महाराष्ट्र के वर्धा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार चारुलता टोकस से शिवानी अग्रवाल की बातचीत का संक्षिप्त अंश

महाराष्ट्र की राजनीति में चारुलता टोकस आज एक जाना-पहचाना नाम है। वे राज्य महिला कांग्रेस की पिछले तीन वर्षों से अध्यक्ष भी हैं। राज्य के विदर्भ क्षेत्र के वर्धा जिले की वे जिला परिषद अध्यक्ष भी रही हैं। वर्तमान में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की वे वर्धा लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। वर्धा की भूमि से ही मोदी जी ने राज्य में अपने चुनाव प्रचार अभियान की पिछले एक अप्रैल को शुरुआत की है। 5 मार्च को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी यहां चुनावी रैली को संबोधित किया है। राजनीतिक विश्लेषक राहुल की रैली में मोदी जी की रैली से ज्यादा भीड़ जुटने के आधार पर इस सीट से कांग्रेस की जीत की उम्मीद जता रहे हैं। कुछ दिन पूर्व यह लोकसभा सीट बीजेपी के सिटिंग एमपी रामदास तड़स के एक टीवी चैनल के स्टिंग के कारण चर्चा में आया था। इसमें वे पिछले लोकसभा चुनाव में दस करोड़ खर्च करने की बात कबूलते नजर आ रहे हैं। इस लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने उससे दुगुने रुपये खर्च करने की बात की है। बहरहाल वर्धा में उनके ही एमपी ने मोदीजी के ‘मैं भी चौकीदार’ स्लोगन की हवा निकाल दी है। चारुलता टोकस-कुनबी जाति (कुर्मी) और रामदास तड़स (तेली)- दोनों ओबीसी तबके से आते हैं। बहरहाल इस सीट पर दोनों के बीच अत्यंत ही नजदीकी मुकाबला होता दिख रहा है।
अपनी प्रारंभिक जिंदगी- पारिवारिक और शैक्षणिक पृष्ठभूमि के बारे में बताएं?
चारुलता- हमारे नाना-नानी स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में सक्रिय रहे। नानी ने अपना ट्रस्ट बनाया था, जिसमें लोगों का इलाज कराया जाता था। नानाजी ने गांधी जी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और इस आंदोलन से जुड़ गए। उनकी बेटी यानी मेरी माँ ने घर से ही समाज सुधार का काम शुरू कर दिया था। उस समय घर में दलित- मुस्लिमों को घर में खाना न देने अथवा बनाने की परंपरा थी, पर इस परंपरा को मम्मी ने घर से ही तोड़ा और जिद्द करके उनको ही खाना बनाने के लिए रखा। हमारा जो परिवार है, वह सेक्युलर फैमिली है, जात-पात, धर्म आदि के भेदभाव को नहीं मानता, हमलोग सबको समान मानते हैं। मम्मी ने पुलगांव के कॉटन मिल के कामगारों के यह कहने पर कि ‘आप हमारी समस्याओं को हल करती हैं, आप चुनाव लड़ कर और भी लोगों की समस्याओं को हल करें,’ तो मम्मी ने 1972 में पहला चुनाव लड़ा और जीता, तब वे मिनिस्टर बनी थीं, 2010 में जब उनकी मौत हुई तब भी वे राजस्थान की गवर्नर थीं।
भारतीय समाज में किसी महिला का राजनीति में कदम रखना बड़ी बात होती है, ऐसे में आप राजनीति में कब और कैसे आई?
जब मैंने राजनीति की शुरुआत की, मैं कॉलेज से पढ़ कर निकली ही थी। मुझे इसका अनुभव बिल्कुल भी नहीं था। मेरी राजनीति की शुरुआत 1992 में जिला परिषद के चुनाव से जिला परिषद के अध्यक्ष के रूप में हुई। 5 साल तक मैं जिला परिषद में थी उसके बाद पार्टी में कई पदों पर रही। मैं महाराष्ट्र से यूथ कांग्रेस की वाइस प्रेसिडेंट भी रही। इसके बाद अभी राज्य महिला काँग्रेस की 3 साल से अध्यक्ष हूँ।
आप अपना प्रेरणा स्रोत किसे मानती हैं?
इंदिरा गांधी मेरी प्रेरणा स्रोत रही हैं, उन्हीं से राजनीति में आने की प्रेरणा मुझे मिली।
एक स्त्री के तौर पर राजनीति में आने पर आपको किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा?
