राजस्थान पत्रिका की पत्रकार ने की आत्महत्या लेकिन पत्रिका ने ही ओढ़ी चुप्पी

उत्तम कुमार


छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की आत्महत्या (हत्या) के बाद स्तब्धता ने श्मशान सी चुप्पी ओड़ रखी है

दिन ब दिन आदिवासी क्षेत्रों में पत्रकारों को काम करना मुश्किल होता जा रहा है। छत्तीसगढ़ में 16 जून को एक के बाद दो प्रतिभावान पत्रकारों रेणु अवस्थी और शैलेन्द्र विश्वकर्मा द्वारा आत्महत्या की खबर दिल को दहला देने वाली है। जगदलपुर में राजस्थान पत्रिका से जुड़ी रेणु अवस्थी ऑनलाईन पत्रकारिता करती थी। वह  जगदलपुर के प्रतापगंज में एक किराए के मकान में रहती थी, जहां उसने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। बताया जा रहा है कि रेणु अवस्थी ने करीब दोपहर एक बजे अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या की । पुलिस को इस घटना की सूचना दी गई। जिसके बाद पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। पुलिस का कहना है कि आत्महत्या की वजह का पता नहीं चल सका है। मामले की जांच की जाएगी जिसके बाद आत्महत्या करने की वजह साफ हो सकेगी। फिलहाल इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस मामले की जांच कर रही है तथा पोस्टमार्टम  रिपोर्ट अबतक नहीं आया है। रेणु पिछले साल ही छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पास आऊट हुई थी। जिसके बाद वह जगदलपुर में रहकर अखबार में कार्य कर रही थी।

इन दोनों पत्रकारों ने की आत्महत्या

इसी तरह ठीक इसी दिन तडक़े ही अंबिकापुर के आइएनएच न्यूज चैनल के पत्रकार शैलेंद्र विश्वकर्मा ने भी फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या का कारण अज्ञात बताया जा रहा है। शैलेंद्र अंबिकापुर स्थित केदारपुर गांव में रहने वाले थे। पीएम रिपोर्ट के बाद शव को परिजनों को सौंप दिया गया था। इस मामले में भी पुलिस जांच जारी है। इन दोनों घटनाओं के बाद प्रदेश की पत्रकारिता स्तब्धता के बहाने चुप्पी ओड़े बैठी है ना कहीं जांच और ना ही पोस्टमार्डम रिपोर्ट के बाद पुलिस की पहलकदमी? दबी  जबान यह खबर आ रही है कि पुलिस मामले को लेकर गंभीर है और जांच में जुट गई है। प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने भी दोनों पत्रकारों को श्रद्धांजलि देते हुए कार्रवाई के संकेत दिए हैं।

इस कड़ी में 20 जून को तेलंगाना के सिद्दीपेट का मामला आपको अंदर तक हिला देगी जहां कर्ज के दबाब से एक पत्रकार इस कदर टूट गया कि उसे खुदखुशी करने पर मजबूर होना पड़ा। पेशे से पत्रकार शख्स ने पहले अपने दो मासूम बच्चियों की गला दबाकर हत्या कर दी और फिर खुद फंदे पर झूल गया। इस दौरान उसकी पत्नी ने भी जहर खा लिया। हालांकि पड़ोसियों को शक हुआ तो वे महिला के घर पहुंच गए और महिला के विरोध के बावजूद उसे अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां उसकी हालत नाजुक बनी हुई है। जानकारी के मुताबिक, तेलंगाना के सिद्दीपेट जिले के रहने वाले पत्रकार हनुमंत राव तेलुगु अखबार ‘आंध्रा भूमि’ में रिपोर्टर के तौर पर काम करते थे। पुलिस ने बताया कि हनुमंत राव इन दिनों गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे थे। उनके सिर पर 10 लाख से ज्यादा का कर्ज था। कर्ज के चलते काफी समय से लोग उन्हें वसूली के लिए दबाव भी बनाते थे, यही वजह है कि अपने साख और बड़े कर्ज ने हनुमंत को काफी परेशान कर रखा था। बुधवार को उन्होंने अपनी पत्नी मीना के साथ पहले अपने 5 और 3 साल के बच्चों को गला दबाकर मार डाला और उसके बाद खुद फांसी लगा ली। हनुमंत की पत्नी ने भी जहर खा लिया। गुरुवार सुबह जब पड़ोसियों ने घर के भीतर से मीना के रोने की आवाज सुनी, तो उन्होंने दरवाजा खटखटाया लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, जिस पर उन्होंने घर का दरवाजा तोड़ दिया। कमरे के अंदर का मंजर देखकर पड़ोसी हैरान रह गए। वहां हनुमंत राव और दोनों बच्चों की लाश पड़ी थी, जबकि हनुमंत की पत्नी मीना जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी। फौरन पुलिस को घटना की सूचना दी गई और मीना को अस्पताल में भर्ती कराया गया। पुलिस ने इस संबंध में मामला दर्ज कर लिया है। जबकि तीनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। पुलिस अब मामले की छानबीन में जुटी हुई है।

पत्रकारिता चापलूसी मात्र रह गई है, नेता,अधिकारी से लेकर अपने सीनियर की मस्काबाजी कीजिये-फल जरूर मिलेगा।! ‘नहीं किया इसलिए वहीं रह गया’

शैलेन्द्र विश्वकर्मा ने फेसबुक में यह अंतिम लाईन लिखी यह लाईन बहुत कुछ कह जाती है। इन दोनों ने खुदकुशी क्यों की, इसका पता नहीं चला है। शैलेंद्र सुसाइड के ठीक पहले तक सोशल मीडिया पर सक्रिय थे। उन्होंने जो कुछ पोस्ट किया, वो कुछ बैचेनी की तरफ इशारा कर रहे हैं। रेणु अवस्थी की सुसाइड का राज अबतक सामने नहीं आ सका है। खबरों की माने तो रेणु ने सुसाइड से पहले रायपुर स्थित पत्रिका समूह के स्टेट हेडक्वार्टर में फोन किया था। उसी फोन के आधार पर रायपुर मुख्यालय से जगदलपुर कॉल किया गया। जब तक जगदलपुर आफिस से रेणु के घर तक दफ्तर के लोग पहुंच पाते, तब तक रेणु ने खुदकुशी कर ली थी। रेणु ने अपनी चुनरी से पंखे से लटककर खुदकुशी कर ली। रेणु अपनी एक दोस्त के साथ बस्तर में किराये के मकान में रहती थी। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि दोनों ही पत्रकार परेशान तो थे और हम उन्हें नसीहत भी दे सकते हैं कि उन्हें ऐसा नहीं करना था। आश्चर्य का विषय यह कि किसी भी अखबार ने इन होनहार पत्रकारों पर सम्पादकीय लिखने की जहमत नहीं उठाई है ना ही श्रद्धांजलि प्रकाशित की । राज्य का प्रेस क्लब और कुशभाऊ पत्रकारिता विश्वविद्यालय ने आज  तक श्रद्धांजलि आयोजित नहीं की। मेरा साफ मानना है कि तमाम आत्महत्याएं किसी न किसी रूप में हत्या ही होती है। कश्मीर में राइजिंग कश्मीर के सम्पादक शुजात बुखारी की हत्या के बाद अंदर तक आहत करने वाली छत्तीसगढ़ व तेलंगाना के पत्रकारों की आत्महत्या (हत्या) से किसी साजिश की बू आती है। कश्मीर से लेकर छत्तीसगढ़ तक की ये तमाम घटनाएं लोकतंत्र में चौथे पाए की हत्या है। यह घटना पूरे भारतीय परिवेश में चिंताजनक तो है। मैंने अपनी पत्रिका दक्षिण कोसल से सरकार से मांग की  है कि शुजात के साथ छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना के इन पत्रकारों की हत्या और असामयिक मौत की स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांच करवाई जाएं। छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर बढ़ते जुल्म और अत्याचार किसी से छुपी नहीं हैं ऐसे हालातों में यह घटना नि:संदेह हमें पत्रकारों के खिलाफ रचे जा रहे साजिश की ओर हमारा ध्यान खींच ले जाता है। आप सभी को मालू म हो कि हमारा देश पत्रकारों पर जुल्म और ज्यादती के मामले में पिछले वर्ष की तुलना में दो पायदान नीचे उतरते हुए पूरे विश्व में 138वें स्थान पर शुमार है। ऐसी स्थिति में इन पत्रकारों का ना रहना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी तो है।

राजस्थान पत्रिका लोगो

करूणाकांत ने अपने फेसबुक वाल में लिखा है कि हमे गौरी लंकेश भी याद हैं और शुजात बुखारी भी लेकिन इन दोनों की हत्या के दरमियान और उसके बाद भी कितने और पत्रकारों की हत्या हुई क्या ये हमें याद हैं? एक  नेटवर्क प्रोवाइडर, कैब सर्विस और हिन्दू मुस्लिम के नाम  पूरा देश हिला देने वाले मीडिया के पास ऐसे पत्रकारों के लिए वक्त क्यों नहीं है ? क्या सिर्फ राष्ट्रीय पत्रकारों की हत्या ही पत्रकारिता के लिए क्षति है? इन दोनों के मरने के इतने दिन बाद भी पुलिस ने अबतक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की है ।

अचरज की बात ये है कि इन दोनों  की  आत्महत्या की खबर को मीडिया भी  भुला  चुकी है किसी भी संस्थान ने इस मामले में पुलिस या प्रशासन से सवाल करने की जहमत नहीं उठाई। यहां तक कि रेणु् जिस संस्थान  के लिए काम करती थी उसकी चुप्पी भी निराश करती है। 

करूणांकात आगे लिखते हैं कि रेणु बस्तर जैसे पिछड़े और आदिवासी इलाके से आती थी आपको उसके संघर्ष को समझना होगा कि ऐसे इलाके की किसी लडक़ी के लिए पत्रकारिता जैसे क्षेत्र में कैरियर बनाने के बारे में सोचना भी बहुत हिम्मत का काम है। रेणु उन तमाम लड़कियों के लिए नजीर बन सकती थी जो कुछ कर गुजरना चाहती थी लेकिन उसकी मौत के साथ ही उन लड़कियों के सपनो की भी एक हद तक मौत हो गयी। जिसका नजीर देकर वहां की लड़कियां समाज से लड़ सकती थी अब उसी को नजीर बना कर समाज उन्हें रोक देगा ।इन दो पत्रकारों की मौत बाकी पत्रकारों के लिए एक उदाहरण है कि आप खून पसीना देते रहिये अपने संस्थान को,लड़ते रहिये समाज के लिए लेकिन आपकी मौत पर ना आपका संस्थान सामने आएगा और ना ही ये समाज ।
शुभम सिंह ने लिखा है बात यहां खत्म नहीं होती है। कुशाभाऊ ठाकरे यूनिवर्सिटी के तमाम बुद्धिजीवी भी थोड़ा सुन लें…राज्य में पत्रकारिता को नई दिशा देने का जिम्मा है आपके कंधों पर। एक पत्रकार ने आत्महत्या की है.
क्या आपको ये छोटी घटना लगती है? क्यों आपकी बोलती बंद है।  चुप्पी देखकर लगता नहीं है कि रेणु अवस्थी आपके यूनिवर्सिटी की छात्रा थी।मीडिया एथिक्स की बात करने वाले तमाम शिक्षकों से मेरी अपील है। अगर थोड़ी भी एथिक्स आपके अंदर बाकी है तो आगे आइये। नहीं तो अगली बार क्लास में मीडिया एथिक्स पर ज्ञान देने से पहले एक बार सोच लीजियेगा।

करमजीत कौर फेसबुक पर रेणु के लिए लिखती हैं, ‘मुझे यकीन नहीं हो रहा है रेणु कि तुम जैसी बहादुर और हौसलों से लबरेज पत्रकार आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाएगी। अभी तो तुम्हें आसमां की बुलंदियों को छूना था। अपना दर्द बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। आज मैंने एक प्यारी बेटी को खो दिया है।’
कुछ साल पहले मुंगेली जिले में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार वैभव केशरवानी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। वैभव के जाने से पत्रकारिता जगत शोक में डूब गया था।

सुदर्शन न्यूज चैनल के छत्तीसगढ़ ब्यूरो प्रमुख योगेश मिश्रा लिखते हैं- ‘छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में पत्रकारों पर नक्सलियों और पुलिस दोनों तरफ से दबाव बनाया जाता है जिससे पत्रकारिता करने की चुनौतियां कई सालों से तीखी हुई है। छत्तीसगढ़ में इन्हीं तनावों के कारण पत्रकार आत्महत्या तक करते रहे हैं। वैभव के बाद अब अंबिकापुर जिले में शैलेंद्र विश्वकर्मा की फांसी से झूलती लाश मिली। छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता जगत ने एक के बाद एक कई प्रतिभाशाली पत्रकार खो दिया है। अंबिकापुर में जिला संवाददाता के तौर पर कार्य कर रहे शैलेंद्र विश्वकर्मा की मौत की खबर पत्रकारिता जगत में जिस किसी भी को मिली हर कोई स्तब्ध रह गया। शैलेंद्र विश्वकर्मा एक सक्रिय पत्रकार के तौर जाने जाते थे। शैलेन्द्र प्रिंट मीडिया समेत कई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय तौर पर काम करने के बाद इस चैनल में जिला संवाददाता के रूप मेंकाम कर रहे थे। हाल ही में हुए विकास यात्रा में भी शैलेंद्र ने बेहतरीन रिपोर्टिंग की थी। वह समय समय पर देश के राजनीतिक परिदृश्य पर भी अपने विचार सोशल मीडिया में लिखा करते थे। आखिरी रात भी शैलेंद्र ने सोशल मीडिया पर करीब 12:14 बजे रात को एक पोस्ट लिखा था। ऐसे में अलसुबह उनकी लाश फांसी पर झूलते मिलने से उनके जान-पहचान वाले लोग और पत्रकारिता जगत से जुड़े लोग गम में डूब गए।

दो पत्रकारों ने आत्महत्या ( हत्या) कर ली और राज्य में तूफान के आने के पहले की शांति पसरा हुआ है कोई लिखना नहीं चाहता और न ही अब किसी की कलम स्टोरी के लिए उठ रही  है लिहाजा संपादकों ने इसे संपादकीय के लायक तक नहीं समझा और ना ही श्रद्धांजलि सभा। वाह रे लोकतंत्र तेरा चौथा पाया। पत्रकारों के आत्महत्या (हत्या) के बाद कैसे आप बहाना करते हुए बच जाएंगे कि व्यक्तिगत जिंदगी और सार्वजनिक जिंदगी दो अलग-अलग चेहरे हैं। मातम तो दूर जांच के लिए भी किसी की कलम नहीं उठ रही है। प्रदेश में एक अजीब ट्रेंड चल पड़ा है हत्या को आत्महत्या कहने का। बहुत खतरनाक है यूं ही चुप रह कर अपने अंत पर लिखना!

(लेखक दक्षिण कोसल के सम्पादक हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन. सम्पर्क: 7828046252)


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