लगभग सभी पार्टियों के नेताओं द्वारा महिला राजनीतिज्ञों के विरुद्ध अश्लील टिप्पणियों का जायजा ले रही हैं मनोरमा सिंह:

फिलहाल देश में चुनावी सरगर्मी है, निर्वाचन क्षेत्र में नेताओं की चहलकदमी है, बयानों की आंधी है, टीवी पर बहसों में होहल्ला है और सोशल मीडिया पर भी उन्हीं को लेकर हमले हैं, खेमेबाज़ी है लेकिन इसके साथ ही भारतीय राजनीति का वही पुराना चलन और चरित्र भी है, जहाँ एक से बढ़कर एक स्त्रीविरोधी बयान हैं . हर राजनीतिक पार्टी के लिए विरोधी दल पर हमले का सबसे आसान जरिया एक-दूसरे की पार्टियों की महिला नेताओं पर निजी हमले और फिर जवाबी हमले हैं और यह संयोग नहीं बल्कि लगातार चली आ रही प्रैक्टिस है. याद करिये क्या पिछले चुनाव में भी ऐसा ही नहीं था ? तब भी बड़े बड़े नेताओं द्वारा लगातार स्त्री विरोधी टिप्पणियां की जा रही थीं, अब भी गली के छूटभैया नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक अनवरत महिला विरोधी बयान जारी हैं. पिछला हफ्ता भी ऐसे ही बयानों के नाम रहा जब समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने हाल ही में समाजवादी पार्टी से भाजपा में शामिल हुई जयाप्रदा के लिए कहा कि ‘जिसकी ऊँगली पकड़कर हम रामपुर में लेकर आये, रामपुर की गालियाँ, सड़कों की पहचान करायी, किसी का कांधा नहीं लगने दिया उसके शरीर से, छूने नहीं दिया, गंदी बात नहीं करने दी, आपसे 10 साल अपना प्रतिनिधित्व कराया, उसकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लग गये, मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके नीचे का जो अंडरवियर है, वो ख़ाकी रंग का है” हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि आजम खान का ये बयान जयाप्रदा के लिए नहीं बल्कि अमर सिंह के लिए था. लेकिन सुनने पर यह बयान जयाप्रदा के लिए ज्यादा लग रहा है , ठीक इससे पहले बिहार के भाजपा नेता अश्विनी कुमार चौबे बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और राजद नेता राबड़ी देवी को घूंघट में रहने की सलाह दे रहे थे, प्रियंका गांधी पर आये दिन बयान चल रहे हैं और सोनिया गांधी का चरित्र तो हमेशा से बीजेपी के निशाने पर रहा ही है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2002 से सोनिया गाँधी पर निजी टिप्पणियाँ करते रहे हैं , आश्चर्य तब होता है जब सोनिया गाँधी पर हमले के लिए भाजपा की महिला नेताओं की भी यही लाइन होती है. मायावती, ममता बनर्जी, स्मृति ईरानी पर भी ऐसे लगातार ऐसी ही टिप्पणियां होती रही हैं. दरअसल, महिलाओं पर नेताओं के अपमानजनक बयान न तो नए है और ना ही आगे कभी बंद होने वाले है, ये भी नहीं है कि ये केवल चुनाव के समय तक सीमित हैं बल्कि जब-जब पुरुषों की सत्ता और वर्चस्व पर कोई स्त्री खतरा बनेगी ऐसे बयान आते रहेंगे । अच्छी बात ये है कि सोशल मीडिया के इस दौर में अब ऐसे हर बयान बहस के दायरे में आ रहे हैं भले मुख्यधारा की मीडिया इस पर तवज़्ज़ो दे या न दे। । हाल के दिनों में ऊपर के दो बयानों के अलावा भी बहुत कुछ महिलाविरोधी कहा गया जैसे, हिमाचल प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने राहुल गांधी के ‘चौकीदार चोर है’ के जवाब में सार्वजनिक मंच से राहुल गाँधी को कहा ” चौकीदार चोर है अगर तू बोलता है तो तू मा@%&८ *$#द है। भाषा की इस गिरावट को मौज़ूदा राजनीति का चरम कहा जा सकता है तब तो और जब इसकी निंदा में अब तक प्रधानमंत्री का कोई बयान तक नहीं आया हो, क्या ये स्वीकृति नहीं है इस चलन को ?
आजम खान से पहले उनकी ही पार्टी के एक और नेता फिरोज खान का बयान था, ” रामपुर की शामें रंगीन हो जाएँगी अब जब चुनावी माहौल चलेगा” जयाप्रदा के साथ बीजेपी की ही संघमित्रा मौर्या को निशाने पर रखकर उन्होंने कहा,” अब कोई अपने को गुंडी बता दे,कोई नाचने का काम करे वो उनका अपना पेशा है”.हालांकि उनके इस बयान का काफी विरोध हुआ , खासकर सोशल मीडिया पर और इसी के चलते उन्हें चुनाव प्रचार से अलग कर दिया गया है। एक और मामले में पीआरपी जो कांग्रेस की सहयोगी पार्टी है उसके नेता जयदीप कवाडे ने स्मृति ईरानी को लेकर कहा,” स्मृति ईरानी गडकरी के बगल में बैठती हैं और संविधान बदलने के बारे में बात करती हैं. उनके बारे में एक बात बताता हूँ, वो अपने माथे पर बड़ी बिंदी लगाती हैं और कोई मुझसे कह रहा था की जब औरत अपना पति लगातार बदलती है तो उसके माथे की बिंदी का आकार भी बड़ा होता जाता है “.
इसी तरह उत्तर प्रदेश के भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह भी अपने स्त्री विरोधी बयानों से लगातार चर्चा में हैं उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती के लिए टिप्पणी की कि ‘मायावती जी 65 की उम्र में विदेश जाकर फेशियल करवाती हैं और अपने बाल रंगवाती हैं. वह हमारे नेता को शौकीन बोलती हैं.’ उन्होंने मायावती को भैंस तक कहा, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को मौसमी नेता करार दिया. और कहा, प्रियंका तीन माह पहले होटल विहार कर रही थीं और अब नौका विहार कर रही हैं. प्रियंका के संस्कार में राजनीति नहीं है. गंगा एक्सप्रेस वे बनने वाला है इसलिए प्रियंका नौका विहार की आड़ में अपने पति के लिये जमीन की तलाश करने आयी हैं. इसी साल जनवरी में उन्होंने प्रियंका गांधी वाड्रा को शुर्पणखा भी कहा था और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ‘रावण’ . ये वही सुरेंद्र सिंह हैं जिन्होंने हरियाणवी डांसर सपना चौधरी के कांग्रेस में शामिल होने की खबर सुनते के साथ कहा था कि ‘राहुल की माताजी भी इटली में इसी पेशे से थीं, जैसे आपके पिताजी ने सोनियाजी को अपना बना लिया था,आपने भी सपना को अपना बना लिया है और कांग्रेस की उसी परंपरा को मजबूत कर रहे हैं. भाजपा के ही कैलाश विजयवर्गीय और सांसद साक्षी महाराज का कथन है, महिलाओं को ऐसा श्रृंगार करना चाहिए, जिससे श्रद्धा पैदा हो, न कि उत्तेजना. कभी कभी महिलाएं ऐसा श्रृंगार करती हैं, जिससे उत्तेजित हो जाते हैं लोग. बेहतर हैं कि महिलाएं लक्ष्मण रेखा में रहें और हिंदू महिलाओं को अपने धर्म की रक्षा करने के लिए ‘कम से कम चार बच्चे पैदा करने चाहिए’।
बात केवल उत्तर भारत की ही नहीं है दक्षिण का भी यही हाल है, इसी 17 अप्रैल को अपने फेसबुक पेज पर ‘महिला विरोधी’ वीडियो साझा करने के कारण कन्नूर से कांग्रेस प्रत्याशी के सुधाकरण के खिलाफ एक मामला दर्ज किया गया है, सोशल मीडिया पर सुधाकरण द्वारा साझा किये गए वीडियो में एक बुजुर्ग व्यक्ति इशारों में यह कहते हुये नजर आ रहे हैं कि एक महिला को संसद भेजना एक भूल थी क्योंकि वह काम कराने में अक्षम थी, वह शिक्षिका है, गौरतलब है कि कन्नूर में सुधाकरण और श्रीमति टीचर के रूप में जानी जाने वाली माकपा प्रत्याशी पी के श्रीमति के बीच मुकाबला है। इसी तरह डीएमके के नेता नंजील संपथ पुडुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी को सम्बोधित करते हुए कहा कि ,’ हम नहीं जानते की वो आदमी हैं या औरत”. तमिलनाडु के एक्टर और डीएमके से जुड़े राधा रवि ने भी अभिनेत्री नयनतारा को लेकर घटिया बयान दिया था जिसपर उन्हें पार्टी से निलंबित किया गया !

दरअसल, राजनीति में हमेशा से महिलाओं की जगह हाशिये की ही रही है , ये जरूर है कि कुछ गिनती की महिलायें का भी यहाँ दखल रहा है और इसी संख्या को मुख्यधारा की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व माना जा सकता है लेकिन यह प्रतिनिधित्व कैसे है? जाहिर है कुछ के लिए राजनीति में मौजूदगी पारिवारिक विरासत है कुछ के लिए ताकतवर परिवारिक पृष्ठभूमि, और कुछ नाम और शोहरत के कारण राजनीति में लाल कालीन पर चल कर आयी महिलायें हैं, खालिस अपने दम पर राजनीति में प्रवेश कर अपनी हैसियत बनाने वाली महिलाओं के उदाहरण बहुत कम हैं। भारतीय राजनीति में सबसे सशक्त महिला नेता की ही बात करें तो इंदिरा गांधी का नाम सबसे पहले आता है आता है जिनकी राजनीति में उपस्थिति की पहली वजह पिता की विरासत थी जबकि आज़ादी के आंदोलन में हज़ारों आम महिलाओं ने आगे बढ़कर, पुरुषों के कंधा से कंधा मिलाकर अपना योगदान दिया था. बहरहाल इंदिरा गाँधी भी आयरन लेडी और फिर तानाशाह प्रधानमंत्री कहलाने से पहले अपने साथी नेताओं की दुनियां में ‘गूंगी गुड़िया’ कहलाती थीं. वो जिस दुनियां में थीं उसकी हक़ीक़त उन्हें अच्छी तरह से मालूम थी इसलिए उन्होंने राजनीति में अपने आसपास एक कठोर आवरण बनाया था. बीबीसी हिंदी के एक लेख में वरिष्ठ पत्रकार कुमकुम चड्ढा की बहुचर्चित किताब ‘द मेरीगोल्ड स्टोरी- इंदिरा गाँधी एंड अदर्स’ के हवाले से जिक्र है कि श्रीमति गाँधी के मामले में ‘पर्सनल लाइन’ पार करने की कोई हिम्मत और इज़ाज़त किसी को भी नहीं थी. लोग उनके सामने तभी बोलते थे , जब वो बोलने का संकेत देती थी. उनकी किताब में वाकया है कि कैसे मध्यप्रदेश के उनके एक मंत्री ने कैबिनेट बैठक के दौरान उनके सौंदर्य की तारीफ़ कर दी थी तो उन्होंने उन्हें तुरंत बाहर का रास्ता दिखा दिया था, अपने एक कैबिनेट मंत्री से भी एक बार वो इसी बात पर नाराज़ हो गई थीं कि उसने उनके सौंदर्य की तारीफ़ कर दी थी।
यहाँ इस प्रसंग का जिक्र इसलिए है कि समझा जा सके कि महिलाओं के लिए राजनीति कैसे दोधारी तलवार पर चलने जैसा है, जहाँ किसी के काम और उसकी योग्यता के मूल्यांकन से पहले चरित्र पर और निजी हमले सबसे ज्यादा होते हैं। इसलिए जिन महिलाऒं में ये सब सुनने और सहन करने और इसके बावजूद सहज बने रहने का माद्दा है वही राजनीति में टिकती हैं जाहिर है सिर्फ इसी बात के लिए राजनीति में सक्रिय तमाम महिलाओं के लिए एक सलाम बनता है, हालाँकि आगे हम इस पर भी बात करेंगे कि कैसे ताकत और सत्ता के वावज़ूद महिलाएं यहाँ भी दलीय प्रतिबद्धता के नाम पर पितृसत्ता का ही एक हथियार भर बन कर रह जाती हैं, बहुत मामलों में उतनी ही स्त्री विरोधी भी। हाल ही में मी टू प्रसंग याद होगा आपको जब कई महिला पत्रकारों ने एम.जे. अकबर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था लेकिन उनकी पार्टी की किसी महिला नेता ने एक शब्द विरोध में नहीं कहा, सुषमा स्वराज आजम खान के विरोध में ट्वीटर पर सक्रिय हुई लेकिन एम जे अकबर पर चुप रहीं, स्मृति ईरानी, निर्मला सीतारमण, मेनका गाँधी, हेमा मालिनी अपनी पार्टी की किसी भी महिला विरोधी बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देती हैं., महिला पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद “कुतिया” कहा गया ,एक धर्म विशेष की महिलाओं को “क़ब्र से निकाल के बलात्कार” करने की बात कही गयी सोनियाँ गांधी को “बार डांसर” कहा गया ,इन्दिरा गांधी को “रखैल” बोला गया, मायावती को “वेश्या” कहा गया, फिर भी