ये भागी हुई लड़कियाॅं ..!

नाइश हसन 
सोशल एक्टविस्ट
संपर्क :naish_hasan@yahoo.com


एक उम्मीद की लौ होती हैं भागी हुई लड़कियाॅं, स्याह अंधेरे में शमा जला देती है, उनकी धम्म से दस्तक समाज में दूर तलक लहरों जैसा कम्पन पैदा कर देती है, फिर एक दूसरे से टकराती लहरें बड़ी अच्छी लगती है, वाकई भागी हुई लड़कियाॅं बहुत अच्छी लगती हैं। बिना ज़न्जीरों वाले कैदख़ानों से आज़ादी की छटपटाहट ने मोआशरे में बहुत उथल-पुथल पैदा कर दी, पिद्रशाही के सरपरस्ताना और मालिकाना अन्दाज़ को चुनौती देती हुई लड़की उसे झटक कर फेंक देना चाहती है। लाज़मी है मोआशरे में हलचल मच जाना।


यूॅं तो लड़कियाॅं आज ही नही भाग रही है , वो तो सदियों से भाग रही है, मन ही मन भाग रही है,ख्वाब में भाग रही है, उन घरेलू गुफाओं से धीरे-धीरे सकरे रास्तों से आडे-तिरछे निकल कर भाग रही है, किसी ने उनकी डायरी के पन्ने कभी खोल कर नही देखे वह वहाॅं भी भाग ही रही है, लड़कियों की कुल तादाद का बड़ा हिस्सा भाग ही रहा है, बहुत छोटा हिस्सा है, जो कैदखानों से निकलने से चुक जाता है, या मात खा जाता है, लेकिन ख्वाब में वो भी भागता ही है। वह खूब जानती है, शीरीं जु़बान, रस्मों-रिवाज, प्यार मोहब्बत, खानदानी कायदे-कानून उसे शर्तो पर ही मोहय्या है, उनमें जरा सा भी हेरफेर पिद्रशाही को मन्जू़ूर नहीं, उन्हें ऐसा सबक सिखा दिया जाता है कि उनकी सात पुश्तें कभी भूल न पाएं.

हाल में ही सामने आए सिर्फ तीन मामलों का जिक्र करेंगे , पहला बंगाल से नुसरत जहाॅं का जिन्होने अपने धर्म से बाहर का एक जीवनसाथी चुना , दूसरा बरेली से साक्षी मिश्रा का जिन्होने अपनी जाति से बाहर का जीवन साथी चुना, तीसरा मुम्बई से मीनाक्षी चौरसिया का जिन्होने अपनी जाति धर्म का ही जीवनसाथी अपनी मर्जी से चुना। पहले मामले में लड़की ब्राहमण, दूसरे में मुस्लिम व तीसरे में दलित परिवार से थी। इन तीनों घटनाओं ने समाज में एक अजीब किस्म की उथल-पुथल पैदा कर दी। पहली घटना से तंग-ज़ेहन मुसलमान को इस्लाम लुटता हुआ नजर आया, दूसरी से ब्राहमण या अन्य उच्च जातियों की इस्मत लुट गई, व तीसरे से दलित परिवार की आबरू पर खतरा मंडराने लगा, और बहस का ऐसा बवंडर समाज में खडा हुआ कि कही थाह न पा सका। कल्चरल पहरेदार लामबन्द हो गए, नुसरत खुद एक सांसद थी. उसका परिवार नहीं बल्कि मुस्लिम समुदाय विरोधी बना, साक्षी तो परिवार के हाथों मारे जाने से किसी तरह बच निकली पर मीनाक्षी चूक गई, उसके पिता ने उसे मार ही डाला, शादी कर चुकी थी वह, उसे बहला फुसलाकर सामान दिलाने के बहाने बुलाया गया था। इन तीनों का गुनाह बस यही था कि इन्होने प्रेम कर लिया था , जिसकी वजह से इन सभी धर्मो में इंतेहापसन्द सोच रखने वाले जामे से बाहर आ गए। साक्षी के विधायक पिता की नाक तो ऐसी कटी कि उन्होने अपनी बेटी और उसके पति को मरवाने के लिए गुंडे लगा दिए। वो रसूखदार पिता है जिनके ऊपर हत्या बलात्कार के दर्जनों मुकदमें चल रहे है। साक्षी मीडिया में न आ गई होती तो न जाने अब तक कहाॅं मर-खप गई होती, वैसे ही जैसे तमाम लड़कियाॅं घरों के भीतर ही मार डाली जा रही है जिनकी सिसकी तक बाहर नही आ पाती। ऐसा महज उन घरों में ही नही होता जो रसूख वाले है, बहुत कम हैसियत छोटे घर घरानों में भी पितृसत्ता हावी है। पिता की मूछ बेटी की जिन्दगी से ज्यादा लम्बी होती है। इस देश की ज्यादातर लड़कियों ने बड़े होते-होते ये डायलाॅग बहुत बार सुना होता है कि फलां की लड़की भाग गई अगर हमारी होती तो जिन्दा गाड देते… ऐसा कदम उठाने से पहले ही उसे सूली पर लटका देते…। ये धमकी है! आगाह करना है बेटियों को कि सुनों! हम भी तुम्हारे साथ ऐसा ही कुछ करने वाले है अगर तुमने किसी से प्यार करने की जुर्रत भर की। बचपन से सही चाल चलन रखने, बाप की इज्जत रखने वाला डायलाॅग सुन-सुन कर बड़ी होती बेटी घर के भीतर ही घूटन महसूस करने लगती है। बाप ही नहीं लड़की का बडा/छोटा भाई जिसे घर मानव नही दानव बना डालता है बहन पर किसी भी हद तक जुल्म करने को तैयार हो चुका होता है, उसकी हर बात को घर का पूरा समर्थन प्राप्त होता है, उसकी भी मूूॅंछ उसके पिता के समान बहन के घर से बाहर निकलने भर से नीची होने लगती है। पिता बच्ची को रोटी-कपडा तो देता है लेकिन वह पालता उसे अपनी शर्त पर ही है , उसकी निजी पसन्द नापसन्द बाप के लिए कोई मायने नही रखती। वह उसे विवाह अपनी मरजी से कतई नही करने देता, वह अरमानों की दुहाई देता है, जिस अरमान में उसके खुद के द्वारा चुना हुआ लड़का होता है जिसे वो तमाम दान-दहेज देकर , लाव-लश्कर को खाना-पीना खिला कर उनके आगे हाथ जोडते हुए अपने लडकी रूपी सामान को उनको दे देने के बाद फिर पलट कर नही देखना चाहता। इसी को अरमान कहते है। आए दिन ऐसे अरमानों की बलि चढती लड़कियाॅं इसकी नज़ीर है, ये हर तीसरे चौथे घर का किस्सा है। ये है इज़्ज़तदारों का निज़ाम। इस पहलू को नजरअन्दाज नही किया जा सकता। अपना स्वयं का हित अपनी शान-शौकत, झूठ पाखण्ड होता है पिता का उसके पीछे, जिसके आगे लड़की की जान की कीमत भी कुछ नही । क्या ये बेहतर न होता कि साक्षी के पिता पूरी इज्जत से उसकी शादी उसके द्वारा चुने लड़के से करते जो समाज में एक पैगाम भी देता और जाति व्यवस्था की जंजीरें तोडने में मददगार भी होता। लेकिन जब जे़हन ही गु़लाम हो तो फिर क्या कीजिएगा।

Photo courtesy:
Nina Fraser, Portugal


पितृसत्ता के नशे में चूर जे़हनी बीमार आज बहुत परेशान है साक्षी को देखकर, उस भागी हुई साक्षी को देखकर,वो मीनाक्षी की मौत का गम नही मना रहे, उन्हें बस साक्षी के भाग जाने का गम है। पितृघात से आज पूरा हिन्दुस्तान पीडित लग रहा है । इस रिश्ते के नाकाम होने की बाट जोह रहा है। सोशल मीडिया पर तैरते संवाद कलेजा कुतर रहे है, नौजवानों की जुबान बता रही है कि निकट भविष्य में कुछ बेटीमार बाप और तैयार हो रहे हैं। किसी को जात का ग़म है किसी को लड़की के स्वतः लिए फैसले का। कुछ तथाकथित बुद्विजीवी कहे जाने वाले साहित्यकार भी अपने दिल का गुबार निकाल रहे हैं. वे कह रहे हैं कि हिन्दू कोड बिल का पास होना ही गलत था, जिसने इस तरह की आजादी और स्वच्छन्दता दे दी, जड है शिक्षा ऊपर से सहशिक्षा. मौजूदा सरकार के चुने हुए नुमाइंदे गोपाल भार्गव, सुरेन्द्र सिंह, श्याम प्रकाश ऐसे विवाह को गाली देते हुए देश की संस्कुति के खिलाफ बता रहे है, और सरकार खामोश! सरकार तो असरकार आवाजों को ही खत्म करने में मुबतेला है। यूं समझिए पितृसत्ता से अपने सारे हथियार बाहर निकाल लिए है साक्षी पर वार करने के लिए।


किस ओर जा रहे है हम, ये समझ पाना बहुत मुश्किल है, औरत के सामने काफी चुनौतियाॅं खडी नजर आ रही है, उसके शब्द समाज को भारी लग रहे हैं, बराबरी के दावे खोखले बेमानी है, औरत को अपने वजूद को सीसा पिघलाई दीवार की तरह मजबूत करना होगा, ताकि वह पितृसत्ता के हर तूफान का डट कर सामना कर सके। हाॅं नौजवान लड़कियों, कभी भागना बंद न करना-जब भी तुम्हें पढने से रोका जाए, नौकरी करने से रोका जाए, बाहर निकलने से रोका जाए, प्रेम करने से रोका जाए, तुम उस पिंजडे से निकल कर भाग जाना, आजाद हवा में सांस लेना, खूब गलतियाॅं करना हाॅं उन्ही गलतियों से ही तुम सीखोगी, मजबूत इंसान बनोगी अपनी और अपने बाद भागने वाली लड़कियों का हाथ थाम कर उन्हें भागना सिखाओगी, और इसी तरह भागते-भागते तुम नौकरियों , शिक्षण संस्थानों, पार्लियामेंट में अपना कब्जा जमा लोगी. सुनो!तुम धीरे-धीरे जीत रही हो, जीत के कई चेहरे होते हैं, और हार अनाथ। तुम पितृसत्ता को अनाथ बना कर छोडना। इस लिए कभी भागना बंद मत करना। तुम्हारा वक्त ज़रूर आएगा…… इंशाअल्लाह!
रौंद सकते हो तुम फूल सारे चमन के
पर बहारों का आना नहीं रोक सकते

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