दलित छात्रा को मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय ने चयन के बाद भी नहीं दिया दाखिला

स्त्रीकाल डेस्क 

मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल अपने एक विवादास्पद फैसलों के कारण सुर्ख़ियों में है. इसने अपने यहाँ एक पाठ्यक्रम के लिए चयनित दलित छात्रा, पूनम दहिया को नामांकन न देकर उसकी सीट पर किसी लड़के को नामांकन दे दिया है. यह नाट्य विद्यालय मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति  मंत्रालय के अधीन आता है. दो दिन से छुट्टी के कारण उसके अधिकारियों से बात नहीं हो पायी है. स्त्रीकाल ने मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय के निदेशक संजय उपाध्याय से सम्पर्क किया तो उन्होंने  बताया कि चूकि वह ग्रैजुएशन का अपना सर्टिफिकेट समय जमा नहीं करा पायी इसलिए नामांकन एक लड़के को दे दिया गया. हालांकि उनके पास इस बात का समुचित जवाब नहीं था कि जब विश्वविद्यालय का रिजल्ट ही नहीं आया था तो वह सर्टिफिकेट कहाँ से जमा करायेगी. उसे एक्स्टेंशन दिया जा सकता था. संजय उपाध्याय  के तमाम दावों के बावजूद प्रथम दृष्टया न्याय दाखिला से वंचित की लडकी के पक्ष में है.

पूनम दहिया

पूनम दहिया ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है: 

मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय भोपाल में इस साल मैं भी चयनित हुई थी, लेकिन शिक्षा से वंचित कर दी गई। मुझे कारण बताया गया कि “आप का रिजल्ट नही आया है इस लिए आप को एडमिशन नही मिलेगा ।”
बाद में मेरी ही जैसी स्थिति में एक दूसरे लड़के को एडमिशन दे दिया गया।
मुझे लगातार फोन में कहा गया की ‘इस साल तुम चुप रहो,तुम्हे अगले साल ले लिया जायेगा।
लेकिन मेरा जो ये साल खराब हुआ, उसका क्या? मेरी जगह कोई वेटिंग का पढ़ रहा है,और मैं चयनित हो कर भी अगले साल का इंतेजार करूँ?
एक ही आधार पर एक का चयन कर लिया गया और मेरा नही, ये कैसी रंगशाला है?
और जब मैंने पूछा कि ऐसा क्यों किया गया ये गलत है तो मुझे कहा गया कि ‘हमे सही गलत मत बताओ’
मेरी इस लड़ाई में कोई मेरा साथ नही है मैं अकेली हूँ। क्या आप मेरा साथ देंगे

चयन सूची

पीड़ित छात्रा के पक्ष में नाट्य आलोचक और ‘समकालीन रंगमंच’ के सम्पादक राजेश चन्द्र  ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा: 

सीधी, मध्य प्रदेश की अत्यंत प्रतिभाशाली अभिनेत्री और रंगकर्मी Poonam Dahiya को अंतिम परीक्षा पास करने और दाख़िले का औपचारिक पत्र प्राप्त करने के बावज़ूद मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय ने दाख़िला नहीं लेने दिया, जबकि वह रिज़र्व कोटे से थीं। उसी स्थान पर एक सामान्य कोटे के रंगकर्मी का दाख़िला ले लिया गया। कहा जाता है कि यह दाख़िला भोपाल के एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के रंग-निर्देशक की इच्छा से लिया गया, जिनका विद्यालय के प्रशासन पर अप्रत्यक्ष रूप से लगभग वर्चस्व और एकाधिकार रहता आया है।
पूनम ने इस अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने का फ़ैसला लिया और न केवल फेसबुक पर अपनी आपबीती लिखी, बल्कि एमपी के संस्कृति सचिव को एक औपचारिक शिकायत पत्र दिया है, और उसकी प्रतियां सभी सम्बंधित अधिकारियों को भेजी हैं। उसने मामले की जांच करने के साथ-साथ यह भी मांग रखी है कि उसे इसी सत्र में दाख़िला दिया जाये, ताकि उसके जीवन का क़ीमती एक साल बर्बाद होने से बचे।
पूनम की इस सार्वजनिक अपील को समर्थन देते हुए कुछ दिनों पहले मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी और उसमें नाट्य विद्यालय के निदेशक तथा वरिष्ठ प्रोफेसर को टैग भी किया। दुखद स्थिति यह है कि इतने दिनों बाद भी विद्यालय प्रशासन का कोई पक्ष सामने नहीं आया। इससे दो बातें सिद्ध होती हैं। पहली, विद्यालय प्रशासन ने यह स्वीकार कर लिया है कि उसने ठगी की है, और दूसरी, वह सत्ता और शक्ति के मद में इतना चूर है कि अपनी कोई जवाबदेही नहीं समझता। उसे लगता है कि रंगमंच की बिरादरी कायर, रीढ़विहीन, लालची, लिजलिजे चाटुकारों तथा सत्ता का गुणगान करने वालों से ही भरी हुई है और इस या ऐसे किसी मामले में पीड़ित या पीड़िता का साथ देने के लिये कोई भी रंगकर्मी आगे नहीं आयेगा। उसका सोचना काफी हद तक सही और तथ्यपरक है।

नामांकन के लिए आमन्त्रण पत्र

सीधी रंगमंच की दृष्टि से कुछ वर्षों में चर्चा में रहा है। वहां के कई रंगकर्मी अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। सीधी में रंगमंच की गतिविधियां भी नियमित रूप से होती हैं और भोपाल, जहां नाट्य विद्यालय स्थित है, देश के कुछ प्रमुख रंग केन्द्रों में से एक है, वहां अनगिनत ख्याति-प्राप्त रंगकर्मी रहते और रंगकर्म करते हैं।
इतनी लंबी भूमिका के बाद मैं मूल बात पर लौटता हूं कि क्या कारण है कि दो-एक लोगों को छोड़ कर सीधी, भोपाल और मध्य प्रदेश के रंगकर्मी पूनम के साथ हुए अन्याय पर ख़ामोश हैं? क्या सिर्फ़ इसलिये नहीं कि वे पूनम का साथ देकर ताक़तवर संस्थान और लोगों से अपने संबंध ख़राब नहीं करना चाहते हैंं? साथ देना तो दूर की बात, वे तो खुल कर पीड़िता का विरोध करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते।
एक रंगकर्मी अन्याय को होता हुआ देख कर ख़ामोश रहता है तो वह रंगकर्मी कहलाने की न्यूनतम पात्रता भी पूरी नहीं करता। यही पर आकर लगने लगता है कि आज रंगकर्मी होने के मूल्य में भयावह गिरावट आ गयी है। रंगकर्मी सत्ता और व्यवस्था से मिल-मिला कर रहना चाहता है क्योंकि वह अपने पेट और टुच्ची सुविधाओं से आगे देखता ही नहीं। यह सब देख कर बहुत पीड़ा होती है। हमने रंगकर्म को क्या बना डाला है!

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