‘द डेंजर चमार’ अल्बम के माध्यम से गिन्नी माही के गीतों में प्रतिरोध की अभिव्यक्ति का अध्ययन:
प्रतिरोध के रूप में प्रदर्शन– असंतोष से आशय उस स्थिति से है जिसमें किसी व्यक्ति या व्यवस्था के साथ सामंजस्य न स्थापित हो पा रहा हो । जिसके खिलाफ प्रतिरोध प्रदर्शित करने के लिये कला को माध्यम बनाया जाता है । असंतोष के खिलाफ प्रतिरोध की संस्कृति का बहुत पुराना इतिहास है जिसे हम अंग्रेजी शासन के खिलाफ की जाने वाली प्रतिक्रिया में भी देख सकते हैं । जिसमें नुक्कड़ नाटक, गायन,कविता लेखन ,पर्चे निकालना आदि का सहारा उस समय की जनता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए लिया जाता था। असंतोष की भावना का उदय हम अनेक संदर्भों में देख सकते हैं फिर चाहे वो वर्तमान व्यवस्था के विरोध में उतरे दलित समुदाय के लोग हों या महिलाएं हों या मुस्लिम हों, या वर्तमान समय में शिक्षा व्यवस्था से जूझ रहे विश्वविद्यालय के विद्यार्थी हों, ये सभी वर्तमान व्यवस्था से जूझ रहे हैं । जिसके विरोध में लगातार छात्रों तथा नौजवानों ने देश की व्यवस्था से असहमति जताते हुए अपनी बात कही जो देश के किसानों की आत्महत्या तथा दलित , मुस्लिम , महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार के सवालों के साथ छात्र सड़क पर उतरे, जो प्रतिरोध की परंपरा को और तेजी से स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
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गिन्नी माही |
बीफ होने की शक के बाद दादरी में अखलाक की हत्या , पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या , कलबुर्गी की हत्या के बाद देश भर में हुए प्रदर्शन, तथा वहां से निकले स्लोगन We are Gauri , We are Pansare, I am also Akhlaak , को लोगों ने अपनी आवाज या अपनी पहचान घोषित कर दी । देश का किसान अपनी फसल का न्यूनतम मूल्य भी नहीं पा रहा है, जो बैंक के कर्ज़, सेठ से लिये कर्ज के तले आत्महत्या करने जो विवश है। जिन्होंने समय समय पर बाजार में अपनी फसल न बेचने के फैसले के साथ सड़कों पर फेकने का रास्ता चुना । बुद्धिजीवी वर्ग पर हो रहे हमले हों, या देश भर के विश्वविद्यालय से जो सवाल निकले हैं उन सभी सवालों के प्रति देश ने आवाज उठायी है – ” We are Muslim , we are Dalit , we are JNU, we are not Sinrela , we are Najeeb , we are Rohit , we are Akhlaak, we are Gaurilankesh, तथा सहारनपुर में हुई हिंसा के बाद तथा पहले से भी वहाँ के दलितों ने खुद को ‘ग्रेट चमार’ लिखना शुरू कर दिया ।
इसी तरह से एक और आवाज निकली जो आज गायिका माही गिन्नी के नाम से जानी जाती है, वह बाबा साहेब अंबेडकर के गानों को लिखती है, गाती है तथा डा. अम्बेडकर के विचारों को को जन- जन तक अपनी गायिकी के माध्यम से पहुंचा रही है । गिन्नी की सफलतम सीरीज में ‘डेंजर चमार’ महत्वपूर्ण है जिसमें वह बाबा साहेब के द्वारा बनाये गए संविधान की मूल भावना को लोगों तक पहुंचाने का काम कर रही है । वह अपनी अल्बम को डेंजर चमार नाम देती हैं एवं बाबा साहेब के लिए लिखे गए गानों को चमार पॉप कहती हैं , एवं वह खुद