स्त्री देह में कैद एक पुरुष हूँ मैं…

डिसेंट कुमार साहू 


आखिर वह भी तो इससे परेशान ही थी कि स्त्री देह में जन्म लेने के बाद अपने शरीर से एकाकार नहीं कर पा रही थी। बचपन से सब कुछ तो सही ही चल रहा था किन्तु उम्र के बढ़ने के साथ ही धीरे-धीरे वेदिका को अपना ही शरीर आखिर बंधक क्यों लगने लगा? वेदिका 9 वर्ष की उम्र में ऐसा क्या महसूस करने लगी थी जो अपने ही शरीर को बंधक मानने लगी थी? इस बारे में वेदांश (अब वेदिका को वेदांश कहलाना पसंद है) कहते हैं-“8-9 साल की उम्र तक मैं बिलकुल लड़कियों की तरह रहा। मुझे लंबे बाल रखना, चूड़ी पहनना, लड़कियों वाले कपड़े पहनना अच्छा लगता था, पर दसवें साल तक आते-आते अचानक इन सब चीजों से जैसे कोई लगाव ही नहीं रह गया। अब यह सब करना काफ़ी तकलीफदेह लगने लगा। तब मैंने 13 साल की उम्र में लड़कों जैसे कपड़े पहनना व रहना शुरू कर दिया। हालांकि यह सब करने के लिए खुद पर कभी दबाव नहीं डालना पड़ा, यह सब कुछ सहज व स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत ही होते जा रहा था। हाँ, बाल जरूर लंबे ही थे जिसे घर वालों के कारण काटने की हिम्मत नहीं हुई।”

आगे वह बताते चले गये कि मैंने कई बार अपने घर वालों को बताने की कोशिश की लेकिन वे सुनने को तैयार ही नहीं थे कि उनकी बेटी या कहूँ उनका ‘बेटा’ क्या महसूस करता है। यह उस दिन की बात है जब मैंने पहली बार माँ के सामने ही कहा था कि “अब मैं ऐसे नहीं रह सकता, मुझे यह शरीर किसी कारागाह की तरह लगता है जिसने मुझे कैद कर रखा है। मैं लड़कों की तरह महसूस करती हूँ।” लेकिन माँ को मेरी बात कुछ भी समझ नहीं आई थी, माँ ने उस वक्त बस इतना भर ही कहा कि “21-22 साल तक ठीक हो जाओगी, बहुत सारी लड़कियां ऐसी होती है जिन्हें लड़कों की तरह रहना अच्छा लगता है।” “माँ के सामने मैंने जो बात कही थी वह न तो कोई मज़ाक था और न ही कोई मामूली बात ही थी, जो मैंने यूं ही कह दी हो, यह बात समझने में मुझे 19 साल लग गए कि मैं स्त्री देह में कैद एक पुरुष हूँ। हाँ, कोई दो साल पूर्व की ही तो बात है जब एक ट्रान्सजेंडर (FTM) से मेरी मुलाक़ात हुई थी और उससे मैंने अपने अनुभव साझा किया था, तो उसने मुझे अपने आप से मिलवाया था, लेकिन यह मुलाक़ात भी तो खुद को ढूंढते हुए ही हुई थी। उसके कहने पर ही तो ढेर सारी किताबें तथा वीडियो देखा था जिससे अपनी पहचान को लेकर दृढ़ हुआ, शायद इसी से तो हिम्मत मिली थी कि अपनी बात घर वालों से कह सकूँ।”

