीवन में ही प्रसिद्धी पा चुके थे । कालेज के विद्यार्थी पिकनिक पर जाते समय रास्ते में ट्रेन व बसों में उनका पौवाड़ा गाया करते थे । आह्वान नाट्य मंच में वैसे तो सामूहिक नाटय लिखे जाने की परम्परा थी, पर मुझे याद है संभा जी ने नाटकों में लोकधर्मी परम्परा गौंधड, बारूड, पोवडा शैली का प्रयोग नुक्कड़ नाटकों में शुरू किया। ज्यादातर नुक्कड़ नाटकों में गीत-संगीत संभाजी के होते थे हालांकि उन्होनें कभी भी शास्त्रीय संगीत या गीत व्यावसायिक तरीके से किसी संस्था में जाकर प्रशिक्षण नहीं लिया था। अभी भी मुझे याद है जब वे मेरे घर पर दकली या ढ़ोलकी लेकर गानों की धुन बनाते थे। वे स्वयंभू हैं। उस समय आह्वान नाट्य मंच के जो चर्चित नुक्कड़ नाटक थे- शिक्षा का सर्कस (1980) यूनिवर्सिटी का तमाशा देखो (1980), दमन का विरोध (1981) गिरनी कामगार का संघर्ष (दो भागों में 1982 – 83) रोटी का खेल (1984),  झोपडवासियों को गुस्सा क्यों आता है (1985) चुनाव बहिष्कार करो इत्यादि। 1980 – 95 के बीच संभा जी भगत विलास घोगरे और गदर के संपर्क में आए। ये तीनों लोक संगीत की परम्परा की तलाश में गांव-गांव घूमते थे । संभा जी ने इन्हीं लोगों के साथ रहकर देश की जातिवादी, धार्मिक क्रूरता, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक विषमता, सांस्कृतिक तौर पर साम्राज्यवादी हमला जैसे मसलों पर जानना शुरू किया। ये तीनों आदिवासी इलाकों से लेकर गांव-गांव, बस्ती-बस्ती घुमते और लोक -सांस्कृतिक परम्पराओं को  लेकर क्रांतिकारी गाने लिखते। संभा जी गदर को अपना बड़ा भाई मानते है। क्रांतिकारी गाना गाने के कारण दोनों गढ़चिरोली में एक साथ जेल गये। जेल आना-जाना गिरफ्तारियां आम बात थीं।

संभा जी भगत ने पहली बार अर्धसत्य फिल्म में काम किया । 1992 – 93 दंगों के समय संभा जी स्तब्ध रह गये थे। कामरेड पांसारे की सलाह पर उन्होनें 2012 में शिवाजी अंडरग्राउण्ड इन भीमनगर मोहल्ला नाटक लिखा। संगीत निर्देशन भी उन्हीं का है। इस नाटक ने मराठी नाटकों की परम्परा में तहलका मचा दिया । इससे पहले गिरणी कामगारों के जीवन पर आधारित चिठाटया गिरणी वग नामक नृत्य- नाट्क लिखा था । इसका निर्देशन सुनील श्यानबाग ने किया था ।

2004 में संभाजी ने विद्रोही शाहिरी जलसा की स्थापना की। संध-परिवार शिवसेना तथा धार्मिक कट्टरवादियों के खिलाफ विद्रोही साहित्य सम्मेलन शुरू किया। 2011 में विद्रोही शाहिरी जलसा के माध्यम से गरीब बस्तियों के नवयुवकों को ट्रेनिंग देना शुरू किया । वे फासिस्टवादी, जातिवादी, पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ गाने गाते हैं साथ ही फूले आम्बेडकर और भगत सिवंह के गाने गाते हैं. ऐसी ही संभा जी से ट्रेनिंग प्राप्त कबीर कला मंच के युवक – युवतियों को 2012 में माववादी से सहानुभुति रखने वाला कहकर गिरफ्तार कर लिया और साढे तीन वर्ष बाद उन्हें जमानत पर छोड़ा । 2000 में संभाजी की आत्मकथा कातल खलचा वाणी (पत्थर के नीचे का पानी) छपी । 2004 से 2008 तक उन्होनें मराठी समाचार पत्र महानगर और सम्राट पेपर में कालम लिखें ।
अप्रैल 2015 में कोर्ट फिल्म आई। जिसे राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुल 24 पुरूस्कार मिले। आस्कर में फिल्म भेजी गई। इस फिल्म के गीतकार, संगीतकार और गायक संभाजी हैं। जून 2015 में नागरिक फिल्म में भी उन्होनें गाना गाया तथा संगीतकार गीतकार भी वे ही हैं । इस फिल्म के लिए संभाजी को महाराष्ट्र सरकार का राज्य पुरस्कार मिला, जिसे उन्होनें दाम्भोलकर, पानसारे और कलबुर्गी की हत्या के विरोध में पुरस्कार लौटा दिया । सरपंच भगीरथी फिल्म में भी गीतकार, संगीतकार संभाजी भगत हैं. इन दिनों उनका नाटक स्टैचु ऑफ़ लिबर्टी हाउस फूल जा रहा है ।

