ब्रा पहनने के नहीं पुरुषों के आचरण की संहिता बने

स्वरांगी साने

 साहित्यकार, पत्रकार और अनुवादक स्वरांगी की रचनाएं  विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. संपर्क : swaraangisane@gmail.com

महिलाओं के मामले में दुनिया एक सी है. 10 मई को भारत के एक स्कूल ने छात्राओं को सकीं कलर का ब्रा पहनने का हुक्मनामा जारी किया तो 19 मई को टेक्सास के एक स्कूल में ब्रा न पहनने पर एक छात्रा को स्कूल से लौटा दिया गया. पहली सदी में प्राचीन ग्रीस में जब महिलाओं ने पहली बार कंचुकी पहनी थी..उससे पहले क्या लगातार बलात्कार होते थे? इस सवाल के साथ स्वरांगी साने का लेख: पुरुषों के आचरण की संहिता बने: यदि घर की बड़ी-बूढ़ी औरतें हो, युवतियाँ या बच्चियाँ हों तो उनमें घुस-घुसकर न बैठें..उनसे दो हाथ दूर रहकर बात करें सहित कई संहितायें…

पहली सदी में इतिहास मिलता है कि प्राचीन ग्रीस में जब महिलाओं ने पहली बार कंचुकी पहनी थी..उससे पहले क्या लगातार बलात्कार होते थे?
यह सवाल इसलिए ‘क्योंकि’ इतनी सदियाँ बीत जाने के बाद अब ऐसा लगता है,‘क्योंकि’ 19 मई 2018 की खबर है कि जब ब्रिटनी कोहेलो अपने टैक्सास के हार्कर हाइट्स हाई स्कूल पहुँची तो सहप्राचार्य ने उसकी ‘क्लास’ ले ली,‘क्योंकि’ वह ‘ब्रा’ पहनकर नहीं आई थी। ब्रिटनी कहती है कि उसके स्कूल के ड्रेस कोड में नहीं लिखा कि ब्रा पहनना ज़रूरी है। बिल्कुल आप किसी भी स्कूल के नियम देख लीजिए ऐसा कोई दुराग्रह ‘लिखित’ में नहीं होता पर लिखित में न होने का यह मतलब नहीं कि वैसा दुराग्रह होता ही नहीं है। उससे आठ दिन पहले 10 मई 2018 को दिल्ली के डीपीएस स्कूल में फरमान जारी हुआ कि लड़कियाँ ब्रा के साथ स्लिप भी पहनें। उन्हें यह भी हिदायत दी गई कि वे स्किन कलर की ब्रा पहनें। ताकि लड़कों का ध्यान भंग न हो! सही बात है…प्राचीन काल में भी पहुँचे हुए ऋषी-मुनियों का ध्यान टूटा है, उनकी ही तपस्या भंग हुई है। स्वयं पर नियंत्रण न रख पाने की उनकी ‘पौरूषीय कमज़ोरी’ की खबरदारी भी स्त्रियों / अप्सराओं को ही रखनी है।

…और हर दिन नए फ़रमान! भारत से लेकर दूर-सुदूर…तथाकथित उन्नत विकसित समाज में भी यही शोर…इतनी ही हिदायतें, इतनी ही पाबंदियाँ.. लड़की ब्रा पहनें ताकि लड़के ताकें न…लड़के न हुए लालच की टोकरी हो गए..जहाँ जगह मिली, लगे लार टपकाने..और उनकी लार न टपके…उन पर कोई तोहमत न आए..कोई आँच न आए…इसलिए टोकरी को ढाककर रखो, सात दीवारों के भीतर छिपाकर रखो।

हमें तो शुक्रगुज़ार होना चाहिए उन लोगों का जो नवजात कन्या से यह नहीं कह रहे कि अरे माँ के गर्भ से ही पूरे तन को ढककर इस दुनिया में आना था…पूरे कपड़े, बदनभर कपड़े…ऐसे कपड़े, वैसे कपड़े…और लंबा घूँघट-बुरका…उसके बाद भी वह डरी-सहमी कि अब कुछ हुआ, तब कुछ हुआ…

राकेश कुमार की शॉर्ट फ़िल्म है-‘नेकेड’, कल्कि कोचीन और रीताबरी की..जिसमें बलात्कार के कारणों पर कल्कि का संवाद है कि ‘सेक्चुयलिटी और न्यूडिटी की बात नहीं है, कंट्रोल, पावर की बात है… पुरुष इनसेक्योर होते हैं रिजेक्ट हो जाने से डरते हैं…बचपन से लड़कियों को सिखाया जाता है ये मत करो, वो मत करो, यहाँ मत जाओ वहाँ मत जाओ और मर्दों को नहीं। तो वे बड़े ही होते है कि ये उनका बर्थ राइट है और हम (लड़कियाँ) बड़ीहोती हैं कि हमारा कोई राइट नहीं’।
आगे उसका रीताबरी से संवाद है- ‘तुमने बहुत सेक्सी ब्रा पहनी है, लेकिन जब तुम आई तो यू कवर योरसेल्फ क्यों?’
रीताबरी का जवाब-‘मैं ऑटोरिक्शा में आई थी, लोग घूरते हैं’।

14 वीं सदी में खिलाड़ियों की पेंटिंग

लौटते हैं अपनी बात पर..यही, बिल्कुल यही बात है। कोई आधा बदन उघाड़े पुरुष खड़ा हो तो हम अपनी बेटियों-लड़कियों से क्या कहते हैं..उधर मत देखो..पर यदि किसी महिला की ब्रेसियर झलके तो क्या हम अपने बेटों-लड़कों से कहते हैं कि मत देखो!

क्या हमने लड़कों को इस बात के लिए तैयार किया है जिसमें वे ‘न’ का अर्थ समझ सकें…कभी लड़के से कहा है ढंग से बैठें, ढंग के ढके कपड़े पहने, बनियान में न घूमे…जो गर्मी उसे सता रही है, हाँड़-माँस की उसकी माँ, बहन, बेटी, बीवी को भी सता रही होगी पर तब भी वह पूरे बदन कपड़े ओढ़े है।

दिल्ली के रोहिणी इलाके का डीपीएस स्कूल हो या टैक्सास का हाईस्कूल..क्या फर्क पड़ता है कि उसका नाम ब्रिटनी है या कुछ और…नियम तो नियम है..और उसके लड़की होने के साथ ही वह तैयार है कि आइए मुझ पर नियम लादिए..कल एक नियम था…आज चार लादिए…अब सौ और फिर दो सौ…

इतना बवाल, इतना हो-हल्ला, शब्दकोष में ब्रा का अर्थ ढूँढते हैं तो ब्रा, मतलब ब्रेसियर का अर्थ है छाती को ढकने और सपोर्ट देने वाला महिला का अंतर्वस्त्र।उसमें ऐसा कहीं नहीं लिखा कि इसे पहनने से उनका शील भंग होने से बच जाएगा या यदि वे इसे पहनती हैं तो पुरुष कामुक नहीं होंगे। हम इसे अधो अंतर्वस्त्र कह सकते हैं, तो जब इस आधी दुनिया के आधे बंदों को यह छूट है कि वे अपने अधोवस्त्र मतलब बनियान,चाहे तो पहनें, चाहे तो न पहनें तो महिलाओं को यह छूट क्यों नहीं? नहीं, नहीं मैं सवाल ही बदल देती हूँ जब आधी दुनिया के आधे लोग बिना हमसे पूछे आधे बदन उघाड़े घूमते हैं तो उनका क्या हक बनता है वे सलाह दें कि हम क्या पहनें क्या नहीं…और हम उनकी नसीहत को मानें ही क्यों? एक नसीहत मान लेने पर चार नसीहतें और दी जाएँगी…यदि उनसे अपना चरित्र नहीं सँभलता तो उसकी तोहमत महिलाओं, लड़कियों, बच्चियों पर क्यों?नहीं छोड़ रहे न वे किसी को…छह महीने की बालिका का भी बलात्कार कर डालते हैं…नराधम, नारकीय कौन है? ऐसा लगता है पुरुष एक शिकारी जमात है जो शिकार पर निकलता है और कहीं भी, कहीं भी, किसी भी अकेली स्त्री को देखेगा तो अपने शिकार पर टूट पड़ेगा। क्या उस छह महीने की बच्ची को भी ब्रा पहननी चाहिए? या कि माँ के पेट में ही क्यों न यदि वो कन्या शिशु है तो कपड़े पहन ले…ऐसी तकनीक ईज़ाद कर लीजिए न और फिर मजे लीजिए कि देखा हमने कैसे बाँध कर रखा है स्त्री जात को!

