बड़े घर की बेटी’ कहानी प्रेमचंद की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली कहनियों में है। प्राइमरी कक्षाओं से लड़के लडकियाँ इसे पढ़ लिया करतें हैं। सम्भवत: लड़कियों से उम्मीद की जाती रही, कि वे ‘बड़े घर की बेटी’-सी बहू बने और लड़के अपनी गलतियों को स्वीकार करने में सहज बने अकड़े नहीं माफ़ी माँगना और माफ़ कर देना दोनों ही मनुष्य का स्वाभाविक गुण बने। जब प्राइमरी कक्षाओं से निकलकर ये कहनीं विमर्शों के गलियारों में पहुंची तो इसके क्लाइमेक्स पर प्रश्न उठाए जाने लगे की आनंदी को माफ़ न करके अलग घर बसा ले जाना चाहिए था जबकि कहानी में एक संवाद भी है कि “उसका विचार था की यदि बहुत कुछ सहने और देने पर भी परिवार के साथ निर्वाह न हो सके, तो आये दिन की कलह से जीवन को नष्ट करने की अपेक्षा यही उत्तम है कि अपनी खिचड़ी अलग पकायी जाए” तो क्या आनंदी का उसी घर में रहने का निर्णय पितृसता की संरचना के दबाव से उपजा? अथवा लाल बिहारी के आँसू ने उसके क्रोध को पिघला दिया। स्त्री अध्ययन केंद्र, रांची में प्रेमचंद पर आयोजित कार्यशाला में संजीव चन्दन ने इसके क्लाइमेक्स के पुनर्लेखन के लिए खूबसूरत प्रयोग किया। इस कहानी के क्लाइमेक्स के पुनर्लेखन की प्रेरणा ‘हंस’ पत्रिका के संपादक संजय सहाय द्वारा इस कहानी के विषय में की गई उनकी आलोचना थी। उस कार्यशाला कुछ बिंदु और अलग अलग क्लाइमेक्स कुछ इस प्रकार रहे कि वे समाज में जेंडर बोध और जेंडर जेस्ट को रूपायित करतें है। ये इस प्रकार रहा।
2024 में बदल गयी 1910 में लिखी प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’
कहानी। इसके क्लाइमेक्स को स्त्री अध्ययन केंद्र, रांची के रचनात्मक कार्यशाला में लिखा गया है। समूह लेखन में 20 से अधिक लोगों ने योगदान किया है। सबने एक-एक वाक्य या कुछ ने दो-तीन वाक्य बोले, जिसे ट्रांसक्राइब (अनुलेखन करना) किया गया है। जिन्होंने कहानी पढ़ी है, वे शायद इससे जुड़ेंगे, नहीं पढ़ी है, तब भी कहानी का मर्म समझ सकेंगे। क्या शानदार मनोविज्ञान रचा है भागीदारों ने! जेंडर का बोध भी आकर लेता हुआ और जेंडर जस्ट अंत की ओर भी। ऐसा समूह लेखन उनके लिए पहला था या अधिकांश के लिए कहानी लेखन पहली बार था।
इस समूह लेखन के पहले दो दिन कार्यशाला आयोजित हुई थी, मेरी देख-रेख में। हुआ बस इतना ही था।
प्रेमचंद-
“पर भाई का यह कहना कि मैं इसकी सूरत भी नहीं देखना चाहता, लालबिहारी से सहा न गया। वह रोता हुआ घर गया, कोठरी मे जाकर कपड़े पहने, आँखें पोछी, जिसमें कोई यह न समझे की रोता था”।
कुमारी वर्षा रानी
आँसू छिपाने का कारण यह भी था कि लोग उसे कमजोर न समझे।
नेहा कुमारी
आँसू पोछेते हुए वह यह सोच रहा था,अगर भाभी ने उसकी शिकायत भैया से न की होती तो यह जो भी कुछ हुआ ये हुआ ही न होता।
सोनाली गुप्ता
यह सोचते हुए उसको यह ख्याल आया कि यह स्त्री…यह स्त्री ही है, बड़े घर की, जो हमारे घर को तोड़ रही है, क्योंकि उसे इस बात का घमंड है कि वह ऊंचे घर से है।
साज़दा बानो
गलती सिर्फ बड़े घर की लड़की से ही नहीं, छोटे घर की लड़की से भी हो सकती है?
विवेक सिन्हा
लालबिहारी को उस पल अपने बचपन की याद आई, जब उसकी आँखों मे आँसू देख उसका भाई उसे गले लगा लेता था।
उदय शंकर राज
आज अगर एक स्त्री की बात न होती तो मेरे उसी भाई ने उतने ही स्नेह के साथ पूर्व की भांति मुझे गले लगा लिया होता।
ममता कुमारी
उसे अपने भाई मे हमेशा अपने पिता की छवि दिखती थी, आज उसे लग रहा था कि उसने अपने भाई को नहीं बल्कि पिता को खो दिया है।
संजीव चन्दन
लालबिहारी समझ ही नहीं पा रहा था की उसके साथ हो क्या रहा है? वह गुस्से में है भाभी से…या…या उसे अपने किए पर पश्चयाताप है…या उसे अपने भैया पर गुस्सा है, या फिर उसे अपने अपने पिता पर गुस्सा है, जिसने सारी बातें भैया से सुनी और उन्हे रोका नहीं टोका नहीं।
शिवनाथ मुर्मू
उसे अपने भाई से उम्मीद नहीं की थी कि वह उसके लिए ऐसे शब्दों का उपयोग करेगा।
स्निग्धा डे
पुरानी घृणा जो पहले से उसके मन मे अपने भाभी को लेकर थी वह फिर से जागृत हो रही थी।
पियूष कुमार
अनायास ही उसे बचपन मे सुनी एक कथा की याद आई, शायद वह भगवत कथा का कोई अंश था, जिसमें यह लिखा था कि घृणा और नफरत मनुष्यता के खिलाफ है।
आलो दास
इन सारी चीजों के बारे में सोच ही रहा था कि उसे लगा की जो हुआ उसको छोड़ कर मैं अपनी गलती मान कर सारी चीजों को ठीक कर लेता हूँ। फिर उसे अपने पुरुष होने की मर्यादा याद आती है, और सोचता है कि अब इस पार होगा या उस पार।
नीति तिर्की
पर इन सब बातों मे उसे कहीं न कहीं यह भी लग रहा था कि शायद वह गलत है और उसकी भाभी सही हैं। ऐसा सोचते-सोचते उसे अपनी माँ याद आ रही थी।
अनुज बेसरा
उसी समय उसे ख्याल आया कि क्यों न वह अपनी दुविधा को पड़ोस में रहने वाले अपने दोस्त के साथ साझा करे ताकि दोस्त से बात कर अपनी दुविधा का कोई हल निकाल सके, और वह अपने दोस्त के पास जाने का फैसला करता है।
राहुल कुमार गुप्ता
लालबिहारी रास्ते मे जाते-जाते अब भी यही सोच रहा था कि कहीं उसकी गलती तो नहीं थी कि उसने भाभी पर ज़ोर से चप्पल से वार किया सिर्फ इसलिए कि एक पाव घी एक ही बार मे खतम कर दिया था उन्होंने या फिर भाभी की गलती थी कि उन्होने भैया को अच्छे से नहीं समझाया कि वह जो पूरी परिस्थिति थी उसका कारण क्या था ?
