कमला: मौत एक क्रमिक आत्म(हत्या)  

 

संदर्भ है नेटफ्लिक्स पर आई इजिप्ट की पृष्ठभूमि पर बनी अरबी फिल्म “कमला” का। विवाह संस्था में लड़कियों की योनि-पवित्रता, ख़तना और स्त्री-देह सुख से जुड़े कई संवेदनशील पक्षों और पूर्वाग्रहों को फ़िल्म मार्मिकता से उद्घाटित करती है। ‘रेड सी इंटरनेशनल फेस्टिवल’ में सिलेक्ट होने के बाद कमला पहली इजिप्शियन फिल्म बन गई है। जॉन इकराम द्वारा निर्देशत यह फ़िल्म मुस्लिम समाज के ख़तना जैसे स्टिग्मा यानी कलंक से लड़कियों की मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना को संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत करती है। समाज में किसी भी वर्ग की लड़की   शारीरिक मानसिक प्रताड़नाओं से अछूती नहीं। कमला की भूमिका में अभिनेत्री इंजी एल मोक्कोडेम ने बहुत सहज अभिनय किया है, सामाजिक-भय हर पल उसकी आँखों से झाँकता है, हाँ, कुछ समय के लिए खुश,निर्भीक और चमकदार आँखों से अपने प्रेमी को देखती है लेकिन वह भी उसके साथ सम्बन्ध बनाकर उसे सोता हुआ छोड़कर चला जाता है। पिता की मृत्यु के बाद वह पूर्णतया अकेली रह जाती है, उसकी बुआ हमेशा उसे शादी के लिए कोसती रहती है। 40 वर्षीय मनोचिकित्सक अविवाहित कमला संवेदनशील मनोचिकित्सक होने के साथ-साथ साहित्य अध्येता भी है और एक तथाकथित फेमिनिस्ट लेखक से वह प्रभावित है जो बाद में प्रेमी के रूप में उसके जीवन में आता है पर कमला लेखन और लेखक में अंतर नहीं समझ पाती उसे कहती भी है कि ‘उसके उपन्यासों के जैसे पुरुष क्या हक़ीकत की दुनिया में होते भी हैं!’

फिल्म देखते हुए मुझे 1989 में बासु चटर्जी द्वारा निर्देशित के फिल्म ‘कमला की मौत’ याद आ रही थी सिर्फ ‘कमला’ नाम की वजह से नहीं बल्कि दोनों में एक समानता यौन-शुचिता भी है कि प्रेम में लड़की विवाह पूर्व गर्भवती हो जाए तो उसका क्या हश्र हो सकता है ? प्रेमी शादी नहीं करता तो इसके पीछे का कारण जिम्मेदारियों से बचकर भागना नहीं होता बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दबावों का भय होता है। प्रेम में धोखा खाने के बाद कमला आत्महत्या कर लेती है,असली फिल्म उसके बाद शुरू होती है, कमला के पड़ोस में रहने वाला परिवार कमला की मौत के बाद डरा सहमा है, उसके अंजाम से नहीं बल्कि अपने अतीत और भविष्य को लेकर सशंकित और बैचैन है जिसमें कमला की आयु की दो लड़कियां, पृष्ठभूमि में पिता-माँ दोनों की प्रेम कहानियाँ चलती है जिसमें प्रेम में धोखा खाने के बाद, पिता की प्रेमिका ने आत्महत्या नहीं की,   माँ का प्रेमी भी उसे छोड़ भाग गया लेकिन आज वो सुखद (?) वैवाहिक जीवन जी रही है, दोनों बहनों को लगता है कि उनका प्रेमी उन्हें धोखा नहीं देगा। प्रेम-विवाह और विवाह पूर्व यौन संबंधों को केंद्र में रखकर भूत, वर्तमान और भविष्य की त्रासदी, भय, संशय और आशंकाओं के बीच यह प्रश्न भी उठता है कि कमला की आत्महत्या को ‘मौत’ क्यों कहा है ? मौत जो एक हादसे की तरह आकर गुजर गयी ! गहराई से देखें तो पायेंगे कि 35 साल पहले आईकमला की मौत’ से हमारा समाज आज भी डरा-सहमा हुआ है, लड़की विवाह पूर्व गर्भवती हो जाए इस यथार्थ को आज भी स्वीकार नहीं किया जाता। ‘ओनर-किलिंग’ के केंद्र में प्रेम ही होता है! प्रेम विवाह पूर्व हो अथवा विवाहेतर स्वीकार्य नहीं। ‘हसीन दिलरूबा’ फ़िल्म की नायिका कहती है कि ‘हाँ मैंने प्यार किया! शादी में होते हुए भी किया पर प्यार गलत नहीं था, लेकिन अगर वह लड़का गलत निकल गया तो मेरी क्या गलती है?” और वह डटकर समाज परिवार का सामना करती है। लेकिन हर लड़की इतनी बहादुर नहीं होती या तो मार दी जाती है या आत्महत्या के लिए विवश की जाती है।

