‘लिखो इसलिए’ व श्रीदेवी की अन्य कविताएं

भाषा
कितना अच्छा होता कि तुम्हारा भी अस्तित्व होता

श्रीदेवी छत्तीसगढ़ रायपुर में रहती हैं. पिछले एक दशक से अजीम प्रेमजी फाऊंडेशन में शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं.

मरे हुए लोग और जानवरों की हड्डियां
धरती पर बहती हुई हवाएँ, बरसता हुआ पानी,
सदियों से खड़ी पर्वत श्रृंखलाएं, चमकता हुआ सूरज,
धूप की किरणें, फैलता हुआ कुहरा, रंग बदलते मौसम
इन सबकी हम कार्बन डेटिंग कर पाते
इनके पास भी तुम होती
और बतलाती उन समाजों के सच
जो आज सभ्य घोषित किए हुए है खुद को
इसलिए की एक बड़े वर्ग को असभ्य और असंस्कृत कह सके |
साहित्य और इतिहास तो केवल गुण गाता है उनका
जो स्वामी है जो नायक है जो मुखिया है
तुम भी छोड़ पाती अपने निशान समय के उन पन्नों पर
जो अलिखित हैं, अनछूए हैं
और चुनौती देती उस साहित्य और इतिहास को
जिसे चुने हुए लोगो ने लिख दिया|


वह तोड़ती पत्थर …नहीं है केवल इलाहाबाद के पथ पर
वह दिखती है दुनिया की हर गली में
धमतरी से लेकर दिल्ली तक
न्यूयार्क से लेकर सिडनी तक
हाथ में काम का औज़ार लिये,
करती है अपनी दिनचर्या की शुरुआत
मांजती है बर्तन घरों में, धो रही है आंगन
तो किसी जगह पर बीन रही है कचरा
जो हमने ही फ़ैलाये हैं
सर पर भारी धमेला लिये
अमराती है पांच मंजिल ऊपर
कभी ईंटे तो कभी गारा
सम्मान और प्रेम तो शायद उन्हें
वह धरती देती है,
जिस पर वह नंगे पांव चला करती है।

वे पत्थर देते है,
जिन्हें वह अपने हाथों से तोड़ती है।
वे बर्तन और आंगन देते है,
जिन्हें वह धोती है ।
पर अब न हो इंतजार
किसी से पाने के लिए सम्मान और प्रेम
सिर्फ
विद्रोह हो अपने काम के सम्मान में
और प्रेम अपने काम से

लिखो इसलिए,
लिखो इसलिए कि दर्ज हो सके आज की एक सामान्य सी बात
जो बुनियाद है भविष्य कि किसी एक बड़ी घटना की
लिखो इसलिए, कि लोग पढ़ सके उन द्वंदो को
जो एक व्यक्ति के जीवन मे हैं जाति लिंग और वर्ग के कारण
लिखो इसलिए, कि कोई बात सामान्य नहीं है उसका महत्व बढ़ जाता है
समाज के सांस्कृतिक निर्माण मे
लिखो इसलिए, कि समझ सको सत्ता के खेल को,
लिखो इसलिए, कि रच सको अपना साहित्य,
सभ्यता के निर्माण मे तुम्हारे योगदान को |

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles