जगजीवनराम के बारे में कई भ्रांतियां तोड़ती है यह किताब

कर्मेन्दु शिशिर

बाबू जगजीवन राम जी की जो जीवनी इसके लेखक ई. राजेंद्र प्रसाद जी ने भेंट की है यह सातवाँ संस्करण है।जगजीवन बाबू को लेकर सामान्य वर्ग में भले ही उदासीनता हो मगर उनका एक विशाल पाठक वर्ग तो अब आ चुका है।हमने तो ऐसा समाज बनाया है कि हम दिवंगत व्यक्तित्वों को भी उसी संकीर्ण नजरिये से देखते हैं। वे सब जो सार्वजनिक थे, हम सबके पूर्वज नहीं होते, हमें अपने-अपने पूर्वजों को मौजूदा जाति से चयन करना पड़ता है। इससे हमें वर्त्तमान में स्वार्थ सिद्ध करना आसान होता है।

बहरहाल! बाबू जगजीवन राम पर संभवत: पहली बार नलिन विलोचन शर्मा ने अंग्रेजी में उनकी जीवनी लिखी।उस और कुछ अन्य, जो जीवनियाँ छपी हैं उनमें उन सवालों से कोई संवाद नहीं है जो उनको लेकर लोग राह चलते उठाते हैं। राजेन्द्र जी की यह पुस्तक इस दृष्टि से एक संपूर्ण और समग्र जीवनी है।ये भारतीय राजनीति के उस दौर के बीच रखकर उनकी भूमिका को इस तरह रखती है कि उनका महत्व समझ में आता है।हम उनके महत्व को नये परिप्रेक्ष्य में देखते हैं।

बाबा साहेब आंबेडकर और बाबू जगजीवन राम के व्यक्तित्व में भारी अंतर है। लेकिन दोनों की परिस्थितियों को लेकर हम देखें तो जातिगत उपेक्षा और प्रताड़ना जरूर दोनों को सहनी पड़ी। मगर लेखक ने यह बताया है कि बाबू जगजीवन राम के लिए परिस्थितियाँ ज्यादा विपरीत थी।

पूना पैक्ट का प्रसंग हो या कांग्रेस के लिए जरूरी कोई दलित चेहरा। बाबूजी को अपने अंदर और आचरण के अंतर्संघर्ष को किस विवशता से झेलना पड़ा या न चाहते हुए भी स्वीकार करना पडा, यह सब लेखक ने बड़ी बारीकी से लिखा है। एक तो इतनी मूल स्रोत सामग्री को जुटाने का कठिन श्रम ही देखकर आश्चर्य होता है।एक-एक कण जुटा कर यह पुस्तक तैयार की है। उन पर आयी श्रद्धांजलियाँ तक।

जो लोग बाबूजी को अवसरवादी और सत्तावादी कहकर उनके योगदान को रिड्यूस कर देते हैं उनको यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए। गाँधी जी और बाबूजी के बीच रिश्तों को लेकर जो लेखक ने लिखा है उससे उनकी मौलिक सोच समझ में आती है। मदन मोहन मालवीय और डाक्टर राजेंद्र प्रसाद का उनके जीवन में बहुत योगदान रहा और वे इसको कभी भूले नहीं। उनकी उदारता और लोगों को मदद करने की भावना कभी मुखर नहीं हुई। उनकी दक्षता और योग्यता का भूगोल कितना विस्तृत था और कितने व्यापक स्तर पर उन्होंने क्या- क्या किया ,यह सब पहली बार इस पुस्तक से समझ में आया।

राजेंद्र जी कोई पेशेवर लेखक नहीं हैं। उनका उद्देश्य था कि बाबू जगजीवन राम को लेकर जो आम हल्की-फुल्की धारणा बनी है या बनायी गयी है,उनका कोई वांड्मय नहीं है। इसलिए उनके संपूर्ण अवदान को सामने रखना जरूरी था और मुश्किल भी। फिर उन भ्रांतियों को दूर किया जाय।यह काम लेखक ने बहुत ही सफलता से किया है। वे अपने उदेश्य में सफल हैं लेकिन जीवनी लेखन की धनंजय कीर वाली शैली राजेन्द्र जी की नहीं है। तथ्यों को अधिक से अधिक पेश करने को लेकर ही हर जगह वे यत्नशील लगे। जिसकी जीवनी लिख रहे हैं उसके प्रति तटस्थ भाव से परकीयन करना और ऐसी जीवनी लिखना जो पाठ सुख से भरपूर हो इसका प्रयास लेखक ने किया है। पर अभी भी उनके जीवन के आयामों पर बहुत कुछ किया जा सकता है। किसी अन्य दक्ष जीवनीकार इसे कर सकता है। इसलिए एक ऐसी जीवनी की गुंजाइश अब भी बनी हुई है। कोई चाहे तो उसके लिए यह किताब बहुत ही महत्वपूर्ण और पर्याप्त है।
यह पुस्तक फ्लीपकार्ट और अमेजन से प्राप्त किया जा सकता है? यह अंग्रेजी में ‘लाइफ एण्ड आइडियोलाजी आफ जगजीवन राम’ शीर्षक से प्रकाशित है।
लेखक कर्मेंदु शिशिर वरिष्ठ आलोचक हैं।