अरबीफ़िल्म ‘कमला’ एक यौनकर्मी पेशेंट आस्मां की भी कहानी बताती है। जो कमला से प्रश्न करती है ‘तुम्हारा खतना हो गया ? जबकिकमला के खानदान में सभी लड़कियों का खतना हुआ था पर उसका खतना नहीं हुआ था, तो भी कमला विचलित हो जाती है, धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो जाती हैं, एक दूसरे से सुख-दुःख की बातें करतीं हैं। कारण चाहे कोई हो कमला अभी भी वर्जिन है (पितृसत्ता में ‘वर्जिन’ की संकल्पना कई स्तरों परिभाषित की जा सकती है )कमला किसी के भी साथ मानसिक अथवा शारीरिक धरातल पर नहीं जुड़ी थी जबकि यौनकर्मी आस्मां के कई पुरुषों के साथ सम्बन्ध हैं उसे ख़तना के मानसिक और शारीरिक दर्द से आज भी निजात नहीं मिली। पारिवारिक,शैक्षणिक,आर्थिक पृष्ठभूमि में बड़ा अंतर होने के बाद भी दोनों मानसिक और भावनात्मक रूप से इसलिए जुड़ती चली जाती है कि जिस पितृसत्तात्मक समाज में दोनों रहतीं हैं, वहाँ आर्थिक सामाजिक अथवा राजनैतिक किसी भी तरह की अच्छी बुरी स्थितियों में स्त्री रहे, स्त्री को कुछ ‘प्रिविलेज’ नहीं मिला करते, उन्हें तो पुरुष की सुविधाओं के आधार पर तैयार किया जाता है,गढ़ा जाता है, स्त्री होने के नाते वे दोनों अपने-अपने ढंग से सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रही हैं लेकिन आस्मां आत्महत्या कर लेती है जबकि कमला संघर्षरत है। आस्मां यौनकर्मी कैसे या क्यों बनी एक मार्मिक दृश्य के माध्यम से बहुत सूक्ष्म ढंग से उसके विद्रोह को समझा जा सकता है जब आस्मां अपने ग्राहक के दिए हुए नोट फाड़ देती है,क्योंकि वह किसी भी रूप में यौन सुख नहीं ले पाई , ख़तना की वजह से सम्बन्ध बनाते हुए हर बार भयंकर पीड़ा झेलनी पड़ती है, जबकि उसकी देह यौन सुख के लिए भीतर तक जल रही है, अपनी ही देह से परेशान आस्मां मानसिक रोगी हो जाती है। जब आस्मां का भाई उसका निकाह करना चाहता है तो वह आत्महत्या कर लेती है क्योंकि यौनकर्मी के रूप में तो फिर भी अपनी इच्छानुसार सम्बन्ध बनाती है लेकिन विवाह के बाद तो अपनी अनिच्छा से सम्बन्ध बनाने ही होंगें, हर बार दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरना होगा, और आस्मां यह भी जान रही है कि विवाह की आड़ में भाई उसका सौदा करने जा रहा है, माँ जानकर भी चुप है । ये माएँ, दादी, नानी, चाची, बुआ ‘ये कैसे बच जाए की भावना के साथ, अपने अनुभवों को भूल जाती हैं और पारिवारिक उत्पीड़न और शोषण की चरम पराकाष्ठा में पितृसत्ता को बनाए रखने में पूरी सहभागिता निभाती है।