आदित्य गौरव
जब वह पड़ोस वाले दोस्त के घर गया तो उसके दोस्त ने उसे बताया कि उसने बहुत ही कम उम्र में अपनी माँ और अपने भाई को खोया है। परिवार क्या होता है, उसके दोस्त ने लालबिहारी को समझाया।
विकेश कुमार
मिलजुल कर रहने से इस तरह का कलेश और इस तरह के आपसी विवाद नहीं होते।
मीनू मनीषा मुर्मू
अपने दोस्त से बात करने के बाद, उसे महसूस हुआ कि उसके दोस्त ने भी ऐसे दुःख का सामना किया था। और वह इस अपराधबोध से उबरा। इससे प्रेरित होकर, उसने अपनी भाभी को माफ करने का निर्णय लिया।
रेशमा मुर्मू
दोनों दोस्त अब लालबिहारी के आंगन मे ही बैठ कर बातें कर रहे थे। लालबिहारी को महसूस हो गया कि मेरी भी गलती थी और दोस्त के समझने पर उसे और दृढ़विश्वास हो गया कि मुझे अपनी गलती मान लेनी चाहिए। चूंकि उस समय आंगन का दरवाजा खुला हुआ था। पड़ोस की लड़की कंचना अचानक से आ जाती है और लाल बिहारी को यह पता होता है कंचना उसे बचपन से पसंद करती है। कंचना को अचानक देख और दोस्त की बातों को सुनने के बाद उसे महसूस होता है कि प्रेम भावना कितनी अच्छी होती है, मैंने भैया और भाभी के बीच इस तरह का अनबन उत्पन्न कराकर अच्छा नही किया ।
रोहिन कुमार
इस तरह का पारिवारिक उतार चढ़ाव घर-घर की बात है अपनों से क्या गीला शिकवा !
पिंकी दास
अब लालबिहारी सोच रहा था,अगर उसकी भाभी के स्थान पर उसकी बहन होती तो उसे माफ कर देता, तो भाभी को क्यों नहीं।
संजीव चंदन
अब लालबिहारी को यह महसूस हो चुका था कि गलती उसकी थी, आनंदी को भी लगा कि उसे इस मसले को सुलझा लेना चाहिए लालबिहारी से बात करके, और अगली बार लाल बिहारी को अच्छे से गोश्त बनाकर खिलाऊँगी। बड़े भाई सीरी कंठ भी पश्चाताप में थे।
कहानी के सारे वाक्य लगभग 20 मिनट में एक्सटेम्पोर बोले गए और रिकॉर्ड हुए। हमने यहाँ सिर्फ भाषागत तारतम्य बनाया है, अन्यथा यह यथावत ट्रांस्क्रिप्ट हुआ है। ऊपर के नामों के अलावा वहां थे संदीप किस्कु, संदीप भंडारी, लॉरेंस मुर्मू, युमना परेया, जगन्नाथ सरदार, स्निग्धा हंसदा और बिनय ठाकुर।
रचनात्मक लेखन की कार्यशाला के आयडिया और आयोजन के लिए धन्यवाद ममता सिंह
बच्चों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ जिन्होंने अपनी इमेजरी से वस्तु को कई नए आयाम दिये हैं। उनका अपना जीवन भी इस पुनर्लेखन में झांकता है।
उन्हें मेरा साधुवाद।
विशेष तब्बजो का आग्रह है आप लोगों से
कमलानंद झा, शंभु गुप्त सुधांशु गुप्त, कालीचरण स्नेही सुधा सिंह, अनिता भारती नूर जहीर, रक्षा गीता, मनोरमा सिंह।
टिप्पणियाँ –
शंभू गुप्त- कहानी में ओनस शिफ्ट हो गया। यह बड़ी बात हुई सर, है न। बड़े घर की बेटी की जगह, परिवार में रिश्तों की गरिमा कहानी के केंद्र में आ गई।
मनोरमा -सभी भागीदार छात्रों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं, उनकी सोच और इनपुट ने नए आयाम दिए हैं कहानी को,ये पढ़ना बहुत सुखद और भविष्य के प्रति सकारात्मक और उम्मीद की नज़र है!
रक्षा गीता उत्तर आधुनिकता जिस पाठ विश्लेषण की बात करती है जिसके केंद्र में पाठक ही होता है ‘बड़े घर की बेटी’ के विविध पाठ उसी का श्रेष्ठ उदाहरण है। कार्यशाला के आयोजकों और विद्यार्थियों को खूब बधाई किताबों के घिसे पिटे एकेडमिक ज्ञान से हटकर विद्यार्थियों को वैचारिक स्तर पर तैयार करना आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है यह अन्य पूर्व कथाओं के साथ भी होना चाहिए।
कहानी आप सभी ने भी पढ़ी होगी यादी आपका मन मस्तिष्क भी क्लाइमेक्स को लेकर कुछ कहने को हो रहा है तो टिप्पणियां कर सकतें हैं।