डा. अम्बेडकर की पहली जीवनी का इतिहास और उसके अंश

संदीप मधुकर सपकाले 


डा. अम्बेडकर  की प्रमुख जीवनियों में  चांगदेव भवानराव खैरमोड़े द्वारा लिखित जीवनी (मराठी, प्रथम खंड प्रकाशन 14 अप्रैल 1952), धनंजय कीर द्वारा लिखी डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर  की जीवनी ‘Dr. Ambedkar: Life and Mission’ (अंग्रेजी, प्रकाशन 1954) तथा चन्द्रिका प्रसाद जिज्ञासु द्वारा लिखित जीवनी ‘बाबा साहेब के जीवन संघर्ष’ (हिन्दी, प्रकाशन 1961) हैं. इन सारी जीवनियों से पहले डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  के जीवन काल में उनके समकालीन तानाजी बालाजी खरावतेकर ने सन 1943 में ‘डॉ.अम्बेडकर ’ शीर्षक से एक जीवनी लिखी थी.  संदीप मधुकर सपकाले बता रहे हैं इस पहली जीवनी के बारे में और उसका हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत कर रहे हैं. पढ़ें  इस जीवनी के लेखन की प्रक्रिया का प्रसंग और जीवनी के  कुछ अंश: 



“चवदा एप्रिल एक्यानौ साली (1891) साली महू गावत जन्माला आला…झो बाळा, झो, झो रे, झो”पाळणा गीत
मराठी लोकगीतों की एक शैली ‘पाळणा’हैं जिसका शाब्दिक अर्थ ‘झूला’ है | बच्चें के जन्म के बाद जब उसे पहली बार झूले में डाला जाता हैं तब घर-परिवार की स्त्रियों द्वारा उस बच्चे को झूलाते हुए डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  की जीवन गाथा को गाने की इस लोकशैली को ‘पाळना’ कहा जाता है|

मराठी के लोकगीतों में डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  का व्यक्तित्व युगपुरुष महानायक के रूप में आता हैं | मराठी लोकगीतों में ईश्वर भक्ति के लिए जहाँ एक ओर पुराणकथा और हिंदू मिथकीय मान्यताओं के गीत पीढ़ियों से चले आ रहे हैं उसी लोक में डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  के संघर्षपूर्ण जीवन-कार्यों से प्रेरित होकर दलितलोक ने परम्परा से चले आ रहे कल्पित वर्णन विषयों को त्यागकर डॉ.अम्बेडकर  के जीवन दर्शन को उन्ही परंपरागत लोकगीतों की शैली का विषय बनाया | कालांतर से अम्बेडकर  आंदोलन की पृष्ठभूमि में इन लोकगीतों की हिंदू आस्थाओं, मान्यताओं और कथाओं के स्थान पर प्रमुखता से डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  का जीवन और दर्शन व्याप्त हो गया|
क्या आप जानते हैं गांधी की पहली जीवनी लेखिका कौन थीं, कब और किस भाषा की थीं ?

डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  के जीवन काल में उनके समकालीन तानाजी बालाजी खरावतेकर नेसन 1943 में ‘डॉ.अम्बेडकर ’ शीर्षक से एक जीवनी लिखी थी | इस जीवनी का लेखन उन्होंने कराची में किया था | श्रीयुत व्यंकटेश बा. ठाकुर की प्रेस रविकिरण छापखाना, असायलम रोड़, रणछोड़ लाइंस, कराचीमें महायुद्ध की स्थिति में उत्त्पन्न समस्याओं में कागज के अभाव के चलते 29 फरवरी 1946 को ‘डॉ.अम्बेडकर ’ जीवन चरित्र का मुद्रण प्रकाशन संभव हुआ था | जीवनी लेखक तानाजी बालाजी खरावतेकरइस जीवनी की भूमिका में लिखते हैं-
“डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर  की जीवनी को मैंने तीन वर्ष पहले ही लिखा था लेकिन कागज की कमी के चलते यह प्रकाशित नहीं हो पायी थी | पिछली जनवरी में रविकिरण के उत्साही प्रबंधक श्री व्यंकटेश ठाकुर को कागज का लाइसेंस मिल गया था उसके मिलते ही उन्होंने इस जीवनी की छपाई की सारी जिम्मेदारी अपने पर ली इसलिए मैं मानता हूँ कि इस जीवनी के प्रकाशन का वास्तविक श्रेय उन्हें जाता हैं इस कार्य के लिए उनका जितना भी आभार माना जाए कम हैं | अब लाइसेंस तो मिल गया था लेकिन बाबासाहब के जन्मदिन के अवसर पर इस जीवनी का प्रकाशन भी किया जाना था | कागज की कमी के चलते मुझे इस जीवनी से आधे से ज्यादेकी सामग्री कम करनी पड़ी थी |मैं जानता हूँ कि इस जीवनी में कई कमियां भी रह गयी हैं लेकिन दूसरी आवृत्ति के सुयोग से इस कमी को मैं जरुर पूरा कर लूँगा”