पढ़े-लिखे लेकिन रूढ़िवादी परिवार की मनोचिकित्सक कमला अपने जीवन के 40वें दशक में भी अविवाहित है उसके पिता बीमार है, बुआ उसे हर समय शादी के लिए टोकती है हालाँकि उसकी नजर उसकी जायदाद पर है। प्रेमी युसूफ के पूछने पर कि वो नाम के आगे डॉ क्यों नहीं लगाती? कमला कहती है कि वैसे तो पिता उदार थे जिन्होंने हमेशा उसका साथ दिया पर इतने भी आज़ाद ख्यालात नहीं थे उनके कि अपनी बेटी को बेली डांसर बनाने की अनुमति दे देते लेकिन उन्होंने डॉक्टर बनने दिया, वह डॉ बनाना नहीं चाहती थी। डॉ न लगाना उसका अनोखा  विद्रोह ही है। कमला का जीवन बड़े ही सामान्य ढंग से चल रहा था लेकिन आस्मां और लेखक प्रेमी युसूफ से मिलने के बाद उसके जीवन में हलचल शुरू हो जाती है। मनोचिकित्सक होते हुए भी आस्मां से बात करते हुए कमला विचलित होने लगती है, उसे नींद नहीं आती आस्मां की आत्महत्या के बाद से हर समय परेशान रहने लगती है। जब उसकी मुलाकात अपने पसंदीदा और आकर्षक लेखक युसूफ से होती है जो अपने उपन्यासों में महिलाओं के हक़ की बात करता है। यूसुफ के उपन्यास विमोचन समारोह की प्रश्नोत्तर श्रृंखला में कमला एक प्रश्न पूछती है कि उनके उपन्यास में नायिका को आत्महत्या क्यों करनी पड़ी? क्यों लड़कियों को ही आत्महत्या करनी पड़ती है (यही उपन्यास कमला ने आस्मां को पढ़ने के लिए दिया था,उसे इस बात का भी मलाल है कि उसने यह उपन्यास आस्मां को पढ़ने को क्यों दिया, शायद इसलिए भी आस्मां आत्महत्या के लिए प्रेरित हुई ) युसूफ उसके प्रश्न से कहीं अधिक उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होता है,जिसकी स्वीकारोक्ति बाद में वह करता भी है कि ‘हमारी दूसरी मुलाक़ात इत्तफाक़ नहीं थी बल्कि मैं जानबूझकर तुम्हारे पीछे आया था’। यूसुफ के उपन्यासों को पढ़कर और यूसुफ से मिलकर कमला को लगता है कि यूसुफ अन्य पुरुषों से अलग उदार मानसिकता वाला है वह अपने जीवन की कई बातों को साझा करती है जैसे पारिवारिक प्रतिष्ठा बचाने के लिए उसने मनोचिकित्सा का कैरियर अपनाया। दोनों एक दूसरे से खूब बातें करते हैं युसूफ के प्रति उसका प्रेम और विश्वास बढ़ने के साथ-साथ उसका आत्मविश्वास बढ़ता चला जाता है हर अगले दृश्य में कमला के व्यक्तित्व और चेहरे में निखार-सा दिखाई पड़ता है, भय गायब होने लगता है। दोनों के प्रेममय दृश्य बहुत ही ख़ूबसूरती से फिल्माएँ गए हैं, लेकिन युसूफ उसके साथ विश्वासघात करता है वास्तव में कमला उसका लेखकीय प्रयोग था। युसूफ जो यह समझे बैठा था कि जिस लड़की का ख़तना भी नहीं हुआ उसने अपनी उम्र के चालीस वर्ष तक अपनी देह को कैसे सुरक्षित रखा हुआ है! कैसे अपनी यौन वासनाओं पर नियंत्रण रखा हुआ है, इसी सत्य का पता लगाने के लिए वह उससे यौन सम्बन्ध बनाता है यह प[अत लगने के बाद कि उससे सम्बन्ध बनाने के पूर्व तक वह वर्जिन थी, घबरा जाता है पर पछताने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं रहता, वह अपने आप को माफ नहीं कर पा रहा है, अपना लिखा हुआ सब फाड़ देता है। लिखे हुए को फाड़ डालना इस बात का संकेत है कि सांस्कृतिक आवरण में अब तक जो परम्पराएँ रूढ़ियाँ है उन्हें उखाड़ फेंक नए अध्याय लिखने होंगे। यूसुफ कमला को सोती छोड़कर चला जाता है, कारण जानने के बाद कमला हैरान-परेशान हो जाती है,बल्कि कुछ विक्षिप्त-सी हो जाती है।