मानती भी है कि आज जो मैं एक महिला होने के बावजूद समाज में अपनी बात कह पा रही हूँ वह बाबा साहेब अंबेडकर की बदौलत है। आज दलित समुदाय ने चमार शब्द जिसे अछूत शब्द की संज्ञा दी थी ,को अपनी पहचान घोषित की है, वे ऐसा लिखने में गर्व महसूस करते हैं । क्योंकि आज देश भर में जो माहौल है जिसमें किसी दलित को वन्दे मातरम के न बोलने के आधार पर मार दिया जा रहा है । गौ हत्या के नाम पर जो दलितों की हत्या की जा रही है , जैसा कि हमने गुजरात के ऊना में देखा कि जिस तरह से दलित युवकों को गाड़ी से बांधकर सरिया गर्म कर पीटा गया वह कितना दर्दनाक हादसा था । अगर ऐसे समय इस शब्द को अपनी पहचान बना लेते हैं तो ये अपने आप में एक बड़ा प्रतिशोध होगा । जिसको ध्यान में रखकर विपक्ष ने सरकार से सवाल जवाब किये।
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गिन्नी माही साज के साथ |
हमारी जान इतनी सस्ती क्यों है | गाँव से बाहर हमारी बस्ती क्यों है ?|
गिन्नी माही जालंधर पंजाब की रहने वाली हैं 7 साल की उम्र से दलित आन्दोलन की आवाज हैं वे बचपन से ही गीत गाती थीं । उनको अच्छा गाते देख उनके पिता ने उनको म्यूजिक शिक्षक विजय डोगरा के पास भेज दिया । माही ने ढाई साल म्यूजिक सीखने के बाद गाना आरंभ कर दिया । आस-पास के इलाकों में उनके गीत मशहूर होने लगे। इस बीच एक लोकल म्यूजिक कंपनी ने उन्हें गाने का मौका दिया। उनके दो एलबम गुरां दी दीवानी और गुरुपर्व है कांशी वाले दा को बहुत पसंद किया गया। जैसे-जैसे गिन्नी के गीतों की मांग बढ़ने लगी, परिवार ने महसूस किया कि बेटी के साथ एक टीम होनी चाहिए। उन्होंने कुछ गीतकारों से संपर्क किया, जो दलित समाज को जागृत करने वाले गीत लिख सकें।
उनके पापा ने उनके नाम पर गिन्नी म्यूजिकल ग्रुप बनाया। जिसके बाद लगातार उनके गाने हिट होते गये या बहुत पसंद किये जाते रहे । उनके गीतों का ‘पॉप’ अंदाज युवाओं को खूब पसंद आया। यू-ट्यूब पर भी उनके गीत खूब पसंद किए गए। बाबा साहब दी गीत ने खूब शोहरत दिलाई। इस गीत में उन्होंने यह बताया कि बाबा साहेब को जिंदगी में किनकिन मुश्किलों से जूझना पड़ा। ‘मैं धीह हां बाबा साहिब दी, जिन्हां लिखया सी सविधान’ की पंक्तियों ने लोगों को बहुत प्रभावित किया । गिन्नी कहती हैं, कि ‘मैं किसी जाति को नीचा दिखाना नहीं चाहती। इन शब्दों को उपयोग में लाने का एक मात्र अर्थ है कि हमारे समाज के लोग अपने बारे में गर्व से बोलें । वे अपनी पहचान को गर्व से बताएं न कि बहुत ही असहज होकर । ‘ वे चाहती हैं कि जाति के नाम पर होने वाली कुरीतियां बंद हों। वर्ष 2013 में ब्रिटेन और इटली में शो करने का ऑफर आया। उस समय वह दसवीं में पढ़ रही थीं। उन्होंने जाने से मना कर दिया। गिन्नी कहती हैं, विदेश जाने से मेरी पढ़ाई पर असर पड़ता, इसलिए मैंने तय किया कि मैं पंजाब से बाहर नहीं जाऊंगी। गिन्नी ने देश भर में अपने शो किये जिसमें दलित समुदाय के ऐसे गाँव देहात को भी चुना गया जहां गिन्नी के गीतों को हाथों हाथ लिया गया । गिन्नी के शो में जो जगह चुनीं जाती हैं वो बहुत ही ग्रामीण क्षेत्र चुने जाते हैं । गिन्नी के शो चौराहों पर