दलित लेखिका की दावेदारी: अपनी जमीं अपना आसमाँ

  अनिता भारती            

2017 में प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, स्त्रीवादी चिन्तक, कवयित्री, संपादिका रजनी तिलक की आत्मकथा ‘अपनी जमीं अपना आसमां’ ‘ईशा ज्ञानदीप’ प्रकाशन से आई। आत्मकथा 120 पेज में बाईस उपशीर्षकों में बाँटकर लिखी गई है। आत्मकथा बचपन से शादी तक के कालखंड की है
पुस्तक को लेखिका ने अपने माता पिता को समर्पित किया है।

रजनीतिलक

चूकि लेखिका रजनी तिलक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता रही है इसलिए उनकी आत्मकथा में उनके समाज जनित अनुभवों का खूब वर्णन है। दलित जीवन की आत्मकथा में यदि कोई दलित स्त्री आत्मकथा लिखें और उसमें उसके स्त्री होने के कारण झेले गए दुख और पीड़ा न हो, ऐसा संभव नहीं है। इस आत्मकथा में इस तरह के प्रंसग अनेक बार आए है। इस आत्मकथा का अनोखापन इसी में है कि लेखिका ने इसको अपने सामाजिक कार्यों में हुए व्यक्तिगत अनुभवों को बहुत मन से लिखा है।

आत्मकथा अपनी जमीं अपना आसमांमें चार चरित्र मुख्य रूप से दिखाई देते है जिनमें लेखिका का बड़ा भाई मनोहर लाल, पिता दुलारे लाल यानी भाईजी , मां जावित्री देवी यानी भाभी और लेखिका के भाई मनोहर लाला का दोस्त रमेश भौसले। पूरी आत्मकथा इन्हीं पात्रों के आस पास घूमती है। पूरी आत्मकथा में लेखिका रजनी तिलक जिस चरित्र से सबसे ज्यादा प्रभावित है वह है उसका अपना बड़ा भाई मनोहर लाल मानव, जो कि लेखिका रजनी तिलक से तीन साल बड़ा है। लेखिका के अनुसार वह घर और बाहर की दुनिया में उसका सबसे बड़ा सहयोगी, उसका आदर्श, उसको बाहर की दुनिया से अवगत कराने वाला, उसको सामज सेवा के लिए प्रेरित करने वाला, उसकी हर परेशानी व दुख में साथ खड़ा रहने वाला उसका भाई मनोहर लाल ही था। ऐसे समय जब भाई नामक जीव बहनों के घर से बाहर पढ़ने-लिखने, कास करने के लिए रोड़े अटकाता हो मतलब घर में पितृसत्ता को ढ़ोने और लागू करवाने वाला भाई ही हो तो ऐसे में मनोहर लाल मानव जैसे भाई विरले ही होते है, जो अपनी बहनों के साथ उनके अधिकारों के सुरक्षा के लिए समाज और परिवार के सामने तनकर खड़े हो जाते है। लेखिका रजनी तिलक ने एक दलित परिवार में मनोहर लाल मानव को बड़े लड़के यानी बड़े भाई को इतना उदार, इतना सहयोगी और इतना समझदार दिखाकर दलित साहित्य में एक आदर्श भाई के रुप में अमर कर दिया है। मनोहर लाल के होने के कारण ही एक डरी दबी सहमी शर्मसार हीन भावना के बोझ से दबी तिलक से रजनी और फिर रजनी तिलक’ बनती है। यह उनकी पूरी आत्मकथा में झलकता है।  

