छः दलित महिलाओं की पहल: सामुदायिक पत्रिका नावोदयम



नूतन यादव 


छः दलित महिलाओं द्वारा की जा रही सामुदायिक पत्रकारिता के बारे में बता रही हैं नूतन यादव: 

हाशिये के समाज से जुड़े गंभीर मुद्दे  अक्सर  मीडिया में स्थान नहीं बना पाते जिसमें महिलाएं और वे भी दलित महिलाओं की आवाज तो बिलकुल अनसुनी कर दी जाती है | ऐसे में छः दलित महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह ने एक सामुदायिक पत्रिका ‘नवोदयम’  के रूप में न केवल मुख्य धारा की मीडिया के समक्ष अपनी पत्रिका शुरू कर  उसमें दलित, गरीब और ग्रामीणों  की समस्याओं को उठाया बल्कि दलित और ग्रामीण महिलाओं को सशक्त करने के नए रास्तों को भी सामने लाने का नया माध्यम बनी |

काम करते रिपोर्टर

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में जमीनी पत्रकारिता एक नए और बेहतर रूप में दिखाई दे रही है | 15 अगस्त  2001 में चित्तूर जिले में  गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत विकास के मुदों पर जागरूकता पैदा करने के लिए  सरकारी पहल के रूप में नवोदयम शुरू हुआ जिसने  आगे चलकर एक प्रकाशन की शक्ल ली | चित्तूर जिले में कुछ महीनों के लिए  डीपीआईपी परियोजना DPIP को लागू करने के बाद इसकी समीक्षा के लिए की गई बैठकों में से एक में यह महसूस किया गया की इस  परियोजना से जुडी गतिविधियों के सार  को प्रेरणा स्त्रोत के रूप में समुदायों तक नियमित रूप से पहुंचाया जाना चाहिए| इसी समय  नवोदयम  पत्र ने जन्म लिया जिसका उद्देश्य सशक्तिकरण के लिए सूचना’ की प्राप्ति था|

इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह पूरी तरह से  ग्रामीण महिलाओं द्वारा चलाया जाता है | नवोदयम की स्थापना इन प्रमुख  चार उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हुई : (1) ग्रामीण गरीबों की आवाज को आगे बढ़कर रखना (2) ग्रामीण महिलाओं को विशेष कवरेज देना  (3) सूचनाओं को ग्रामीणों की पहुँच में लाना  (4) पत्रकारिता को महिलाओं के सशक्तिकरण के साधन के रूप में अपनाना | यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से सरकार द्वारा प्रायोजित था लेकिन इसे चलाने वाली महिलाओं ने अपनी स्वतंत्रता को बनाये रखा और सरकार के  सम्पादकीय हस्तक्षेप को नहीं माना | एक  बात जो नवोदयम को दूसरे पत्रों से  अलग बनाती है वह यही है कि इसका संचालन  पूरी तरह से कम पढ़ी लिखी गरीब महिलाएं कर रही हैं | शुरू में नवोदयम का प्रकाशन  त्रैमासिक के रूप में किया गया था जिसमें केवल आठ पृष्ठ थे  जो बाद में बढती लोकप्रियता के कारण 24 पृष्ठों के मासिक पत्र में बदल गया | ग्रामीण महिलाएं जिनमें अधिकतर दलित है पत्रिका से जुड़े सभी कार्य जैसे रिपोर्टिंग, लेखन, संपादन, ले-आउट, यहाँ तक कि सर्कुलेशन का काम भी संभालती हैं|  वित्तीय प्रबन्धन सहित नवोदयम प्रकाशित करने के तकनिकी पहलुओं को देखने के लिए संवाददाताओं में से एक कोर कमिटी का गठन किया गया जो पत्रिका के कुल बजट का प्रबन्धन करती है|

संस्थापक सदस्यों में से एक सदस्य मंजुला के अनुसार उनकी सबसे बड़ी समस्या भाषा की रही | प्रमुख व्यावसायिक  अखबार उनकी समस्याओं को स्थान नहीं देते थे इसकी वजह उन अखबारों के पत्रकारों की भाषा भी रही | वे अंग्रेजी और  मानक तेलुगू  बोलते समझते थे जिसके कारण वे ग्रामों के भीतर तक नहीं जाते थे और मंडल स्तर की  ख़बरों को ही महत्त्व दिया करते थे | संस्थापक सदस्य और सम्पादक मंजुला ‘नवोदयम’ के बारे में बताती हैं कि शुरू में हम छः महिलाएं ही गाँवों और मंडलों में घूमघूम कर खबरें एकत्र किया करती थी और फिर स्वयं उसका पेज आदि डिजाईन  करती थी और प्रिंट करती थी | अपनी शुरुआत के चार सालों तक इनके पास कोई कैमरा नहीं था तो ये आपस में ही खबर के अनुसार चित्रादि बना लिया करती थी | वे कहती हैं कि आरम्भ में उनसे गाँव वाले अक्सर पूछा करते थे कि पिता या पति होने के बावजूद वे काम क्यों करती हैं?  रात में देर से लौटना या कहीं ठहर जाना भी आपत्तिजनक माना जाता था | मंजुला बताती हैं कि चीजें तब  गंभीर हो गईं जब  कुछ विशेष  स्टोरीज लिखने पर उन्हें मौत की धमकियाँ तक मिली | इसका कारण अचानक आये बदलावों के कारण गाँव में पुरुषों को आ रही परेशानियां थीं|