भी किए जाते हैं एवं बड़े बड़े मैदानों में भी किए जाते हैं जिनमें महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से भी कई गुना ज्यादा रहती है । गाँव देहात से वे महिलाएं आती हैं जो बहुत अशिक्षित एवं शादी शुदा हैं । आज गिन्नी के गीत इस संदर्भ में भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि एक महिला के लिए घर से बाहर आना स्वीकार नहीं किया जाता है और फिर इतनी भीड़ के बीच बिना किसी परेशानी के शो करने के लिए कोई भी समाज अपनी लड़कियों को नहीं भेजेगा।
इस बीच कुछ राजनीतिक दलों ने भी उनसे संपर्क किया। कई बार राजनीतिक मंच पर गाने के प्रस्ताव भी मिले, लेकिन उनके पिता ने बेटी को राजनीति से दूर रखा। पिता राकेश चंद्र माही कहते हैं कि राजनीति से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। मैंने अपनी बेटी को कभी राजनीतिक मंचों पर नहीं गाने दिया। हमारा मिशन बहुत पवित्र है। हम जातिवाद को खत्म करना चाहते हैं। यहाँ ये देखने वाली बात है कि आज कोई भी कलाकार अपने को प्रसिद्ध होने के लिए किसी भी राजनीतिक दलों के मंच पर आ जाता है । ऐसे में पैसे के लालच और अन्य धमकियों से खुद को कैसे बचाया जा सकता है क्योंकि पौप गाने के अपने खतरे भी हैं पंजाब के कलाकार जो गिन्नी से पहले से गा रहे हैं उनको कई बार जान से मार देने वाले धमकी भरे मैसेज भी मिल चुके हैं ।
गिन्नी अपने गीतों में ड्रग्स और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठाती हैं। उनका मानना है कि लड़कियों की शिक्षा के बगैर कोई समाज तरक्की नहीं कर सकता। गिन्नी कहती हैं, मैं लोगों से अपील करती हूं कि अपनी बेटियों को स्कूल जरूर भेजें। बेटियां पढ़ेंगी, तभी समाज का विकास होगा। तभी सामाजिक कुरीतियां बंद होंगी और तभी जात-पांत का भेद खत्म होगा।
गिन्नी माही का लाइव परफॉरमेंस
गिन्नी बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों को जन-जन तक अपनी गायिकी के माध्यम से पहुंचा रहीं हैं । गिन्नी अपने शो में लैंगिक असमानता को खत्म करने की बात करती हैं। वो जेंडर फ्रीडम कि बात कहती हैं, वे कहती हैं कि ‘अगर हम जेंडर मुक्ति की बात करेंगे तो इसमें कोई नहीं छूटेगा, इसमें महिला व पुरुष दोनों आयेंगे और वे तमाम लिंग के लोग आयेंगे, जो अपनी स्वीकार्यता के लिये लम्बी कानूनी लड़ाइयां लड़ रहे हैं |’
एक रिपोर्ट में उनके कहे अनुसार ‘गिन्नी जाति व्यवस्था को ख़त्म करना चाहती हैं | वे कहती हैं कि ‘बाबा साहेब आंबेडकर को पढो और उनका जो मूल मन्त्र है ‘पढ़ो , जुड़ो और संघर्ष करो’ उसको अपने जीवन में लागू करो | वे कहती है कि जाति व्यवस्था को इंसानों ने खुद बनाया है, भगवान ने नहीं, भगवान ने तो बार बार जन्म लेकर उसे अलग अलग जातियों में जन्म लेकर ख़त्म करने का प्रयास किया है | और अगर ये हमने शुरू किया है तो ख़त्म भी हम कर करेंगे।’
गिन्नी से जब से पूछा जाता है कि आपने अपने अल्बम का नाम डेंजर चमार ही क्यों दिया? वे बताती हैं ‘कि एक दिन हम लंच कर रहे थे और मेरी दोस्त मेरे पास आई और उसने पूछा कि आपका नाम गिन्नी माही है मैंने आपके लगभग सभी गाने सुने हैं, मैं आपकी फैन हूँ | आप किस जाति से आती हैं, तो गिन्नी ने कहा कि हम एससी हैं | उसने कहा कि एससी में तो बहुत सी जाति आती है, आप किस जाति से आती हैं ? तो गिन्नी ने कहा कि ‘मैं चमार जाति से आती हूँ | उसकी दोस्त का जवाब था ओह यार चमार तो बड़े डेंजर होते हैं |’ ये जो पूरा संवाद है इसका गिन्नी ने सकारात्मक रूप में उपयोग किया और अपने अल्बम का नाम ” द डेंजर चमार’ रखा. |
एक और साक्षात्कार में यही प्रश्न एक टेलीविजन प्रोग्राम में किया गया की एल्बम को डेंजर चमार नाम क्यों दिया तो गिन्नी ने कहा, ‘ क्योंकि बाबा साहेब ने कलम को हथियार बनाया था, जिससे पूरा हिन्दुस्तान चलाया जा रहा है | डेंजर चमार नाम हमने इसीलिये दिया क्योंकि चमार बड़े डेंजर हैं उन्हें हथियारों कि जरूरत नहीं पड़ती | उन्हें डरना नहीं चाहिए।’
यह जवाब कहीं न कहीं प्रतिरोध को दर्शाता है क्योंकि इससे पहले चमार शब्द का उपयोग किसी व्यक्ति को गाली देने या वर्ण व्यवस्था के द्वारा उसको उस निचली जाती का होने का आभास कराते थे | जिसे वे सहर्ष स्वीकार भी कर लेते थे | गिन्नी मानती है कि ‘चाहे वो कोई पत्रकार हो , या कोई महिला हो, जैसे कि मैं आज अपनी बात कह पा रही हूँ, वह बाबा साहेब आंबेडकर कि बदौलत है | बाबा साहेब आंबेडकर सबको समान अवसर की बात करते थे । वे चाहते थे कि सभी सामान रूप में रहें।’
गिन्नी के गानों मैं प्रतिरोध का अध्ययन वर्तमान के सन्दर्भ में:
“मैं बाबा साहेब आंबेडकर की बेटी हूँ, जिन्होंने संविधान लिखा है कोई बिरली माँ ही होगी जिसने ऐसा शेर जैसा बेटा जना हो ,उनकी पूरी दुनियां प्रशंसा करती है | मैं ऐसी सोच की फैन हूँ , जिन्होंने बलिदान दिया मैं ऐसे बब्बर शेर की फैन हूँ जिन्होंने अपना बलिदान दिया …… ऐसा बब्बर शेर था जिसकी कलम तीर की तरह थी | जो हक़ के लिए लड़ा जिसने हमारी तकदीर बदल दी , जो बड़े मसीहा थे |”
गिन्नी कहती हैं कि इन्सानों ने ही जाति व्यवस्था को बनाया है और इसे उनको ही तोड़ना चाहिए क्योंकि उस मालिक और भगवान् ने हमको एक जैसा बनाया | अब हम अपनी पहिचान को कैसे परिभाषित करेंगे कि हम इस जाति से आते हैं इसलिए पहले हम मानव हैं और बाद में किसी जाति से आते हैं । गिन्नी माही खुद को ‘बाबा साहेब का फैन कहती हैं क्योंकि आज के समय में जितने भी दलित प्रतिनिधि हैं उन्होने अपने हितों के लिए दलितों का इस्तेमाल किया है जबकि वो जाति व्यवस्था को मजबूत करने का काम बड़े धड़ल्ले से कर रहे हैं । वे उच्च जातियों के नेताओं को सीट देते हैं और फिर वो दलितों के साथ जातिगत भेदभाव करते हैं ।’
डेंजर चमार अल्बम के बोल
कुरबानी देने से डरते नहीं हैं, तैयार रहते हैं
और जो कुरुबानी देने से नहीं डरते वो डेंजर चमार हैं
कौन आपकी जाति पूछता है और जो पूछता है वो कायर है
शेर तो पिंजरे मैं कैद होता है और जो बोले वो बब्बर शेर होता है
डा. अंबेडकर गोलमेज़ सम्मेलन समेत दुनिया में दलितों के लिए बोले थे भेदभाव के खिलाफ , अमानवीय व्यवहार के खिलाफ इसलिए उनको गिन्नी बब्बर शेर के नाम से बुलाती हैं | वे इस बात पर जोर देती हैं कि आप अगर अच्छे कार्य करते हैं तो आपकी जाति को कौन पूछता है?’