आत्महत्या के पूर्व कमला के साथ अपनी बातचीत के समय आस्मां बताती है, कि वह किसी के साथ भी अंतरंग होने पर बहुत भयंकर दर्दनाक अनुभवों से गुजरती है वह कहती है कि “वह एक ऐसी बर्फ बन चुकी है जिसके भीतर बहुत आग है”। आस्मां के भाई के लिए आस्मां एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं । आस्मां की माँ से पूछने पर कि उसने आस्मां को क्यों मरने दिया? वह कहती है हम कुछ नहीं कर सकते, मैं नहीं चाहती कि वह कुंवारी रहे। युसूफ के छोड़ कर जाने के बाद पिता की मृत्यु और फिर आस्मां की आत्महत्या, कमला मानसिक रूप से दिन प्रतिदिन कमजोर बनाती जाती है । अन्य रोगियों में भी उसे आस्मां ही दिखाई पड़ती है, मनोचिकित्सक होने के बावजूद सपने में खुद को मनोचिकित्सक के पास बैठा देखती है।

जबकि हमें लगता भर है कि आर्थिक निर्भरता से कोई भी स्त्री अपना भाग्य खुद बदल सकती है,कमला फ़िल्म इस भ्रम को भी तोड़ती है क्योंकि पितृसत्ता में शिक्षा, पद, पैसा, आत्मनिर्भर व्यक्तित्व होने पर भी सिर्फ स्त्री होने के कारण कमला सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही   सामाजिक दबाव किसी को भी तोड़ सकता है जैसे युसूफ जैसा लेखक जो पितृसत्तात्मक    संरचना में गढ़ा पुरुष होने की वजह से स्त्री के सन्दर्भों को उन्हीं के हिसाब से तौलता है, सामाजिक पूर्वाग्रहों के चलते ही उसकी मानसिकता कमला के साथ खिलवाड़ करने से नहीं चूकती पर अब वह नहीं सह पा रहा उसका लेखकीय संस्कार नयी शुरुआत करेगा? ये प्रश्न महत्त्वपूर्ण है। फिल्म के अंत में कमला सपना देखती है वह ट्रेडमिल पर भाग रही है, उसकी चाची और कुछ महिलाएँ ब्लेड लेकर उसका खतना करने के लिए उसके पीछे भाग रही है, डर के मारे पसीना-पसीना हो बाथरूम में बंद हो चुकी है फिर अचानक वह भागना बंद कर देती है और बेली डांसर की तरह नृत्य करने लगती है जोकि उसकी बचपन की इच्छा थी। कमला जो प्रेम और विवाह दोनों क्षेत्रों में मानसिक प्रताड़ना का शिकार बनती है, प्रेम में प्रेमी द्वारा भावनात्मक शोषण उसे तोड़ कर रख देता है, परिवार में बुआ जो उसका विवाह करवाने पर तुली है। फिल्म का अंत दर्शकों की मानसिकता पर निर्भर करता है कि वह एक सपना है या हकीकत! क्या स्त्रियों के शोषण,उत्पीड़न के संदर्भ में कुछ उम्मीद कर सकतें हैं? 

