अमानवीय सौन्दर्यधारणाओं से मुक्ति श्रीदेवी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी!

नीलिमा चौहान 


श्रीदेवी के देहावसान के साथ ही एक सिने युग का  भी आज अवसान हो गया । आज व्यक्त किये गये  सम्वेदना संदेशों को पढकर  यह साफ जाना जा सकता है कि सुंदर और नयनाभिराम के भी नश्वर होने के यथार्थ को जाहिर करती इस दुर्घट्ना ने उनके प्रशंसकों  की पीड़ा को द्विगुणित किया  । क्या ही सितम  है  कि सुनहले पर्दे के मायावी रूप से अतिप्रभावित भारतीय दर्शक नायिका -सौंदर्य के भी अतिमानवीय रूप का उपासक है ।   दर्शकों के लिए ग्राह्य होने की कसौटी पर खरे उतरने के लिए नायिकाओं को जिन पीड़क प्रकियाओं और कृत्रिम जीवन शैली का पालन करना होता है उसके प्रति अज्ञानता और उदासीनता भारतीय दर्शक का पसंदीदा शगल है । अभी श्रीदेवी के जाने की ताज़ा पीड़ा के  ताज़ा पलों के कारुण्य में  रसाघात करने की धृष्टता करना  अपेक्षित नहीं होगा । किन्तु इतना तो कहा ही जा सकता है कि र्सौन्दर्योपासना करने वाली भारतीय रसना को अपने टेस्ट बड्स को बदलने की घोर ज़रूरत को भी इस अवसान से जोड़कर देखना शुरू करना होगा ।

अभी बीते दो रोज़ से सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर सोनम कपूर के द्वारा सुंदरता के मिथक का सच बताते हुए टीनेज लड़कियों को लिखे गए पत्र और तस्वीर की खूब चर्चा हुई है। लेकिन वहीं दूसरी ओर उनके इस कदम को सोशल मीडिया पर फॉलोअर की बाढ़ को न्योतने का स्टंट कहकर नज़रअंदाज़ किये जाने की पहल भी की गई ।  इसे पब्लिसिटी का एक तरीका कहकर कमतर साबित करना ,अपेक्षाकृत प्रबुद्धों की सहज और जायज़ प्रतिक्रिया हो सकती है ।लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सेलेब्रिटीज़ के द्वारा जन-जागरूकता पैदा करना शुष्क उपदेशात्मक लेखकीय कर्म की तुलना में अधिक असरकारक होता ही है । प्लेसिबो इफेक्ट है यह । जिन तमाम लड़कियों ने ब्यूटी के इस आदर्श को पहले प्राप्य मानकर सपने देखे और फिर असफल मानकर कुंठाग्रस्त हुईं उनके लिए ।

परिणिति चोपड़ा द्वारा स्ट्रेच मार्क्स को पब्लिकली फ्लॉन्ट किया जाना और सोनम का यह स्टंट अगर उनके फैन क्लब में इजाफा करता है तो यह एक अलग और ग़ैरहानिकारक मसला है । जिन आम साधारण लड़कियों ने सुनहले पर्दे की रूपसियों के सौंदर्य  को अंतिम पैमाना और आखिरी लक्ष्य समझकर यह  मान लिया था कि ” हमारा कुछ नहीं हो सकता ” उनके लिए ब्यूटी मिथ को तोड़ने का यह कारगर तरीका हो सकता है । सोनम के इस कृत्य से ब्यूटी बाज़ार की मजबूत दीवार पर एक डेंट तक न पड़ने का तर्क इसलिए भी नज़रअंदाज़ किया जा सकता है क्योंकि बाज़ार तो उपभोक्ता के जेहन के भरोसे टिकता है । चोट और बदलाव वहीं किया भी जाना है और इस बाबत किसी फिल्म तारिका के द्वारा इस मिथ को छिन्न भिन्न किया जाना स्वागत योग्य पहल ही कही जानी चाहिए । विद्या बालन ने स्त्री के आदर्श फिगर के मिथ को जिस खूबसूरती के साथ खारिज कर दिखाया है उसी कड़ी में सोनम और परिणिति का यह कदम भी शामिल कर कम से कम हम उदाहरण सहित यह जतला सकेंगे कि सौंदर्य के तथाकथित मानदंडों पर खरे उतरने की पीड़ा उठाना बेमानी भी है और अव्यावहारिक भी । अनिवार्य तो कतई भी नहीं ।

