कुछ लोग बहुत मिस करते हैं,
पंगत को!
बैठकर ठाठ से जीमना,
शायद वो भूलते नहीं,
अपना ‘परमीन’ होना!
परमीन के लिए ‘पक्की’
बाकियों के लिए ‘कच्ची’!
ये इंतजाम ‘बफर’ में कहाँ?
जो पंगत में था!
‘परमीन’ के लिए अलग पाँत,
जिसके साथ जुड़ी है जात!
कुंडली मारकर बैठी,
ग्रामीण समाज पर!
जमकर बैठे रहने से,
नहीं टूटती जात- पाँत!
इसके लिए तो,
खड़ा होना ही होगा!
शुक्र है ‘बफर’ में,
नहीं कोई ‘परमीन’!
सभी के लिए हैं,
सभी व्यंजन,
‘कच्ची’ या ‘पक्की’!
शुक्र है ‘बफर’ ने,
जात- पाँत की बरफ को,
थोड़ा तो तोड़ा!!
शब्दार्थ:-
परमीन:- परबीन, प्रवीण, उच्च जातीय, साधारणतः ब्राह्मण
कच्ची:- दाल, भात, रोटी, कढ़ी इत्यादि(जिस व्यंजन में घी का प्रयोग न हो)
पक्की:- पूरी, सब्जी, मिठाई इत्यादि
साहित्यकार सुनीता मंजू जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा के एक कॉलेज में पढ़ाती हैं।(फोटो गूगल से साभार)