सन 1932 में जब गोलमेज सम्मलेन रखा गया और डा.अम्बेडकर ने इस कांफ्रेंस में हिस्सा लिया था (तब शेर गरजा था) (यहाँ ये बताना चाहूँगा कि शेर शब्द गिन्नी माही बाबा साहेब के लिए उपयोग करती हैं) और बाबा साहेब ने मांग की कि वे आरक्षित सीटों को सुनिश्चित करें:
1- हर किसी को वोट देने का अधिकार हो
2 – एक वोट आरक्षित सीट के लिये और दूसरा वोट अनारक्षित
3- दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र हो
डा. अम्बेडकर पृथक निर्वाचन की मांग को जायज करार देते हुए कहते हैं कि, “मैं हिन्दू धर्म का कोई अहित नहीं करने वाला हैं । हम तो केवल उन सवर्ण हिन्दुओं के ऊपर अपने भाग्य निर्माण की निर्भरता से मुक्ति चाहते हैं ।”
बाबा साहेब का एक-एक शब्द परमाणु जैसा है – गिन्नी
गिन्नी के गीतों में प्रतिरोध के स्वर और भी तेज होते दिख रहे हैं यहाँ वे बाबा साहेब आंबेडकर के शब्दों में दलितों को तख्तो ताज दिलाने की बात करती हैं जैसा कि डा. अम्बेडकर कहते हैं मैं हक़ दिलाने आया हूँ | गिन्नी आगे कहती हैं कि बाबा साहेब के शव्द परमाणु जैसे थे | और इसीलिए गिन्नी बाबा साहेब को याद करना चाहती हैं | किसी को उसके अधिकारों के प्रति जागरूक करना वर्तमान व्यवस्था के प्रति विद्रोह खड़ा करने वाला है शायद इसी अर्थ में गिन्नी बाबा साहेब के शव्दों की तुलना परमाणु से कर रही हैं । बाबा साहेब को अपना आदर्श मानने वाली गिन्नी माही बताती हैं कि बाबा साहेब ने मनुष्य के अधिकारों के लिए बोलते थे , वो इसलिए नहीं कि दलित थे बल्कि इसलिए कि वो भारतीय थे , एक हिन्दुस्तानी थे । डा. आंबेडकर कहते थे कि कोई भूखा न सोयेगा , मैं सबके हक़ दिलाऊंगा , अपने अपने हक को लेना है ,लेना है तख्तो ताज भी , मैं हक लेके लेके देने आया हूँ, देना चाहता हूँ पूरे समाज का हक |
बाबा साहेब दी–जो ऊँच नीच का फर्क किए थे
उनके लिए एक माँ ने एक शेर को जन्म दिया
जिसका नाम भीमराव था जिसने अपने कर्तव्य से मुंह नहीं फेरा।
जो सच्चे दिलेर थे, सच्चे मर्द थे
एक दिन बाबा साहेब का राज आने वाला है।
कुछ समय जरूर लग सकता है फिर कोई धर्म हमें छेड़ नहीं सकेगा ।
जो लोग जाति पांति की दीवार खड़ी किये थे उसे बाबा साहेब ने उधेड़ दिया दिया था।
वैसे ही एक दिन बाबा साहब का राज आएगा
जिसमें हर व्यक्ति बराबरी का हकदार होगा सभी बराबरी के हकदार होंगे।
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गिन्नी माही को सुनने उमड़ी महिलाओं की भीड़ |
गिन्नी एक श्रोता को अपनी पहचान बताते हुए कहती हैं कि चमार का अर्थ है – “ च ” से चमडा , :मा” से मांस और “र” से रक्त | हम सभी चमड़े, मास और रक्त से बने हुए हैं।और अगर आपको मानवता से प्रेम है तो आपको दलितों के साथ एक मानव जैसा व्यवहार करना चाहिए । दलितों के साथ इस आधार पर हिंसा हो रही है कि वे दलित हैं और वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे आते हैं । तो इसे गिन्नी काउंटर करते हुई कहती हैं कि ‘वे भी मनुष्य हैं क्योंकि वे भी मांस , खून और चमड़े से बने हुए हैं ।’ गिन्नी के गानों में आने से पहले उनके परिवार को पितृसत्तात्मक सोच का सामना करना पड़ा | गिन्नी कहती हैं कि ‘उनके गाने के क्षेत्र में आने से पहले उनके रिश्तेदार उनके परिवार का मज़ाक उड़ाते थे और उनके पिता से कहते थे कि आप उसकी शादी कर दीजिये।’ मगर गिन्नी ने उनके सभी पूर्वग्रहों को गलत साबित कर दिया। उस सोच को भी मात दी जो दलित समुदाय को बहुत पिछड़ा कहते थे। उसी समाज की लड़की ने दलित समुदाय को बहुत दूर की सोच रखने वाला समुदाय के रूप में पहचान दिलाई।
गिन्नी ने उसी दलित समाज के गौरव बताने का काम अपनी गायिकी के माध्यम से किया। भले ही गिन्नी के गानों में पौरुषता दिखती है, जब वो बाबा साहेब आंबेडकर की तुलना शेर से करती हैं -यहाँ समझने वाली बात यह है कि गिन्नी के गाने लिखने वाली टीम में पुरुष हैं, जिनके सोचने के नजरिये में इस तरह की चीजें दिख सकती हैं- लेकिन यह तुलना कहीं न कहीं दलितों के अन्दर रोष जगाने के लिये उपयोग की जा रही है |
गिन्नी कहती हैं कि,’’ मुझे आज के समय में पंजाब की गायिकी पसंद नहीं आ रही हैं क्योंकि वो जिस फूहड़ता के साथ लड़कियों को पेश कर रही हैं वह बहुत हैरान करने वाला है, मुझे लगता है कि लड़कियों को इस मुहिम में साथ देने के लिए आगे आना चाहिए और उनका विरोध करना चाहिए।
गिन्नी म्यूजिक ब्रांड चमार पॉप के लिए गाती हैं | वे पंजाबी लोकगीत , रैप और हिप हॉप भी गाती हैं।
पॉप म्यूजिक का केन्द्र युवा बाजार है, जिसे अक्सर रॉक एंड रोल के एक सौम्य विकल्प के तौर पर देखा जाता है यह मूलतः पॉपुलर यानी लोकप्रिय शब्द से निकला है जिसे आम तौर पर रिकॉर्ड किये गए संगीत के रूप में समझा जा सकता है | इसमें छोटे एवं साधारण गाने आते हैं, और नवीन तकनीक का इस्तेमाल कर मौजूदा धुनों को नए तरीके से पेश किया जाता है |
दलित समाज ने अपनी सही पहचान को लेकर लंबे समय से संघर्ष किया है उनका इतिहास हमेशा से ही गौरव पूर्ण रहा है परंतु उनको हमेशा से ही वर्ण व्यवस्था के आधार पर हाशिये पर रखा गया है। भीमा कोरेगांव में अपने गौरव के इतिहास के दो सौ साल को जब वे मनाने जाते हैं तो उनके साथ हिंसा की जाती है जिसे एक अलग ही मोड़ दे दिया जाता है। भीमा कोरेगांव में दलितों के गौरव को यह कहकर नकारा जाता है कि वह ब्रिटिश शाशन की तरफ से और भारत के विरुद्ध लड़े थे तो गौरव कैसा? लेकिन यह बात समझने वाली है कि वे पहले सैनिक थे, और दूसरा वे दमन के खिलाफ लड़े थे, जो पेशवाओं के द्वारा किए गए थे। यही कारण था कि उस युद्ध में वे बिना कुछ खाये लड़े थे ।
गाँव में दलितों ने ‘द ग्रेट चमार’ के नाम से एक बोर्ड लगाया था, जिसे देखकर वहाँ के ठाकुरों ने सवाल उठाए. गाँव के दलितों के साथ हिंसा मारपीट की गयी, जिसका मुकाबला भीम आर्मी ने किया । भीम आर्मी ने दलित समुदाय के लोगों के सेफ़्टी गार्ड की भूमिका निभाई जिसके बाद दलित समुदाय ने अपनी आवाज को और बुलंद हौसले के साथ उठाया। यहाँ से हम समझ सकते हैं कि दलितों का अपना एक गौरव रहा है उनकी अपनी एक पहचान रही है ।उनका प्रतिरोध का बहुत पुराना इतिहास रहा है जो उन तमाम व्यवस्थाओं के शोषण के विरोध का परिणाम है, जो दलित समुदाय को हीन समझती है ।
दलितों का रैप
पंजाब में दलितों की आवादी 32 प्रतिशत है । जिसमें कभी एकजुटता नहीं रही । उसने अन्य राज्यों की तरह कभी अपने वोट बैंक के आधार पे राजनीतिक दलों को आकर्षित नहीं किया है । जिसका कारण दलित समुदाय में एकता का अभाव या वोट बैंक का बिखराव रहा है। इसलिए भी गिन्नी के गीत अपना महत्व रखते हैं । गिन्नी के गीत दलित समुदाय की महिलाओं को एक बड़ा स्पेस दे रहे हैं। जिसका परिणाम यह हुआ है कि गिन्नी के कार्यक्रमों में गाँव देहात या ग्रामीण महिलाओं की उपस्थिति एक बड़े जनसमूह के रूप में हो रही है। पंजाब से गिन्नी माही का आना कोई अचानक नहीं हुआ है, इसके पीछे का कारण पंजाब में दलित समाज का लंबे समय से शोषण के विरुद्ध संघर्ष रहा है।
( प्रस्तुत पेपर सावित्री बाई फुले पुणे विश्वविद्यालय , पुणे में स्त्री अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार में पढ़ा गया था)
कौशल कुमार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में स्त्री अध्ययन विभाग में स्नातकोत्तर के छात्र हैं. सम्पर्क:kk8482238@gmail.com
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