सुनहले पर्दे की सुंदरता के आतंक का भंडाफोड़ होने की परिघटनाएं स्त्रियों के सामने जितनी ज्यादा पेश होंगी अपनी देह के लिए उतना ही सहज होना सीख पाएंगी । कल को इतना तो अवश्य होगा कि जब आदर्श सुंदरता के मिथ को भुनाकर ये सितारे हमारे मन व जेब को आतंकित करने की कोशिश में रत होंगे तो हमको जन्नत की हकीकत मालूम होगी । और तब यह किसी स्त्री की अपनी फ्री च्वाइस होगी कि वह बाज़ार के ज़रिए उस खोखले ब्यूटी मिथ को साकार करने को कितनी लालायित हो या न भी हो ।

अबतक हमने स्त्री -मन को एक लाज़मी लेकिन नामुमकिन और नाहासिल किस्म की सुंदरता  के पाने के लिए झोंके रखा था । क्या ही सुंदर बात है कि लड़्कियों को इस जालसाज़ी को पहचानने की सलाहियत  उन्हीं ब्यूटी आइकॉन्स के ज़रिए  मिल पाने  का मौका बन पड़ रहा है । जब वर्जीनिया कहती हैं कि सुंदरता स्त्री का राजदण्ड है तब उनका आशय स्त्री को उसकी ही देह की कैद में तड़पने देने की साजिश का पर्दाफाश करना होता है । कैद,  जिसकी सुंदरता को बनाए रखना अपने आप में दुष्कर कर्म है । सुंदरता जिसे सय्याद की नजर से देखा और परखा जाना है । कैद जिसको अन्य तमाम कैदों से बेहतर और ध्यानाकर्षण योग्य बनाए रखना है ।  देह की उपेक्षा स्त्री के लिए सर्वाधिक असहनीय है तो देह की तुलना स्त्री को प्रताड़ित करने का अचूक अस्त्र । देह से  परे और देह से ऊपर उठने का विचार स्त्री का भीषण राजद्रोह है । सुनहले पर्दे की तारिकाएँ इस सज़ा के लिए आत्मसमर्पण करने के उपरांत ही अपने पेशे में प्रवेश करने के बाबत सोच भी सकती हैं । विमान परिचारिकाओं और मीडिया के तमाम माध्यमों में पेश होने के लिए तथाकथित सुंदरता को पैमाना बनाकर स्त्री- देह की स्केलिंग करने वाली जमात में सोनम का यह कदम आंखें खोलने वाला कदम कहाया जाना चाहिए । जिस जमात में बारह -पन्द्रह साल की लड़कियां कम खाकर और आईने से दिन भर अपने सुंदर होने का आश्वासन पाकर अपनी ऊर्जा को ज़ाया और आत्मविश्वास को आहत होने दे  रही हों वहाँ एक फिल्म तारिका का अपने सुंदर दिखने के बनावटी तरीकों और आयातित राज़ों को खोलना किसी को क्योंकर खलना चाहिए ।

सोनम कपूर

सिस्टरहुड जाहिर करने के अचूक मौके को हाथ से जाने दिए बिना सोनम कपूर के इस खूब शाया किये जा रहे लेख व तस्वीर को और प्रचारित होने की कामना सहित यह भी अर्ज़ करना चाहती हूं कि रोग नहीं रोग के लक्षणों को लक्षित करने से भी लाइलाज़ मर्ज़ के प्रति इम्यूनिटी में इज़ाफ़ा होता है। तो  जी तो आन दो न और ऐसे फिल्मी स्टंट। श्रीदेवी को उनके मुरीदों की सच्ची श्रद्धांजलि भी यही होगी कि स्त्री – सुंदरता को अपनी अमानवीय पूर्वधारणाओं से आज़ाद कर दिया जाए ।

पेशे से प्राध्यापक नीलिमा ‘आँख की किरकिरी ब्लॉग का संचालन करती हैं. प्रकाशित पुस्तकें: पतनशील पत्नियों के नोट्स, ‘बेदाद ए इश्क’ (संपादित) संपर्क : neelimasayshi@gmail.com.
 
तस्वीरें गूगल से साभार 

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