सीवर में मौत: सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना

रजनीतिलक

रविवार (20 अगस्त) को जब सारी दुनिया अपने घर में बैठ कर अपने बच्चों के साथ छुट्टी मनाती है तब लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के सीवर सफाई हेतु चार कर्मचारियों को सीवर में सफाई के लिए उतारा गया जिनको कोई सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराये गए. बहुत ही गैर जिम्मेदाराना कृत्य बार-बार दुहराया जा रहा है.पिछली बार 6 अगस्त को भी रविवार था जब लाजपतनगर में तीन लोगो को सीवर में उतारा गया था.


12 अगस्त को आनंद विहार में दो कबाड़ा चुनने वाले दो भाइयो को गटर में उतारा गया,जबकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार किसी भी कर्मचारी को बिना सुरक्षा उपकरण के सीवर में नहीं उतारा जा सकता.दूसरा, विशेषतः रविवार जो किसी भी तरह से वर्किंग डे नहीं होता, प्राइवेट ठेकेदारों द्वारा इस तरह का अभ्यास सफाई कर्मचारियों के जीवन से न केवल खिलवाड़ है,बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना भी है.

जिन चार लोगों को अस्पताल के गेट न. दो, वार्ड न. 14 के सामने उतारा गया था, वे थे  ऋषिपाल उम्र 40 व, विशन पाल 30 वर्ष, किरण पाल- 25 वर्ष और सुमित 30 वर्ष के थे,अंदर जाते ही सफाईकर्मियों के साथ हमेशा के हादसे की तरह वे लोग जहरीली गैस की चपेट में आकर बेहोश हो गये.दिल्ली पुलिस एवं अग्नि शमन की मदद से उन्हें बाहर निकाल कर अस्पताल में दाखिल कराया गया. उनमें से इक ऋषिपाल को मृत घोषित कर दिया बाकी तीन का इलाज चल रहा है.  मौत के गटर में उतारने की या कोई पहली घटना नहीं है राजधानी  दिल्ली में इन घटनाओं की पुनरावृत्ति सरकारी असक्षमता और इन कर्मचारियों के प्रति गहरी असंवेदना प्रकट होती है.

12 अगस्त 2017 को आनंदविहार इलाके में शापिंग माल के सीवर की सफाई कर रहे तीन कर्मी जहरीली गैस के कारण बेहोश हो गये. तीनो को निकालने गये दमकल विभाग से सीवर में उतरे हवलदार महिपाल भी बेहोश हो गये.  सीवर में मौत कोई नयी घटना नहीं है. प्रभात खबर के अनुसार (9 अगस्त 2017 )एक सरकारी रिपोर्ट बताती है कि अब तक  22,327  सफाई कर्मी लोगो की मौत सीवर में दम घुटने से हुई  है. 14  जुलाई 2017  को दक्षिण दिल्ली के घिटरोली गावं में चार सफाईकर्मी जिनका नाम, स्वर्णसिंह, अनिल कुमार, दीपू, बलविंदर था की मृत्यु सैप्टिक टैंक सफाई में दम घुटने की वजह से हुई थी. अभी एक माह भी नहीं हुआ कि दूसरी घटना लाजपत नगर में 6 अगस्त 2017 की सुबह फिर से दुहरा दी गयी. सीवर, सैप्टिक टैंक सफाई का चार्ज दिल्ली जलबोर्ड के आधीन होता है, जिसकी जिम्मेदारी सम्बन्धित इन्जिनियर और जलबोर्ड अधिकारियों की होती है.



