हिमा दास: बहुजन समाज में लड़कियों के खेल-उत्साह और उत्सव की प्रतीक

अंजलि कुमारी

हिमादास भारत की विविधताओं भरी भूमि में मौजूद संभावनाओं का अंकुर है। इन अंकुरों को हम लगातार विभिन्न क्षेत्रों में पनपते हुए देख सकते हैं। फिलहाल खेल के क्षेत्र में नई संभावनाओं के रूप में यह अंकुर पनपा है, जिसका नाम सबकी जुबान पर है।पिछले एक महीने में 6 स्वर्ण पदक जीतने वाली हिमा दास असम के धिंग गाँव, जिला नगांव से आने वाली धाविका है जिसे लोग धिंग एक्सप्रेस (जैसा कि उन्हें इस नाम से पुकारा जाता है) भी कहते हैं। धिंग एक्सप्रेस यानि धिंग की सबसे तेज धाविका जो अब विश्व में भी अपनी पहचान बना चुकी है। हिमा दास ने पिछले साल से अपनी उपस्थिति राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनानी शुरू की है। पिछले साल २०१८ में ही जकार्ता में संपन्न हुए एशियन गेम्स में उन्होंने ४०० मीटर ट्रैक का भारतीय रिकॉर्ड अपने नाम किया, जो मौजूदा समय में भी उन्हीं के नाम है। भोगेश्वर भगुआ के बाद असम से आने वाली हिमा दास दूसरी एथलीट है जिन्होंने ट्रैक इवेंट में हिस्सा लिया है और स्वर्ण पदक जीता है। हिमा दास को २५ सितम्बर २०१८ को भारत के राष्ट्रपति के हाथों अर्जुन पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इसके साथ ही यूनिसेफ- इंडिया ने हिमा को १४ नवम्बर २०१८ को भारत का यूथ ऐम्बसेडर बनाया है। चूँकि वह असम की उभरती हुई खिलाड़ी है इसलिए असम सरकार ने भी उन्हें असम का खेल ऐम्बसेडर बनाया है। अंडर – २० में खेलने वाली १९ वर्ष की आयु में हिमा ने लगातार छह स्वर्ण पदक प्राप्त करके यह तो निश्चित तौर पर स्पष्ट कर दिया है कि इस देश का सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबका प्रतिभा में किसी से भी कम नहीं। क्योंकि हिमादास ने असम के एक निर्धन कृषक परिवार में पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी होने के बावजूद खेल क्षेत्र में अपनी रूचि और मेहनत बरकरार रखी।

यूरोप के पोलैंड और चेक गणराज्य के विभिन्न प्रान्तों में आयोजित अलग-अलग प्रतियोगिताओं में हिमा ने स्वर्ण पदक जीतने से पूर्व दो बार ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में आयोजित २०१८ कॉमनवेल्थ गेम्स में ४०० मीटर और ४x४०० मीटर की रिले दौड़ में भी हिस्सा लिया था जिसमें उनकी स्थिति ४०० मीटर की दौड़ में छठे स्थान पर रही और रिले दौड़ में भारतीय टीम के साथ उनकी स्थिति सातवें स्थान पर रही। इंटरनेशनल ट्रैक इवेंट में पहली बार हिमा ने तेम्पेर, फ़िनलैंड में वर्ल्ड अंडर-२० चैंपियनशिप २०१८  में १२ जुलाई २०१८ को ४०० मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। यह दौड़ उन्होंने ५१.४६ सेकंड में पूरी की थी। २०१८ के एशियाई खेलों में हिमा ने ४०० मीटर की दौड़ के लिए क्वालीफाई किया और ५१ सेकंड में पूरी की गयी इस दौड़ के साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय रिकॉर्ड अपने नाम किया। २६ अगस्त २०१८ को अपना रिकॉर्ड तोड़ते हुए हिमा ने ५०.७९ सेकंड में इस प्रतियोगिता में रजत पदक प्राप्त किया। इसी दौरान एशियाई खेलों में पहली बार शामिल की गई रिले रेस में हिमा ने अपनी तीन अन्य सहयोगी धाविकाओं एम. आर. पूवाम्मा, सरिता गायकवाड और वी. के. विस्मय के साथ रजत पदक प्राप्त किया। इसके बाद अडिदास ने हिमा दास को सितम्बर २०१८ में अपना ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया। हिमा ने हाल ही में पोलैंड और चेक गणराज्य के विभिन्न प्रान्तों में सम्पन्न हुई खेल प्रतियोगिताओं में २०० मीटर की चार अलग-अलग दौड़ प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। जिसमें उनका समय क्रमशः २३.६५, २३.९७, २३.४३ और २३.२५ सेकंड का रहा। वहीँ पांचवा स्वर्ण पदक उन्होंने ४०० मीटर की दौड़ में उन्होंने २० जुलाई २०१९ को जीता, इस दौड़ को हिमा ने ५२.०९ सेकंड में पूरा किया।