आज  अन्य अंशदाताओं के अतिरिक्त नवोद्यम के 12 स्थायी सदस्य  हैं| प्रत्येक रिपोर्टर अपनी बीट की खबरें कवर करने के लिए लगभग 5 से  6 मंडल घूमती  हैं | इस पत्रिका में व्यापक रूप से उन्हीं मुद्दों पर लिखा जाता है जिनसे पाठक सीधे तौर पर जुड़े  होते हैं |इस पत्रिका के रिपोर्टर मुख्यतः अपने  गाँवों और उसके  आस पास के परिवेश मे घटने वाली घटनाओं पर ही  चाहे वे स्त्री सशक्तिकरण , घरेलू हिंसा और बाल विवाह जैसे बड़े मुद्दे हों | अथवा  ऐसे छोटे विषय जैसे किस तरह अपना बैंक लोन चुकाएँ इससे पहले कि उसका  ब्याज आपको ख़त्म कर दे |

पत्रिका में काम करने वाले  पत्रकारों के पहले  बैच ने  भी आरम्भ में कई बड़े जनसमूहों को संबोधित किया और अपनी यात्रा की  कहानी साझा की |आज जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ग्रामीण जनता के पास पहुँचने लगा है नवोदयम ने 7 महिलाओं को 10 महीने में वीडियो पत्रकारिता की ट्रेनिंग दी | अब वह 100 से अधिक डॉक्यूमेंटरी फिल्म बना चुकी हैं और अपनी वीडियो क्लिप्स प्रमुख टेलीविज़न नेटवर्कों को उपलब्ध करा रही हैं |
आज जब हम मेन स्ट्रीम मीडिया द्वारा महिलाओं के मुद्दों को कवरेज न दिए जाने का रोना रो रहे हैं ऐसे में नवोदयम महिला शक्ति का  एक प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत करता है |

लाड़ली सम्मान से सम्मानित नवोदयम टीम

चूँकि इलेक्ट्रोनिक मीडिया ग्रामीणों तक पहुँचने में समय लेता है इसलिए नवोदयम ने दस महीने की अवधि में सात महिलाओं को वीडियो पत्रकारिता में प्रशिक्षण दिया है|इन महिलाओं ने सौ से भी अधिक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्में बनाई हैं| दहेज़ पर बनाई फिल्मों ने ग्रामीणों पर गहरा प्रभाव छोड़ा|  जिन ग्रामीणों के बच्चे स्कूल छोड़कर बाल-श्रम करने लगे थे उन्होंने भी इन नवोद्यम की कर्मियों के समझाने पर अपने बच्चों को वापस स्कूल भेजने पर आजी हो गए|इस पत्रिका प्रभाव वास्त्वविक है और सहज ही दिखता है|

आज  मुख्यतः महिलाओं के बीच पढ़ी जा रही इस  पत्रिका की हर पाठिका यह सुनिश्चित करती है कि उनके पति और परिवार के एनी सदस्य भी इसे अवश्य पढ़ें|नवोदयं के संवाददाताओं को जब भी किसी सामाजिक बुराई से जुडी खबर मिलती है  वे तुरंत हरकत में आते हैं और सचमुच में उस पर कोई कार्यवाही करते हैं|नवोदयम कम्युनिटी मैगज़ीन ( तेलुगू ) ने वर्ष 2009 यूएनएफपीए UNFPA लाडली मिडिया स्पेशल जूरी अवार्ड जीता | नवोदयम  जैसी सफल सामुदायिक पत्रिका से प्रेरणा लेते हुए  रेडिओ और फिल्मों का उपयोग कर कई  अन्य पहल भी की जा रही हैं जिससे वंचितों की आवाज समाज और सत्ता तक पहुंचाई जा सके|  यह पत्रिका अपने आप में संघर्ष की एक सफल और अनुपम गाथा है |

नूतन यादव सोशल एक्टिविस्ट और हिन्दी की प्राध्यापिका हैं. सम्पर्क: 9810962991

तस्वीरें गूगल से साभार 
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