महिलाओं द्वारा ही कोई रेखा नहीं खींची गयी। भाजपा एमएलए साधना सिंह ने जो महिला हैं मायावती के लिए कहा, जिस दिन महिला का ब्लाउज, पेटीकोट, साडी फट जाये वो महिला सत्ता के लिए आगे आती है, उसको पूरे देश की महिला कलंकित मानती है, वो तो किन्नर से भी ज्यादा बदतर हैं क्योंकि वो तो न नर है न महिला है”. खोजने पर ऐसे तमाम बयान मिलेंगे जो एक स्त्री को स्त्री के विरुद्ध पितृसत्ता के हथियार की धार पर रखते हुए मिलेंगे, जाहिर है ये जड़ें गहरी हैं और थिक कंडीशनिंग है।
ये सिलसिला थम नहीं रहा तो इसकी एक बड़ी वजह राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद कम होना भी है, शायद इसलिए अब तक राजनीति का चरित्र स्त्रीविरोधी ही है, अभी भी. कुल 48.1 फ़ीसदी की आबादी के बावजूद मौजूदा लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 12.1 प्रतिशत ही है. जिनके लिए अपनी पार्टीगत प्रतिबद्धता सबसे पहले है इसलिए हैरानी नहीं कि क्यों संसद में पहुंच चुकी महिलाओं के लिए पार्टीलाइन से हटकर महिला आरक्षण विधेयक एक मुद्दा नहीं बन पाता है. हाँ मौजूदा समय में स्त्री विरोधी मानसिकता के और बढ़ते चलन का एक सिरा दक्षिणपंथ की राजनीति से भी जरूर जुड़ता है जहाँ हर किस्म का अतिवाद, कट्टरता और जड़ता और ज्यादा मजबूत होती है चाहे वो धार्मिक हो, जातिगत या स्त्री विषयक। ये कहना गलत नहीं होगा क़ि पिछले पांच साल में शीर्ष से “मिसोजिनि” या स्त्री विरोधी संस्कृति मुख्यधारा का स्वीकृत हिस्सा बन चुकी है, मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा किसी और प्रधानमंत्री की ऐसी जबान कभी नहीं थी जब विपक्ष की सबसे बड़ी नेता जो महिला हैं उनका जिक्र तमाम मंचों से उन्होंने शालीनता की हद से बाहर जाकर किया चाहे उन्हें, इटली की कहना, ईसाई कहना, विधवा कहना कई बाते शामिल हैं. 2012 में भी जब नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी रैली में शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर के लिए कहा था, ”वाह क्या गर्लफ़्रेंड है. आपने कभी देखी है 50 करोड़ की गर्लफ़्रेंड?” 2002 में तत्कालीन चुनाव आयुक्त नास्तिक लिंगदोह और सोनिया गाँधी के धर्म को जोड़कर उनके चर्च में मिलने की वाहियात टिप्पणी की थी, इसके आलावा भी भाजपा के नेता लगतार सोनिया गाँधी के लिए जर्सी गाय, बार डांसर, इटली नी कुतरी जैसे शब्द बोलते रहे हैं , सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे नेताओं ने तो जो कहा है उसे लिखना भी असभ्यता के दायरे में आता है। मुलायम सिंह यादव का रेप के सन्दर्भ में दिया गया बयान – ‘लड़कों से ग़लती हो जाती है और इसके लिए उन्हें मौत की सज़ा नहीं देना चाहिए’ तो भारतीय पुरुषवाद का स्वर्णाक्षर ही बन चूका है. और जेडीयू के शरद यादव ने तो अपने बयान से महिला आरक्षण विधेयक को ही हल्का कर दिया था कि “इस बिल से सिर्फ़ पर-कटी औरतों को फ़ायदा पहुंचेगा. परकटी शहरी महिलाएँ हमारी (ग्रामीण महिलाओं) का प्रतिनिधित्व कैसे करेंगी” वोट की इज्जत बेटियों की इज्जत से बड़ी है ये भी इन्हीं शरद यादव का बयान है । वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का एक पार्टी कार्यक्रम में जयंती नटराजन को ‘टंच माल’ कहा जाना भी याद ही होगा। कम तो शालीन और पढ़े लिखे कोंग्रेसी सांसद संजय निरुपम भी नहीं साबित हुए जब उन्होंने स्मृति ईरानी के लिए कहा था, “कल तक आप पैसे के लिए ठुमके लगा रही थीं और आज आप राजनीति सिखा रही हैं”।