उनके इस प्रदर्शन का मुल्यांकन करते हुए कह सकते है कि वे भारतीय ट्रैक एथलीट की कड़ी में पी टी उषा, मिल्खा सिंह की भांति और अपने समकालीन मोहम्मद अनस, दुति चंद के साथ उनका भविष्य बेहतर होने वाला है। लेकिन इस बेहतर प्रदर्शन और बेहतर प्रदर्शन के कारण बनने वाले भविष्य के आड़े कौन-कौन सी बाधाएँ हमें दिखाई दे रही हैं उन पर भी विचार कर लिया जाना चाहिए। भारत में खेलों के प्रति यहाँ के राज्य, सरकारों और समाज का उदासीन रवैया सबसे बड़ी बाधा है। जिसका प्रभाव खेल प्रदर्शन के क्षेत्र में भारत की स्थिति से सम्बन्धित है। भारत में मिथकों के माध्यम से ही खेल-कूद में विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमियों वाले खिलाड़ियों के साथ भेदभाव करने की नीति रही है और ये मिथक सामान्य तौर पर भारतीय जन-समुदाय के मानस में बसे हुए है। ऐसे में राज्य और सरकारों का भी मौजूदा समय तक रवैया सहयोगी और सकारात्मक नहीं रहा है जिसमें एक प्रतिभावान खिलाड़ी अपनी प्रतिभा को निखार कर अपने प्रदर्शन को बेहतर कर सके। एक ओर जहाँ केंद्र और राज्य सरकार से सहयोगी भाव की अपेक्षा की जाती है। वहीँ दूसरी ओर विभिन्न खेलों के प्रति बाजारवादी नजरिया भी प्रतिभाओं का परिष्कार करने के बजाय विभिन्न खेलों में छोटे-बड़े होने की भावना पैदा कर रहा है। जिसका नतीजा यह है कि जिस खेल में अधिक पैसा और मीडिया की नजर है उन खेलों के प्रति लोगों में आकर्षण का भाव ज्यादा है। बाकी खेल इसी कारण स्कूली स्तर पर, मोहल्ले के स्तर पर और अन्य क्षेत्रीय, राज्य स्तरों पर या तो कम खेले जाते है या उन्हें प्रोत्साहित करने की कोई योजना खेल मंत्रालय के पास नहीं होती। इसलिए खेल के प्रति समाज में और राज्य में उदासीनता के भाव को छोड़कर यदि उनके विकास के लिए हर स्तर पर निरंतर प्रयास किए जायेंगे तो एक हिमा दास नहीं बल्कि अनेकों हिमा दास जैसी प्रतिभाएं खेल के मैदान में बाजी मारेंगी। इसलिए हिमा और उनके जैसे नये खिलाड़ियों के लिए जरुरी है कि उन्हें वे सब संसाधन मुहैया कराये जाए जिससे वे भारतीय, एशियाई और विश्व स्तर पर निरंतर अपनी रैंकिंग सुधार सके। तभी ओलिंपिक खेलों में भारत की इन अंकुरित प्रतिभाओं से पदकों के पुष्प खिल सकेंगे।

