महिला शोधार्थियों की प्रताड़ना: विश्वविद्यालय नहीं कलह का केंद्र, पुलिस पर भी सवाल

स्टाफ रिपोर्टर 

हिन्दी विश्वविद्यालय में प्रशासनिक भ्रष्टाचार की खबरें आती रहती हैं, विद्यार्थियों के खिलाफ उनके मनमाने निर्णय की भी. इधर विश्वविद्यालय के शोधार्थी एक छात्रा के साथ शादी का वादा कर यौन-शोषण के एक मामले में एक-दूसरे के आमने-सामने हैं.  पुलिस पीड़ित पक्ष के खिलाफ सक्रिय भूमिका में है. पीड़िता का साथ दे रही शोधार्थियों पर भी अपराधिक वारदात का मामला दर्ज किया गया है.  इस मामले में सवाल दलित संगठनों पर भी उठ रहे हैं. क्या है पूरा मामला: 



घटना1 : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की एक शोधार्थी, वर्तमान में बीएड-एमएड की छात्रा,  ने 29.12.2017 को एक अन्य शोधार्थी चेतन सिंह के खिलाफ शादी का झांसा देकर यौन शोषण करने के आरोप में रामनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। 7 फरवरी 2018, को  आरोपी विद्यार्थी ने किसी अन्य लडकी के साथ शादी भी कर ली। यह प्रकरण दलित समाज के भीतर ब्राह्मणवादी प्रवृत्ति का भी बताया जाता है। जाति सोपान में लडकी की जाति कुछ पैदान नीचे है और लड़के की ऊपर, जबकि दोनो ही दलित समुदाय से हैं। बहरहाल, पीड़िता द्वारा पुलिस से बार-बार चेतन सिंह के खिलाफ की गयी कारवाई के बारे में पूछने पर कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिलता था। 18 मार्च 2018 को पीड़िता ने बहुत जोर दे करकर रामनगर थाना से कारवाई करने के बावत पूछा तब उसे जांच अधिकारी आरपी यादव ने झिडकी दे दी और यह भी कहा कि दिल्ली चलकर आरोपी की गिरफ्तारी में मदद करो।  ठीक 2 घंटे बाद आईओ ने फोन करके बताया कि आरोपी को पकड़ लिया गया है। बहुत कुछ बातें पीड़िता की समझ में आज तक नहीं आई कि क्या चल रहा था।? आखिर पुलिस इतनी जल्दी चेतन सिंह को दिल्ली से कैसे पकड़कर वर्धा (महाराष्ट्र) लायी? जबकि खबर है  कि आरोपी  ने 19 मार्च को अपने आप को रामनगर थाना में सरेंडर किया था। 25 दिन बाद उसकी जमानत भी होने दी गयी। इस दौरान वह विश्वद्यालय के पास पंजाब कॉलोनी में ही रूम लेकर अपनी पत्नी के साथ रहने लगा। गौरतलब है यह कि छात्रावास से शहर जाने का रास्ता इसी कॉलोनी से होकर गुजरता है।

घटना 2.  पहली घटना से ही सम्बद्ध दूसरी घटना 3 मई 2018 को घटती है।  पीड़िता के अनुसार ‘जब वह अपने रूममेट के साथ रोजमर्रा का सामान के लिए शाम लगभग साढ़े सात बजे मार्केट की तरफ जा रही होती है तभी अचानक से चेतन सिंह और उसकी पत्नी का सामना होता है, वह पीड़िता पर अभद्र टिप्पणी करता है। दोनों की बीच फिर कहासुनी होती है आरोपी शोधार्थी पीडिता को ज़ोर का चाटा मारता है और हाथ पर चोट करता है।’ पीडिता के अनुसार उसपर तेजाब फेकने और जान से मारने की धमकी दी जाती है। पीड़िता उसी समय वि वि प्रशासन से अनुमति लेकर 4 गार्ड और एक केयर टेकर के साथ रामनगर थाने जाकर रिपोर्ट लिखाती है थाना उसका मेडिकल कराता है, और उसके आधार पर 323/324/504/34/506 धारा  के तहत एफआईआर दर्ज ली जाती है। पीड़िता व उसके साथ गयी चार लड़कियों को 3 बजे तक रामनगर थाने में बिठाकर रखा जाता है। उक्त समय पर चार्ज में रहे आरपी यादव द्वारा यह कहकर धमकाया भी जाता है कि विश्वविद्यालय में मेरी गाड़ी रोकी गयी थी। ‘मी छोड़नार नाही तुम यूपी, बिहार चे पोरगी चांगली नाही आहे। तुमचा यूनिवर्सिटी मधे नक्सलवादी रहेत होत, मी छोड्नार नाही।’ चेतन सिंह द्वारा पीड़िता से पहले ही उसी दिन के घटना की एनसीआर (नॉन काग्निजेबल रिपोर्ट) कराई जाती है। जिसमें 506/504 की धारा लगती है। इस बीच चेतन सिंह सोनिया सिंह द्वारा विश्वविद्यालय में 11 मई 2018  को एक शिकायत पत्र दिया जाता है जिसके बाद पुनः 17 मई को दूसरी शिकायत की जाती है और उसमें अचानक से 4 शोधार्थियों के नाम जोड़े जाते हैं, पीडिता की उन साथियों के, जो उसका साथ दे रही थीं। हालांकि चेतन सिंह और उसकी पत्नी का आरोप है कि उन छात्राओं ने उनके साथ मारपीट की, जिसके कारण उसका गर्भपात हो गया।