जिस उम्र में हम विपरीत लिंगी लोगों के प्रति आकर्षित होने लगते हैं, वेदिका ने पाया कि वह तो लड़कियों के प्रति ही आकर्षित हो रही है। इस एहसास ने उसे सबसे ज्यादा खुद को समझने के लिए बाध्य कर दिया। एक दसवीं की लड़की को ग्यारहवीं कक्षा की मानवी पसंद आने लगी, वह दिल ही दिल मानवी को पसंद करने लगी। मानवी न उसके स्कूल की थी और न ही उसके मोहल्ले की, लेकिन एक जगह थी जहां दोनों की मुलाक़ात हो जाती, वह जगह थी ट्यूशन क्लास। मानवी महसूस कर रही थी कि वेदिका उसके आस-पास वैसे ही चक्कर लगाने लगी थी जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका के। चूंकि वेदिका, मानवी के लिए लड़की ही थी इसलिए वेदिका का उसका ख्याल रखना, उसके लिए दूसरों से लड़ जाना, ज़्यादातर समय साथ रहना सब सामान्य बात ही थी। वेदिका खुद शारीरिक रूप से लड़की होने के कारण एक तरफ तो अपने दिल की बात कहने से डरती, तो दूसरी तरफ मानवी के प्रति अपने आकर्षण के बावजूद वह इस आकर्षण को तब तक गलत ही मान रही थी क्योंकि उसने अब तक लड़का-लड़की को ही प्रेमी-प्रेमिका के रूप में अपने आस पास देखा था। इन तमाम सवालों और उलझनों के बावजूद उसके साथ रहने व प्यार जताने का वह कोई भी मौका नहीं छोड़ती थी, इससे मानवी को भी एहसास होने लगा था कि वेदिका उसकी बेहद परवाह करती है। उन दिनों को याद करते हुए मानवी कहती है “मैं यह महसूस करती कि वो मेरा ख्याल रखता है, मेरा सपोर्ट करता है, मेरे लिए उसका झुकाव था, इन सबके बावजूद वह मेरे लिए थी तो लड़की ही। मैं सोचती थी कि हमारे बीच इससे ज्यादा रिश्ता तो नहीं हो सकता था। इस कारण मैं वेदिका से भागने लगी थी।” वेदिका पहले तो खुद को लेस्बियन समझने लगी थी, किंतु गहन अध्ययन और खुद के अनुभवों से उसने जाना कि उसका सिर्फ यौन आकर्षण ही लड़कियों की तरफ नहीं थी बल्कि वह खुद को पुरुष के रूप में देखना ज्यादा पसंद करती है। अब वह निश्चित होती जा रही थी कि वह लेस्बियन नहीं है।

उसने कई बार घर वालों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बताने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रही। इस बीच उसकी समस्या और बढ़ गई जब 19 साल की उम्र में उसके शरीर में किशोरावस्था के कारण बदलाव आने लगे थे, शरीर में आया अनचाहा बदलाव उसके लिए असहनीय था। बढ़ती उम्र के साथ शरीर में आ रहा बदलाव उसे तनाव में डालने लगा। अचानक बढ़ता हुआ स्तन उसके लिए अभिशाप बन चुका था, मासिक धर्म अब भी ऐसी अनचाही पीड़ा है जो शारीरिक से ज्यादा मानसिक रूप से तोड़ देती है, हालांकि इसकी शुरुआत 12-13 वर्ष की उम्र में हो चुकी थी जो अन्य लड़कियों के साथ भी होता है। यह जैसे एक अलार्म हो जो बीच-बीच में उसे उसकी स्त्री शरीर में कैद होने का अहसास कराती हो। ऐसे में यह स्वाभाविक ही था कि उसे अपने ही शरीर से घृणा हो जाए। इस बारे में वेदांश कहते हैं कि, “अगर मासिक धर्म को छोड़ दें तो 18 वर्ष की उम्र तक मेरा शरीर लड़कों जैसा ही था, आप समझ सकते हैं जब 18 के बाद शरीर में अचानक बदलाव आया होगा तो उसका क्या असर हुआ होगा मेरे ऊपर। मैंने सभी जगहों पर जाना बंद कर दिया, लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया। ऐसा नहीं है कि यह सब मैंने जानबूझकर किया हो, पर जब आप ऐसी जटिल स्थिति में हों तो कुछ सोच-समझ पाना और निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है।” अब वह घर की चाहरदीवारी के भीतर खुद में सिमट कर रह गया था। शायद वह दुनिया के सामने बोझ बन चुके अपने उस दैहिक पहचान के साथ आना नहीं चाहता था, वह ऐसी लिंग भूमिका (जेंडर रोल) अदा नहीं करना चाहता था जिस भूमिका के लिए वह मानसिक रूप से तैयार न हो।
मन और शरीर के बीच चल रहे अंतर्द्वंद्व का असर यह हो रहा था कि वह अपने पढ़ाई में भी ध्यान नहीं दे पा रहा था। उसने कई बार प्रयास किया कि वह अपने पढ़ाई पर ध्यान दे लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था, परिस्थितियाँ वेदांश के लिए जटिल होती जा रही थी। एक तरफ ज़िंदगी दो पहचानों के बीच झूल रही थी तो दूसरी तरफ अपने कैरियर को भी नष्ट होते हुए वह देख रहा था। ऐसे में उसने फिर एक बार निश्चय करके घर वालों को सब कुछ बता देने की ठानी। उसे अपनों से उम्मीद थी कि वे उसे समझेंगे तथा इस कठिन घड़ी में उसका साथ देंगे लेकिन उसने जब घर वालों को हिम्मत जुटाकर यह बात बताई तो घर वाले उसे डाक्टर के पास ले गए। वहां उसके शरीर की जांच हुई। जांच के बाद डाक्टर ने कहा- “सब कुछ ठीक है बस तुम्हें एक छोटा सा काम करना होगा। तुम्हें अपना दिमाग बदलना होगा। क्योंकि सेक्स बदलना न आसान है और न ही बहुत ज्यादा सफल।” “उस दिन मैं बहुत रोया, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा है!” क्या सही और क्या गलत! खुद की पहचान को अपनों द्वारा स्वीकार न किए जाने की त्रासदपूर्ण स्थिति थी। इन तमाम परेशानियों के कारण अपनी पढ़ाई पर ध्यान ना दे पाना वेदांश को अंदर ही अंदर तोड़ता जा रहा था, वह निराशा के गर्त में धंसता जा रहा था। इस परिस्थिति से हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा पाने के लिए उसने आत्महत्या करने की कोशिश भी की। वेदांश कहते हैं “आप परिवार से लड़ सकते हैं, दूसरे लोगों से भी लड़ सकते हैं लेकिन जिंदगी के हर एक पल खुद से नहीं लड़ सकते। हमारी लड़ाई हर एक पल अपने आप से होती है। यही कारण है कि ट्रान्सजेंडर में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है।”