फ़िल्म मुस्लिम परिवेश में संस्कृति के नाम पर रूढ़ परंपराओं और खतना जैसी दर्दनाक परंपरा के खिलाफ आवाज़ उठाती है। यौनकर्मी आस्मां और सफल पेशेवर मनोचिकित्सक कमला, दोनों ही सड़ी-गली परम्पराओं को ढोने को विवश है, आत्महत्या की कगार पर है। कमला और आस्मां जैसी लड़कियों के सन्दर्भ में समाज तो बाद में रुकावटें पैदा करता है,पहले परिवार के लोग ही शोषण उत्पीड़न करतें हैं, विवाह संस्था में सुरक्षा के नाम पर लड़कियों को विविध रिश्तों की बलि चढ़ा दिया जाता है जिसमें उनका अपना वजूद खो जाता है कमला की बुआ अपने शादी- शुदा लड़के से उसकी शादी सिर्फ इसलिए करवाना चाहती है ताकि परिवार की इज्जत भी बनी रहे और जायदाद पर हिस्सा भी बना रहे वो किसी बाहरी के हाथ न आये। खुद को संभालने के क्रम में जब कमला को लगता है कि वो गर्भवती है तो वह तनाव की वजह से खुद को संभाल नहीं पाती, लेकिन टेस्ट नेगेटिव आता है, आस्मां के आत्महत्या लिए भी खुद को जिम्मेदार मानने लगती है,वह घबरा जाती है कि उसका हश्र भी क्या आस्मां जैसा होगा?लेकिन वह खुद को बेली डांसर के रूप में देखती है जो इस बात का प्रतीक है कि उसने खुद को मज़बूत बना लिया।

आपको बता दें कि ‘ख़तना’ एक दर्दनाक प्रक्रिया है जिसमें बचपन में ही लड़की की योनि सिल दी जाती है, ताकि विवाह पूर्व वे शारीरिक सम्बन्ध न बना सके लेकिन इसके बाद उसे कई प्रकार की तकलीफों को लगातार सहन करना पड़ता है कई इन्फेक्शन यौन बीमारियां उसे इल्ति है , सामाजिक मर्यादा और शर्म-हया के नाम पर उनका इलाज भी नहीं होता। दर्द लगातार  बना रहता है, जिस कारण उसकी शारीरिक यौन इच्छाएँ कम हो जाती है, जबकि ये भी भूख ही तरह सहज और प्राकृतिक है जिस पर कृत्रिम सामाजिक प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है, वे बाकी सभी सांसारिक कामों को करती रहती हैं लेकिन यौन-सुख नहीं ले पाती। नाइजीरिया की पूर्व राष्ट्रपति स्टेला ओबासांजो ने ख़तना के विरोध में आवाज़ उठाई और संयुक्त राष्ट्र द्वारा 6 फ़रवरी 2024 को महिला जननांग विकृति यानी ख़तना ज़ीरो टोलरेंस दिवस दिवस FGM फीमेल जेनिटल म्युटीलेशन दिवस के रूप में बनाया जाता है, 2030 तक इस प्रथा को समाप्त करने की मुहेम को ध्यान में रखकर ही इस विषय को सिनेमा पर उतारा गया,ताकि समाज में जागरूकता बढ़े। यूनिसेफ़ 2020 के आंकड़ों के अनुसार 92 देश में महिलाओं का ख़तना आज भी जारी है,इस प्रक्रिया में महिला को शारीरिक और मानसिक कष्ट दिया जाता है ताकि वह यौन सुख से वंचित रहे और इसकी इच्छा भी ज़ाहिर न करें। परम्पराओं के नाम पर लड़कियों के साथ होने वाले इस अमानवीय और जघन्य हिंसा कानून रूप में अपराध होने के बावजूद जारी है।

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ISSN 2394-093X
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