 आत्मकथा में दूसरा महत्वपूर्ण चरित्र है भाई जी यानि लेखिका रजनी तिलक के पिता। लेखिका के पिता जुझारू, अत्यंत मेहनती, परिस्थितियों के शिकार, अपनी दिमागी रुप से बीमार पत्नी के प्रति समर्पित पति और एक जिम्मेदार पिता के रूप में सामने आते है। चूँकि लेखिका परिवार की सबसे बड़ी पुत्री है और परिवार में उससे छोटे उसके पाँच भाई बहन जिनमें तीन भाई बहन संजय, मनोज, अनिता तो काफी छोटे दिखाए गए है, तो स्वाभाविक रूप से पिता यानी भाईजी दुलारेलाल अपनी पत्नी के बीमार होने के बाद बच्चों के लालन पालन के लिए घर के बड़े बच्चों यानी लेखिका और उसके बड़े भाई मनोहर लाल पर निर्भर हो गए। इस पूरी आत्मकथा में पिता के चरित्र में निरंतर विकास होते हुए दिखाया गया है। कहीं कहीं वह लड़कियों की पढ़ाई के लेकर संकीर्ण तो कहीं उस संकीर्णता को झटककर उन्हें पूरी आजादी देते हुए नज़र आते है। कहीं खुद गरीबी से जूझते हुए घर के खर्चों में कटौती करते हुए तो कहीं पर परिवार का भरण पोषण करने के लिए बच्चों के खर्चों में कटौती हुए नज़र आते है। लेखिका रजनी तिलक के अनुसार वह कहीं पर वह एक दयालु पिता की तरह, जो अपने बच्चों की बीमारी से दुखी भगवान के आगे हाथ जोड़ते हुए कि उनका बीमार बच्चा ठीक हो जाएं, तो कहीं बड़े भाई मनोहर की पत्नी के सामने अपनी बेटी को कम महत्व देते हुए नज़र आते है। कुल मिलाकर कहा जाएं तो इस पूरी आत्मकथा में पिता दुलारे लाल अपने विरोधाभासों पर मुक्ति पाते हुए दिखाई देते है।  

इस आत्मकथा का सबसे महत्वपूर्ण पात्र है लेखिका रजनी तिलक की बीमारी से जूझती हुई माँ जावित्री देवी। अपने दूसरे विवाह की खुशहाल गृहस्थी में रमी जावित्री देवी पूरे मोहल्ले में सबसे आकर्षक व्यक्तित्व वाली, पांचवी कक्षा तक पढ़ी लिखी, अत्यन्त मेहनती , बच्चों के परवरिश के प्रति अत्यन्त सजग, स्वाभिमानी और सुघड़ समझदार है। वह मोहल्ले की अन्य दलित महिलाओं की तरह नहीं सोचती। वह अपने बच्चों के लिए सुन्दर भविष्य के लिए सपने देखती है और उन्हें साकार करने की हिम्मत और ताकत भी रखती है। वह सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि अपने मोहल्ले की अन्य दलित औरतों को भी इस विषय में समझाती है। लेखिका रजनी तिलक अपनी माँ के बारे में बताते हुए एक जगह कहती है-  गली की औरतें जब गोबर पाथने जाती और अपनी लड़कियों को साथ ले जाती तो वह उन्हें टोककर रोकती और कहती- चम्पा, बिरमों तुम जो काम कर रही हो इन लड़कियों से मत करवाओं। इन्हें स्कूल भेजों। पढ़ाओं-लिखाओं। इन्हें ऐसा बनाओं कि गोबर पाथने का काम इन्हें न करना पड़े। ऐसे ही आत्मकथा में माँ की हिम्मत और साहस भरा एक और प्याज वाला प्रसंग आया है जो बहुत ही रोचक है। एक दिन जब पिता की पहली पत्नी जिसकी मृत्यु हो गई थी तो उसके रिश्ते का भाई, जा रिश्ते में मामा हुए यानी चुन्नी मामा , सोनीपत से प्याज का ट्रक लेकर आया और उसने बिना माँ से पूछे सारा प्याज घर के एक खाली कमरें में भर दिया और यह कहा कि वह तीन-चार दिन में उसे यहाँ से ले जायेगा। कुछ दिन बीतने पर भी जब उसने नहीं उठाया तो माँ में कहा- भैया यह प्याज हटालो, कब तक यहां पड़ी रहेगी? चुन्नी मामा ने माँ को घूरते हुए कहा – ये मेरे जीजा का घर है। तू कौन होती है मुझसे पूछने वाली?‘’ भाभी यानी माँ ने फिर प्यार से कहा- भैया वो तेरे जीजा है तो मैं तेरी बहन हुई न? ये बच्चे तेरे भानजे भानजी हैं। इन्हें तकलीफ क्यों दे रहा है? कल सारा प्याज उठा ले। आराम से कह रही हूं। यह हमारा घर है कोई स्टोर तो नहीं न? चुन्नी मामा के द्वारा पिता को शिकायत करने पर भाभी ने भी पिता जी को बोल दिया- सुनो जो इसे कह हो आज शाम चार बजे तक प्याज नहीं उठाया तो मैं सड़क पर फेंक दूंगी। भाभी ने उसे चेता दिया कि शाम को चार बजे आकर प्याज नहीं उठायेगा तो वह सड़क पर फेंक देगी या लोगों में बाँट देगी भाभी वहीं करने वाली थी। वो जो कहती थी वह करती थी। चार बजे चुन्नी मामा को आने के वक्त प्याज बाहर फेंकने को तैयारी कर ली। सबी वक्त पर चुन्नी मामा एक ट्रक ले कर आए और अपना सारा प्याज भरकर ले गए।