बहरहाल सुखद पहलू तो यह है कि जिस लड़की को वह चाहने लगा था अब वह भी उसे चाहने लगी है, दोनों ने हर कदम साथ चलने का वादा किया है। आज जब परिवार, समाज उसके खिलाफ खड़ा है तो वह लड़की ही एक मात्र है जो उसे उसकी पहचान के साथ स्वीकार कर रही है। मानवी, वेदांश को लड़के के रूप में स्वीकार करने के सवाल पर कहती है “मैंने यह देखकर प्यार नहीं किया कि वो क्या है, मैं बस उसे एक अच्छे इंसान के रूप में देखती हूँ। वह जैसा रहना चाहता है, उससे मुझे कभी कोई समस्या नहीं हुई।” मानवी बातचीत के बीच में ही मजाकिया लहजे में कहती है “हमारे बीच सबसे ज्यादा समस्या आपसी संबोधन को लेकर हुई, जो अब तक मेरे लिए लड़की थी उसके लिए अब मुझे लड़कों वाला सम्बोधन करना था।” इस रिश्ते में एक समय ऐसा भी आया था जब वेदांश ने मानवी को बता दिया था कि वो शायद उसका साथ न निभा पाए, अतः दोनों इस रिश्ते को तोड़ दे। जब खुद की पहचान ही अनिश्चित हो और परिवार, समाज उसे समझने के लिए तैयार न हो तो ऐसे में वह नहीं चाहता था कि उसकी वजह से किसी और की ज़िंदगी तबाह हो। इसके बावजूद मानवी ने वेदांश का साथ नहीं छोड़ा, उसने वेदांश को विश्वास दिलाया कि वह उसके साथ हमेशा रहने वाली है। मानवी कहती है “आज भी ऐसा नहीं है कि उसने मुझे प्रपोज किया हो या मैंने प्रपोज किया हो, लेकिन कुछ ऐसा था जिसे हम दोनों ने ही महसूस किया और आज हम एक दूजे के साथ हैं। यह मानवी का ही प्यार है कि वेदांश परिवार और समाज से दो-दो हाथ करने को तैयार है। वेदांश इस बारे में कहते हैं “मैंने उससे कहा कि मैं यह रिलेशनशिप कायम नहीं रख सकता, उस समय तो वह मान गई लेकिन यह उसी की कोशिश थी कि आज हम साथ-साथ हैं। उसके प्यार ने ही मुझे अहसास दिलाया है कि अगर मैं इस रिश्ते के लिए नहीं लड़ा तो मेरे जीवन में रह ही क्या जाएगा?”

यह कहानी वेदांश और मानवी के साथ बातचीत पर आधारित है। यहाँ दोनों के नाम बदले गये हैं। 

(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के समाजकार्य विभाग में पी-एच.डी. शोधार्थी हैं.  संपर्क: dksahu171@gmail.com, मोबाइल: 9604272869 )

तस्वीरें गूगल से साभार 
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