आज कराची का नाम सुनते ही पराए देश का भाव हमारे मन में पैदा होता हैं | सन 47 के पहले कराची जब बॉम्बे प्रेसिडेंसी का हिस्सा हुआ करता था उस समय कोंकण और मुंबई से सैनिक एवं अन्य सरकारी सेवाओं में बड़े पैमाने पर अम्बेडकरी समुदाय कराची में रहा करता था | डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  की मराठी भाषा में जीवनी लिखनेवाले लेखक तानाजी बालाजी खरावतेकर का जन्म कराची के इसी परिवेश में हुआ था | यह निश्चित ही माना जा सकता हैं कि खरावतेकर ने अपने पददलित अस्पृश्य जाति बांधवों में डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  के जीवन दर्शन को प्रसारित करने के उद्देश्य से इस जीवनी का लेखन किया था | 14 अप्रैल सन 1952 में चांगदेव भवानराव खैरमोड़े ने डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  की बृहद शोध पूर्ण जीवनी के पहले खंड को प्रकाशित किया था | खैरमोड़े द्वारा लिखी जीवनी ‘डॉ.भीमराव रामजी अम्बेडकर  खंड 1 से 15’ आज मराठी में कुल 15 खण्डों में उपलब्ध हैं इस जीवनी के पहले पांच खंड खैरमोड़े के जीवन काल में प्रकाशित हो पाए थे | उसी तरह अंग्रेजी पाठकों तक सन 1954 में धनंजय कीर द्वारा लिखी डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर  की जीवनी ‘Dr. Ambedkar: Life and Mission’ भी पहुंची | हिंदी में डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  की जीवनी चंद्रिकाप्रसाद  जिज्ञासु  ने ‘बाबा साहेब के जीवन संघर्ष’ लिखी , जो 1961 में उनके ही बहुजन प्रकाशन, लखनउ से प्रकाशित हुई | तानाजी बालाजी खरावतेकर के बाद के जीवनीकारों में सी.बी.खैरमोड़े को बाबासाहब अम्बेडकर  का भरपूर सान्निध्य प्राप्त हुआ ठीक उसी तरह धनंजय कीर को उन लोगों का सान्निध्य और सहयोग मिला जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  और अम्बेडकर  आंदोलन को अपना जीवन समर्पित किया था | उपरोक्त दोनों ही स्थिति खरावतेकर के साथ नहीं थी उन्होंने तत्कालीन समय में अपने बौद्धिक सामर्थ्य और 1943 तक उपलब्ध डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  के जीवन और कार्यों को आधार बनाकर पहली जीवनी ‘डॉ.अम्बेडकर ’ की रचना की थी | इस जीवनी को मराठी में पुनः डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  की 125वीं जयंती के अवसर पर ओब्सर्वर रिसर्च फाउंडेशन, मुंबई ने उपलब्ध करवाया हैं |

तानाजी बालाजी खरावतेकर

इस जीवनी के प्रकाशन कार्य के दौरान जीवनी लेखक की तबियत अचानक बिगड़ गयी थी कराची में रहते हुए उन्हें डाक्टरी सलाह दी गयी थी कि मौसम बदलाव के लिए वे मीरज जाए | मीरज में भी जब इस असाध्य रोग ने उन्हें नहीं छोड़ा तब वे मुंबई के किंग जॉर्ज मेडिकल में इलाज के लिए आए थे बाबासाहब की जीवनी के प्रकाशन के तीन माह बाद 5 सितंबर 1946 को खरावतेकर का दुःखद निधन उम्र के 26वें वर्ष में हो गया| डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  के जीवनी लेखक तानाजी बालाजी खरावतेकर मूलतःरत्नागिरी जिले की राजापुर तहसील के ‘खरवते’ गांव के थे | उनकी बाल्यकाल कीशिक्षा से उच्च शिक्षा तक की पढाई कराची में हुई थी | 1945 में मुंबई विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बीए की डिग्री प्राप्त की थी | डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  के बाद कोंकण के अस्पृश्यों में ग्रेजुएट होने का श्रेय उन्हें मिला था | कराची से डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  को लिखे गए उनके एक पत्र से स्पष्ट होता हैं कि खरावतेकर अपने समय के एक प्रतिभासंपन्न उभरते हुए मराठी साहित्यकार भी थे | 