निजीकरण के दौर में आजकल अनुभवहीन सवर्ण ठेकेदारों के जिम्मे इस काम को सौप कर अधिकारी व इंजीनियर निश्चिन्त हो गये है. ज्ञातव्य है सन 2013  में सर्वोच्च न्यायालय ने मैनुअल स्क्वैन्जर एंड रिहैब्लटेशन एक्ट 2013  के  तहत किसी भी कर्मचारी को बिना किसी सुरक्षा कवच के सीवर में उतारना गैर क़ानूनी कर दिया था.  सीवर में मरने वालो के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 10 लाख की राशि परिवार के लिए निश्चित भी की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की खुले आम अवहेलना और अवमानना जा रही है, यंहा तक कि सफाईकर्मी को धडल्ले से सीवर में उतार दिया जाता है जिसका परिणाम उनकी भयंकर मौत के रूप में आये दिन देखने को मिल रही है. हर घटना में सफाई कर्मी की मृत्यु के बाद दो दिन की सुर्खियों  पर बहस होती है उस बहस और उनकी मौत को नजरअंदाज करके फिर से सफाईकर्मी को कहीं पर भी बेधड़क सीवर में उतार दिया जाता है. ठेकेदारों और जलबोर्ड के अधिकारियो की संवेदनहीनता दृष्टिगत हो उठती है, उनका जातिवादी चेहरा भी उभर कर आता है.

लाजपतनगर में सीवर में उतरे तीनो युवक डेली वेजेज पर थे. उन्हें इस काम के बदले 300-350/ रूपये दीये जाते थे. एक कर्मचारी  मंथली सैलरी पर था, जिसकी तनख्वाह 8000/ थी लेकिन उसे 2000-5000/  रूपये तक ही मिलते थे. सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भी इस अस्वच्छ कार्य हेतु नहीं दिया जाता. तीनो कर्मचारियों  की उम्र 20 -32 वर्ष थी. चौथा कर्मचारी राजेश, जो तीनो की खोज खबर लेने सीवर में उतरा था,  वह भी  उतर कर  कर बेहोश हो गया जिसे आम जनता एवं पुलिस ने अपनी मशक्कत से बाहर निकालाकर अस्पताल में दाखिल किया गया तत्पश्चात इलाज के बाद थोडा स्वस्थ हुआ.

चार सदस्यीय दल सफाई कर्मचारी आयोग के नेतृत्व में तीनो कर्मचारियों के घर पर उनके परिवारों से मुलाक़ात करने और मौके पर घटी घटना की जानकारी लेने पहुंचा. सबसे पहले हम लोग पूछ-पूछ कर कल्याणपुरी मन्नू के घर गये. छोटी-छोटी तंग गलियों से गुजरते हुए हमें एसा लगा की हम स्वयं किसी गटर से गुजर रहे है. इन गलियों से एक साथ तीन व्यक्ति एक साथ नहीं चल सकते. ऊपर की छतों से गलिया पटी हुई थी. गलियां पार करके हम एक पार्क में पहुंचे. पार्क तो नाम का था दरअसल वह एक खुली जगह थी, जिसके एक तरफ वाल्मीकि समाज रहता है. एक हजार परिवार का वाल्मीकि समाज इस दमघोटू माहौल  में रहने का अभ्यस्त दीखा.



ज्यादातर लोग सफाई के काम में लिप्त है यंहा करीब 200 महिलायें भी बाहर जा कर सफाई का काम करती है.  मोनू के घर के सामने भरी धुप में एक सस्ता सा सामियाना टंगा हुआ था. एक तरफ महिलाए बैठ कर रो रही थी, तो थोड़ी दूरी पर परिवार व समाज के कुछ पुरुष बैठ कर बीडी पी रहे थे. मोनू, पुत्र श्री फूल सिंह उम्र 22 वर्ष के दो बच्चे हैं-गोद में एक बेटी जो अभी केवल ढाई महीने की है और एक बेटा  जो डेढ़  साल का है. उसकी पत्नी प्रीति 20 वर्ष की हैं,  जिसने अभी जीवन के कोई सुख नहीं देखे हैं,  गोद में दो बच्चो को ले कर विधवा हो गयी. अन्नू बेरोजगार था अतः डेली वजेज पर इसी तरह के काम करने चले जाता था. बीबी बच्चो के साथ साथ बुजुर्ग माँ-बाप की जिम्मेवारी भी उसके सर पर थी. सरकार और ठेकेदारों की मिली भगत से इस परिवार का एक जिम्मेदार कमाने वाला नौजवान जवानी आने से पहले ही दुनिया से सिधार चुका है.