चूंकि मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीति से जुड़ी रही है, इसलिए राजनीति में आने में मुझे कोई ज्यादा समस्या नहीं हुई पर लोग जिस अपेक्षा से देखते हैं क्योंकि विरासत जो मिली है और जो काम मम्मी ने किया है तो लोग भी मुझसे यही उम्मीद करते हैं, इसलिए मुझे भी उन उम्मीदों में खरा उतरना होगा। परिवार, सास-ससुर, पति आदि की तरफ से मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई। उन्होंने मुझे हर विपरीत परिस्थितियों में काफी सहयोग किया। जब मैंने राजनीति में कदम रखा तब मैं कॉलेज की लड़की ही थी। धीरे- धीरे मैंने बहुत कुछ सीखा, महिला होने के नाते बहुत सारी चीजों का सामना भी करना पड़ता है, हममें तो सहनशीलता ऊपर वाले ने दी ही है, उससे भी बहुत फर्क पड़ता है। मैं आराम से चीजों को सुनती थी कोई जवाब नहीं देती थी क्योंकि मुझे पता था कि मेरा काम ही मेरा असल जवाब होगा।

आज आप महिला कांग्रेस की महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष हैं और पार्टी ने आपको वर्धा लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी भी बनाया, राज्य और पूरे देश में महिलाओं की स्थिति कैसे देखती हैं ?
पिछले 5 सालों में महिलाओं पर अन्याय-अत्याचार बहुत बढ़े हैं और खासकर महाराष्ट्र में तो बहुत ज्यादा हो रहे हैं। इसपर सरकार का बिल्कुल भी ध्यान नहीं है, इसपर नियंत्रण लाना बहुत ही जरूरी है। कायदे-कानून को सख्त और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट से ऐसे मामलों के हल जल्द से जल्द निकालने की जरूरत है।
संसद में महिला आरक्षण बिल लगभग तीन दशकों से अधर में लटका हुआ है।
महिला आरक्षण बिल पर मोदी जी ने कहा था कि हमारी मेजोरिटी रही तो बिल जरूर पास करवाएंगे, पर बिल टेबल पर ही रह गई। हमने सरकार से कहा था कि इस मुद्दे पर हम आपके साथ हैं, आप संसद में बिल रखिये पर उन्होंने बिल रखा तक नहीं। हमने हर राज्य में ‘सिग्नेचर कैंपेन’ किया महिलाओं के दस्तखत लेकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सबको दिया, पर उन्होंने इसपर कुछ नहीं किया। मगर जो हमारा मेनिफेस्टो है, उसमें हमने कहा है कि यदि हम सत्ता में आते हैं तो महिला आरक्षण विधानसभा, लोकसभा में देंगे और नौकरियों में भी 33% महिलाओं को आरक्षण देंगे।
आप यदि चुनाव जीतती हैं तो विशेषकर महिलाओं के लिए आपकी क्या प्राथमिकता होगी?
मेरा संघर्ष सबके लिए रहेगा, महिलाओं के लिए खास कर। मैं चाहती हूँ यहाँ महिलाओं के लिए अलग से उद्योग हो, उनके रोजगार के लिए विशेष काम होगा। महिलाओं के स्वास्थ्य से संबंधित बहुत सी समस्याएं होती है जिसे वे अनदेखा करती हैं, कई बार ऐसा होता है कि उनके लिए ट्रीटमेंट महंगा हो जाता है तो मैं चाहती हूँ कि जितना सिंपल और सस्ता ट्रीटमेंट हो सके, मैं उपलब्ध कराउंगी।
मोदी सरकार की नीतियों को आप कैसे देखती हैं?
मोदी सरकार की नीतियों के बारे में न ही बोला जाय तो अच्छा है, क्योंकि उनकी कोई नीति ही नहीं है, जो भी उन्होंने बोला, सिर्फ जुमला है।
आप अपने मतदाताओं से क्या अपील करना चाहेंगी?
मतदाताओं से यही अपील करना चाहूंगी कि 2014 में आपने सत्ता परिवर्तन के लिए मतदान किया था और आपको सरकार से काफी उम्मीदें भी थी, मगर पिछले 5 सालों में जो आपको अनुभव आया है और अगर आपको लगता है कि आपके साथ सरकार ने विश्वासघात किया है तो जरूर 2019 में कांग्रेस को चुनिए क्योंकि हमने पहले काम किया, फिर बोला है। हम बड़बोलेपन में यकीन नहीं रखते। हम जनता के लिए काम करने में यकीन रखते हैं।