आदिवासियों का पत्थलगड़ी आंदोलन: संघ हुआ बेचैन, डैमेज कंट्रोल को आगे आये भागवत

झारखंड, छत्तीसगढ़ के आदिवासी पत्थलगड़ी की अपनी पुरानी परम्परा का नये रूप में अपने अधिकारों को स्थापित करने के लिए राजनीतिक रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं. बिरसा मुंडा की धरती खूंटी से प्रारम्भ हुआ यह आन्दोलन आदिवासी समाज में व्यापक होता जा रहा है. इसका असर झारखंड, छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारों को बेचैन कर रहा है. पत्थलगड़ी का असर इस कदर है कि डैमेज कण्ट्रोल के लिए संघ और संघ प्रमुख को सामने आना पड़ा है. सुमेधा चौधरी की खूंटी से ग्राउंड रिपोर्ट: 

मुर्हू ब्लाक में पत्थलगड़ी

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रायपुर में मंगलवार को संघ के वनवासी कल्याण आश्रम के चिंतन शिविर में कहा कि ‘आदिवासियों के बीच पैदा हुए दुराव को पेसा, वनअधिकार कानून और आरक्षण से कम किया जा सकता है.’ संघ प्रमुख का यह कथन आकारण नहीं आया है, वे पिछले कुछ महीनों से आदिवासियों के पत्थलगड़ी आन्दोलन के असर से पैदा बेचैनी के कारण बोल रहे थे. आदिवासी मामलों से जुड़े तीन केंद्रीय मंत्रियों जुएल उरांव, अनंत हेगड़े, सुदर्शन भगत और एसटी आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय की मौजूदगी में आश्रम के चिंतन शिविर में वे बोल रहे थे. उनके पूर्व  के कई वक्ताओं ने, केन्द्रीय मंत्रियों ने भी आदिवासियों के पत्थलगाड़ी आन्दोलन पर चिंता जतायी और कहा कि ऐसे आन्दोलनों के जरिये लोकतांत्रिक संस्थाओं का विरोध लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.

क्या है पत्थलगड़ी आन्दोलन 
झारखंड में खूंटी और आसपास के कुछ खास आदिवासी इलाके के कई गांवों में आदिवासी, पत्थलगड़ी कर ‘अपना शासन, अपनी हुकूमत’ की मुनादी की शुरुआत साल के शुरुआती महीने में हुई. यह मुनादी इलाकों के ग्राम सभाओं ने शुरू की, जो धीरे-धीरे प्रशासन से टकराव की घटनाओं में भी बदलने लगा. कई गांवों में पुलिस वालों को घंटों बंधक बनाये जाने की घटनाएं भी सामने आई. गौरतलब है कि खूंटी इलाका आदिवासियों के बीच ‘भगवान;’ का दर्जा प्राप्त बिरसा मुंडा का भी इलाका है. 19वीं सदी के आख़िरी वर्षों में आदिवासियों के अधिकारों के लिए बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था और शहादत दी थी. इस लिहाजा से  खूंटी से शुरू हुआ आन्दोलन एक ऐतिहासिक संदर्भ  भी रखता है. 25 फरवरी को खूंटी के कोचांग समेत छह गांवों में पत्थलगड़ी कर आदिवासियों ने अपनी ‘हुकूमत’ का ऐलान किया.

प्रशासन ने अपने प्रारम्भिक कार्रवाइयों में कई ग्राम प्रधानों, आदिवासी महासभा के नेताओं और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा, लेकिन आन्दोलन की गति बढ़ती ही गयी, जिसे लेकर संघ और भाजपा खेमे में बेचैनी है. मुख्यमंत्री रघुबर दास ने अपनी प्रतिक्रिया में इस आन्दोलन को देशद्रोहियों का आन्दोलन भी बता डाला. और अब छत्तीसगढ़ के रायपुर में संघ और भाजपा के नेताओं की प्रत्यक्ष बेचैनी देखने को मिली.

पुरानी परम्परा के अनुसार

पुरानी परम्परा की नई शुरुआत. 

झारखंड के कई बुद्धिजीवियों ने बताया कि पत्थलगड़ी की परम्परा पुरानी है, सिमडेगा, लातेहार जैसी जगहों पर इस परम्परा का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं हुआ है, लेकिन खूंटी इलाके में चूकी खनन क्षेत्र पर सरकार और कंपनियों की नजर है इसलिए वह इस रूप में प्रकट हुआ है. उन्होंने बताया कि बुजुर्गों की याद में, वंशावली की जानकारी के लिए अथवा किसी एनी निर्देश जैसे ग्राम सभा की जानकारियों या इलाके की सीमा आदि की जानकारी के लिए पत्थलगड़ी की जाती है, जिसे शिलालेख भी कहा जा सकता है. शहीदों की याद में भी कुछ जगहों पर पत्थलगड़ी की गयी है.  अब नए स्वरूप में ग्राम सभाओं द्वारा की जा रही पत्थलगड़ी के मुद्दे राजनीतिक हैं. जगह-जगह पत्थलों पर लिखा है:
–पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में संसद या विधानमंडल का कोई भी सामान्य कानून लागूनहीं है. भारत का संविधान के अनुच्छेद 13 (3) क के तहत की शक्ति है.
— अनुच्छेद 19 (5) के तहत अनुसूचित जिला या क्षेत्रों में कोई भी बाहरी गैर रूढी प्रथा व्यक्तियों का स्वतंत्र रूप से आना-जाना, घूमना-फिरना, निवास करना वर्जित है.
–अनुच्छेद 19(6) के अनुसार आदिवासियों के स्वशासन व नियंत्रण क्षेत्र में गैररूढ़ि प्रथा के व्यक्तियों का रोजगार-कारोबार करना या बस जाना, पूर्णतः प्रतिबंध है.
–पांचवी अनुसूचित जिला या क्षेत्रों में भारत का संविधान के अनुच्छेद 244 (1) भाग (ख) धारा 5 (1) के तहत संसद या विधान मंडल का कोई भी सामान्य क़ानून लागू नहीं है. 
–वोटर कार्ड और आधार कार्ड आदिवासी विरोधी दस्तावेज हैं तथा आदिवासी लोग भारत देश के मालिक हैं, आम आदमी या नागरिक नहीं.

पारम्परिक तीर-धनुष के साथ आदिवासी





पत्थलगड़ी पर एकमत नहीं हैं आदिवासी बुद्धिजीवी

झारखंड विश्विद्यालय के आदिवासी एवं जनजाति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष गिरिधारी राम गंजू आदिवासियों की पुरानी परम्परा के राजनीतिकरण के पक्ष में नहीं हैं वहीं दूरदर्शन के पूर्व अधिकारी एवं लेखक वाल्टर वेंगरा के अनुसार कानूनों की की जा रही व्याख्या आदिवासियों के हित में नहीं है.

क्या कहते हैं खूंटी के लोग 

मुर्हू और अरकी  ब्लाक के आदिवासियों से जब इस रिपोर्ट के लिए बात करने की कोशिश की गयी तो वे इससे बचते नजर आये. मुर्हू की दोह रेजा ने कहा कि ‘ मुझे इस बारे में सिर्फ इतना पता है कि यह पुरखों की परम्परा है और सदियों से गांवों में यह होता रहा है.’ वहीं खूंटी में ही बिरसा मुंडा के जन्मस्थल उलीहातु के एक दुकानदार सलोनी पूर्ती ने बताया कि ग्रामसभा में इसपर बात होती है. हालांकि ग्रामसभा की कई महिलाओं ने इसपर बात करने से मना कर दिया. खूंटी के जनसम्पर्क पदाधिकारी इस विषय के अलावा किसी भी विषय पर बात करने को तैयार थे, इस विषय पर नहीं.

झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के प्रवक्ता तौहीद आलाम ने कहा कि ‘ सरकार इस बारे में भ्रम फैला रही है.’ वही भाजपा के प्रवक्ता प्रतुल ने कहा कि ‘गैर आदिवासी भी किसी के मरने पर पत्थलगड़ी करते हैं लेकिन विपक्षी राजनीतिक ताकतें इसे दूसरी दिशा में मोड़ दे रहे हैं.. प्रतुल कहते हैं ‘ इस आन्दोलन में शामिल लोग अपने को भारत गणराज्य का हिस्सा नहीं मानते वे अपना बैंक खोल रहे हैं, और दूसरे बैंकों में पैसा जमा करने से मना कर रहे हैं, यह खतरे की घंटी है.’

संघ प्रमुख मोहन  भागवत

 ‘पूर्व आइपीएस अधिकारी और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव अरुण उरांव कहते हैं कि राज्य के कई जिलों में हो रही पत्थलगड़ी के पीछे लोगों की भावना समझनी होगी. इसके लिए सरकार को आगे आना होगा. विरोध की जो तस्वीरें सामने है उसके संकेत यही हैं कि गांवों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है और इससे नाराज लोग गोलबंद होने लगे हैं. उनका कहना है कि 1996 में खूंटी के कर्रा में बीडी शर्मा और बंदी उरांव समेत स्थानीय नेताओं ने पत्थलगड़ी की थी और इसके माध्यम से पेसा कानून के बारे में लिखा गया था.’

यह लेख/विचार/रपट आपको कैसा लगा. नियमित संचालन के लिए लिंक क्लिक कर आर्थिक सहयोग करें: 
                                             डोनेशन 
स्त्रीकाल का संचालन ‘द मार्जिनलाइज्ड’ , ऐन इंस्टिट्यूट  फॉर  अल्टरनेटिव  रिसर्च  एंड  मीडिया  स्टडीज  के द्वारा होता  है .  इसके प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें : अमेजन पर   सभी  किताबें  उपलब्ध हैं. फ्लिपकार्ट पर भी सारी किताबें उपलब्ध हैं.संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles