सीतामढ़ी-बाल गृह ने स्त्रीकाल को दी मानहानि की धमकी

संजीव चंदन
मुजफ्फरपुर सहित बिहार और देश भर में शेल्टर होम में बच्चियों से बलात्कार अथवा वहां की अन्य अनियमितताओं पर स्त्रीकाल ने प्रमुखता से ख़बरें छापी हैं और पत्रकारिता से आगे बढ़कर उन्हें न्याय दिलाने के लिए मुहीम भी छेड़ी है. 30 जुलाई को इस घटना के खिलाफ देशव्यापी प्रतिरोध के लिए कुछ संगठनों के साथ स्त्रीकाल ने सामूहिक और सफल कॉल दिया था.

इसी क्रम में स्त्रीकाल में नियमित रिपोर्ट करने वाले सुशील मानव की एक रिपोर्ट हमने 3 अगस्त को प्रकाशित की. मुख्यतः इन्डियन एक्सप्रेस में छपी खबर के आधार पर सुशील मानव ने एक रिपोर्ट की, ‘बिहार के दूसरे शेल्टर होम से भी आ रही हैं बुरी खबरें: सीतामढ़ी के बालगृह में मिली अनियमितता.’ इसी खबर को लेकर सीतामढ़ी में बाल-गृह संचालित करने वाली संस्था सेंटर डायरेक्ट ने अपनी कुछ बिन्दुवार आपत्तियां जताते हुए मानहानि की धमकी के साथ एक मेल 8 अगस्त, 2018 को भेजा. हालांकि उनके द्वारा भेजे गये जवाब और स्त्रीकाल के प्रतिप्रश्न के साथ एक बच्चे के गायब होने और एक बच्चे की कथित बीमारी से मौत के मामले में कुछ और संदेह पैदा हो जाते हैं.

3 अगस्त को स्त्रीकाल में छपी खबर में सीतामढ़ी बाल-गृह के मामले में मुख्य प्रसंग कुछ यूं है: 

अपने संचालन के महज़ 40 दिन बाद ही इस बालगृह में 1 मार्च 2017 को एक उच्च बाल संरक्षण अधिकारी ने इस शेल्टर होम में अनियमितता पाए जाने पर इसे बंद किए जाने की अनुशंसा की थी। लेकिन विभाग ने उनकी चेतावनी को दरकिनार कर दिया था।

इस साल के फरवरी में एक बालकैदी के गुम होने की रिपोर्ट हुई थी। जबकि अप्रैल महीने में एक दूसरे निवासी की थैलासीमिया के चलते मौत होने की रिपोर्ट की गई थी। यह शेल्टर होम ‘सेंटर डायरेक्ट’ नामक एनजीओ द्वारा चलाया जा रहा था। इंडियन एक्सप्रेस के पास मौजूद डॉक्युमेंट में तबके एडीशनल डायरेक्टर गोपाल सरन  ने इस होम के संचालन के थोड़े दिन बाद ही इसका निरीक्षण किया था और उन्होंने निरीक्षण में पाया था कि बाल कैदियों की फाइल को प्रॉपर तरीके से मेनटेन नहीं किया गया था। उन्होंने ये भी पाया था कि शेल्टर होम में पर्याप्त स्टाफ मौजूद नहीं था।

अतिरिक्त निदेशक गोपाल सरन  ने पिछले साल 13 अप्रैल को अपना निरीक्षण रिपोर्ट सोशल वेलफेयर विभाग के डायरेक्टर सुनील कुमार को सौंपते हुए बालगृह में पर्याप्त अनियमितता पाये जाने की बुनियाद पर उसे बंद करने की अनुशंसा की थी।

गोपाल सरन अब डिप्टी कलेक्टर और एडी-सीपीयू इनचार्ज हैं। वे इंडियन एक्सप्रेस को दिये गये एक इंटरव्यू में बताते हैं कि ‘मैंने रिकमेंड किया था कि शेल्टर होम मानकों पर खरा नहीं उतरा है। वहाँ पर कई निवासियों का नाम रजिस्टर में नहीं दर्ज था और निवासीय सुविधाएं भी मानकों के अनुरूप नहीं थी। मैंने अपना काम ईमानदारी से किया। इससे पहले कि मैं उसपर कोई कार्रवाई होते हुए सुनता मुझे वहाँ के चार्ज से मुक्त कर दिया गया।

शेल्टर होम के खिलाफ 9 फरवरी को दर्ज किए गए एफआईआर के मुताबिक एक मानसिक रूप से अस्थिर लड़का गायब है जिसे सदर अस्पताल से 8 फरवरी को शेल्टर होम में लाया गया था। जबकि रहस्यमयी पस्थिति में अप्रैल महीने में एक लड़के की मौत हो गई थी जिसका कारण थैलीसीमिया दर्शाया गया है।

पढ़ें पूरी खबर: 

सेंटर डायरेक्ट की मुख्य आपत्तियों और स्पष्टीकरण के बिंदु हैं: 
1. किसी न्यूज पेपर की खबर के लिए कानून में कहाँ लिखा है कि वह किसी मुद्दे की प्रमाणिकता की पुष्टि के लिए मान्य होगी. ऐसा कहते हुए सेंटर डायरेक्ट ने इस खबर को हटाने और माफीनामा प्रकाशित करने की सलाह भी दी है.
2. सेंटर के अनुसार TISS ने जिन 15 संस्थानों में गंभीर मामले अपने ऑडिट में बताये हैं उनमें यह संस्थान शामिल नहीं है.
3. संस्थान के अनुसार अपने पर्सनल कारणों से संतोष कुमार नामक व्यक्ति संस्थान को बदनाम कर रहा है, जिसकी पत्नी कभी इस संस्थान में कार्यरत थी और हटाये जाने पर वह हाई कोर्ट में याचिका के साथ पहुँची थी, जिसे हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था. यह संतोष कुमार वही सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में बच्चियों से बलात्कार के मामले में एक जनहित याचिका दायर की है और जिसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट सरकार के खिलाफ काफी सख्त है.

8 अगस्त के मेल के जवाब में स्त्रीकाल की ओर से खबर के आधार पर कुछ स्पेसिफिक सवाल संस्था को भेजे गये. स्त्रीकाल ने पूछा: 

1. क्या किसी अधिकारी ने अपने 4.10.2017 के पत्र के माध्यम से संस्था की अवधि विस्तार के मामले में कोई पत्राचार करते हुए एक अधिकारी द्वारा इस संस्था को कार्यविस्तार न दिये जाने की अनुशंसा का जिक्र नहीं किया है?
2. एक बच्चे के आपके शेल्टर होम से गायब होने के बाद हुई जांच का पूरा ब्योरा दें
3. क्या संस्था के मुखिया पी.के शर्मा ने उसी पार्टी से चुनाव नहीं लड़े हैं, जिससे ब्रजेश ठाकुर ने चुनाव लड़ा था.
4. आप जिस करुणा झा की याचिका के बारे में बता रहे हैं क्या वह याचिका मेरिट के ग्राउंड पर निरस्त हुई थी या टेक्नीकल?

भेजी गयी नोटिस, उपलब्ध कराये गये दस्तावेज के आधार पर इन्डियन एक्सप्रेस और बाद में स्त्रीकाल में हुई खबर में कोई विरोधाभास नहीं दिखता है. 

1. खबर के मुताबिक स्थापना के चालीस दिन के भीतर वहां अनियमितता पायी गयी थी, जो उपलब्ध डॉक्यूमेंट और संस्था के जवाब से भी सिद्ध होता है.
2. एक बच्चे के गायब होने की खबर सही है और संस्था ने इस संदर्भ में 9.2,2018 को इस संदर्भ में एक शिकायत ओपी प्रभारी एवं बाल कल्याण पदाधिकारी, मेहसौल, सीतामढ़ी, को भेजी भी गयी थी. आगे बच्चे का कुछ पता नहीं चला. संस्था के मुखिया पी.के शर्मा के अनुसार उसकी आगे हाल पता लगाना पुलिस का काम था. आज तक उस बच्चे की खबर नहीं लगी है. वह जब इलाज के लिए ले जाया जा रहा था, तो शौच के लिए आग्रह कर गया और वापस नहीं लौटा. सूए सदर अस्पताल ले जाने वालों में हाउस मदर रेखा पूर्व और हाउस फादर राहुल कुमार थे.
3.फोन पर बातचीत में पी.के. शर्मा ने एक बच्चे की मौत की बात भी स्वीकारी है.
4. पटना हाई कोर्ट का आदेश बताता है कि संतोष कुमार की पत्नी करुणा झा की याचिका इस आधार पर खारिज की गयी थी कि जिस संस्था के खिलाफ वह याचिका थी वह निजी सञ्चालन से संचालित थी. अदालत ने करुणा झा के वकील की यह दलील नहीं मानी कि चूकी इसे सरकारी अनुदान मिलता था इसलिए यह याचिका मेंटेनेबल है. इस तरह यह याचिका तकनीकी आधार पर खारिज हो गयी, न कि मेरिट के आधार पर. संतोष कुमार कहते हैं कि इसपर पुनः एक याचिका हाईकोर्ट में लम्बित है, जिसमें हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी गयी है.

तथ्यों के साथ पैदा होते सवाल? 
उपलब्ध तथ्यों और पीके शर्मा से बातचीत के आधार पर यह सवाल जरूर बनता है कि स्थापना के तुरत बाद जब वहां एक अधिकारी ने अनियमितता पायी तो उसे आगे चलकर एक साल का सेवा विस्तार कैसे मिल गया? क्या यह राज्य के अन्य शेल्टर होम के प्रति समाज कल्याण अधिकारीयों के रवैये से कोई अलग मामला है? सवाल यह भी है कि जब बच्चा गायब 8.2.2018 को हो गया तो संस्था ने यह सूचना 9.2.2018 को क्यों भेजी? पुलिस का बर्ताव भी इस मामले में सजगता का तो कतई नहीं है. कथित थैलेसीमिया से बच्चे के मरने के बाद संस्था और पुलिस विभाग उसके सवास्थ्य संबंधी विश्लेषणों के आधार पर किस निष्कर्ष पर पहुँची. यदि बच्चा थैलेसीमिया से पीड़ित था तो उसका प्रॉपर ट्रीटमेंट कहाँ हो रहा था, क्या पटना के किसी शेल्टर होम में रखकर उसका प्रॉपर ट्रीटमेंट संभव नहीं था? जब ये सवाल संस्था से पूछे गये, लिखित तौर पर तो उसके लिए उन्होंने ऑफिस आने का प्रस्ताव दे डाला, ताकी वे ठीक से समझा सकें.

हमारा यह भी मानना है कि जनहित याचिकाओं में उपलब्ध कराये गये तथ्य संस्थानों से किसी कारण बस असंतुष्ट लोगों, उससे मुद्दों पर संघर्ष कर रहे लोगों, या व्हिसल ब्लोअर द्वारा ही उपलब्ध कराये जाते हैं, कई बार वे याचिकाकर्ता भी होते हैं. शायद संस्था के संचालक को यह नहीं पता हो, या धमकी भेजने के आवेग में वे न पता होने का स्वांग कर रहे हों कि प्रतिष्ठित अखबारों की खबरें अदालत से लेकर संसद तक पहुँचती हैं, भले ही वे जांच के लिए अंतिम साक्ष्य नहीं हों. स्त्रीकाल में की गयी खबर इन्डियन एक्सप्रेस की खबर की लगभग पुनर्प्रस्तुति थी, किसी बड़े हाउस की खबरें मीडिया के हर माध्यम में पहले भी प्रकाशित-प्रसारित होती रही हैं.

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