सुषमा स्वराज: प्रभावी व्यक्तिगत छवि एवं भाजपा की विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध महिला राजनीतिज्ञ

स्त्रीकाल डेस्क

पता नहीं यह सही समय रहा या भविष्य की आशंका के साथ बेहद आक्रामक समय जब सुषमा स्वराज ने दुनिया को अलविदा कहा. हालांकि दिल का दौरा पड़ने के लगभग एक घंटा पहले जो उनका ट्वीट आया वह एक भाजपा-आरएसएस की विचारधारा के प्रति उनकी पहली प्राथमिकता को दर्शाता ट्वीट रहा. उन्होंने 6 अगस्त को 7 बजकर 23 मिनट पर ट्वीट किया, ‘प्रधानमंत्री जी आपका हार्दिक अभिनंदन. मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी.’ हालांकि यह वही सुषमा स्वराज थीं, जिन्होंने 2014 में भारतीय जनता पार्टी का प्रधानमंत्री कैंडिडेट तय होते वक्त नरेंद्र मोदी के नाम की मुखालफत की थी. कहा जाता है कि उन्होंने लगभग चिल्लाकर कहा था कि ‘लिखो नोट ऑफ डिसेंट लिखो मेरा। उसे प्रधानमंत्री पद के लिए नामित कर पछताओगे।’

महिला आरक्षण बिल का जश्न मनाती सुषमा स्वराज

राजनीति में सबकुछ स्थायी भाव की तरह नहीं होता. 2014 में वे नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में विदेश मंत्री बनी. वे इंदिरा गांधी के बाद विदेश मंत्री बनने वाली देश की दूसरी महिला थीं. हालांकि उनके पूरे कार्यकाल में विदेश नीति के मामले में उनकी कोई प्रभावी भूमिका नहीं रही और वे आप्रवासी भारतीयों की मदद कर सुर्खियाँ बटोरती रहीं. 2014 से मनो उनकी आभा पर ग्रहण लग गया था. उनके प्रभावी वक्तृत्व और भूमिका को भाजपा के नए नेतृत्व ने स्मृति ईरानी से रिप्लेस कर दिया था.

फिर भी वे भाजपा के नेताओं में ख़ास थीं. आसान नहीं होता है पार्टी के भीतर और पार्टी के बाहर अपनी छवि को एक ऐसी गरिमा देना कि महाराष्ट्र की राष्ट्रवादी कांग्रेसपार्टी से सुप्रिया सुले या फिर बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरण घई, सबके लिए, वह छवि अनुकरणीय बन जाय, आदर्श बन जाय। पंचायत से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय विभिन्न पार्टियों की महिलाओं की आदर्श थीं. ममता बनर्जी ने अपने शोक सन्देश में कहा ‘ वैचारिक रूप से अलग होते हुए भी मेरे उनसे संबंध सुदृढ़ थे. वामपंथ पार्टियों की सहधर्मी राजनीतिज्ञ भी भले ही दक्षिणपंथी राजनीति से परहेज करें लेकिन सुषमाजी का व्यक्तित्व निर्विवाद रूप से उन्हें स्वीकार रहा।

राजनीतिक सरगर्मी

ऐसा भी नहीं है कि व्यक्तित्व शालीनता और गरिमा का आडंबर मात्र था, बल्कि सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री होने पर सिर मुड़ाकर बादाम खाते हुए जिंदगी गुजार देने की अति भावुक प्रतिज्ञा करते वक्त भी सुषमा स्वराज के व्यक्तित्व की गरिमा में लेश मात्र भी कमी नहीं आयी। हालांकि उनका सोनिया गांधी के खिलाफ नागरिकता का मामला उठाना पूरी तरह स्त्री विरोधी विचार था. लेकिन वे अपने मतों पर दृढ होती थीं. गलत साबित होने की परवाह किये बिना उन्होंने सोनिया गांधी का विरोध किया और नरेन्द्र मोदी का भी.  नेता विपक्ष के रूप में वे शानदार थीं। हिन्दी भाषा पर अच्छी पकड़, घुल-मिल जाने की महारत और माहौल के अनुकूल ढल लेने की कला-यही सुषमा स्वराज का व्यक्तित्व है, मृदुभाषी स्नेहिल! वे जोखिम लेना भी जानती हैं। बेल्लारी जैसे कांग्रेसी गढ़ में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को चुनाती देते वक्त एक धड़े ने कहा-आत्मघाती कदम। परंतु सुषमा स्वराज की वह हार भी उनके राजनीतिक जीवन का तमगा बन गया। सोनिया गांधी को यदि 51.7 प्रतिशत मत मिले, तो 44.7 प्रतिशत मतदाताओं का साथ सुषमा स्वराज को मिला।

हार और जीत सुषमा स्वराज की राजनीतिक जीवन में मायने नहीं रखते। हरियाणा विधानसभा के लिए 1977-82 में चुनकर आने से लेकर 1998 में दिल्ली की प्रथम महिला मुख्यमंत्री होते हुए, 2004 में नेता विपक्ष होने के सफर के बीच 1980, 1984 और 1989 में करनाल लोकसभा से उनकी हार अतीत के विषय मात्र हैं। वे सात बार संसद बनीं.  25 साल की उम्र में वे सक्रिय राजनीति में आयीं. उनके राजनीतिक गुरू लालकृष्ण आडवाणी थे.

पति स्वराज कौशल के साथ

केन्द्र सरकार में विभिन्न मंत्रालयों की सफलतापूर्वक जिम्मेवारी निभानेवाली सुषमा स्वराज बेदाग छवि की राजनीतिज्ञ रही हैं। हालांकि उनपर कर्नाटक के खनन माफिया ‘बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं’ को फायदा पहुंचाने का आरोप भी रहा. एक पुत्री की मां सुषमा जी का प्रारंभिक जीवन भी सक्रियता से भरा रहा है। हरियाणा के अंबाला कैंट में पैदा हुई सुषमा जी पंजाब विश्वविद्यालय की लॉ ग्रेजुएट थीं, और हरियाणा हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक सक्रियता इनके प्रारंभिक जीवन को गढ़ती रही हैं। उन्होंने अपने साथी एडवोकेट स्वराज कौशल से प्रेम विवाह किया था.

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