Karachi, 21.5.43
The Hon’bleDr.B.R.Ambedkar,
M.A.,LL.B.,Ph.D., Bar-at-Law,
Member of the Vice-Regal Executive Council, New Delhi.
May it please your honour;
I, the undersigned, TanajiBalajiKharawtekar, beg to state as under for favourable consideration.
I am young man of 22. I have recently appeared for the Inter Arts Examination of the Bombay University through the D.J.Sind College, Karachi and hope to pass it with credit. I belong to the martial Mahar Community of Maharashtra, my mother-tongue being Marathi, in which I have written several stories and articles, and they are published in Marathi papers.
I propose to join the war commission. In case I do so, I will be required to give up my College Education and I will not be able to fulfil my ambition & becoming a double graduate. But if I do not join the commission, I may not get another chance to better my prospects. I am thus in a fix. I therefore approach your honour with a humble request to please guide me, so that I shall be able to raise my status and also be in a position to serve my community, of which, you are sole leader, under your banner.
Hoping to be excused for troubles.
I beg to remain
Sir, Your most obedient servant
T. B. Kharawtekar
New Dubash Building
Napier Street, Karachi (Camp)

डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर  को बड़ी ही तन्मयता और समर्पण के साथ खरावतेकर ने 22 वर्ष की आयु में यह पत्र लिखकर अपनी उत्साही इच्छा को प्रकट किया था | डॉ.अम्बेडकर  के जीवन और कार्यों से प्रेरणा पाकर शिक्षित होनेवाले युवा वर्ग में खरावतेकर अग्रणी थे किंतु अपने शैक्षणिक जीवन को छोड़कर वे कमीशन की नौकरी से अपने अस्पृश्य वर्गों के लिए कार्य करना चाहते थे | खरावतेकर के पत्र को संज्ञान लेते हुए डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  ने उन्हें एक सन्देश भिजवाया था-
“उससे कहों की आगे की शिक्षा भी ग्रहण करेंऔर कमीशन की नौकरी के लिए परेशान न रहे”
“Tell him to take education and not bother about Commissions, etc”
स्पष्ट था कि यहसन्देश मात्र खरावतेकर जैसे शिक्षा ग्रहण करनेवाले युवा तक न होकर उन सभी अस्पृश्य युवाओं के लिए था जो शिक्षित होने के एक कठिन रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे | खरावतेकर के पत्र को प्रत्युत्तर  देते हुए डॉ.अम्बेडकर  ने एक ड्राफ्ट तैयार किया था-
“Dear Mr.Kharawtekar,
I have received your letter of the 21st in which you have sought my advice regarding your career. My advice is that you must continue your studies and don’t think of employment until you have completed your academic ambitions.
Yours Sincerely”