आरोप-प्रत्यारोप का दौर: सोशल मीडिया में, फेसबुक पर और अलग-अलग वेबसाइट्स पर आरोपी छात्र के दोस्तों ने इसके बाद पीडिता और उसके साथ खडी शोधार्थियों के खिलाफ दोषारोपण शुरू कर दिया.  वेबसाइट्स पर जो कहानी चालाई गयी उसमें रिपोर्टर दावे के साथ कहती है कि पीड़िता से बात करने कि कोशिश की गयी लेकिन पीड़िता ने बात नही की। जबकि पीड़िता के अनुसार ‘उसने यह बनावटी कहानी पढ़कर खुद ही शीत मिश्रा से बात करने की कोशिश की लेकिन प्रकरण लिखे जाने तक भी उसे कोई जबाब नही मिला है।’ वह कहती है, ‘इस घटना के आलोक में सच्चाई इस प्रकार है:
आरोपी के पक्षकारों द्वारा पीड़िता के यौन शोषण को सोशल मीडिया में उछाला जाता है। फेसबुक, व्हाट्सप पर 5 लड़कियों का सामाजिक आपराधीकरण किया जाता है।  यह लिख कर अफवाह फैलाई जाती है कि चेतन सिंह की पत्नी सोनिया को इन 5 लड़कियों ने इतनी बेरहमी से पीटा है कि उसका गर्भपात हो गया है।’  इस दूसरी घटना के लिए आरोपित की गयी लड़कियों का कहना है कि उस घटना से उनका दूर-दूर तक कोई सरोकार नही है।’ सोशल मीडिया की इन धमकियों को लेकर अपनी सुरक्षा के संबंध में विश्वविद्यालय प्रशासन को वे अवगत भी कराती हैं और उक्त घटना से कोई संबंध न होने की पुष्टि लिखित रूप में करती हैं। इस बीच लड़कियों को पता चलता है कि 3 मई को चेतन द्वारा की गयी एनसीआर को फर्जी तरीके से 7 जून 2018  को  एफआईआर में तब्दील किया जाता है। और इन 4 लड़कियों के नाम बाद में फर्जी तरीके से जोड़े जाते है और उन्हे फंसाकर पुलिस प्रशासन द्वारा उनका अपराधीकरण इसलिए किया जाता है क्योकि वे पीड़िता द्वारा चेतन सिंह के खिलाफ किए गए केस में मुख्य गवाह हैं। लड़कियों का दावा है कि ‘वे विश्वविद्यालय परिसर के अंतर्गत हमेशा से ही स्त्री मुद्दों के प्रति जागरूक व उसकी पक्षधर रही हैं। यह कैसे संभव है कि महिला अधिकारों की पक्षधर होकर वे दूसरी महिला के साथ दुर्व्यवहार करेंगी और उसे क्षति पहुंचाएंगी?  यह सवाल भारत के उन तमाम विश्वविद्यायालयों में अध्ययन करने वाले शोधार्थियों/ विद्यार्थियों, उच्च बौद्धिक वर्गों और प्रगतिशील संगठनों से भी है?’ हालांकि सोशल मीडिया में सक्रिय कुछ शोधार्थियों का कहना है कि ‘ये लडकियां कोई दूसरा पक्ष सुनना ही नहीं चाहती हैं।’

