पटना में याद की गयीं रमणिका गुप्ता

उन्होंने समाज राजनीति और साहित्य तीनों ही मोर्चे पर हाशिये की आवाज को एक अलग स्वर दिया।अपने जीवन के अमूल्य 20 वर्ष बिहार में समाज और राजनीति में स्त्रियों की आवाज मुखर करती रहीं।बिहार विधानसभा और बिहार विधान परिषद की सदस्य रहीं और लगभग 28 वर्ष साहित्य में अस्मितावादी विमर्श को विकसित करने में लगीं रहीं।उन्होंने हर तरह की वर्जनाओं और आम आदमी के खिलाफ खड़ी सामंती ताकतों से लोहा लिया।अपने जीवन के 89 वें साल में भी वे लिखती ही रहीं।’

ये बातें आज पटना में रमणिका गुप्ता की स्मृति में आयोजित शोक सभा में शामिल वक्ताओं ने कही।साहित्यिक संगठन बागडोर, दूसरा शनिवार, समन्वय और कोरस की संयुक्त पहल पर पटना कॉलेज सेमिनार हॉल में इसका आयोजन संपन्न हुआ।उपस्थित लोगों ने रमणिका गुप्ता की फोटो पर पुष्पांजलि अर्पित की, उनसे जुड़ी स्मृतियां साझी की और उनकी कविताओं का भी पाठ किया।

प्रेमकुमार मणि ने उनसे जुड़ी ढेर सारी यादों को साझा करते हुए कहा कि वे बिहार झारखंड में समाजवादी आंदोलन की जुझारू कार्यकर्ता रहीं। आरंभिक दिनों में उनकी अच्छी तस्वीर मेरे जेहन में नहीं थी लेकिन 90 के दशक में युद्धरत आम आदमी और रमणिकाफाउंडेशन के माध्यम से

 साहित्य में उन्होंने जो हस्तक्षेप किया उससे उनके प्रति मेरी धारणा बदल गई। उन्होंने कहा कि उन्होंने हमेशा हाशिये की आवाज को बल प्रदान किया।

पटना कॉलेज के प्राचार्य रमाशंकर आर्य ने कहा कि रमणिका जी से उनका पहला परिचय 1997 में हजारीबाग में हुआ जब वह उतर भारत में पहली बार दलित लेखकों का सम्मेलन आहूत करवाईं।उन्होंने कहा कि उनके रमणिका फाउंडेशन में नृविज्ञानी रामदयालमुंडा, के.के. नाग और मैं भी संस्थापकों में शामिल किया।उन्होंने हाशिये के समाज के लिए जो काम किया उसका उदाहरण हिन्दी पटटी में उन्हें नजर नहीं आता। खासी संपन्न खत्री परिवार में जन्म लेने के बाद भी उन्होंने जिस तरह से अपने का डिकास्ट किया उसका कोई शानी नहीं।वे हमेशा आम आदमी की तरह सहज, सरल जीवन जीने की हिमायत करती रहीं।उनका घर हाशिये के समाज से आनेवाले एक्टिविस्टों का अड्डा था।श्री आर्या ने कहा कि रमणिकाजी ने देश के स्तर पर आदिवासियों का संगठन खड़ा किया और उनके बेहतरी के लिए लगातार लगी रहीं।उन्होंने उनकी आत्मकथा ‘आपहुदरी और हादसे को सीमोन दी बोबुआर और प्रभा खेतान की आत्मकथा की परंपरा की अगली कड़ी बतलाया।

प्रो.तरुणकुमार ने कहा कि रमणिका जी बहुत ही जीवटवाली शख्सियत थीं।साहित्य समाज के प्रति जिस समर्पण के साथ उन्होंने काम किया उसकी नजर हिन्दी में जल्दी नजर नहीं आती।

पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह ने कहा कि रमणिका जी से उनकी मुलाकात का सुयोग कवि पंकज चौधरी के माध्यम से संभव हुआ जब वह पटना में दलित लेखकों के एक सम्मेलन के सिलसिले में आईं।उन्होंने कहा कि उन्होंने हर तरह की वर्जिनिटी को खुद के जीवन और साहित्य दोनों ही धरातलों पर तोड़ा और समाज के अंतिम आदमी के पक्ष में अंत अंत तक लगीं रहीं।

कवि नरेन्द्रकुमार ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पितकरते हुए उनकी कविता वरमाला रौंद दूंगी’ का पाठ किया।

कवि राकेश शर्मा ने कहा कि रमणिका जी शोषित, दमित समाज के लिए आजीवन संघर्षरत रहीं।उनका जीवन हमें प्रेरित करता है किस माज के लिए एक लेखक को किस तरह का जीवन जीना चाहिए।

संस्कृति कर्मी समता राय ने कहा कि हम संस्कृर्ति कर्मियों को उनसे सबक लेना चाहिए कि जनता के लिए किस तरह से लेखन और संघर्ष दोनें ही स्तरों पर काम करना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन अरुण नारायण ने किया। इस मौके पर अरविंद पासवान, धृव कुमार, अरविंद कुमार, अशोक कुमार क्रांति आदि कई लोगां ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का समापन रमणिका जी की याद में दो मिनट के मौन के साथ संपन्न हुआ।

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