ब्रा बर्निंग आंदोलन

ब्रिटनी को दोपहर घर जाना पड़ा और ब्रा पहनकर स्कूल आना पड़ा, उसने ट्वीट किया कि ‘मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई…’

हाँ यही नब्ज़ है जो दुष्ट प्रवृत्तियों ने पकड़ ली है, वे शर्म महसूस कराते हैं और उन्हें खुद किसी बात की शर्म, लिहाज़ नहीं होता…उससे कहा जाता है कि लड़के उसे उन नज़रों से न देखें इसलिए उसे ब्रा पहननी चाहिए। वह ट्वीट करती है ‘लड़कियों के कपड़े पहनने पर दोष देना बंद कीजिए क्योंकि हमने लड़कों को इस तरह बड़ा ही नहीं किया कि महिलाओं की इज़्ज़त करना उनका अधिकार है’।

दिल्ली के रोहिणी इलाके के डीपीएस स्कूल में जो हुआ वहाँ भी असेम्बली (प्रार्थना सभा) के बाद लड़कों से जाने के लिए कहा गया और कक्षा 9 से कक्षा 12वीं तक की छात्राओं को रुकने की हिदायत दी गई। उसके बाद उन्हें समझाइश दी गई कि अपनी ब्रा को छिपाएँ, केवल स्किन कलर की ब्रा पहनें ताकि वो दिखे न, शर्ट के बटनों के अलावा अतिरिक्त बटन सील लें ताकि दो बटनों के बीच से उनका शरीर न दिखे।

अमा छोड़िए ये सब..मैं तो कहती हूँ ऑनली बॉयज़ स्कूल बना दिए जाए, जहाँ केवल लड़कों को पढ़ने भेजा जाए ताकि लड़कियाँ अपने स्कूलों में सुरक्षित रहें, ख़ुश रहें और खुलकर साँस ले पाएँ..खुलकर जी पाएँ।

नियम पुरुषों के लिए, कुछ आप भी जोड़ें …


1- सड़क पर कहीं भी हल्के होने की जल्दबाजी को नियंत्रित करें।


2- निश्चित करें कि पेंट की जिप लगी है।


3- घर-बाहर, पोर्च में, गलियारे में खुले बदन, बनियान पहनकर न घूमें।


4- शॉर्ट्स पहनना वर्जित है, हमेशा बचपन से फ़ुल पैंट पहनें।


5- यदि घर की बड़ी-बूढ़ी औरतें हो, युवतियाँ या बच्चियाँ हों तो उनमें घुस-घुसकर न बैठें..उनसे दो हाथ दूर रहकर बात करें।


6- किसी भी सार्वजनिक स्थान पर या कहीं भी लड़कियों को बेवजह छूने से बाज आएँ।


7. देर रात तक सड़कों, बाज़ारों में न घूमें, बहुत घूम लिए..अब वह समय और क्षेत्र महिलाओं के लिए छोड़ दें।


8- जिम करें अच्छी बात है, लेकिन शरीर सौष्ठव का प्रदर्शन करना ज़रूरी नहीं।

9. माचो बनने की कोशिश न करें।


10-  याद रखें…महिलाएँ जितना सहन करती हैं, समय आने पर वे उतना ही पलटकर जवाब भी दे सकती है। उनके धैर्य की परीक्षा न लें।


11- ईव टीजिंग का जवाब यदि ईंट का जवाब पत्थर से की तरह मिलने लगा तो मुश्किल हो जाएगी..बेहतर है कि आइंदा ऐसा न करें।


12- सड़क-छाप रोमियो से लड़कियों को नफ़रत है, ऐसा व्यवहार न करें।


यहाँ से आप भी जोड़ें …


13- 

(नियम जोड़ते चलिए…खाना बनाने के नियम, घर में रहने के नियम, ऑफ़िस के नियम…)  चलिए पुरुषों के लिए संहिता बनाएँ और उनसे उसका पालन करवाएँ।

तस्वीरें गूगल से साभार 

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