यदि अगले साल टोक्यो में आयोजित होने वाले ओलंपिक्स के नजरिये से हिमा के प्रदर्शन को देखा जाए तो इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ़ एथलेटिक्स फेडरेशन के अनुसार खिलाड़ी के पास ओलंपिक्स में क्वालीफाई करने के दो तरीके है। पहला, विश्व रैंकिंग में खिलाड़ी की स्थिति और दूसरा, खिलाड़ी तय समय से बेहतर प्रदर्शन करके स्वयं को ओलंपिक्स में हिस्सा लेने के काबिल बना सकते हैं। इन दोनों तरीकों के माध्यम से आई. ए. ए. एफ. बराबर संख्या में खिलाड़ी लेती है। इस बार ओलिंपिक में महिलाओं की १०० मीटर की दौड़ के लिए ११.१५ सेकंड का समय निर्धारित है जिसके लिए हिमा को अपने प्रदर्शन को खूब मांजना होगा और अपनी ५७वीं रैंकिंग भी सुधारनी होगी।

हिमा चूँकि असम प्रदेश से आती है इसलिए उनके परिवेश की सामाजिक संरचना को जानना भी जरुरी है। पूर्वोत्तर भारत का समाज स्त्रियों के प्रति हिन्दुत्ववादी समाज की तरह कठोर नहीं रहा है। पूर्वोत्तर भारत खासतौर पर जनजातीय समाजों और उसके जैसी ही संरचना वाले बहुजन समाज में लड़की की खेल-कूद में भागीदारी को हीन नजरिये से नहीं देखा जाता बल्कि उसे एक उत्सव और जीवन जीने के नजरिये के रूप में देखा जाता है।  खेल-कूद और नाच-गान मानव सभ्यता का श्रृंगार है। जिसे मात्र क्रिकेट या अन्य व्यवसायिक खेलों की तरह बेचकर बाजार नहीं बनाया जा सकता। खेल-कूद स्वस्थ मनुष्य की निशानी है और यदि यह सुविधा एक लड़की को समाज में प्राप्त हो तो सोने पर सुहागा। खेल-कूद की विभिन्न प्रतियोगिताओं में कोई स्कूल, क्षेत्र, प्रांत या देश कितने मेडल जीतता है यह उस इकाई की खेल के प्रति सोच को दिखाता है। इस तरह यदि देखा जाए तो भारत की छवि खेल-कूद के क्षेत्र में बहुत ही सपाट है। इस नजरिये से यदि हम हिमा दास के सफर और उनकी अब तक की उप्लाधियों को देखते हैं कि उनकी इस यात्रा में प्रतिभा, प्रेरणा, लगन और लगातर मेहनत के नतीजे के साथ-साथ हिमा दास में छिपी प्रतिभा को पहचानने और निखारने वाले लोगों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। निपान दास ऐसी ही शख्सियत है जिन्होंने हिमा की प्रतिभा को तराशने का निरंतर कार्य किया। फुटबॉल के मैदान से एथलेटिक्स के ट्रैक तक की यात्रा कोई आसान यात्रा नहीं रही है। फुटबॉल के मैदान को छोड़कर गुवाहाटी आकर जब हिमा को दौड़ने के लिए ट्रैक मिला जहाँ उन्होंने २०० मीटर की दौड़ की बजाय ४०० मीटर की दौड़ का अभ्यास किया। इसी का नतीजा है कि हिमा वर्तमान में स्वर्ण पदक अपने और देश के नाम कर चुकी है।

उम्मीद है आप हिमा दास को पढ़ते समय दीपा कर्मकार, दुती चंद, अनस मोहम्मद, असुंता लकड़ा, पूर्णिमा हेम्ब्रेम, मैरी कॉम और पी टी उषा को नहीं भूले होंगे जो इसी संघर्षमयी राह से होकर आई और विश्व में अनेकों जगहों पर जिन्होंने तिरंगा लहराया। दूती, अनस और हिमा वहीं अंकुर है जो पी टी उषा और मिल्खा सिंह जैसे धावकों से प्रेरणा ले कर जमीन पर उड़ रहे हैं, इसलिए हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन अंकुरों को पनपने और खूब-फलने-फूलने के सकारात्मक अवसर दे और ऐसी ही अपेक्षा अपनी चुनी हुई सरकारों से भी करे।

लेखिका जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं. संपर्क:anjali1441992@gmail.com

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ISSN 2394-093X
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