विमर्श नहीं, विचारधारा : अस्मितावाद की जगह आंबेडकर-चिंतन

डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  और खरावतेकर के बीच संपर्क का पता इन पत्रों के माध्यम से जाना जा सकता हैं |
डॉ.अम्बेडकर  इस चरित्र ग्रन्थ जीवनी का मराठी भाषा में 70 वर्ष पूर्व प्रकाशन कराची में हुआ था | आंबेडकरी इतिहास के दस्तावेजों में जात-पात तोड़क मंडल के लिए लिखे गए डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  के भाषण का सैद्धांतिक सामाजिक महत्त्व हैं | ‘Annihilation of Caste’ जातिभेद का उच्छेद इस भाषण का तय स्थान लाहौर में था | कोंकण में दलित मुक्ति आंदोलन और अम्बेडकर  साहित्य के अनुसन्धानकर्ता प्रो.रमाकांत यादव को अपने शोधकार्य के दौरान जनता साप्ताहिक की प्रतियाँ मिली थी इस साप्ताहिक में रत्नागिरी जिले के राजापुर से गोवा तक के कार्यकर्ताओं ने 14 मई 1938 में ‘कोंकण मंचमहाल महार परिषद’ का आयोजन कणकवली में आयोजित कि थी जिसकी अध्यक्षता डॉ.अम्बेडकर  ने कि थी इस परिषद के पुराने कार्यकर्ताओं से प्रो.यादव ने साक्षात्कार किए थे इन्हीं साक्षात्कारों के प्रसंग में एक पंपलेट उन्हें मिला जिसमें दक्षिण कोंकण से राजापुर के जनार्दन आर.जाधव, एस.एस.तांबे, जी.एस.खरावतेकर मास्टरजी और काशीराम येसू खरावतेकर ने इस पत्रक के निवेदन में ‘डॉक्टर अम्बेडकर ’ इस जीवनी के प्रकाशन का उल्लेख किया था | प्रो. रमाकांत यादव ने इस जीवनी की एकमात्र प्रति को खरावतेकर के कराची में रहे घनिष्ट मित्र शिवराम कुरुंगकर से प्राप्त किया था | प्रो.यादव ने सन 2010 में इस जीवनी का पुनर्प्रकाशन भी किया था किंतु यह जीवनी फिर भी चर्चा में नहीं आ सकी | कराची छावनी में तत्कालीन समय में ‘आंबेडकरी भजनी मंडल’ की स्थापना के माध्यम डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  के विचारों का प्रसार किया जाता था | इस समय युवा कार्यकर्ताओं में बाळकृष्ण कदम, तुकाराम रत्नाजी मुणगेकर, गोपाळ काळू माने, लक्ष्मण मोहिते-कादवलकर, गोविंद सावंत-करंजेकर प्रमुख थे | म्युनिसिपल कौन्सेलर काळू उमाजी माने ने जनता साप्ताहिक की आर्थिक सहायता के लिए ‘जनता सहाय्य समिति’की स्थापना की थी | कराची के रतन तालाब, सदर में इन कार्यकर्ताओं ने एक कार्यालय बनाया था जिसे कराची में अम्बेडकर  आंदोलन का प्रमुख केंद्र माना जाता था | प्रस्तुत जीवनी से कुछ अंश मूल मराठी से हिंदी में अनूदित कर प्रस्तुत किए गए हैं |

डॉ.अम्बेडकर 
(डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर  की 1946 में कराची से प्रकाशित सर्वप्रथम जीवनी)
जीवनी लेखक- तानाजी बालाजी खरावतेकर, बीए
प्रकरण एक 
वर्णव्यवस्था के समय से दबाएँ-कुचले गए दलित समाज को जागृत अवस्था में लानेवाले बनावटी और दिखावे के हिंदुत्व का हमारे भीतर संचार हुआ है ऐसी शेखी बघारने वाले हिन्दुओं कि छाती पर बैठकर वास्तविक कसौटी परखने वाले और अनायास ही अस्पृश्य वर्ग पर छींटे उड़ाने वाले अधमी लोगों के मुहँ पर कायम के लिए और खुलकर कालिख पोतनेवाले ऐसे हमारे परमपूज्य डॉ. भीमराव रामजी उर्फ़ बाबासाहेब अम्बेडकर  का जन्म तारीख 14 अप्रैल 1892  को उत्तर हिंदुस्तान के महू में हुआ था | डॉ.अम्बेडकर  के जन्म के समय उनके पिता कै.रामजी मालोजी सूबेदार इसी जगह पर सैनिक थे|

प्रकरण बारह
ईश्वर की राह
डॉ.अम्बेडकर  के कहे गए बोल यहाँ दिए बिना मन नहीं मान रहा हैं इसलिय यहाँ दे रहा हूँ –
“हमारा हिंदू धर्म पुरातन हैं| ग्रीक, रोमन जैसी पुरातन और प्रसिद्ध राष्ट्रों का नामोनिशान मिट गया हैं लेकिन हमारा हिंदू समाज आज भी जिंदा हैं हिन्दुओं द्वारा ऐसी शेखी अक्सर बघारी जाती हैं | इस दो कौड़ी के जीवन को जीना ही मनुष्य का मकसद नहीं होना चाहिए | मनुष्य आत्मसम्मान के साथ जी रहा हैं या नहीं इस बात महत्व इस बात का हैं | इस दृष्टिकोण से देखने पर पता चलता  हैं कि सिर्फ जिंदा रहकर ही हिंदू समाज ने कौनसी दिग्विजय प्राप्त कर ली ? दूसरों लादी गयी दासता को बेशर्मी से स्वीकार करने के अलावे उसने क्या किया हैं ? ऐसे जीवन जीने का भला क्या मतलब | अपने बल अपनी ताकत पर दो दिन जिंदा रहना सौं साल के गुलाम जीवन जीने से लाख गुना बेहतर हैं | दो लोगो कि लड़ाई में कोई एक पलायन करके भी अपना जीवन जी लेता हैं वहीँ दूसरा अपने प्रतिद्वंद्वी को हराकर जीवन जीता हैं | भागकर और दूसरों के वर्चस्व को स्वीकारते हुए जीवन जीने वाला मनुष्य भला क्या प्राप्त करता हैं ! वह गुलाम बनकर अपने स्वत्व को भूल जाता हैं और गुलामों के काफिलों की संख्या बढ़ता हैं बल्कि ऐसा मनुष्य नामर्दांगी का फैलाव करने लगता हैं इससे बेहतर तो उसका मर जाना हैं इसमें क्या बुराई हैं ? हिंदू समाज दूसरों का दास और गुलाम बनकर ही क्यों रहा इसपर विचार करने पर पता चलता हैं कि वे अपने उद्धार के लिए “ईश्वर की राह” ताकते हुए बैठे थे यही इसका कारण हैं यह मेरी दृढ़ मान्यता हैं | इस दुनिया में ईश्वर हैं या नहीं हैं इसपर विचार करते रहना आपके लिए एक अनावश्यक शगल हैं |

प्रकरण ग्यारह
तत्व/दर्शन
डॉ.साहब द्वारा प्रतिपादित दर्शन इस प्रकार हैं-
• जिस धर्म में मनुष्य का मनुष्य के साथ मानवतापूर्ण व्यव्हार का निषेध हैं वह धर्म न होकर आधिपत्य की एक सजावट हैं |
• अपनी वाणी में ईश्वर एक हैं कहनेवाले और कर्म में मनुष्य को पशुतुल्य माननेवाले लोग दाम्भिक हैं उनकी संगत नहीं करें |
• अशिक्षितों को अशिक्षित, निर्धनों को निर्धन रहने कि शिक्षा देनेवाला धर्म नहीं वस्तुतः दंड का एक विधान हैं |
• जिस धर्म में मनुष्य कि मनुष्यता कि पहचान करना अधर्म माना जाता हैं वह धर्म न होकर एक रोग हैं |
• चींटियों को शक्कर खिलानेवाले और मनुष्य को पानी न पीलाकर मार देनेवाले लोग दांभिक हैं उनकी संगत नहीं करें |
• जिस धर्म में किसी पशु के स्पर्श हो जाने को स्वीकार किया जाता हो और मनुष्य का स्पर्श निषिद्ध हो वह धर्म न होकर एक पागलपन हैं |
• जो धर्म किसी वर्ग विशेष के विद्यार्जन, धनसंचय और शस्त्र धारण करने पर रोक लगाने कि शिक्षा देता हो वह धर्म न होकर मनुष्य जीवन कि एक विडंबना हैं |
• दूसरों को अपने पास करनेवाले और अपनों को अपने से दूर धकेलने वाले समाजद्रोही हैं उनकी संगत नहीं करें |
जयभीम वाला दूल्हा चाहिए

प्रकरण दस
राजनीतिक नेताओं से तुलना
डॉ.बाबासाहेब, महात्मा गाँधी जैसे ही लोकप्रिय हैं | उनकी जगह जवाहरलाल नेहरु के समाजवाद की वास्तविकता का डेरा हैं लेकिन वह सिर्फ नाममात्र के लेखन या व्याख्यान के लिए ही सीमित नहीं हैं | वे कट्टर जातिनिष्ठ हैं किन्तु अपनी जाति अधिकारों कि मर्यादा उनकी संख्या के अनुपात से बाहर जाकर बैरिस्टर जिन्ना के समान जातिवाद को मिटाने कि संभावनाओं को उन्होंने ख़त्म नहीं किया हैं | राजगोपालाचारी की व्यावहारिक राजनीति की तरह राजनीति और समाजशास्त्र के लेखक भी वे हैं | सर तेजबहादुर सप्रू के राजनीतिक अध्ययन कि तरह डॉ.साहब का राजनीतिक अध्ययन गहरा हैं लेकिन सर सप्रू कि तरह के वे नरमदलवादी भी नहीं हैं | लोकमान्य तिलक कि तरह वे राजनीतिक दावपेंच बेलगाम खेलते हैं परंतु उनकी तरह पुरातन रूढ़िवादिता से चिपके रहने के वे आदि भी नहीं  हैं |
सारांश, बाबासाहब के भीतर, गांधीजी सी लोकप्रियता, जवाहरलाल जैसा समाजवाद, बैरिस्टर जिन्ना की जातिनिष्ठता, राजगोपालाचारी जैसी व्यावहारिक राजनीति, सर सप्रू सी राजनीतिक अध्ययनशीलता, लोकमान्य तिलक जैसे राजनीतिक दांवपेंच और सुभाषचंद्र बोस के समान साहसी गुणों का समन्वय हुआ हैं|