मोनू के घर की हालत जान कर दुखी मन से हम सीवर सफाई के दूसरे शिकार जोगिन्दर के घर खिचड़ीपुर की झुग्गियो में गये, जहां पहले से ही केंद्र सरकार के एक संसद सदस्य, अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष वंहा पहुंचे हुए थे. उनके वंहा जाने के बाद जोगिन्दर के बारे में पता चला कि उसकी उम्र 32 वर्ष थी और बेरोजगारी के आलम की वजह से उसने शादी ही नहीं की थी. खिचड़ीपुर में वाल्मीकि समाज की करीब 600 घर थे. यंहा भी ज्यादातर लोग सफाई के काम में लिप्त है. यंहा की 60 प्रतिशत महीलायें भी बाहर काम करने जाती रही हैं.
जोगिन्दर के घर से निकल कर हम लोग तीसरे केस दल्लू पूरा के दुर्गा पार्क में अन्नू के घर गये. यह एक मिक्स आबादी का घर था. कोन पर एक दूकान है. हमने उनके घर के बारे में पूछा तो गली में खड़े एक नौजवान ने इशारा करके हमें घर बताया, यह युवक दैनिक जागरण का फोटो ग्राफर था, सरकार की टीम का इन्जार कर रहा था. हमने घर पर दस्तक दी तो एक युवक बहर आया तो हमने बाते की किहम अन्नू के बारे में जाननेआये है. हम जैसे ही घर में प्रवेश कर रहे थे तो बीच में ही हमे खुला शिट देखा, हम उसे पार करके घर में बैठे तो पता चला कि अन्नू की उम्र 28 वर्ष थी उसकी पत्नी की उम्र 27 साल है. उनका  छ साल का बेटा भी है. अन्नू मासिक तनख्वाह पर था लेकिन उसे कभी पूरी तनख्वाह नहीं मिली- कभी  2000/, कभी 4000/, कभी 5000/ से ज्यादा उसे तनख्वाह नहीं मिली. उसकी पत्नी ने बताया कि घर खर्च चलने के लिए वो अपने मायके से वितीय मदद लगातार लेती रही है, यहाँ तक कि बिजली का बिल और बच्चे की ५००/ फीस अपनी माँ और भाई से लेती है.

रक्षाबंधन पर मिली भाई की लाश, बहने बाँध न सकी राखी

6 अगस्त की सुबह तीनो कर्मचारी घर से यह कह कर निकले कि कल रक्षाबंधन है बहनें घर आएंगी तो काम करके थोडा पैसा हाथ में आ जाएगा तो त्यौहार मना लेंगे. अनुसूचित जातियों में ज्यादातर उप-जातियां हिन्दू परम्परा और त्यौहार मनाने के अभ्यस्त हैं, क्योंकि वे खुद को हिन्दू ही मानते रहे है. तीनो कर्मचारी जब शाम तक घर नहीं लौटे तो यही समझा गया कि अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती कर रहे होंगे. रात के दस बजे पुलिस का फोन अन्नू की पत्नी रेखा को आया कि आपके पति बीमार हैं,  लाजपत नगर अस्पताल में, सुबह आ जाना. पता पूछने पर कोई जबाब नहीं दिया गया. सुबह 10 बजे दुबारा से किसी का फोन आया कि अस्पताल से बॉडी ले जाओ. दिनभर और रात भर पुलिस और जलबोर्ड ने यह सूचना  घरवालों से छुपा  कर रखी कि उनकी जीवन लीला 6 अग्स्त की दोपहर समाप्त हो चुकी थी. ये कैसी विडंबना है? 7 अगस्त जब बहनें राखी बाँधने भाइयों के घर आई तो उन्हें भाई की कलाई पर राखी नहीं कफन देखने को मिला. यह खबर क्यों छुपायी गयी? क्यों परिवार को अँधेरे में रक्खा गया? ऐसा सदमा परिवार को क्यों दिया?