संभा जी भगत ने 2016 में ‘द वॉर बीट’ नाम से इन्टरनेट पर गाने लोड करना शुरू किया है। वे कहते है। द वॉर बीट’ इसलिए शुरू किया क्योंकि आज मीडिया के सभी साधनों पर फासिस्ट ताकतों का कब्जा है। लोकतांत्रिक स्थानों पर हमें हमारी बात प्रेषित करने का साधन खत्म हो गया है। सइबर – टेकनालांजी में थोड़ा बहुत स्पेस बचा है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी इन्टरनेट का प्रयोग होने लगा है। इसलिए हमने अपनी बात अपनी भाषा में कहने के लिए इस साधन को अपनाया और हम सफल भी हो रहे हैं।

3 जून 6 जून 2017 को संभाजी ने कला- संगिनी के बैनर तले 150 युवा कलाकारों को इकट्ठा किया। साने-गुरूजी स्मारक के मानगांव जो रायगड़, जिला महाराष्ट्र में है, वहां ट्रेनिंग कार्यक्रम लिया। इसमें कलाकारों को वैचारिक व सैद्धान्तिक आधार पर आज फासिस्ट ताकतों से विभिन्न माध्यमों का तकनीक  का प्रयोग करते हुए कैसे लड़ा जाये पहले सिखाया गया। इस ट्रेनिंग में 15 समूह के लोगों ने भाग लिया। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु कला – संगिनी की स्थापना की गई। इन युवकों ने चार दिन में 12 लघु फिल्में और 14 गाने बनाये।

संभाजी कहते हैं जहां आन्दोलन की जरूरत होती है, मैं वही होता हूँ । मैं अपना जलसा झोपड़ियों, बस्तियों, गांवों में करता हूँ। मेरा एक सपना है – मैं दलित संशोधन केन्द्र की स्थापना करूं, जहां गरीब, दलित बच्चों के लिए मैं रेडियो, टी.वी. सेन्टर खेल सकूं। उन्हें साउन्ड रिकार्डिगं, गीत-संगीत, फिल्म बनाना सीखा सकूं, ताकि अपनी बात करने के लिए हमें किसी और के पास न जाना पड़े। हम अपने माध्यमों से फासिस्ट ताकतों, ब्राहमणवाद, जातिवाद व पूंजीपतियों के खिलाफ आन्दोलन खड़ा कर सकें। उनकी मान्यता है कि आने वाली युवा पीढ़ी की नारियां स्वयं अपना इतिहास रचेगीं। स्त्रियों की भूमिका के बिना समाज में कोई क्रांति नहीं लाई जा सकती ।

संभाजी के पोवाडा में सत्ताविरोधी आक्रोश साफ दिखाई देता है । वे पूंजीपतियों, सामांतवादी, साम्राज्यवादी शक्तियों के विरूद्ध हुंकार भरते हैं। मनुवादियों, ब्राहमणविादियों तथा फासिस्ट संस्कृति के खिलाफ युवकों को लामबन्द होने की प्रेरणा देते हैं।

स्त्रीकाल का संचालन ‘द मार्जिनलाइज्ड’ , ऐन इंस्टिट्यूट  फॉर  अल्टरनेटिव  रिसर्च  एंड  मीडिया  स्टडीज  के द्वारा होता  है .  इसके प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें : 

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