प्रकरण नौ
राजनीतिक कर्तव्य
हमारी उन्नति कैसे होगी ? इसका संपूर्ण विचार करने पर अस्पृश्य वर्ग को ज्ञात हुआ कि मनुस्मृति को जलाने के बाद वर्णव्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह किया जाए | ऐसा करने का कारण हैं कि उस समय के सपृश्य सवर्णों द्वारा अस्पृश्यों का अतिशय अमानवीय दमन | अस्पृश्य होने का अर्थ हैं कि आपको व्यापर का अधिकार नहीं, खेती करने और क्षत्रियों के समान शस्त्र धारण करने कि संपूर्ण बंदी ऐसी मान्यता पहले के सवर्ण स्पृश्य समाज में व्याप्त थी |
ऐसी मान्यता कितनी मूर्खतापूर्ण थी इसे बताने का अब औचित्य भी नहीं हैं किंतु इस कारण ऐसा हुआ कि स्पृश्य वर्ग ऊपर कि ओर बढ़ता गया और अस्पृश्य वर्ग नीचे मुहँ बाहे खड़ा रहा | उसके हाथ सत्ता नहीं होने के चलते उसकी गुलामी से भरी दासता कायम रहीं | डॉ. साहब ने जैसे ही इस बात को अपने हाथों लिया वैसे ही इस पुरातन मान्यतावाली जमीन पर एक नई दिशा की शुरुआत हुई |
डॉ.साहब की राजनीतिक लड़ाई के प्रमुख प्रसंगों को देखा जाए तो उसमें – 1919 का कानून, सायमन कमीशन, राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस, पुणे पैक्ट 1935 का कानून, 8 अगस्त 1940 की घोषणा और सर क्रिप्स का आगमन – यह क्रम हैं तब इनपर क्रमवार विचार करना उचित होगा | इस जीवनीकी प्रस्तुत भूमिका के अंत में तानाजी बालाजी खरावतेकर अपनी सघन भावनाओं को प्रकट करते हुए लिखते हैं – मुझे स्नेह करनेवालों ने इस जीवनी के लेखन में मेरा सक्रीय साथ दिया हैं | उनके प्रोत्साहन के बल पर मैं इसे लिख पाया हूँ आगे भी वे इसी तरह मेरा साथ देंगें | मेरे अस्पृश्य जाति बंधू और भगिनियों से निवेदन हैं कि वे इस किताब को अपने बच्चों को पढने के लिए दें अपने समाज के उत्कर्ष कि स्फूर्ति को वे अपने ह्रदय में उत्पन्न करेंगें ऐसा इस पुस्तक को लिखने का मेरा एकमात्र उद्देश्य हैं | सत्य संकल्प के दाता दयाधन परमेश्वर इस इच्छा को पूर्ण करें |
ता.बा.खरावतेकर, कराची, 29.3.1946

स्त्रीवादी आंबेडकर की खोज
1. प्रकाशन 
2.  जन्म 14 अप्रैल 1891, मध्यप्रदेश के महू में हुआ | लंबे समय तक लोगों में डॉ.आंबेडकर के जन्म वर्ष को लेकर एकमत नहीं था | उनके कॉलेज रजिस्टर से 14 अप्रैल 1891 की पुष्टि, बाद के जीवनीकारों ने की है| 


स्त्रीकाल के संस्थापक सदस्यों में रहे संदीप मधुकर सपकाले महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. संपर्क: 8668784132



फोटो: गूगल से साभार 
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