सीवर में मौत शाहदत क्यों नहीं मानी जाती?


देश में तीन लोग महत्वपूर्ण है. सफाई कर्मचारी- किसान और बार्डर पर सैनिक. किसान अन्न उगा कर देश का पेट भरता है और सफाई कर्मचारी देश के भीतर खुद अस्वच्छ प्रक्रिया से गुजर कर देश को साफ सुथरा रखता है, नाली, सीवर, सैप्टिक टैंक, गटर मैनहोल साफ रखता है. बॉर्डर पर सैनिक को सम्मान जनक तनख्वाह, पेंशन, शहीद होने पर विधवा को कोटे से पैट्रोलपम्प आदि दिया जाता है ताकि उसका परिवार एक सम्मानजनक जिन्दगी जी सके और और उसके बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सके. पिछले वर्ष बॉर्डर पर 60 जवान शहीद हुए जबकि उनकी तुलना में देश के भीतर 1471 सफाईकर्मी मौत के घाट उतर गये. यह दोगला व्यवहार क्यों? सफाई कर्मी को न यूनिफार्म है, न ईएसआई सुविधा, न नयूनतम वेतन, न सम्मानजनक व्यवहार, न ही मरने के बाद उनके बच्चो के भविष्य की सुरक्षा ? ऐसा क्यों? क्या हम आज के लोकतांत्रिक व्यवस्था में पुश्तैनी धंधो को क्या जातिगत पेशे में  सुरक्षित रखना चाहते है? क्या सफाई कर्मचारी इस देश का नागरिक नहीं? सफाई कर्मचारियों के लिए  सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गये आर्डर की अवहेलना क्यों की जा रही है ? आनदविहार, लाजपत नगर और घिटोरनी में हुई लोगो की मौत के बाद उनकी पत्नियां जो विधवा हो गयी हैं, गोद में छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें अभी अपने पिता के होने न होने का अहसास भी नहीं है तमाम उम्र बिना पिता के रहना पड़ेगा, इन सबका जिम्मेवार कौन है? वर्तमान सरकार का दायित्व है कि इस पर अपनी पैनी नजर रख कर पीडितो को न्याय दिलाये और अपराधियों को सख्त से सख्त सजा दिलाये.

कुछ सवालों पर विचार किये जाने की सखत जरुरत है

 -गटर, सीवर, मैनहोल, सैप्टिक टैंक की सफाई अनिवार्य रूप से मशीनों से करवाई जाए.

– ठेकेदारी व्यवस्था समाप्त की जाए, सफाई कर्मियों की भर्ती स्थायी की जाए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागु किया जाए. महिला कर्मचारियों  के लिए शौचालय, खाना खाने व बैठने की जगह की व्यवस्था की जाए. उनके बच्चो के लिए क्रेच व बच्चो  के लिए खेलने व पढने की व्यवस्था की जाए. महिलाओ को प्रसूति अवकाश वेतन सहित दिया जाए, एवं एबोरशन लीव भी मुहैय्या हो. रोजी जिदारो एवं अस्थायी कर्मचारियो  को न्यूनतम वेतन दिया जाए  चिकित्सा सुविधा, युनिफोर्म, जूते ,एवं कार्यस्थल पर उपयोगी वस्तुए उपलब्ध हों. जीपीएफ,लोन, एच.आर.ए एवं अन्य वितीय सुविधा अन्य सेवाओ की तरह सुगम की जाए  रिटायर्मेंट पर उनका पूरा पैसा दिया जाए और पेंशन भी नियमित रूप से दी जाए.

 रिपोर्ट : रजनी तिलक (लेखिका एक्टिविस्ट दलित स्त्रीवादी ) 
(जांच दल के सदस्य :- सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष श्री संतलाल चावारियाजी
श्री राजपाल , अ.भा. मजदुर संघ . पवन परचा 
सन्दर्भ : प्रभात खबर , जनसत्ता, और भुक्तभोगी परिवारों से सीधी मुलाकात 



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