कुलपति विद्यार्थियों के बीच

इन घटनाओं से बनते सवाल : विश्वविद्यालय में लगातार घट रही इन घटनाओं से न सिर्फ विद्यार्थियों की गुटवाजी का संकेत मिलता है बल्कि कई सवाल भी खड़े होते हैं. मसलन जाति के सोपानीकरण का, जिसके चलित ऊंचे पैदान का एक दलित युवा प्रेम और शादी के वादे के बावजूद लडकी से शादी जाति के कारण नहीं करता है. इस घटना पर विश्वविद्यालय में दलित संगठनों की चुप्पी भी एक सवाल है क्योंकि आरोपी और पीडिता दोनो दलित समुदाय के जागरूक लोग हैं. इनके बीच मुकदमों के आगे की बातचीत और एक स्टैंड इन संगठनों ने क्यों नहीं लिया? पीड़ित शोधार्थियों का कहना है कि ‘दलित संगठनों यह कहकर पल्ला झाड़ लिए हैं कि ‘यह दलित दलित का मामला है, यह तो पर्सनल है। चेतन दलित भाई है। यह वही दलित संगठन के लोग है जो स्त्री विरोधी बात करते है और यह दावा करता है कि हम लोग अंबेडकरवादी हैं। बल्कि पीड़िता पर दबाव भी बनाते हैं कि केस वापस ले लो दलित-दलित आपस में नही लड़ना चाहिए।’ एक सवाल यह भी है कि जब पीडिता ने मुकदमा दर्ज करा दिया और आरोपी की गिरफ्तारी हो गयी, वह जमानत पर है तो फिर मामला कानूनन न निपटाकर सडक पर क्यों लड़ा जा रहा है, आरोप होना ही दोष सिद्ध होना नहीं होता, उसे क़ानून के रास्ते लड़ा जाना चाहिए. सवाल पुलिस से भी है कि वह पीडिता की जगह आरोपी के पक्ष में क्यों और कैसे दिख रहा है? विश्वविद्यालय प्राशासन, जहां विद्यार्थियों से ज्यादा कर्मचारियों की संख्या है इस गुटवाजी को क्यों पनपने दे रहा है या हवा दे रहा है?  और आख़िरी सवाल यह भी कि दो युवा पढाई करते हुए जब प्रेम  करते हैं और किसी कारण से सम्बन्ध टूटता है तो उसे किस रूप में सामाजिक संदर्भ दिया जाये?

सबसे महत्वपूर्ण है इन घटनाओं के पीड़ितों को मिलने वाला न्याय, जिसे सुनिश्चित कराया जाना चाहिए और वह कानून के रास्ते से ही हो सकता है.एक महत्वपूर्ण सवाल पितृसत्तात्मक ढाँचे का भी है, जिसमें शादी का वादा कर एक लडकी के शोषण के लिए एक युवा मुकदमे लड़ रहा है और इस बीच उससे शादी कर आयी एक दूसरी लडकी, जो प्रकारांतर से खुद भी पीडिता है, क्या करे, वह प्रिगनेंट है, स्त्रीवाद का रास्ता उसे पीडिता के साथ खडा करता है और उसका खुद का अस्तित्व खुद के साथ और आरोपी पति के साथ, जिसके लिए वह किसी भी स्तर तक लड़ सकती है.

गांधी हिल्स पर विदेशी विद्यार्थी

पीड़ित पक्ष के सवाल:  वह पितृसत्ता की कौन सी कुंजी है? जो पुरुष को यह अधिकार दे देती है कि वह बिना विवाह के जब तक चाहे किसी भी महिला का शारीरिक शोषण (प्रेम या सहमति का नाम देकर) करता रहता है। 2- सवाल यह भी है कि शादी करने की बात आने पर अपने अभिभावककों के कहे अनुसार दहेज लेकर के पारंपरिक विवाह करने का हठ करता है? 3- सवाल यह भी बनाता है कि समाज में प्रेम एक प्रतिरोध का प्रतीक माना जाता है। फिर पारंपरिक विवाह और दहेज पर इतना ज़ोर क्यो? 4- क्या आरोपी के पारंपरिक विवाह कर लेने भर से समाज उस पर कोई सवाल नही खड़ा करेगा? क्या पढ़ा-लिखा जागरूक कहलाने वाला वर्ग भी प्रेमिका को वेश्या, रखैल, चुड़ैल, व्यभिचारिणी जैसे अपमानजनक शब्द प्रत्यरोपित करेगा?

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