वैसे शायद ये भी याद हो 2014 के चुनाव की कैंपेनिंग का एक अहम हिस्सा सोशल मीडिया था जहां एक बड़ा हिस्सा सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह के कई आपत्तिजनक पोस्टर और अपशब्दों से भरे होते थे। तब सोनिया गाँधी खतरा थीं इसलिए निशाना उनपर था अब मैदान में प्रियंका गाँधी हैं इसलिए ये अकारण नहीं है आज अधिकतम के निशाने पर वही हैं राजनीति में औपचारिक एंट्री के साथ चारो ओर से उनका स्वागत एक से बढ़कर एक नफरती और घटिया बयानों के साथ हुआ है पहले लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने तंज किया कि राहुल गांधी अकेले अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सके इसलिए अब बहन की मदद ली है. बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा था कि राहुल गांधी फेल हो गए इसलिए राजनीति में प्रियंका को लाया गया है. बिहार में बीजेपी के मंत्री विनोद नारायण झा ने कहा, “खूबसूरत चेहरों के दम पर वोट नहीं जीते जा सकते… वह बेहद खूबसूरत हैं, लेकिन उसके अलावा उनकी कोई राजनैतिक उपलब्धि नहीं है.”बीजेपी नेता जयकरण गुप्ता ने प्रियंका पर निशाना साधते हुए कहा कि स्कर्ट वाली बाई साड़ी पहनकर मंदिर में शीश लगाने लगी है, गंगाजल से परहेज़ करने वाले लोग गंगाजल का आचमन करने लगे हैं. प्रियंका गांधी के लिए “साइबेरियन पक्षी” और पप्पू की “पप्पी” जैसे शब्द भी कहे गए हैं .घटियापन की हद तो ये है कि प्रियंका गांधी के मोदी के 56 इंच के सीने के बयान के जवाब में “28 इंच के दो” जैसी घटिया बात तक कही जा रही हैं. अभी एक महीने और चुनाव अभियान जारी रहेगा, यूपी बिहार समेत उत्तर भारत के तमाम राज्यों में कई चरण में चुनाव हैं तो जैसे जैसे प्रियंका की मजबूत दावेदारी उभरेगी उन्हें इससे भी बढ़कर घटिया बयानों का सामना करना पड़ सकता है।

दरअसल, हमारे देश में आधी आबादी के बावजूद स्त्री कोई वोट बैंक नहीं है, इसलिए उनके सम्मान और अस्मिता की अलग लड़ाई भी कोई पहचान नहीं है, वाम और मजदूर संगठन दलित, शोषित और वंचित महिलाओं की लड़ाइयों को लेकर सड़क पर होते हैं लेकिन वो तबका अलग है और लड़ाई भी रोजी-रोटी की ज्यादा राजनीतिक अधिकारों की कम है जो दक्षिण और लिबरल दोनों रातनीति में हाशिये पर है और यहाँ वाम खुद हाशिये पर है. बहरहाल कुछ अच्छी शुरुआत भी हुई हैं जैसे ममता बनर्जी द्वारा तृणमूल कांग्रेस में घोषित प्रत्याशियों की सूची में 41 फ़ीसदी महिलाओं को स्थान देना, उड़ीसा में नवीन पटनायक का बीजेडी में 33 प्रतिशत शीट महिलाओं को देना उम्मीद देता है. नेशनल विमेंस पार्टी का आस्तित्व में आना और 545 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कहना ये सब सही दिशा में उठे कदम हैं क्योंकि संसद और सत्ता में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने से ही नीति निर्धारण में भी उनका असर देखने को मिलेगा. लेकिन निराश करने वाली बात ये भी है कि अभी भी कांग्रेस और भाजपा जैसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों में महिलाओं को आबादी के अनुपात में टिकट नहीं दिया गया है ! वैसे राजनीति के चरित्र को स्त्री अपने मूल चरित्र से कितना मानवीय बना सकती है यह उम्मीद न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आरनर्ड की राजनीति से मिलती है,जब उन्होंने पूरी दुनियां को दिखाया कि एक स्त्री की सत्ता में करुणा, मानवता, मानवाधिकार और संवेदनशीलता कितने बड़े मूल्य हो सकते हैं !
मनोरमा सिंह बंगलौर में पत्रकारिता करती हैं. संपर्क: manorma74@gmail.com