सुनीता अबाबील की कविताएं

सुनीता अबाबील की कविताएं स्त्रीकाल के ताजा अंक में प्रकाशित हुई हैं तथा इनका पाठ सुनीता ने स्त्रीकाल यूट्यूब पर भी किया है।

  1. काश माँ पढ़ पाती

 मैंने मां को हमेशा मां की तरह देखा

मैंने कभी सोचा ही नहीं

कि मां की भी साथी संघाती सहेलियां हो सकती हैं

या रही होंगी

अपने पिता को मैंने हमेशा

दरवाजे के बाहर की दुनिया को फैलता देखा

माँ को हमेशा चूल्हा चौका के आस-पास

पिता हिसाब-किताब में कच्चे थे

हमेशा कर्ज में डूबे रहते

माँ हिसाब की एक दम पक्की

पर माँ की चलती नहीं थी

हम लोगों को स्कूल भेजना

सबके लिए खाना पकाना

बीच-बीच में सुट्टा (बीड़ी) लगाना

मेरी मां को पान खाना बहुत पसंद था

जब मैं बच्ची थी

मुझे ही पान लाने दुकान भेजती

मैं बता नहीं पाती मसाले में क्या डालना है

पर मां बोलती थी जाओ पान वाला जानता है

क्या डालना है

मुझे देखते ही पानवाला

मां के स्वाद का पान बना देता था

और मैं आज भी सोचती हूं क्या सच में

पान वाला मेरी मां के स्वाद को जानता था?

मेरी मां के चेहरे पर हंसी बहुत सुंदर लगती थी

जब वह हस्ती थी पान खाए हुए दांत चमक उठते

मैंने कई बार पूछा था

यह दांत काले कैसे हो गए?

बोली मिस्सी लगाया था

तब की औरतें दाँतों में मिस्सी लगाती थी

ये तबका चलन था

हम बच्चों को खेलता देख अक्सर कहती

पढ़ लो पढ़ने से ही कुछ होता है जीवन में

मेरी माँ को काम करना बहुत पसंद था

पता नहीं वो कहां-कहां से

कैसे-कैसे काम ढूंढ लेती थी

वो दिन भर काम में व्यस्त रहती थी

मैंने हजार दफे कहा थोड़ा आराम भी कर लिया करो दिन भर काम-काम करती रहती हो

कहती समय नहीं कटता है

तुम लोग की तरह पढ़ी लिखी होती

तो मैं भी कुछ किताबें पढ़ती

मां के पास इतना काम होने के बाद भी उसे हमेशा उसका खालीपन चालता रहा

और मुझसे अक्सर कहती है कि काला अक्षर भैंस बराबर

हमारे दस्तावेजों को संभाल कर रखती

आय, जाति, निवास प्रमाण पत्र

बिना पढ़े ही दस्तावेजों को देखकर

पूरे आत्मविश्वास से कहती थी

यह तुम्हारा है ये उसका है

हम कई बार बोलते कि ये मेरा नहीं है

मां कहती अच्छे से पढ़ो देखो

ठीक से देखो यह तुम्हारा ही है

और माँ बिल्कुल दुरुस्त होती

जिसका बोलती उसका ही होता

माँ की याददाश्त बहुत जबरदस्त थी

उसने रंगों और संकेतों को मिलाकर

सबके चीजों को संभालने का

तरीका इजाद कर लिया था

काश माँ पढ़ पाती

सामाज से अपने हिस्से हक़ मांग पाती

क्या पता?

सावित्री बाई फुले, अम्बेडकर

मदर इंडिया की कैथरीन मेयो

ऐनी फ्रैंक, गोर्की की माँ से

आगे की दुनिया रचती।

और दुनिया को बदलने में

अपनी दुनिया को सुंदर बनाने में

उसका बहुत योगदान हो सकता था

हालांकि उसकी दुनिया हम बच्चे थे

और हम बच्चों की दुनिया किताबों में

इन सबके बीच माँ

जो पहले एक औरत है

कही छूट गई

अपनी दुनिया बनाने से!!

2

नयी सड़क

एक बहुत पुरानी सड़क है

उसके किनारे एक घर है

जिसमें कुछ लडकियाँ रहती हैं

और कुछ औरतें भी

पर वे दिखती बहुत कम हैं

खिड़की और दरवाजे अक्सर बंद ही रहते हैं

कभी-कभार रात में खुल जाया करते हैं

उन औरतों को सड़क की तरफ देखने की मनाही है

घर से बाहर जाने की भी

सभी लड़कियों को हमेशा सिखाया जाता है

बाहर जाना ठीक नहीं होता

और निज दोपहरिया में तो बिल्कुल भी नहीं

सड़क कभी वीरान नहीं होती है

लोगों को आते-जाते देखना

किसे अच्छा नहीं लगता है

लड़कियों, औरतों को मौका मिलते ही

घण्टों सड़क के तरफ देखा करती

लड़कियों को सलीका सिखाया जाता है

सड़क के नियम नहीं

नजरें झुका कर चलना

बेहद खामोशी से चलना

इधर-उधर मत देखना

लड़कों को भी क्यों नहीं सिखाया जाता है?

वे अक्सर साइकिल उड़ाते हुए दिख जाएंगे

बहुत बार तो साईकिल का हैंडल छोड़कर

छोड़कर सब निकल जाना चाहती हैं

वे औरतें, लडकियाँ नई सड़क पर

जिनके दाएं-बाए कोई मन्दिर

मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे मठ न हों

जहाँ दिन-रात की कोई पाबंदी न हो

एक ऐसी सड़क

जिसके होने से उम्मीदों के फूल खिलें

सड़क हमेशा घर का पता नहीं बताती

सड़क अवारा भी होती है

बेपरवाह और बेमरुअत भी

सड़क पहाड़ से नदी तक आती है

पहाड़ गड्ढों से होते हुए

यूनिवर्सिटी तक

सड़क दुनिया में गुम करने का हुनर जानती है

पुरानी सड़क से होते हुए

वहीं औरतें

नई सड़क पर मिली

घर के चूल्हे में 

ताले-चाभियाँ गाड़ के आयीं

अपने साथ वही बन्द दरवाजे

और खिड़कियाँ साथ लिए यूनिवर्सिटी पहुँची

यूनिवर्सिटी को उन्होंने

नए सिरे से बनाया

पुराने खिड़की, दरवाजे लगाए

उनको खोल दिया हमेशा के लिए

और सबके लिए भी

एक और नई सड़क बनाई

उस नई सड़क से खुलती हैं

और कई नई सड़कें

जो उन गाँवों कस्बों से मिलती हैं

जहाँ से औरतें और लडकियाँ बाहर नहीं जातीं

और फिर एक दिन वे सब औरतें और लडकियाँ  

अपने बन्द खिड़की दरवाजे लेके

पहुँच जाएगीं यूनिवर्सिटी

और वो भी एक और नई यूनिवर्सिटी बनाएंगी

और फिर बनायेगीं एक और नई सड़क।

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ISSN 2394-093X
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