 लेखिका रजनी तिलक  की माँ जावित्री देवी और कौशल्या बैसन्त्री की आजी जैसे स्वाभिमानी, आत्मविश्वासी, मेहनती, समय से आगे की सोचने वाली, मक्त भाव से जीने वाली चरित्र ही दलित महिलाओं के प्रेरणास्रोत है. 

अपनी जमीं अपना आसमां में एक और चरित्र है जो लेखिका के जीवन बहुत प्रभावित करता है और उसे प्रेरणा देता है। इस चरित्र का नाम रमेश भौंसले है। जो कि एक एल.एल.ए. का बेटा है। लेखिका के बड़े भाई का दोस्त है। वह लेखिका के आगे पढ़ने लिखने, बढ़ने और सामाजिक कार्यों को करने की प्रेरणा देता है। वह बहुत सिद्धांतवादी है। जैसे उसके पिता ईमानदार है वह भी वैसा ही ईमानदार है। अपनी  तीन बहनों की शादी करवाने के लिए, पिता की मृत्यु के बात अपनी बहनों के लिए पिता के भूमिका में आ जाता है। और एक दिन लेखिका को एक बस में टिकट कंडेक्टर के रूप में मिला। यहाँ यह सवाल बड़ा कौंधता है कि जो रमेश अपनी दोस्त की बहन रजनी को घर से बाहर निकल कर  काम करने की प्रेरणा देता है वह अपने  घर की लड़कियों की शादी के लिए इतना अधिक परेशान क्यों रहता है और उसने अपनी बहनों को सामाजिक कार्यों में क्यों नहीं जोड़ा?

खैर बकौल लेखिका – रमेश का स्नेह मेरे जीवन के हर मोड़ पर छांव बन छाया रहा था । दोस्त बनकर वह मुझे नैतिक बस दे रहा था। बदले में उसे कुछ नहीं चाहिए। रमेश और मेरा रिश्ता ऐसा ही था। वह मेरी जिन्दगी में उगते सूरज की तरह था जिसकी पहली किरण से मैंने नई जिन्दगी देखी। जिन्दगी के नये अर्थ सीखें। उसके असीम स्नेह और सानिध्य में मैं ऐसी शाख्सियत बन गई जिसकी जिन्दगी में छद्म धारणाओं, वायदों की कोई अहमियत नहीं थी। जहां प्रेम प्रेरणा बनकर व्यक्तित्व को कुंठाओं से मुक्त कर शिखर पर पहुँचाता है।

 आत्मकथा ‘अपनी जमीं अपना आसमां’ में पाठक लेखिका रजनी तिलक के संधर्षशील जीवन से रूबरू होते है। यह आत्मकथा एक सक्रिय सामाजिक और स्त्री कार्यकर्ता की आत्मकथा है। पूरी आत्मकथा में उनके कार्यों का ब्यौरा है। आंगनवाड़ी वर्कर यूनियन बनाने से लेकर थियेटर में काम करने करने तक, कविता लिखने से लेकर गरीब दलित बच्चों लिए स्कूल खोलने तक, दिल्ली से लेकर बम्बई की यात्रा तक, अम्बेड़करवादी कार्यकर्ता से लेकर मार्क्सवादी कार्यकर्ता तक, आई.टी.आई में कटिंग टेलरिंग की छात्रा से लेकर दलित स्त्री नेतृत्व तक के अनेक- अनेक अनुभव आत्मकथा में समाये हुए हैं। लेखिका अपने स्वप्नो, अपने आदर्श, अपनी दिशा और अपने स्वयं के प्रेम और समाज के प्रेम को लेकर अपनी जीवन की कहानी को बुनकर ताना-बाना तैयार करती है और उसे सहेजकर दूसरों को प्रेरणा देने, अधिकारों की लड़ाई में आगे बढ़ने, उनसे जूझने का बल देती है।’अपनी जमीं अपना आसमां दलित और स्त्री साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान है। इसके लिए लेखिका बहुत बधाई की पात्र है।   

अनिता भारती लेखिका और सोशल एक्टिविस्ट हैं.